Bepanaah - 27 in Hindi Fiction Stories by Seema Saxena books and stories PDF | बेपनाह - 27

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बेपनाह - 27

27

वही कमरे के बाहर बर्फ की खूब मोटी परत जम गयी थी, उसे कलछी से खुरच कर उसने भगौने में डाला और गैस जलाकर उस भगौने को रख दिया ।

“यह क्या कर रहे हो गैस पर बर्फ का ?” शुभी ऋषभ की हरकत देख कर ज़ोर से हंस दी।

“शुभी तुम हँसती हुई कितनी प्यारी लगती हो ! बस हमेशा यूं ही खुश और मस्त रहा करो।”

“हाँ सही कहा क्योंकि हँसना भगवान का प्रसाद मिलना होता है ! तुम भी हमेशा खुश रहना, कभी उदास मत होना ।”

“जी देवी माँ, जो आपकी आज्ञा !”

गैस की तेज आंच पर बर्फ पिघलने लगा था और धीरे धीरे पानी में तब्दील होने लगा था।

काफी देर लगी लेकिन बर्फ से पानी बन गया और ऋषभ एक गिलास में पानी लेकर उसके पास आ गया ।

“चलो पियो अब पानी ! तुम्हें बहुत प्यास लग रही थी न ?”

“हाँ ऋषभ, लेकिन यह बहुत मेहनत से बना हुआ पानी है?”

“मेहनत तो हर चीज में लगती है लेकिन मेहनत का फल हमेशा बहुत मीठा होता है यह तो तुमने सुना होगा न?”

“हाँ सुना भी है और आज देख भी लिया।”

रात गहरा गयी थी और ठंड बढ़ती ही जा रही थी ! मोटी रज़ाई उस पर कंबल फिर भी ठंड कम नहीं हो रही थी ! ऋषभ तो अपनी रज़ाई को लपेट कर बेड के एक कोने में दुबके हुए थे लेकिन शुभी को ठंड की वजह से नींद नहीं आ रही थी ! उसका जी चाह रहा था कि वो ऋषभ के पास सरक जाये पर मन में शर्म की दीवार खड़ी हो गयी थी जिसे वो चाह कर भी तोड़ नहीं पा रही थी ! उसे ख्याल आया अरे यह ऋषभ कैसा है, वो उसके साथ है और उसे कोई मतलब नहीं । क्या वो उसे प्यार नहीं करता या उसके मन में कोई भावना ही नहीं जागती या शायद वो उससे डरता होगा किसी बात से ! आज पाँच दिन हो गए साथ रहते हुए ! दिन भर बातें करते हैं, हँसते हैं,खुश रहते हैं लेकिन कभी ऋषभ ने उसे गलत नजर से नहीं देखा न उसका फायदा उठाने की कोशिश की ! बाहर बर्फ गिरनी बंद हो गयी थी ! अब पेड़ों से छत से बर्फ गिर रही थी ! ऐसा लग रहा था मानों किसी हाथी की लीद गिर रही हो, जैसे वो पोटी करता है न तो ज़ोर की आवाज होती है उसी तरह से ! कितना सन्नाटा है, और यह दहशत पैदा करने वाली आवाज उसे डरा रही थी ! घर में होती या माँ यहाँ होती तो वो उनसे चिपकी पड़ी होती ! खैर यह दिन भी निकल जाएँगे हम अपने अपने घर चले जाएँगे लेकिन हम एक दूसरे से दूर जाकर भी दूर नहीं हो पाएंगे जैसे अभी माँ याद आ रही हैं वैसे ही ऋषभ याद आएंगे ! जैसे मुझे अपनी माँ की याद आ रही है ऐसे ही ऋषभ को भी तो अपने घर की याद आ रही होगी ! अपने मम्मी पापा, भाई बहन, दादी बाबा सब के लिए उसके मन में भी तो फिक्र होगी लेकिन वो कभी उसे दिखाता नहीं है और एक वो है कि हर वक्त परेशान करती है ! सिर्फ मम्मी ही हैं और न कोई बहन है और न कोई भाई ! पापा भी साथ छोड़ कर चले गए ! माँ आपकी याद से ज्यादा आपकी फिक्र हो रही है ! आप भी तो मुझे याद कर रही होगी ? हे ईश्वर, मेरी मम्मी की तबीयत सही रहे और वे मेरे लिए जरा भी परेशान न हो ! शुभी ने हाथ जोड़कर माँ के लिए प्रार्थना की ! वैसे अगर हम सच्चे मन से और अपनी पवित्र आत्मा से भगवान से कुछ मांगे तो वो चीज हमें अवश्य मिल जाती है ! नींद आँखों में भर रही थी लेकिन ठंड के कारण नींद नहीं आ रही थी और ऐसे ही सोचते हुए कब नींद आई पता ही नहीं चला ! सुबह जब ऋषभ ने उसे हिलाते हुए कहा,, अरे उठना नहीं है क्या आज ? समय तो देखो नौ बजने वाले हैं ! ओहहों नौ बज गए शुभी हड्बड़ा कर उठी !

हाँ नौ ही बजा है कोई आफत नहीं आई जो इतना घबरा रही हो और अभी कही जाना भी नहीं है ?

“ऋषभ, बर्फ गिरनी बंद हो गयी है ?”

“हाँ, कल रात ही बंद हो गयी थी !”

“कल रात पता है बहुत ज़ोर ज़ोर से आवाजें आ रही थी ! सन्नाटे में वे आवाजें मुझे बहुत डरा रही थी ! मुझे डर के मारे नींद ही नहीं आ रही फिर बड़ी मुश्किल से मैं सोई थी !”

“लो उसमें डरने की क्या बात हुई ! पेड़ों से और छत से बर्फ गिर रही होगी ?”

“हाँ !”

“जमी हुई बर्फ ऐसे ही गिरती है किसी हाथी के लीद करने के समान !”

“हम्म !” शुभी कमरे के दरवाजे के पास आकर खड़ी हो गयी ! बर्फ तो नहीं गिर रही लेकिन यह जमी हुई बर्फ के पिघलने के बाद ही तो हम जा पाएंगे ! न जाने कब यह बर्फ पिघलेगी ? कितने सवाल मन में थे और उससे भी ज्यादा माँ के लिए चिंता थी।

“जाओ शुभी मैंने पानी बना दिया है पहले तुम फ्रेश हो जाओ, फिर हम दोनों मिलकर कार तक जाने का रास्ता बना लेते हैं !!” शुभी को परेशान देखकर ऋषभ बोला ।

“बन जायेगा रास्ता ?” शुभी अचंभित होती हुई बोली।

“हाँ क्यों नहीं बनेगा !” कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ! जो कोशिश करते हैं वे हारते नहीं है बल्कि हमेशा जीत जाते हैं ।“

“ठीक है मैं अभी आ रही हूँ !”

ऋषभ कमरे से बाहर निकल गये थे और शुभी वाशरूम में चली गयी ! वहाँ पर एक बाल्टी में गरम पानी रखा हुआ था ! यह देखकर शुभी की आँखें छलक पड़ी ! कितना प्यार भरा है ऋषभ के मन में ! उसे कितनी परवाह है मेरी ! मैं सो कर उठ भी नहीं पाई और उसने पानी गरम करके रख दिया, चाय भी बना दी ! कोई इतना प्यारा कैसे हो सकता है ? किसी को इतना ख्याल या फिक्र कैसे हो सकती है ! यही है मेरे मन का सच्चा मीत ! इस के लिए मैं कितना तड़पी ? कितना रोई आखिर यह आ गया ! लौट आया मेरे पास क्योंकि जैसे मुझे सच्चा प्यार था ऐसे ही इसके मन में भी था ! दूर जाकर भी कभी कहाँ दूर गया था ? वो कभी दूर नहीं जा पायेगा मेरे मन से जुड़ा है उसका मन ! यही सच है शाश्वत है, जो कम हो जाये या खत्म हो वो प्रेम नहीं हो सकता ! प्रेम हमेशा है, सदा है !

कितना सोचती हूँ मैं और सोचने में ही अपना सारा वक्त जाया कर देती हूँ ! थोड़ा जल्दी कर लूँ ! ऋषभ अकेले काम कर रहे होंगे ! शुभी ने अपने सर के ऊपर एक चपत लगाते हुए खुद से ही कहा !

शुभी जल्दी ही बाहर निकल आई, देखा ऋषभ पूरी लगन के साथ अपने काम में लगे हुए हैं ! एक हाथ मे कलछी और दूसरी में प्लेट पकड़े हुए थे और मन पूरी तरह से अपने काम की मुस्तैदी पर कि कब शुभी आ गयी उसे पता भी नहीं चला ! कलछी से बर्फ खुरच के प्लेट में रखते और एक साइड में करते जा रहे थे ! इस तरह से करने पर बीच में पतली सी पगडंडी जैसी बनने लगी थी ! शुभी भी अंदर से एक प्लास्टिक की प्लेट उठा लाई और उससे ही बर्फ को खुरच के एक तरफ करने लगी जिससे ऋषभ की थोड़ी मदद हो जाये और जल्दी से कार तक जाने के लिए पगडंडी बन जाये ! बर्फ थोड़ी फूली फूली थी वो बड़ी आसानी से निकाल ली जा रही थी लेकिन जो नीचे थोड़ी जमी हुई थी उसको निकालना बड़ा मुश्किल लग रहा था ! “अरे यार शुभी तू तो रहने ही दे ! मैं सब कर लूँगा ! तू बस यहाँ पर खड़े होकर देखती रह !” शुभी को हटाते हुए ऋषभ ने कहा ।

“नहीं न, मुझे भी करने दो ! दोनों साथ में करेंगे तो जल्दी रास्ता बन जायेगा ! अभी देखो कितना सारा बर्फ निकालना है अकेले करोगे तो दो दिन लग जाएँगे !” शुभी ने उसे समझाते हुए कहा !

“अरे नहीं यार तू देख बस !” ऋषभ ने अपने हाथों को बर्फ पर तेजी से चलाते हुए कहा।

“लगता है आप मानोगे नहीं, बड़े जिद्दी हो ?

“हाँ हूँ न ! क्या जिद्दी होना बुरा है ?”

“नहीं बिलकुल भी नहीं बल्कि जिद्दी होना तंग करना है,परेशान करना है।”

“हम्म ! सुन पहली बात तो यह है कि तेरा प्यार है मेरे साथ इसलिए मैं अकेला नहीं हूँ और दूसरी बात यह है कि मैं तुझे प्यार करता हूँ तो तुझे तंग करना मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है।” ऋषभ मुसकुराते हुए बोला ।

“क्या बात कही है मतलब चित भी आपकी और पट्ट भी आपकी ! हैं न ?”

“हाँ बिल्कुल सही कहा !” ऋषभ ज़ोर से हँसते हुए बोला ।

करीब एक घंटा निकल चुका था लेकिन अभी बहुत काम बाकी था ! कार तक जाने के लिए लंबा रास्ता बनाना था ! मुश्किल से एक तिहाई रास्ता बना होगा ! बर्फ को हटाना कोई आसान काम नहीं है ! ठंड में उसके हाथ भी तो कंपकपा गए होंगे, खून जम गया होगा ।“ऋषभ अब आप हट जाओ या थोड़ी देर आराम कर लो !” शुभी ने बड़े भोलेपन से कहा।

“नहीं शुभी, मैं काम पूरा किए बिना नहीं हट सकता हूँ,, अगर तुम्हें कोई काम करना ही है तो तुम मेरे लिए एक कप चाय बना कर ले आओ ! ओ ठहरो ठहरो, तुम कैसे बना पाओगी, दूध कहाँ है ?”

“अरे आप चिंता क्यों कर रहे हो मैं बना लेती हूँ ! अच्छा यह बताओ तुम चीनी लोगे या गुड?”

“गुड है ?”

“हाँ है न।“

“फिर ऐसा कर गुड की बना ले !” ऋषभ तन्मयता के साथ बर्फ हटाता हुआ बोला।

कितना सरल लगने लगता है वो हर कार्य, जो अच्छे मन और लगन के साथ किया जाये ! ऋषभ भी तो सुबह से बड़े मन के साथ बर्फ हटा कर पगडंडी जैसा रास्ता बनाने में लगा था अपनी शुभी के लिए क्योंकि उसे अपने घर जाना है, अपनी माँ के पास ! वे कितनी बीमार हैं और शुभी यहाँ उसके पास है !

हे ईश्वर मेरे ऋषभ की मदद करना उसने अपने दोनों हाथ उठा कर मन ही मन प्रार्थना की !

चाय पीकर फिर दुगुनी शक्ति के साथ काम करूंगा और एक घंटे में पूरा रास्ता बन जायेगा उसकी कार तक पहुँचने का । लेकिन मेन रोड पर तो बहुत बर्फ होगी ? खैर तब की तब देखेंगे !अभी अपना काम तो पूरा हो जाये ! एक बार शुभी को देखकर आता हूँ, क्या कर रही है ?क्या पता उससे गैस ही न जली हो और उल्टी माचिस जला रही हो ? यह सोचते हुए वो मुस्कुराया ! अंदर कमरे में आया तो देखा शुभी अपनी चुन्नी के कोने से चाय छान रही है ! न जाने कहाँ से उसके मन में शुभी के लिए प्यार उमड़ा कि उसने आगे बढ़कर उसका माथा चूम लिया ! शुभी एकदम से सकपका गयी रोम रोम धडक उठा और दिल की धड़कन रुक सी गयी ! इतने दिनों से वे साथ हैं एक बार भी ऋषभ ने उसको इस नजर से नहीं देखा है और अभी क्या हुआ ! कितना नेह बरस रहा है ऋषभ की आँखों में ! इंसान की जुबां झूठ बोल सकती है लेकिन आँखें कभी झूठ नहीं बोलती, वे तो इंसान के मन का आईना होती हैं ! माथे को चूमना मतलब आत्मा को प्रेम करना ! सच में प्रेम सच्चा हो तो वहाँ पर तन की जरूरत नहीं पड़ती ! तन सिर्फ माध्यम होता है प्रेम तो आत्मा से ही किया जाता है !

“चलो पहले चाय पीते हैं फिर काम किया जाएगा !” ऋषभ ने खामोशी को तोड़ते हुए कहा।

“हाँ जी !” शुभी ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया।