Mejban - 3 - last part in Hindi Moral Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | मेज़बान - 3 - अंतिम भाग

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मेज़बान - 3 - अंतिम भाग

(3)

बुक शेल्फ के बाद किशोर की नज़र एक दीवार पर पड़ी। उसमें कुछ फ्रेम टंगे हुए थे। वह उन्हें देखने लगा। सभी तस्वीरों में प्रोफेसर पवन कुमार एक औरत के साथ थे। वह औरत बहुत सुंदर थी। तभी पीछे से प्रोफेसर पवन कुमार की आवाज़ आई,

"मैं और मेरी पत्नी मधुरिमा हैं।"

"समझ गया था सर। मधुरिमा जी बहुत खूबसूरत हैं।"

"सिर्फ शरीर ही नहीं। उसकी आत्मा भी बहुत सुंदर है।"

किशोर ने महसूस किया कि यह कहते हुए प्रोफेसर पवन कुमार भावुक हो गए। अपनी भावनाओं को दबाते हुए उन्होंने कहा,

"आ जाओ....चाय और सैंडविच तुम्हारी राह देख रहे हैं।"

किशोर अपनी जगह पर वापस चला गया। प्रोफेसर पवन कुमार ने उसके सामने ट्रे रखते हुए कहा,

"उम्मीद है तुमको अच्छा लगेगा। पहले जब मधुरिमा ठीक थी तब किसी मेहमान के आने पर कुछ स्पेशल ज़रूर बनाती थी।"

किशोर ने सैंडविच से एक बाइट लेते हुए कहा,

"प्रोफेसर कुमार आपने मेरे लिए बहुत किया है। थैंक्यू नहीं तो शायद अपनी कार में भूखे पेट रात बितानी पड़ती।"

"अभी मैं जब ऊपर मधुरिमा को देखने गया था तब उसने कहा कि तुम्हें कुछ खाने को ज़रूर दूँ।"

"सो नाइस ऑफ हर। बहुत केयरिंग नेचर की हैं।"

"बहुत ज्यादा। हमेशा मेरी हर चीज़ का खयाल रखा। मैं बहुत चाहता हूँ उसे। मुझे पूरा यकीन है कि वह कभी मुझे छोड़कर नहीं जाएगी। हमेशा साथ रहेगी।"

प्रोफेसर पवन कुमार ने यह बात जिस तरह से कही थी किशोर को अजीब लगा। उसने पूछा,

"प्रोफेसर ‌कुमार आप दोनों अकेले हैं। मेरा मतलब आपके बच्चे कहीं बाहर रहते हैं।"

"हमारे बच्चे नहीं हैं। हम दोनों एक दूसरे के लिए हैं। हमेशा साथ रहे हैं और हमेशा साथ रहेंगे।"

प्रोफेसर पवन कुमार बार बार दोनों के साथ रहने की बात कर रहे थे। किशोर को उनके लिए दुख हुआ। उनकी पत्नी ‌के अलावा उनका कोई नहीं था। वह पत्नी बीमार थी। उसे परेशान देखकर प्रोफेसर पवन कुमार ने कहा,

"हमारी छोड़ो। अपने बारे में बताओ। तुम क्या करते हो ?"

"मैं एक एडवरटाइजिंग एजेंसी में काम करता हूँ। अकेला रहता हूँ। मम्मी पापा दिल्ली में हैं।"

"आज तो तुम्हारा सारा प्रोग्राम बिगड़ गया। तुमसे गलती हो गई। तुम्हारा एग्ज़िट वे पीछे छूट गया। अब तुम्हारे दोस्त परेशान हो रहे होंगे।"

"उनसे बात हो जाती तो वो मदद के लिए आ जाते। पर मेरे मोबाइल की चार्जिंग खत्म हो गई। आपका लैंडलाइन खराब है।"

"मैंने कंप्लेंट की है। एक दो दिन में ठीक हो जाए शायद। वैसे हमें फोन की बहुत अधिक ज़रूरत नहीं पड़ती है।"

अचानक किशोर के मन में एक खयाल आया। उसने कहा,

"प्रोफेसर ‌कुमार अभी मन में एक बात आई।‌ आपने कहा था कि आसपास और घर भी हैं। मैं सोच रहा था कि वहाँ जाकर देखूँ। शायद कोई मदद मिल जाए।"

प्रोफेसर पवन कुमार ने कहा,

"सब मकान दूर दूर हैं। इतनी बारिश में कहाँ भटकोगे ?"

"कोशिश तो करनी पड़ेगी प्रोफेसर कुमार। मेरे दोस्तों को मेरे बारे में पता चलेगा तो ज़रूर मदद के लिए आएंगे।"

"ठीक है चले जाना। पहले खा तो लो।"

किशोर खाने लगा। प्रोफेसर पवन कुमार भी चुपचाप बैठे थे। खाते हुए किशोर सोच रहा था कि पहले यह बात याद आ गई होती तो ‌अब तक शायद उसके दोस्तों तक खबर पहुँच गई होती। वह सोच रहा था कि खाने के बाद वह फौरन ही निकल जाएगा। कुछ ना कुछ मदद तो मिल ही जाएगी। अचानक प्रोफेसर पवन कुमार ने कहा,

"मधुरिमा आवाज़ दे रही है। मैं जाकर देखता हूँ।"

अपने खयालों में खोए हुए किशोर को कोई आवाज़ सुनाई नहीं पड़ी थी। उसने कहा,

"जी आप जाइए। मैं बस खा चुका हूँ। उसके बाद मदद मांगने के लिए जाता हूँ।"

प्रोफेसर पवन कुमार उठकर चले गए। किशोर खाने लगा। खाने के बाद वह उठकर खड़ा हो गया। वह प्रोफेसर पवन कुमार के आने की राह देख रहा था। जिससे उन्हें धन्यवाद देकर विदा ले सके। उसे उम्मीद थी कि किसी घर में उसे अपने दोस्त को फोन करने की सुविधा मिल जाएगी। जब तक उसके दोस्त आएंगे तब तक वह अपनी कार में बैठकर उनका इंतज़ार कर लेगा।

करीब पंद्रह मिनट बीत जाने पर भी प्रोफेसर पवन कुमार नहीं आए। किशोर ने सोचा कि खुद ऊपर जाकर उनसे विदा ले लेता है। वह सीढ़ियां चढ़कर ऊपर गया। दरवाज़े पर जाकर ठिठक गया। उसे संकोच हो रहा था। पर प्रोफेसर पवन कुमार से विदा लिए हुए बिना निकलना भी ठीक नहीं था। उसने दरवाज़े पर नॉक करने के लिए कदम बढ़ाया। तभी अंदर से आवाज़ सुनाई पड़ी। प्रोफेसर पवन कुमार मधुरिमा से कह रहे थे कि वह अच्छी लग रही हैं। वह तकिए की टेक लगाकर बैठ जाएं। वह किशोर को ऊपर लेकर आते हैं।

किशोर पीछे हट गया।‌ वह सीढ़ियां उतर कर नीचे आकर खड़ा हो गया। कुछ ही देर में प्रोफेसर पवन कुमार दरवाज़ा खोलकर बाहर आए और उसे आवाज़ दी,

"किशोर मधुरिमा तुमसे मिलना चाहती है। ऊपर आ जाओ।"

किशोर सीढियां चढ़कर ऊपर गया। प्रोफेसर पवन कुमार उसे कमरे में ले गए।

कमरे में बहुत मद्धम सी रौशनी थी। एसी चल रहा था जिसके कारण कमरे में बहुत ठंड थी। किशोर कुछ संकोच के साथ कमरे के अंदर घुसा। प्रोफेसर पवन कुमार ने बिस्तर पर बैठी मधुरिमा से कहा,

"मधुरिमा देखो किशोर तुमसे मिलने आया है।"

किशोर कुछ आगे बढ़ा। लेकिन एकदम से ठिठक गया। उसके चेहरे पर भय और आश्चर्य था। माथे पर पसीने की बूंदें छलक आई थीं। उसने प्रोफेसर पवन कुमार की तरफ देखा। उन्होंने कहा,

"क्या हुआ किशोर ? मधुरिमा तुमसे मिलना चाहती है। उसे हैलो कहो।"

"पर ये तो....."

कहते हुए उसकी ज़ुबान अटक गई। प्रोफेसर पवन कुमार ने कहा,

"तुमको मधुरिमा से मिलना अच्छा नहीं लगा।"

किशोर कुछ क्षण उनकी तरफ देखता रहा। फिर तेज़ी से कमरे से बाहर निकल गया। भागते हुए वह सीढ़ियों से नीचे उतरा और मेन डोर खोलकर बाहर निकल गया। वह बहुत घबराया हुआ था। उसने अपने जूते भी नहीं पहने। भागते हुए गेट खोलकर निकल गया।

बारिश बंद नहीं हुई थी पर धीमी पड़ गई थी। वह प्रोफेसर पवन कुमार के मकान से आगे बढ़ रहा था। उसके पास टार्च भी नहीं थी। अंधेरे में चलना मुश्किल हो रहा था। घबराहट में दो बार वह फिसलने से भी बचा था। लेकिन उसने अपनी गति धीमी नहीं की थी।

आखिरकार उसे एक और घर दिखा। वह भागकर गेट पर गया। गेट खोलकर वह मकान में दाखिल हो गया। वह पूरी तरह से भीग गया था। ज़ोर ज़ोर से हांफ रहा था। मेन डोर पर पहुँच कर उसने कॉलबेल जल्दी जल्दी दो तीन बार दबाई। कुछ देर में एक आदमी ने दरवाज़ा खोला। उसकी हालत देखकर बोला,

"कौन हो तुम ? क्या हुआ तुम्हारे साथ ?"

हांफते हुए किशोर को संभलने में कुछ समय लगा। उस आदमी ने बाहर बरामदे में पड़ी बेंत की कुर्सी पर उसे बैठा दिया। अपने आप को संभाल कर किशोर ने कहा,

"वो प्रोफेसर पवन कुमार...सनकी इंसान है। अपनी पत्नी की लाश को घर में रखा है। मुझे मिलाने ले गया था।"

किशोर ने अपने साथ घटी सारी बातें बताईं। जिनके घर पर वह था उनका नाम पुष्कर कौल था। वह अपनी पत्नी और एक बेटे के साथ यहाँ रहते थे। उन्होंने बताया कि प्रोफेसर पवन कुमार की पत्नी एक साल से बीमार चल रही थीं। लेकिन वह किसी से मिलते जुलते नहीं थे। इसलिए उनके घर क्या चल रहा है पता नहीं चलता था।

पुष्कर कौल ने पुलिस को फोन करके किशोर की बताई हुई जानकारी दे दी। कुछ समय बाद पुलिस आ गई। किशोर उन्हें लेकर प्रोफेसर पवन कुमार के घर गया।

जब पुलिस ऊपर के कमरे में पहुँची तो प्रोफेसर पवन कुमार अपनी पत्नी के शव को चिपकाए हुए बैठे थे। पुलिस को देखकर वह चिल्लाने लगे कि मेरी मधुरिमा को मुझसे अलग मत करो। वह कभी भी मुझे छोड़कर नहीं जा सकती है। पुलिस वालों ने उन्हें उनकी पत्नी के शव से अलग किया। शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया।

किशोर ने पुष्कर कौल के फोन से अपने दोस्तों को सारी जानकारी दी। वह उसकी मदद के लिए आ गए।

किशोर का मन परेशान था। वह यह जानने को उत्सुक था कि आखिर प्रोफेसर पवन कुमार ने ऐसा क्यों किया ? उसे याद आ रहा था कि किस तरह बार बार वह अपनी पत्नी से कभी अलग ना होने की बात कर रहे थे। पुलिस ने समझदारी दिखाते हुए केस की खबर मीडिया तक नहीं पहुँचने दी थी।

अपनी उत्सुकता शांत करने के लिए किशोर पुष्कर कौल से जाकर मिला। उन्होंने बताया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार प्रोफेसर पवन कुमार की पत्नी मधुरिमा की मौत उस दिन दोपहर के आसपास हुई थी। प्रोफेसर पवन कुमार और उनकी पत्नी अकेले ही रहते थे। पिछले एक साल से मधुरिमा बिस्तर पर थीं। प्रोफेसर पवन कुमार उन्हें बहुत चाहते थे। जी जान से उनकी सेवा करते थे। उन्हें एक ही बात का डर रहता था कि कहीं उनकी पत्नी उन्हें छोड़कर ना चली जाएं। इसलिए वह अपने आप को दिलासा देते रहते थे कि वह कभी उन्हें छोड़कर नहीं जाएंगी।

मधुरिमा के मरने पर उन्हें इतना सदमा लगा कि उन्होंने सच को स्वीकार करने की जगह यह मान लिया कि उनकी पत्नी अभी भी जीवित हैं। यही कारण था कि किशोर के मदद मांगने जाने पर उन्होंने बड़े सामान्य तरीके से उसे अपने घर में ठहराया। उन्हें ऐसा लग रहा था कि इस बात से मधुरिमा खुश हो रही है। क्योंकी मधुरिमा को मेहमान नवाज़ी का शौक था। अपने इसी विश्वास के चलते वह किशोर को मधुरिमा से मिलाने ले गए थे।

पुष्कर कौल ने बताया कि इस समय प्रोफेसर पवन कुमार को मनोचिकित्सकीय इलाज के लिए एक असाइलम में रखा गया है। वह अभी भी यह मानने को तैयार नहीं हैं कि मधुरिमा इस दुनिया से जा चुकी है।

सब जानकर किशोर के मन में अकेलेपन से जूझ रहे प्रोफेसर पवन कुमार के लिए करुणा का भाव जागा।

आशीष कुमार त्रिवेदी