" मैं भी तो तेरी भाभी हूं! आज रात रूक जा यही!" अपनी बड़ी भाभी की बीमारी का सुनकर उनसे मिलने आई मैं उन्हें मना ना कर सकी और रुक गई।
हर दम चुस्त-दुरुस्त रहने वाली और अपने इशारों पर पूरे परिवार को नचाने वाली भाभी इन 5 सालों में बिल्कुल ही ढल गई थी। उनकी आवाज में भी वो दमखम नहीं और शरीर से तो आधी ही रह गई थी । इतना बदलाव तो उनमें भैया के जाने के बाद भी नहीं आया था।
रात को खाना खाते हुए उन्होंने अपनी बहु से थोड़े से चावल लाने के लिए कहा तो बहु तपाक से जवाब देते हुए बोली " मम्मी , आप भी क्या बच्चों की तरह करते हो! आपने मना किया था चावल खाने के लिए और अब!!"
"कोई बात नहीं नीरू दे दे थोड़ा सा। मन कर आया होगा इनका!"
" बुआ, आपको नहीं पता! मम्मी की यह रोज की आदत हो गई है। पहले रोटियां बनवा लेंगी। फिर खाएंगी नहीं! जिस दिन कुछ कम होगा उस दिन तो इनको ज्यादा ही भूख लगती है । आज देखो चावल नही है तो जानबूझकर इन्होंने चावल मांगे है!" भाभी का बेटा अपनी पत्नी के जवाब देने से पहले की सफाई देते हुए बोला।मैं आगे कुछ ना बोल पाई।
रात को अपने मन में दबा गुबार भाभी रोक ना सकी और अपनी आंखों में आए आंसुओं को पोंछते हुए बोली "देख लिया सुमन! तेरा भतीजा कैसे जोरू का गुलाम बना हुआ है!! मेरे खाने पीने पर भी पहरा लगा रखा है! मेरे मन का तो कभी बनाना ही नहीं और जो बना है, उसको भी खिलाते हुए इतनी चिक चिक करते हैं !
तुझे पता है ना! कैसे हाथों पर रख राजकुमारों की तरह पाला है इसे!!
और अब यह देखो मां को ही गलत ठहरा रहा है!!! इन दोनों का ऐसा व्यवहार देख अब तो मेरी बेटियों ने भी आना कम कर दिया है। तेरा भाई भी मुझे जिंदगी के बीच सफर में छोड़ चला गया। पता नहीं भगवान कौन से जन्म का बदला ले रहा है मुझसे! इससे तो अच्छा था कि तेरे भाई के साथ मुझे भी अपने पास बुला लेता। ये दिन तो ना देखने पड़ते!"
मैंने भाभी को तसल्ली के रूप में दो चार बातें कहीं और फिर नींद आने की कह आंखें बंद कर लेट गई।बातें भी क्या करती!! भाभी ने कभी ना हमारे दिल की सुनी ना अपने दिल की कही। कहूं तो हमें कभी अपना माना ही नहीं!!
आज उनका इस तरह प्रेम से मुझे रोकना अचंभित करने वाला था लेकिन अब सब समझ आ गया था।दो भाइयों की एकलौती बहन मैं, सुमन। कितनी चाव से मां पिताजी ने बड़े भैया शादी की!!हम दोनों बहन भाई को तो इतनी उत्सुकता थी कि नई भाभी आएगी तो उनके साथ खूब सारी बातें करेंगे। उनसे खूब अच्छा बनवा कर खाएंगे क्योंकि मां अधिकतर बीमार रहती थी इसलिए हम तीनों बहन भाई मिलकर सारा काम करते थे।लेकिन वो कहते हैं ना जिससे तुम्हें ज्यादा उम्मीद हो वह शायद ही तुम्हारी उम्मीदों पर खरा उतरे तो बड़ी भाभी ने आते ही साफ-साफ कह दिया कि मुझसे अकेले इतने बड़े घर का कामकाज ना होगा। अक्सर भाई भाभी का इस बात पर बहुत झगड़ा होता । भाभी हमेशा भाई से अलग रहने के लिए लडती। दोनों में बढ़ते मनमुटाव और कलह को देखकर मां पिताजी ने भाई को अलग रहने के लिए समझाते हुए, पिताजी ने उन्हें एक अलग कॉलोनी में मकान खरीदकर दे दिया। भाई घर से क्या अलग हुआ। परिवार से भी पराया हो गया।। भाभी के साथ तो उनका सफर कुछ साल पहले ही खत्म हुआ लेकिन हम सबके साथ तो उनका सफर भाभी के कारण बहुत पहले ही खत्म हो गया था। दूर रहकर भी भाभी के स्वभाव में कोई बदलाव ना आया। हां बदलाव आया भाई के स्वभाव में ! इस बदलते स्वभाव को देख सबने धीरे-धीरे वहां जाना कम कर दिया। बस तीज त्यौहार ही रह गए थे औपचारिकता निभाने के लिए।
मेरी शादी के बाद छोटे भाई की शादी हुई । भगवान की कृपा से छोटी भाभी बहुत अच्छी थी । उनके आने से लगा कि अब मेरा मायका भी मेरे लिए सदा खुला रहेगा। समय बीतता गया दो बेटियों की शादी कर बड़े भैया चल बसे। अब तो भाभी का ही राजपाट था।भाई के गुजरने के 1 साल बाद उन्होंने बेटे की शादी की जिसमें लोकदिखावे के लिए मां को दो-चार दिन पहले आने के लिए कहा। लेकिन मां की तबीयत बढ़ती उम्र के कारण ज्यादा सही ना रहती थी इसलिए छोटे भाई ने मुझे फोन कर कहा कि तू 1 दिन पहले शादी में चली जाना। जिससे कि मां की देखभाल हो सके।
शादी से अगले दिन छोटे भाई ने विदा लेते हुए मां से भी चलने के लिए कहा तो भाभी का बेटा बोला "चाचू , दादी को एक-दो दिन हमारे साथ रहने दो। मैं छोड़ आऊंगा और बुआ जी आप भी रुक जाओ। आप कभी नहीं रुकते हमारे यहां!" मां तो अपने पोते का इतना प्रेम देख अभिभूत थी और मैं!! मुझे ना चाहते हुए भी उनके कारण रुकना पड़ा।शाम को मां ने गुलाब जामुन खाने की इच्छा जताई!
यह सुनकर मेरी भतीजी बोली "वो तो बचे ही नहीं!" रात को भी मां बेटियों ने हमें एक कमरे में ही खाना पकड़ा दिया !
अगले दिन सुबह 8:00 बज गए थे लेकिन चाय पानी का कोई नाम ना था। मां को जल्दी चाय पीने की आदत थी। मां ने मुझे कहा " सुमन लगता है सब शादी की थकावट के कारण उठे नहीं। जा तू बना ला चाय।" मैं चाय बनाने रसोई में गई तो देखा वहां दो बड़े बड़े डिब्बों में गुलाब जामुन और हलवा रखा हुआ था।मन इतना खिन्न हुआ कि लगा अभी वहां से निकल जाऊं लेकिन खुद को रोककर किसी तरह मां के लिए चाय बनाई । चाय लेकर जब मैं अपने कमरे में जाने लगी तो तीनों मां बेटी की बातें कान में पड़ी।
भाभी कह रही थी "तेरे भाई को तो बिल्कुल भी अक्ल नहीं। पता नहीं तेरी दादी और बुआ को क्यों रोक लिया। उनके सामने ना खुलकर बात कर सकते हैं ना खा पी सकते हैं!! हां ध्यान रखना कभी तेरी भाभी को सिखा पढ़ा ना दे तेरी बुआ!!" भाभी के मुंह से इतनी गिरी हुई बातें सुन, अब मेरा वहां एक पल भी रुकना मुश्किल हो गया था!!
मैंने मां को चाय देते हुए कहा "मां, मैं अभी जा रही हूं और तुम भी चलो!! बहुत करवा ली अपनी बड़ी बहू से सेवा पानी!!!" मेरे रूंधे गले व पनियाली आंखों को देख मां सब समझ गई।
भतीजे ने जाने का कारण पूछा तो मैंने मां की तबीयत ठीक ना होने का बहाना बना दिया।
उसके बाद तो आना जाना ना के बराबर ही हो गया। भाभी ने भी तो कभी एक बार फोन करके भी आने की नहीं कहीं।
कुछ दिन पहले ही भाभी की बीमारी का पता चला तो खुद को रोक ना पाई और आज भाभी का हाल देखा और उनके मुंह से ऐसी बातें सुन, बस एक ही बात मन में आ रही थी कि जिंदगी के सफर में जो आपने दूसरों को दिया। वही जिंदगी आपको लौटा रही है। सुना था कर्म लौटकर जरूर आते हैं ! कभी भाभी ने सुखचैन से किसी को एक रोटी ना खाने दी। उनके क्लेश के कारण हमेशा मां पिताजी खून के आंसू रोते थे और आज उसी भाभी की बहू उनकी रोटियों की गिनती कर रही हैं!!
सरोज ✍️