अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता हर आजाद देश के नागरिक का हक है और हर हाल में उन्हें यह स्वतन्त्रता मिलनी चाहिए। पर कुछ समय पूर्व ‘पोर्न साइट्स पर प्रतिबन्ध’ को लेकर अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का जो प्रश्न उठाया गया, वह कहाँ तक वाजिब है ?अभिव्यक्ति जब दूसरों के शोषण का आधार बनने लगे तब खतरनाक हो जाती है |पोर्न साइट्स में स्त्री व बच्चों के साथ जिस तरह का अमानवीय व्यवहार किया जाता है,वह चिंताजंक है ।पर हमारे बहुत से बुद्धिजीवी इसे अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता मानते हैं आश्चर्य की बात है कि तसलीमा नसरीन और एफ एम हुसेन पर नग्नता का आरोप लगाने वाले पोर्न के समर्थन में खड़े हो जाते हैं |
अभी राजकुंद्रा पोर्न फिल्में बनाने के आरोप में गिरफ्तार किए गए हैं |हीरोईन बनने की लालसा में आई लड़कियों को मजबूर करके इन फिल्मों में अभिनय कराया जाता था |उन्हें चारों तरफ से घेर-घार करके यह काम अंजाम में लाया जाता था ।इस गंदे काम के बदले उन्हें बहुत ही कम पैसे दिए जाते थे और उन फिल्मों से करोड़ों कमाया जाता था |यह मामला आज सुर्खियों में हैं |हालांकि राजकुंद्रा के समर्थक इन फिल्मों को इरॉटिक का नाम दे रहे हैं –हमारे तथाकथित बुद्धिजीवी इस पर क्या कहेंगे ?अगर वे पोर्न फिल्मों का समर्थन कर सकते हैं तो पोर्न फिल्में बनाने वाले का विरोध किस मुंह से करेंगे ?ऐसी फिल्में लगातार नहीं बनेंगी तो उन्हें नवीन रोमांच कहाँ से मिलेगा | पोर्न समर्थक क्या राजकुंद्रा से कम अपराधी हैं ?
पोर्न समर्थक अजंता आलोरा की गुफाओं तथा ऐसे ही कई मंदिरों के बाहरी हिस्सों में अंकित मैथुन के चित्रों का हवाला देते हैं |
वे इन चित्रों का आध्यात्मिक उद्देश्य नहीं जानते।इन चित्रों का उद्देश्य शायद यही रहा होगा कि मंदिर के भीतर वे ही प्रवेश करें जो सारी विषय- वासनाओं से मुक्त हो चुके हैं ।जो इन चित्रों को देखकर विचलित हो जाते हैं,निश्चित रूप से वे अतृप्त हैं।वे वापस लौटकर अपनी इच्छाओं की पूर्ति करें और फिर पूर्णतया उससे मुक्ति पाकर ही वे धर्म की शरण में आएं ।क्योंकि ईश्वर की भक्ति और काम -वासना में लिप्तता एक साथ सम्भव नहीं ।
इसके अलावा पोर्न समर्थक ये भूल जाते हैं कि काम और पोर्न में अंतर है |काम मनुष्य की जरूरत है ।वह सृष्टि की निरंतरता के लिए जरूरी है..प्राकृतिक है पर पोर्न अप्राकृतिक ,बीभत्स व अमानवीय है |किसी बच्चे -बच्ची या स्त्री से अप्राकृतिक या समूहिक सेक्स कौन -सी काम अभिव्यक्ति है ?आश्चर्य यह कि वह बच्चा -बच्ची या स्त्री उस सेक्स का आनंद लेते दर्शाए जाते हैं –यह क्योंकर संभव है ?इससे समाज को क्या संदेश मिलता है |इसी अमानवीय क्रिया-कलापों को देखकर आए दिन नन्हीं बच्चियों ,लड़कियों व स्त्रियों के साथ सामूहिक बलात्कार हो रहे हैं |जिसमें अधिकांश बच्चियाँ दम तोड़ देती हैं |
वयस्क स्त्री-पुरूषों का पोर्न भी ज्यादातर अस्वाभाविक ही होता है ।इसमें स्वाभाविक काम-क्रीड़ाएँ नहीं अमानवीय हरकतें व विकृति दिखाई जाती है ,जिसे देखकर लोग गुमराह होते हैं |
पोर्न देखने वालों का विवेक मर जाता है |उन्हें रिश्ते-नाते की गरिमा का भी ध्यान नहीं रह जाता |वे ज्यादा से ज्यादा शिकार की तलाश में रहते हैं |
एक और बुरी बात यह होती है कि ऐसे लोगों की स्वाभाविक काम -उत्तेजना समाप्त हो जाती है। बिना पोर्न देखे वे अपनी पत्नी तक से सहवास नहीं कर पाते |अति- मैथुन का शिकार होने से वे जल्द ही कमजोर ,बूढ़े और बीमार हो जाते हैं |अविवाहित ,बिधुर ,एकाकी बूढ़े और अधेड़ हमेशा काम-विह्वल रहते हैं और आस-पास या रिश्ते की छोटी बच्चियों को शिकार बना लेते हैं क्योंकि वे बड़ी आसानी से उन्हें उपलब्ध हो जाती हैं |
अच्छी सोच के लिए अच्छी किताबें या फिल्में देखने का चलन उठता जा रहा है |अश्लील साहित्य या पोर्न मानव-समाज के स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है |यह अनेक विकृतियों को जन्म देता है |कहने को इसमें धर्म,जाति ,संप्रदाय,उंच-नीच का कोई भेद-भाव नहीं है पर यहाँ हर स्त्री मादा है और पुरूष नर पशु|
एक पोर्न फिल्म में एक नकाबपोश, मुस्टंडा, अधेड़ आदमी अलग-अलग धर्म के बच्चियों के कमरों में जाता है और उनका नाम लेते हुए उनसे अप्राकृतिक संबंध बनाता है|इस फिल्म का उद्देश्य साफ है कि हर धर्म की बच्ची मादा ही है |वह नकाबपोश जिस तरह इतनी बच्चियों से खेलकर खुश होता है ,वैसे तो पौराणिक राक्षस या दैत्य भी नहीं करते थे |कभी द्रोपड़ी का समूहिक अपमान महाभारत का कारण बन गया था पर आज उसी तरह का दृश्य लोग आनंद के लिए देख रहे हैं |वे खुद भले ऐसा न कर पाएँ पर उस तरह की चाहत उनकी जरूर होती है |कुछ पत्नियों की शिकायत है की उनके पति उनसे पोर्न -नायिकाओं जैसा व्यहार करने को कहते हैं |न करने पर प्रताड़ित करते हैं |वे लोक-लज्जा से यह बात किसी से कह नहीं पातीं । रिश्ते बचाने के लिए कुछ स्त्रियाँ उनका मनचाहा करने लगती हैं |वे खुद भी पोर्न फिल्में देखती हैं और धीरे-धीरे उसकी आदी हो जाती हैं |ताजा आकड़े में पॉर्न फिल्में देखने वाली स्त्रियों की संख्या 33 प्रतिशत से अधिक हो गई हैं |
कुछ पुरुष यह कहकर कि पुरूष ही नहीं स्त्रियाँ भी इसे देखती हैं , अपनी कुत्सित वृति को बढ़ावा देते हैं ।उसे सही ठहराते हैं |वे यह नहीं सोचते कि जब ऐसी चीजें इंटरनेट पर उपलब्ध रहेंगी तो उत्सुकता- वश स्त्रियाँ भी उसे देखेंगी और उससे प्रभावित भी होंगी |यूं तो नहीं समाज में अनैतिकता बढ़ रही है |
सुखद है कि बच्चों के पोर्न पर सरकारी प्रतिबन्ध लगा दिया गया है पर दुखद है कि स्त्रियों के पोर्न से प्रतिबन्ध उठा लिया गया है |