Mout Ka Khel - 33 in Hindi Detective stories by Kumar Rahman books and stories PDF | मौत का खेल - भाग- 33

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मौत का खेल - भाग- 33

मौत का राज

सार्जेंट सलीम ने टैक्सी ड्राइवर को मेजर विश्वजीत की कोठी का एड्रेस बता दिया और टैक्सी उसी तरफ चल पड़ी। विश्वजीत की मौत की खबर सुन कर सलीम उलझन में पड़ गया। अभी कल ही तो सोहराब, मेजर विश्वजीत से मिला था। 12 घंटे के भीतर ही उस की मौत की खबर आ गई। क्या कातिल का अगला शिकार बन गया मेजर विश्वजीत? या उसने सोहराब की पूछताछ के बाद डर कर खुदकुशी कर ली? ऐसे कई सारे सवाल सलीम के जेहन में गूंज रहे थे। फिलहाल इन सब सवालों के जवाब मेजर की कोठी पर पहुंचने के बाद ही मिल सकते थे।

सार्जेंट सलीम ने जेब से पाइप निकाला और पाउच से उसमें वान गॉग का तंबाकू भरने लगा। वह उलझन में डूबा पाइप के केश लेने लगा। टैक्सी मेजर विश्वजीत की कोठी पर पहुंच गई थी। बाहर पुलिस के जवान तैनात थे। सलीम ने टैक्सी से उतर कर किराया अदा किया और कोठी की तरफ चल दिया। गेट पर तैनात कांस्टेबल शायद सलीम को पहचानता था। उसने उसे सैल्यूट मारा। सलीम ने हल्के से झुक कर उसके सम्मान को स्वीकार किया और तेज कदमों से अंदर दाखिल हो गया।

सोहराब उसे लॉन में ही मिल गया। वह लॉन का बारीकी से जायजा ले रहा था। इसका मतलब यह था कि वह अंदर की तहकीकात पूरी कर चुका था। सलीम को देखते ही उसने कहा, “अंदर जाकर एक बार लाश देख लो। लाश बेडरूम में है।”

सार्जेंट सलीम अंदर चला गया। मेजर की लाश बेड पर तिरछी पड़ी हुई थी। उस का एक हाथ आगे की तरफ था। ऐसा लगता था, जैसे वह किसी से बचाव की कोशिश कर रहा हो। सलीम ने पहले बॉडी का जायजा लिया। लाश पर खुली तौर पर चोट का कोई निशान नहीं था। यानी खून निकलने का कोई भी चिन्ह नजर नहीं आ रहा था। वह बेडरूम का बारीकी से जायजा लेने लगा। यह काफी बड़ा बेडरूम था। एक हिस्से में बेडरूम था और बीच में वुडन पार्टीशन से उसे अलग कर दिया गया था। दूसरी तरफ सोफे पड़े हुए थे। एक तरफ छोटा सा बार भी था। उसमें कीमती वाइन रखी हुई थी। कमरे का दरवाजा उखड़ा हुआ था। बाकी उसे कोई और खास बात नजर नहीं आई।

सलीम बाहर निकल आया। वहां उसकी मुलाकात कोतवाली इंचार्ज मनीष से हो गई। वह जाब्ते की कार्रवाई के लिए दो पुलिस कांस्टेबल के साथ बेडरूम की तरफ जा रहा था। मनीष ने सलीम से हाथ मिलाया और अंदर की तरफ चला गया। सलीम बाहर पहुंचा तो सोहराब लॉन में बैठा सिगार पी रहा था। सलीम भी उसके बगल में आकर बैठ गया।

“घटना के बारे में कैसे पता चला आपको?” सलीम ने पूछा।

“कोतवाली इंचार्ज मनीष ने फोन पर जानकारी दी थी।” सोहराब ने सिगार का कश लेते हुए बताया।

“लाश को देख कर तो ऐसा लग रहा है कि गला घोंट कर कत्ल किया गया हो, क्योंकि लाश पर खुली चोट के कोई निशान तो दिख नहीं रहे हैं?” सलीम ने खदशा जाहिर किया।

“हार्ट अटैक का मामला लग रहा है। बाकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट से सारी बात साफ हो जाएगी।” सोहराब ने जवाब दिया।

“लाश को देख कर तो ऐसा लग रहा है कि वह किसी से बचाव की कोशिश कर रहे हों!” सलीम ने कहा।

“सीने में अचानक तेज दर्द उठा होगा और वह किसी की मदद लेने के लिए उठने की कोशिश कर रहे होंगे तभी अटैक पड़ गया।” सोहराब ने अंदेशा जाहिर किया।

“इतना ठोस नतीजा आप निकाल रहे हैं तो इसकी कोई वजह भी होगी?” सलीम ने पूछा।

“मौके के हालात देख कर अंदाजा हो रहा है।” सोहराब ने कहा।

“मैं समझा नहीं!” सलीम ने कहा।

“पहले पूरा मामला समझ लो।” सोहराब ने कहा, “मेजर विश्वजीत देर रात तक पार्टी के आदी थे, इसलिए सुबह देर से सोकर उठते थे। उनका एक खास नौकर था। उसे ताकीद थी कि अगर वह दोपहर एक बजे तक न उठें तो उन्हें जगा दिया जाए।” सोहराब ने बुझ गई सिगार को दोबारा जलाते हुए कहा, “दोपहर डेढ़ बजे नौकर उन्हें जगाने गया। काफी देर बेल बजाने के बाद भी जब अंदर से कोई आवाज नहीं आई तो वह परेशान हुआ। उसने उनकी सेक्रेटरी को खबर दी। बाद में पुलिस को इत्तिला दी गई। पुलिस दरवाजा तोड़ कर अंदर घुसी तो उनकी लाश बेड पर पड़ी हुई थी।”

“मान लिया कि वह कमरे में अकेले थे। उन्हें कत्ल नहीं किया जा सकता है। उन्हें जहर भी तो दिया जा सकता है?” सलीम ने संशय जाहिर किया।

“यह मुमकिन है।” सोहराब ने सोचते हुए कहा।

“अबीर से उनकी रंजिश चल रही थी। एक बार उसने मेजर की पार्टी में डॉ. वीरानी का पुतला भी फेंक दिया था।” सलीम ने कहा।

“यह खबर तुम्हें कैसे मिली और अब तक बताई क्यों नहीं?” इंस्पेक्टर सोहराब ने उसे घूरते हुए पूछा।

“हमारे भी कुछ सूत्र हैं।” सलीम ने सीना चौड़ा करते हुए कहा।

“बड़ी गलती की है। आओ मेरे साथ।” सोहराब ने उठते हुए कहा।

सलीम भी कुर्सी से उठ गया और सोहराब के पीछे-पीछे चल दिया। सोहराब का रुख मेजर के बेडरूम की तरफ ही था। जब वह अंदर पहुंचे तो मेजर की लाश का पंचनामा भरा जा रहा था। सोहराब बेडरूम के बीच में खड़ा हो कर एक-एक चीज का दोबारा जायजा लेने लगा। उसने खिड़कियों से लेकर रोशनदान तक चेक कर डाला। बंद दरवाजे को खोलने की उसने सारी संभावनाएं भी जांच डालीं।

इसके बाद वह उसके बार की तरफ चला गया। सलीम भी उसके साथ ही था। सोहराब ने हाथों पर दस्ताने चढ़ा लिए और दोबारा से वहां रखे दोनों जाम को सूंघने लगा। इसके बाद उसने सलीम से कहा, “यहां रखी सारी वाइन और इन दोनों जाम की मुझे फोरेंसिक रिपोर्ट चाहिए। इन्हें महकमे की लैब भिजवाने का बंदोबस्त करो।”

सलीम बाहर से दो कांस्टेबल बुला लाया और फिर वाइन और जाम को सील कराने लगा। इस कार्रवाई को मुकम्मल कराने के बाद जब वह बाहर निकला तो उसे सोहराब कहीं नजर नहीं आया। उसने गेट पर तैनात कांस्टेबल से पूछा तो पता चला कि वह आधा घंटे पहले ही वहां से जा चुके हैं। सोहराब के इस तरह से अचानक बिना बताए चले जाने से सलीम भन्ना कर रह गया। तभी उसे याद आया कि उसकी घोस्ट लॉर्ड एंड लैरी टेलर्स के शो रूम के बाहर खड़ी है। उस ने एक टैक्सी रुकवाई और उस पर सवार हो कर शो रूम की तरफ चल दिया। उसने सोहराब को फोन मिलाया, लेकिन उसका फोन पिक नहीं हुआ।

सलीम को जिस बात का डर था वही हुआ। सिंड्रेला शो रूम पर बैठी थी और इत्तेफाकन बाहर की तरफ ही देख रही थी। सलीम ने जल्दी से टैक्सी वाले से टैक्सी आगे ले चलने को कहा। प्रिंस ऑफ बंबेबो को टैक्सी से उतरता देख कर वह जाने क्या सोच बैठे। यह ख्याल आते ही सलीम परेशान हो गया। शो रूम से आगे पहुंच कर उसने टैक्सी रुकवाई और फिर नीचे उतर आया। ड्राइवर को किराया अदा किया और घोस्ट की तरफ चल दिया। घोस्ट पर सवार होने के लिए उसने ड्राइवर की जगह उलटे साइड वाला गेट चुना था, ताकि सिंड्रेला उसे देख न सके। गेट खोल कर वह अंदर दाखिल हुआ और बड़ी मुश्किल से ड्राइविंग सीट तक पहुंच सका। घोस्ट स्टार्ट की और चल पड़ा।

तभी एक कार उसे ओवरटेक करते हुए बगल से गुजर गई। उसमें बैठी हुई लड़की उसे जानी पहचानी लगी। तभी उसे याद आ गया। वह रायना थी। उसने अपनी कार उसके पीछे डाल दी। वह लगातार रायना की कार का पीछा करता रहा। तभी उसके फोन की घंटी बजी। दूसरी तरफ सोहराब था। कार रोक कर बात करने का वक्त नहीं था। उसने फोन को कार के स्पीकर पर डाला और कॉल रिसीव कर ली। दूसरी तरफ से आवाज आई, “कार का पीछा बंद कर दो। सीधे घर पहुंचो मैं वहीं मिलूंगा।”

यह बात सुन कर सलीम चौंक पड़ा। उसने कार के पिछली साइड का कैमरा स्क्रीन पर ऑन किया। वह काफी देर टोह लेता रहा, लेकिन उसे सोहराब की कार कहीं नजर नहीं आई। तो क्या सोहराब रायना की कार में मौजूद है? यह सोचकर ही सलीम को हलकी सी झुरझुरी आ गई। उसने अपनी कार बाईं तरफ मोड़ दी और सेवेन डार्क स्ट्रीट की तरफ चल दिया।


अबीर और मेजर


सेवेन डार्क स्ट्रीट पर सोहराब की कोठी गुलमोहर विला थी। जब सलीम कोठी पर पहुंचा, धूप का दम टूट चुका था। उसका पीलापन कोठी की दीवारों से विदा लेने को बेकरार था। सलीम ने कार पार्क की और घोस्ट से नीचे उतर आया। वह सीधे अपने रूम में गया। वहां उसने कपड़े बदले और वाशरूम में घुस गया। जब वह बाहर निकला तो काफी फ्रेश महसूस कर रहा था। उसने नाइट ड्रेस पहना और आ कर ड्राइंग रूम में बैठ गया। नाइट ड्रेस पहनने का मतलब था कि अब सलीम का कहीं भी जाने का कोई इरादा नहीं है। बशर्ते कि सोहराब का हुक्म न आ पहुंचे।

उसने आदत के मुताबिक बेल न बजाकर झाना को आवाज दी। झाना दौड़ा चला आया। उसने झाना से कॉफी और सैंडविच लाने के लिए कहा। उसने जेब टटोली लेकिन पाइप और तंबाकू का पाउच वह कमरे में ही भूल आया था। वह दोबारा कमरे में पहुंचा तो देखा कि फोन भी वह टेबल पर ही छोड़ आया था। उसने फोन उठा लिया। उस पर सोहराब का मैसेज पड़ा हुआ था। उसने सलीम से पूछा था, ‘पुख्ता खबर है न कि अबीर ने पार्टी में डॉ. वीरानी का पुतला फेंका था।’

सलीम ने जवाब में यस लिख कर सेंड कर दिया। इसके बाद वह मोबाइल, पाइप और तंबाकू के साथ बाहर आ गया। ड्राइंग रूम पहुंच कर वह सोफे पर बैठ गया। पाइप में तंबाकू भरी और पीने लगा। अभी कुछ कश ही लगाए थे कि झाना ट्राली पर कॉफी और सैंडविच लाते हुए दिखा।

“बेटे कार भेजूं क्या!” सलीम ने वहीं से हांक लगाई।

जवाब में झाना ने कुछ नहीं कहा। जब वह करीब आया तो सलीम ने फिर उसे टोका, “यह ट्रैक्टर-ट्राली सोहराब साहब के लिए रख छोड़ो... मेरे लिए सीधे हाथों में ट्राली थाम कर अदा से बल खाते हुए आया करो।”

सलीम ने यह कहते हुए अपनी कमर को थोड़ा सा हिलाया भी था। उसकी यह अदा और बात सुन कर झाना खिलखिलाकर हंस पड़ा।

“अबे आहिस्ता... ट्राली उलट जाएगी। बेचारी सैंडविच कुचल कर मारी जाएंगी।” सलीम ने कहा।

झाना ने ट्राली सलीम के करीब रख दी और जाने लगा। सलीम ने उसे रोकते हुए कहा, “जाओ शतरंज उठा लाओ। आज जो हारा वह मेंढक की तरह उछल उछल कर टर्राएगा।”

“मैं नहीं खेलूंगा... क्योंकि आप ही हमेशा जीतते हैं!” झाना ने मुंह बनाते हुए कहा।

“अच्छा चलो आज हार जाऊंगा।” सलीम ने कहा और अपने लिए कॉफी बनाने लगा।

झाना शतरंज ले कर हाजिर हो गया। सलीम ने अपने लिए दूसरी कॉफी बनाई और बाजी जम गई। कई बाजियां हो गईं, लेकिन झाना एक बार भी नहीं जीत सका। जब वह पांचवी बाजी भी हार गया तो उसने फिर हाथ खड़े कर दिए और कहने लगा, “मैं इस से ज्यादा नहीं टर्रा पाऊंगा।”

सलीम ने शतरंज समेट कर रख दिया और झाना पूरे ड्राइंग रूम में उछल उछल कर टर्राने लगा। शुरू में उसकी आवाज धीमी थी। फिर सलीम के टोकने पर उसने आवाज तेज कर दी। उसकी आवाज सुन कर करीमा और शाने भी आ गए। उन का हंसते-हंसते बुरा हाल था और झाना आंख बंद किए टर्राता घूम रहा था। तीन चक्कर लगाने में ही उसके तोते उड़ गए। उसने रुकते हुए कहा, “बाकी दो राउंड कल पूरे कर दूंगा।”

“ठीक है भूल न जाना।” सलीम ने कहा, “अब ड्राली ले कर निकलो यहां से। सोहराब साहब की आमद कभी भी हो सकती है।”

सलीम ने रिस्ट वाच देखी नौ बजने में महज कुछ मिनट ही कम थे। उसे हलकी सी सर्दी महसूस हुई। वह वापस कमरे की तरफ चल दिया। वहां से उसने जैकेट उठाई और पहन कर बाहर गया। अभी वह ड्राइंग रूम पहुंचा ही था कि सोहराब के कदमों की आहट सुनाई दी। सोहराब ने आते ही कहा, “कई बार तुम्हारी नादानी वक्त की बर्बादी साबित होती है!”

“अब मैंने क्या कर दिया?” सलीम ने मासूमियत से पूछा।

“यह मासूम सवाल मत दोहराया करो बार बार।” सोहराब ने नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा, “जब तुम्हें यह बात पता चल गई थी कि अबीर ने पुतला फेंका है तो तुम ने मुझे बताया क्यों नहीं।”

“बस जरा जेहन से बात उतर गई थी।” सलीम ने तर्क दिया।

“कल से शीर्षासन शुरू कर दीजिए। सब ठीक हो जाएगा।” सोहराब ने कहा।

“जी आज रात उलटा ही सोऊंगा।” सलीम ने गंभीरता से कहा।

सोहराब ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। वह कुछ देर खामोश बैठा रहा फिरे बताने लगा, “मैं अबीर और रायना से मिला आज। होटल सिनेरियो में दोनों मुझे मिल गए। अबीर ने कबूल कर लिया है कि उसने मेजर विश्वजीत की पार्टी में पुतला फेंका था, लेकिन उसने यह नहीं बताया कि पुतले के चेहरे पर डॉ. वीरानी का फोटो क्यों लगाया गया था? पुतला फेंकने की बात की तस्दीक रायना ने भी की है। अबीर ने यह भी स्वीकार कर लिया है कि मेजर और रायना की कुर्बत से वह खुश नहीं था। वह मेजर विश्वजीत से नफरत करता था।”

“उसने यह सब इतनी आसानी से कबूल कैसे कर लिया?” सार्जेंट सलीम ने पूछा।

“मैंने उससे कहा था कि मेजर विश्वजीत ने खुदकुशी कर ली है और सुसाइड नोट में उसने अबीर को मौत का जिम्मेदार ठहराया है।” सोहराब ने बताया, “अगर मुजरिम पेशेवर न हो तो वह इस तरह के अचानक झटके से बिखर जाता है और अपनी सफाई में सब कुछ सचसच बताने लगता है। अबीर ने यह भी बताया कि कल रात की पार्टी में मेजर ने उसे धमकाया था।”

“फिर तो पार्टी के बाद अबीर ने ही मेजर को टपका डाला है।” सार्जेंट सलीम ने कहा।


*** * ***


क्या वाकई अबीर ने मजर विश्वजीत को रास्ते से हटा दिया?
मेजर की पोस्टमार्ट रिपोर्ट में क्या निकला?

इन सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़िए कुमार रहमान का जासूसी उपन्यास ‘मौत का खेल’ का अगला भाग...