Bepanaah - 28 in Hindi Fiction Stories by Seema Saxena books and stories PDF | बेपनाह - 28

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बेपनाह - 28

28

दोनों के तन और मन दोनों ही जल रहे थे अब ऐसा लग रहा था अगर इस प्रेम के उमड़ते सैलाब को नहीं रोका तो फिर न जाने क्या हो जायेगा, चाय के कप एक तरफ रखे हुए थे और वे दोनों उस सैलाब में बहे जा रहे थे उन्हें कोई नहीं रोक सकता था, जब ईश्वर ने ही उनको इस अटूट बंधन में बांधने का फैसला ले लिया था। एक हो गए दो जिस्म, एक हो गयी दो जान, प्रेम ने उन्हें अपने आगोश में जकड़ लिया । दो पल में सब बदल गया एक नयी दुनिया बन गयी सब अलग हो गया। शुभी की आँखें बंद थी और ऋषभ भावातिरेक में अभी भी उसे चूमें जा रहा था।

पतली सी पगडंडी की तरह घुमावदार रास्ता बन गया !

अब बड़ी आसानी से कार तक जा सकते हैं ! “आओ शुभी ! चलो ! मैं आगे चलता हूँ तुम पीछे !” एक व्यकित ही चल सकता था दोनों साथ साथ नहीं क्योंकि बहुत सकरा सा रास्ता बना था ! वे कार तक पहुँच गए बहुत अच्छा लग रहा था, मन खुशी से झूम उठा इतने दिनों के बाद कमरे से बाहर आने का मौका लगा था ! मौसम भी साफ आसमान में सूर्य अपने पूरे तेज के साथ चमक रहे थे ! पूरी कार बर्फ से लदी हुई थी ! अब इसको भी साफ करना होगा ! ऋषभ ने सोचा ।

“अरे छोटे बाबू जी, आप अभी यही हो ?” दूर से काका की आवाज आई।

मानों सांस में सांस आ गयी हो ! “हाँ काका ! बर्फ गिरने लगी थी और मैं फंस गया था !” तभी सामने से बर्फ के बीच चलते हुए काका दिखे ! उन्होने खूब बड़े बड़े जूते पहने हुए थे और कुर्ता पाजामा, जैकेट तथा सिर पर टोपी ! पूरे पहाड़ी जैसा पहनावा ! जब पहाड़ी हैं तो पहाड़ी ही लगेंगे न ! शुभी खुद को ही तर्क दिया ।

“फिर कैसे गुजर हुई खाना पीना ? बताया तो होता कम से कम ।”

“कैसे बताता फोन बंद हो गया ! लाइट भी नहीं ! डर के मारे कमरे से ही नहीं निकले ! आज बर्फ रुकने पर रास्ता बनाया।“

“चलो आप कमरे में बैठो मैं पहले खाना लेकर आता हूँ फिर कार साफ करता हूँ ! तब तक यह सड़क की बर्फ भी साफ हो जाएगी ! पीडबल्यूडी वाले आ रहे हैं ।”

शुभी खुशी से चहक रही थी उसका जी चाह रहा था कि कार के पंख निकल आयें और कार आसमां में उड़ती हुई माँ के पास पहुँच जाऊँ ! “मैं कमरे से सामान ले आती हूँ ! तुम यहीं पर रुको !” शुभी खुशी से भरी तेज कदमों से चलती हुई उतरने लगी !

“शुभी पाँव जमा कर रखना अभी फिसलन है !” ऋषभ ने ज़ोर से आवाज लगाई।

“हाँ ठीक है !” सामने सूर्य की किरणें बिखरी हुई थी ! अच्छा लग रहा था गरम गरम अहसास ! कितने दिनों के बाद सूर्य देव भगवान ने अपनी कृपा दृष्टि दिखाई थी ! न जाने कैसे चलते चलते अचानक से जमी हुई बर्फ पर शुभी का पाँव फिसला और वो गिर गयी ! हाथ की कलाई के बल उसने खुद को रोकने की कोशिश की पर वो फिसलती ही चली गयी। ऋषभ बचाओ ! उसने घबराई हुई आवाज में ज़ोर से ऋषभ को पुकारा ! शायद ऋषभ वहाँ से दूर निकल गए थे बर्फ हटाने वाली गाड़ी को देखने के लिए ! हाय बहुत दर्द हो रहा है ऋषभ .... मम्मी ! उसकी आँखों से आँसू बह निकले, अभी खुशी से चहक रही थी और अभी आँसू ! ईश्वर भी पल पल इंसान की परीक्षाएँ लेता रहता है ! किसी तरह कमरे में गयी और बेड पर लेट गयी ! हाथ की कलाई में बेपनाह दर्द था ! गले में पड़े हुए स्टॉल को अपने हाथ पर लपेटा शायद थोड़ी गर्माहट मिल जाये ! दर्द इतना तेज हो रहा था कि दिमाग में बेहोशी सी छाने लगी आँखें बंद हो गयी ।

“शुभी शुभी उठो, तुम सो रही हो ? उठो घर नहीं चलना है ?” ऋषभ उसे हिलाते हुए ज़ोर ज़ोर से बोल रहा था ।

“ऋषभ,,, बहुत दर्द है ।“

“कहाँ पर ?”

“हाथ की कलाई में ! मैं गिर गयी थी !”

“कहा था न कि सूर्य के निकलने से यह बर्फ फिसलने वाली हो गयी है, तुम्हें समझ नहीं आती है तो मैं क्या करूँ?” ऋषभ थोड़ा नाराज सा होता हुआ बोला।

“ऋषभ सब सही हो जायेगा तुम मुझे बस मेरी मम्मी के पास पहुंचा दो।” शुभी ने उसे समझाया ।

“चलो खाना खा लो ! काका दे कर गए हैं !”

दाल, साग, चटनी और घी लगी हुई पतली पतली रोटियाँ ! इतने दिनों के बाद आज पूरा खाना मिला था देखते ही मन किया पहले पेट भर कर खा लें फिर दर्द का रोना रोये ! आज भूख दर्द पर भारी पड गयी थी ! सच में भूख से बढ़ कर दुनिया में और कोई जरूरत नहीं होती है।

स्वाद भी बहुत अच्छा था !

“ऋषभ इतना बर्फ गिर रहा है काकी कैसे आ गयी ?”

“इन लोगों की आदत होती है इन सब चीज़ों की, यह पहाड़ी लोग हैं न !वैसे काकी नहीं आई हैं ! यह खाना काका ने बनाया है !”

“लाओ मैं खिलाता हूँ तुमको खाना !” ऋषभ ने रोटी का एक गस्सा तोड़कर दाल में भिगोकर शुभी के मुंह में खिला दिया !कितना स्वाद है इस खाने में ! तरस गयी थी पूरा खाना खाने के लिए और आज जब घर जा रहे हैं तो यहाँ भी खाना मिल गया !

“ऋषभ तुम मुझे खिला रहे हो, मैं तुम्हें खिलाती हूँ !” कहते हुए शुभी ने अपने हाथ से रोटी का निवाला तोड़ना चाहा लेकिन वो दर्द से कराह उठी ! दर्द बहुत तेज था इसलिए मुंह से आह निकल गयी।

“क्या हुआ शुभी ?”

“हाथ में बहुत दर्द है।”

“ओहह लग रहा है डॉक्टर को दिखाना पड़ेगा ?”

“नहीं ऐसे ही सही हो जायेगा ! रास्ते में कोई पेन किलर ले लेना !”

“हाँ चलो देखते हैं।“

रोड से बर्फ हट चुका था ! अभी मौसम भी साफ था और सड़क भी । बस घर पहुँच जाये जल्दी से लेकिन पहाड़ों पर अभी भी बहुत ज्यादा बर्फ थी ! जिस बर्फ को देखने को इतना तरसती थी, आज उसकी इतनी भयंका स्थिति देख ली कि जल्दी फिर बर्फ देखने की इच्छा जाग्रत नहीं होगी ! “ऋषभ आप गाड़ी मत चलाओ यहाँ पर अभी फिसलन लग रही है काका से कहकर किसी पहाड़ी ड्राइवर को बुला लो !”

“हाँ मैंने कह दिया है वो हमें यहाँ से निकाल देगा ! यार तुम मेरे रहते चिंता क्यों करती हो?”

“बस थोड़ी ही देर में वो आता ही होगा और हम यहाँ से चल देंगे।”

हाथ में दर्द बढ़ता ही जा रहा था लेकिन बार बार ऋषभ से बार बार कहना अच्छा नहीं लगता, वो यहाँ कुछ कर भी तो नहीं सकता है, बेकार में और परेशान हो जायेगा ।

पहाड़ी ड्राइवर आ गया था और उसने बड़ी तहजीब से उस बर्फ वाले रास्ते से गाड़ी निकाल दी थी । जाते समय वो ड्राइवर काका से बोला, “यह लोग यहाँ भूखे प्यासे इतने दिन पड़े रहे पहले ही बता दिया होता मैं इनको शहर तक छोड़ आता, मुझे तो आदत है इस तरह से गाड़ी चलाने की ।“

“हाँ भाई सही कह रहे हो लेकिन मैं कैसे बता पाता कोई भी बात । जब मुझे यहाँ पर इन लोगों के बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी ! मैं आता था और देखभाल करके चला जाता था इस बार बर्फ ने फंसा लिया ! अब आगे से ध्यान रखना और इस तरह से परेशान मत होना !”

जाते समय ऋषभ ने उनको पैसे देने चाहे तो उसने बड़ी नम्रता से मना करते हुए कहा, “नहीं बड़े भाई आप हमारे गाँव के राजा हो और राजा की देखभाल करना हमारा फर्ज और दीदी जी पहली बार आई हैं तो इनको यहाँ से निकाल कर इनकी परवाह करना हमारा दायित्व है,”

“अरे भाई तुम लोगों के दिल बहुत बड़े होते हैं हम लोग तो नाम के राजा हैं तुम सब तो दिल के राजा हो !” ऋषभ बोले ।

“कितनी बड़ी बात कह दी आपने भाई जी ! अच्छा अब मैं चलता हूँ आप लोग संभाल कर निकल जाना ! वो चला गया था और अब ऋषभ गाड़ी चला रहे थे ।”

“शुभी यह मेरी पसलियों में बड़ा दर्द महसूस होने लगा, ना जाने क्या हो गया है ?”

“क्या हुआ? दर्द क्यों है ?” वो अपना दर्द भूल चुकी थी !

“मुझे लग रहा है जो मैं वाथरूम के पास फिसला था न, उसी का दर्द अब उठ रहा है !”

“ओहह ! अब क्या करोगे ? गाड़ी चलाने में बहुत परेशानी तो नहीं हो रही है?”

“नहीं, बहुत तो नहीं हाँ थोड़ी सी हो रही है !”

“यह हम दोनों को ही एक साथ चोट क्यों लगी ? हम दोनों क्यों फिसल गये ? समझ नहीं आ रहा है ! अब पहले तुम इसे किसी डॉक्टर को दिखाओ फिर घर चलेंगे।”

“हाँ भाई आने तो दो किसी डॉक्टर का क्लीनिक या हॉस्पिटल फिर दिखा लेते हैं, अरे तुझे भी तो दिखाना है न ? तेरे हाथ में भी तो बहुत दर्द हो रहा होगा ?”

ऋषभ की सहानुभूति से शुभी पिघल गयी ! दर्द से आँखेँ छलक पड़ी ! हाथ में बेहद दर्द हो रहा था लेकिन चोट तो ऋषभ के भी लगी है ! अपने दर्द को छिपाती हुई बोली, नहीं नहीं अब मेरा दर्द बहुत कम है ! पहले तुम दिखा लो, अगर मेरे दर्द हुआ तो मैं भी दिखा दूँगी, कार पहाड़ों की टेड़ी मेडी घुमावदार रस्तों पर दौड़ रही थी, उसी तरह से उनके मन भी गोल गोल चक्कर काट रहे थे ! माँ कितना याद कर रही होंगी, मैं उनको क्या कहूँगी कि मैं उनको बिना बताए पहाड़ी ट्रिप पर चली गयी थी ! मुझे उनसे क्या कहना है,क्या बहाना बनाना है? कुछ समझ नहीं आ रहा है ।

पता है वे मुझे माफ़ कर देगी आखिर उनका मेरे सिवाय भी कोई नहीं हैं ! मैं उनसे सब सच कहूँगी फिर अगर वे मुझे सजा भी देगी तो मैं सह लूँगी लेकिन कोई झूठ नहीं कहूँगी ।

“शुभी तुम यही कार में बैठो मैं अभी डाक्टर को दिखा कर आता हूँ !” एक बड़े से हॉस्पिटल के सामने गाड़ी रोक दी और ऋषभ खुद ही उतर कर चले गए।

थोड़ी ही देर में वापस आ गए उनके हाथ में दवाई का एक पैकेट था !

“अरे बड़ी जल्दी आ गए ?”

“हाँ यार, उन लोगों ने सबसे पहले मुझे ही दवाई दे दी और वो डाक्टर तो बड़ी प्यारी थी। मुझे देखते ही कहा, आइये और बताइये क्या हुआ है आपको ?”

हाँ सब लोग तो बस तुम्हारे लिए ही बैठे हैं कि तुम आओ भाई हम तुम्हारा ही इंतजार कर रहे थे !! शुभी ने मन में ही सोचा ! क्या इन्हें मेरे हाथ के दर्द के बारे में कुछ याद नहीं रहा या जानबूझकर मुझे डाक्टर को नहीं दिखाया ?

“क्या हुआ बड़े चुप बैठी हो ?”

“कुछ नहीं !” शुभी ने अपने हाथ की कलाई को सहलाते हुए कहा !

“ओहह तेरी की ! अब याद आया तेरे हाथ में भी तो दर्द था न ? मैं भूल ही गया तुझे याद दिलाना चाहिए था कि नहीं ?”

“नहीं ऐसा नहीं है अब दर्द थोड़ा कम है ! अगर दर्द हो रहा होता तो मैं खुद ही कह देती!” शुभी ने अपने दर्द को भीतर ही भीतर पीते हुए कहा।

“सच कह रही हो न ?”

“हाँ बिलकुल सच, जब तुमने मेरे हाथ की कलाई पर अपना रुमाल बांधा था तभी दर्द गायब हो गया था।”

“ओहो क्या बात है मेरे रुमाल में इतनी शक्ति है मुझे आज ही पता चला !” ऋषभ ज़ोर से हंसा ।