Lara - 5 in Hindi Fiction Stories by रामानुज दरिया books and stories PDF | लारा - 5 - (एक प्रेम कहानी )

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लारा - 5 - (एक प्रेम कहानी )

Behind the scenes love story❤
(Part 5)
सोमा जब तक राम के साथ थी उसे अपने प्यार का एहसास नहीं था, उसे यह नहीं मालूम था कि वह राम से इतनी मोहब्बत करती है। प्यार को उसने खेल समझ रखा था लेकिन प्यार क्या है यह तो उसे राम से अलग होने के बाद पता चला, जब वह पल पल राम की याद में तड़पने लगी। और कहते हैं ना कि अगर किसी को सच्चे दिल से याद करो तो उसे एहसास हो जाता है जिसे हम याद कर रहे होते हैं। उसी तरह राम की सच्ची मोहब्बत और उसकी यादें सोमा को जीने नहीं दे रही थी। आखिरकार सोमा को राम के पास लौट कर आना ही पड़ा और आज सोमा राम से बात कर ही रही है। राम अभी तक सोमा के अगले मैसेज का इंतज़ार ही कर रहे थे कि सोमा का अगला मैसेज आ गया राम का इंतजार खत्म हुआ। सोमा ने पूछा, कैसे हैं आप क्या कर रहे हैं ?
राम जी ने बताया कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है ऑफिस से दोपहर में ही चला आया था कंबल ओढ़ कर लेटा हूं बुखार भी आ गया है।
सोमा को तुरंत समझ में आ गया कि राम की तबीयत ज्यादा खराब है वरना सितंबर के महीने में कंबल ओढ़ कर सोना कोई मामूली बात नहीं है। उसने पूछा दवा नहीं लाए थे?
राम बोले नहीं। सोमा बोली कि जब सुबह से ही तबीयत खराब है और दोपहर में जब ऑफिस से वापस आ रहे थे तो आपको दवा लेते आना चाहिए था। सोमा की यह बात सुनकर रामजी की आंखों में आंसू भर आए और उन आंसुओं की एक-एक बूंद सोमा से चिल्लाकर कह रही थी। कि सोमा यह दर्द यह बीमारी ऐसी हालत यह सब तुम्हारी देन है, यह दर्द किसी आम इंसान ने नहीं दिया है,और ना ही इन आम दवाइयों से ठीक होगा। सोमा जानती हो यह दर्द तुमने दिया है और तुम ही से ठीक होगा। दिल के दर्द की दवा सिर्फ दिलदार होता है किसी मेडिकल स्टोर पर मिलने वाली दवाइयां नहीं। यह सारी बातें राम के आंखों में छलक रहे आंसू बोल रहे थे।
राम जी तो अपनी जुबान से कुछ नहीं बोले लेकिन अब राम को समझने के लिए सोमा को उसके जुबान की जरूरत नहीं थी। सोमा राम को उससे ज्यादा समझने लगी थी, वह राम से बात करते ही सब समझ जाती फिर चाहे राम फोन पर बात करें या फिर मैसेज पर टाइपिंग करें, वह तुरंत पकड़ लेती थी कि राम किस हाल में है। सोमा बोली कि घर पर बात किए थे? राम जी बोले कई दिन हो गया घर पर बात नहीं हुई है। यह सब सुनकर सोमा को खुद से नफरत होने लगी लेकिन अब कर भी क्या सकती थी किसी का किया हुआ वापस थोड़ी आता है । राम जी बोले सोमा तुम कितनी बदल गई हो ना,कितनी कठोर हो गई हो, आज तुम्हें मेरी जरा भी परवाह नहीं है ना? एक समय था जब तुम्हें मुझ से ज्यादा मेरी फिक्र हुआ करती थी, मेरा नाश्ता, लंच, डिनर, चाय, दवा सब चीज का ख्याल रखती थी और आज.............।
दबे स्वर में इतने शब्द बोल कर राम चुप हो गए, राम के सवालों पर सोमा एकदम से चुप थी क्योंकि वह निशब्द थी, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह राम से क्या बोले क्योंकि इन सब में कसूरवार सिर्फ सोमा थी जो कुछ हुआ था, सब सोमा का किया धरा था। लेकिन राम से इतनी मोहब्बत करने के बावजूद सोमा ने अपनी फीलिंग का राम को जरा भी एहसास नहीं होने दिया। उसने यह जरा भी नहीं बताया कि जितने दर्द में आप जी रहे थे, उतना ही दर्द मुझे भी था, मेरे लिए सिर्फ आप ही नहीं हम भी आपके लिए तड़पे हैं। रामजी सोमा को हमेशा जान कहकर ही बुलाते थे। क्योंकि सोमा को अपना नाम बिल्कुल भी पसंद नहीं था। लेकिन राम को सोमा का नाम बहुत अच्छा लगता था, वो सोमा से इतना प्यार जो करते थे। ना सोमा अच्छी थी और ना ही सोमा का नाम अच्छा था,
लेकिन राम जी को वो और उससे जुड़ा हर चीज बहुत अच्छा लगता था, क्योंकि उन्हें सोमा से मोहब्बत हो गई थी। किसी ने सच ही कहा है
''कि जब दिल लगा गधी से तो परी क्या चीज है''
यही कंडीशन राम का भी था,
राम जी बोले जान चुप क्यों हो, क्या हुआ, बोलो कुछ इतने दिनों बाद आए हो और आज भी चुप हो?
''हाल अपना तुम्हें बताना क्या
चीर के दिल तुम्हें दिखाना क्या
वही रोना है सदा का अब भी
दास्तां फिर वही दोहराना क्या
बेकरारी भी है जुदाई भी
गम की बातें तुम्हें बताना क्या
मेरी चुप्पी में ही तेरी मोहब्बत है
बेवजह होठों को हिलाना क्या''
सोमा चुप रही फिर थोड़ी देर बाद उसके अंदर का शैतान बोल उठा, ऐसा लग रहा था कि मानो सोमा सच में बदल गयी थी, पता नहीं क्या सोच रही थी, पता नहीं कौन सी बात उसके मोहब्बत के आड़े आ रही थी, शायद उसका रियल रिलेशन उसे राम से मोहब्बत करने से रोक रहा था कि ये सही नहीं है। क्योंकि इतना कुछ झेलने के बाद भी वो बोली।
कि देखिए हम आपसे बात तो करेंगे, हम रिलेशन में तो रहेंगे लेकिन हमारे बीच यह प्रेम जैसी चीज का कोई भाव नहीं होगा। इसीलिए प्लीज हमें जान मत बुलाइए, हम किसी की जान नहीं हैं।
राम बोले कि तुम पहले भी मेरी जान थी, आज भी मेरी जान ही हो, और हमेशा मेरी जान बनकर ही रहोगी, मैं भले ना रहूं लेकिन तुम हमेशा मेरी जान रहोगी। तो सोमा बोली कि नहीं अब हम ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे ।
क्या हमें बात करने के लिए ये सब करना जरूरी है, क्या हम नॉर्मल बात नहीं कर सकते हैं, बिना जान, आई लव यू ,मिस यू ,किस यू किए बिना भी तो बात हो सकती है। राम जी बोले लेकिन क्यों सोमा प्रॉब्लम क्या है इसमें ?
सोमा बोली हम कुछ नहीं जानते हैं,
बस हम फैसला कर चुके हैं अब बात तो करेंगे लेकिन ये सब नहीं करेंगे। और इस मैटर पर हम आगे अब और कोई बात नहीं करना चाहते हैं।
एक बार बोल दिए कि फैसला कर लिया तो कर लिया।
कहते हैं कि
"वह मोहब्बत भी उसकी थी
वह नफरत भी उसकी थी
वह अपनाने और रूठने की अदा भी उसकी थी
रामजी अपनी वफा का इंसाफ
मांगते भी तो किससे
वह शहर भी उसका था, वह अदालत भी उसकी थी"

इसलिए आजतक सोमा ने जो भी फैसला किया जो भी शर्तें रखी राम जी को सब मंजूर थे। बस कैसे भी करके रामजी सोमा को खोना नहीं चाहते थे, वो कोई भी फैसला करे कोई भी शर्तें रखे बस राम के पास रहे। राम जी तुरंत बोले ठीक है सोमा तुम जैसा चाहोगे वैसा ही होगा, मुझे पहले भी तुम्हारी सारी शर्तें मंजूर थी और आज भी मंजूर है, वही होगा जो तुम चाहोगी।
फिर दोनों में देर रात तक बातें हुई इतने दिनों के बिछड़े जो थे। लग रहा था बरसों के बाद मिले हैं ।
सोमा से बात करने के बाद आज रामजी खुद को बहुत दिनों बाद हल्का फील कर रहे थे। आज उन्हें सब अच्छा लग रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे उनकी कोई कीमती खोई हुई अमानत मिल गई हो। सोमा बातूनी थी ही उसने अपने बातों ही बातों में राम जी को हँसा दिया, आज महीनों बाद राम जी के चेहरे पर हल्की सी स्माइल आई थी। राम जी बोले जानती हो आज मैंने मैगी बनाई थी। तो सोमा बोली तो क्या हुआ मैगी में मैगी जल गई क्या? या कहीं खुद पर तो नहीं गिरा लिए?
रामजी फिर वही बोले कि जानती हो आज मैंने मैगी बनाई थी, सोमा फिर पूंछी तो क्या हुआ मैगी में?
राम जी हंस पड़े बोले ।
क्या खा लिया खत्म हो गई और क्या। पागल
(आगे कि स्टोरी भाग 6 में)
(#Lara)