Bepanaah - 26 in Hindi Fiction Stories by Seema Saxena books and stories PDF | बेपनाह - 26

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बेपनाह - 26

26

ऋषभ जल्दी से बिस्तर से उठा और गैस जला कर उस पर चाय का पानी चढ़ा दिया ! चाय मसाला, अदरक और गुड की बिना दूध वाली चाय उसके हाथ में पकडाता हुआ बोला, “अब बताओ कैसी बनी है चाय ?”

“हाँ पीने तो दो फिर बताती हूँ जी !” शुभी ने जी पर ज़ोर देते हुए कहा !

“वाह ! क्या चाय बनी है, सच में बहुत अच्छी और बिना दूध की चाय होने के बाद भी निराला स्वाद है !”

“सच कह रही है न ?”

“हाँ ! तुम्हें लग रहा है कि मैं झूठ बोल रही हूँ !”

“नहीं नहीं ऐसा नहीं है !” ऋषभ बोला ।

“ऋषभ तुम कितने प्यारे हो ? लेकिन क्यों हो ? सब तुम्हारे भोलेपन का फायदा उठा लेते हैं।”

“क्या फर्क पड़ता है !”

“तुमको पता ही नहीं ऋषभ, तुम कितने भोले हो सच में !” शुभी ने मन में दोहराया !

“अब तुम बैठो मैं कुछ खाने का बना कर लाता हूँ।”

“तुम्हें खाना बनाना आता है ?”

“अरे तेरे लिए तो कुछ भी करूंगा, तू बस शांति से बैठ।”

“ठीक है ... वैसे शांति से बैठने के अलावा और कर भी क्या सकते हैं क्योंकि मोबाइल बंद है और टी वी चल नहीं सकता ! लाइट भी तो नहीं आ रही है न !”

“हाँ यार सही कह रही हो ! लेकिन याद रहेंगे यह दिन भी !”

“हाँ वो तो है ! आजीवन याद रहेंगे।”

“न खाना, न पानी, न लाइट।”

“लेकिन पानी तो अभी है।”

“हाँ खाना भी है लेकिन वैसा नहीं जैसा होना चाहिए !”

“कोई बात नहीं ऋषभ ! तुम मन दुखी मत करो ! यह बर्फ भी गिरनी रुकेगी और रास्ता भी साफ होगा !” शुभी का जी चाहा कि आगे बढ़कर ऋषभ को गले से लगा ले, लेकिन झिझक आड़े आ गयी।

कभी कभी इंसान परिस्थितियों का गुलाम बन जाता है और कभी वक्त साथ नहीं देता है। इसीलिए वो वक्त का गुलाम बन जाता है ! हो सकता है यही सब ऋषभ के साथ हुआ हो ! अब मैं कभी इसे किसी भी बात के लिए तंग नहीं करूंगी और हमेशा वफा करूंगी भले जान देकर निभाना पड़े तब भी पीछे नहीं हटूँगी ! ऋषभ सुन रहे हो न तुम, मैं तेरे लिए अपनी जान तक दे दूँगी ! शुभी मन ही मन बड़बड़ा रही थी।

“देख शुभी यहाँ बेसन रखा है ! मैं तुझे बेसन के पराँठे बना कर खिलाता हूँ !” ऋषभ के स्वर में चहक थी, मानों कोई अनमोल खजाना मिल गया हो।

“अरे वाह !” शुभी ने उसकी खुशी से चहकते स्वर में स्वर मिलाते हुए कहा।

“हाँ यार ! “जहां चाह वहाँ राह”।

“क्या तुम्हें पराँठे बनाने आते है ?” शुभी सवालिया अंदाज में बोली !

“तू बस खा कर बताना।”

“ठीक है ! मैं इस स्वाद का इंतजार कर रही हूँ !” शुभी को लग रहा था कि आज तो बस यूं ही भूखे प्यासे रहना पड़ेगा क्योंकि उसे यह पराँठे पसंद नहीं आएंगे और यहाँ कुछ और खाने को नहीं मिलेगा।

थोड़ी ही देर लगी होगी कि ऋषभ एक पतला सा करारा पराठा सेंक कर ले आया ! “लो पहले इसका स्वाद बताओ ?”

शुभी ने पराठे की प्लेट को हाथ में पकड़ लिया, तभी ऋषभ ने कहा,

“लाओ पहले मैं तुम्हें एक बाइट खिलाता हूँ !” ऋषभ ने उसके मुंह में पराठे का एक छोटा सा टुकड़ा डाल दिया।

कितना अच्छा बना है मुंह में जाते ही मक्खन की तरह घुल गया ! प्याज और अजवाइन का स्वाद विस्मय पैदा कर रहा था।

“वाह ऋषभ ! बहुत ही अच्छा स्वाद है ! मुझे भी सीखना है यह पराठा बनाना ।”

“क्या है इसमें, बेसन को गेंहू के आटे में मिलाया और प्याज, नमक, अजवाइन, मिर्च डाल कर आटे को गूँदा और लोई बनाकर बेल लिया तवे पर डाला और उसमें चम्मच से हल्का सा देसी घी या ऑलिव ऑइल लगा दिया, बस और कुछ नहीं करना ! लो हो गया खाने के लिए पराठा तैयार।” यह कहते हुए ऋषभ मुस्कुराया ।

बिना सब्जी और आचार के भी परांठा खाने में बहुत अच्छा लग रहा था ! आधे घंटे में सारा काम सिमट गया ! खाना खा लिया, गैस भी साफ हो गयी और बर्तन भी।

ऋषभ तुम कितने होशियार हो, तुम्हें सब कुछ आता है ! मैं खुश किस्मत हूँ कि तुम मुझे मन के मीत बनकर मिले ! आई लव यू ऋषभ ! शुभी का जी चाहा कि वो ज़ोर से चीख चीख कर सब कह दे।

“क्या सोच रही हो?”

“कुछ नहीं बस यूं ही। ”

“फिर मुझे एकटक क्यों देखे जा रही हो ? मुझे डर लग रहा है तुम्हारी बड़ी बड़ी आँखों से।”

“हाहाहा ! ऋषभ मुझसे डर गए, मैं तो तुम्हें प्रेम करती हूँ न ?”

“सच में !”

“हाँ जी ! क्या तुम नहीं जानते !”

“तुमने कभी कहा ही नहीं ! कभी नहीं बताया !” ऋषभ उसे छेड्ते हुए बोला।

“क्या प्रेम बताया जाता है या कहा जाता है? यह तो एक अहसास है जो खुद ही समझ आ जाता है।”

“तुम क्या कह रही हो ? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा ! मैं तो सिर्फ मज़ाक कर रहा हूँ, आई लव शुभी !”

“क्या कहा ? फिर से कहो न ! बार बार कहो, हर बार कहो ! बस कहते रहो ! क्या तुम्हें पता है कि मैं तुम पर बहुत विश्वास करती हू मुझे लगता है तुम सिर्फ मेरे हो, हाँ सिर्फ मेरे ! कहो न कि तुम मेरे हो।”

“हाँ हूँ न तेरा ही!” पूरा कमरा प्रेम की सुगंधित खुशबू से महक रहा था !

सच में प्रेम विश्वास के महीन धागों पर टिका होता है और एक धागा भी जरा सा टूटा तो फिर सब बिखर कर रह जाता है ! जिंदगी खत्म हो जाती है और हम जीते जी मरे के समान हो जाते हैं लेकिन मेरी यह समझ में नहीं आता है कि लोग प्रेम को समझ क्यों नहीं पाते ? क्यों उसका विध्वंस कर देते हैं अपने जरा से स्वार्थ की खातिर ! शुभी ने अपने सर को झटका, अरे वो यह क्या सोचने लगी ? प्रेम तो शाश्वत है, यह कभी खत्म नहीं होता है और न ही कम होता है, लाख कोशिश करो यह बंधन नहीं टूटता है।

कितना प्यारा है ऋषभ ! काश यह हमेशा इतना ही प्यारा बना रहे कभी इसका मन न भटके ! “सुनो ऋषभ, तुम हमेशा इतने ही प्यारे रहना और मुझे इतना ही प्यार करना।”

“हाँ करूंगा न ! ऐसे क्यों पूछ रही हो ?”

“पहले यह बताओ तुम कभी बदलोगे तो नहीं न ?”

“मैं इंसान हूँ, कोई मौसम तो हूँ नहीं जो बदल जाऊंगा।”

“हाँ, तुम एक अच्छे इंसान ही बनना ।”

“बनना क्यों ? मैं हूँ ।”

“हाँ हाँ ठीक है ! तुम जीते मैं हारी !”

“यार शुभी मैं जीत कर भी तेरा और मैं हारकर भी तेरा ही रहूँगा !”

“चलो अभी यह सब मत करो !”

“क्यों प्यार से दिल भर गया ?”

“प्यार से भला कभी दिल भरता है किसी का ?”

ऋषभ अब मैं तुम्हारे लिए गरम गरम परांठा बना कर अपने हाथो से खिलाऊंगी, ठीक है न?”

“नेकी और पूछ पूछ !” यह कहते हुए ऋषभ ज़ोर से हंसा ।

पूरी वादियाँ खुशियों से झूम उठी होगी, प्रेम से भरे दो मन आज एक जो हो गए थे,बिना किसी सामाजिक बंधन के, अपने सच और विश्वास के सहारे।

इसी तरह पूरा दिन गुजर गया लेकिन बर्फ रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। हल्के हल्के रुई के फाये की तरह से बर्फ गिरे जा रही थी! कोई कहीं नजर नहीं आ रहा था ! न कोई पशु, न कोई पक्षी और न ही अन्य कोई जीव जन्तु दिख रहा था और इतने बर्फ में कोई कैसे बाहर आ जाएगा ! पेड़ों पर बर्फ इस तरह से लदी हुई थी कि ऐसा लग रहा था जैसे कोई ऋषि मुनि धूनी रमाये एक टांग पर खड़े होकर तपस्या कर रहे हो ! बर्फ देवदार के पेड़ो पर गिरे ही जा रही थी और पेड़ अपने इस रूप पर मंत्र मुग्ध से हो रहे थे ।

“ऋषभ आज तीन दिन हो गए, यह बर्फ गिरनी कब बंद होगी ?”

“पता ही नहीं ! इंटरनेट चल रहा होता, तो मैं उसमें देख लेता ! अभी तो फोन ही बंद पड़ा है ! अगर बर्फ गिरना बंद हो गया तब भी तो सड़क के साफ होने का इंतजार करेंगे, तभी तो यहाँ से निकल पाएंगे।”

“ओहह हाँ !! पर अब न पानी बचा है, न ही बिजली आ रही है और न बर्फ रुकने का नाम ले रहा है बराबर गिरता ही जा रहा है, शायद भगवान भी हमारी परीक्षा लेने पर तुले हैं।”

“हाँ शायद ?”

“जी नहीं, शायद नहीं बल्कि बिल्कुल पक्का, उनको हम लोग बहुत पसंद जो आ गए हैं ।”

“अभी भगवान को पसंद ना आए अभी तो हम सिर्फ तुम्हारे दिल पर राज करना चाहते हैं सिर्फ तुम्हें पसंद आ जाये।”

“हाहाहा ! प्यारे ऋषभ जी ! पसंद को क्या और क्या पसंद करना ? आप तो मेरे ही हो और अपने हमेशा दिलों पर राज करते हैं।”

“क्या तुम सच कह रही हो?”

“सच को कहने की जरूरत ही नहीं होती, वो समझ आ जाती है बिना कहे सुने,, अहसासों से ही !”

ऋषभ मुस्कुरा कर रह गया ! शुभी तू मेरी है ! उसके मन में भी यही सब चल रहा था।

इतना प्यारा मौसम और वे दोनों अकेले ? चारो तरफ सूनापन और धड़कते हुए दो जवां दिल जो एक होकर धडक रहे थे ! बाहर गिरती बर्फ और कमरे में भरती हुई ठंड लेकिन मन में सुलगती हुई प्रेम की अगन हर ठंड को दूर करने में कारगर थी पर ऋषभ इस अगन को और भड़काना नहीं चाहता ! वो सच में उसे अपना मान चुका है लेकिन कभी अपने प्यार को रुसबा नहीं करना चाहता बल्कि अपने प्रेम की हिफाजत करना चाहता है ! वो नहीं चाहता कि अपने नापाक इरादों को प्रेम का नाम दे कर उसे अपवित्र कर दे उसके मन तक आ गया है यही सबसे बड़ी बात है तन पा लेना कोई बड़ी बात नहीं होती ! दुनिया में सिर्फ तन ही तन हैं, मन कहाँ है ? मन तो भटकाता ही रहता है क्योंकि मन बड़ा चंचल होता है और उसकी गति बहुत तेज होती है पर अगर कहीं ठहर जाये या थम जाये या अटक जाये या उलझ जाये तो फिर उसे संभलना मुश्किल होता है लेकिन जिसने संभाल लिया, इस मन को जीत लिया तो समझो उसने जग जीत लिया ।

लाइट नहीं आ रही थी क्योंकि बर्फ गिरने के कारण तार टूट गए और अब जब तक यह बर्फ गिरनी बंद नहीं होगी तब तक कोई बिजली वाला कैसे सही करने आयेगा?

टैंक का पानी जम चुका था और टैब से एक बूंद पानी भी नहीं टपक रहा ! उफ़्फ़ पीने के लिए पानी कहाँ से आए ? “शुभी क्या हुआ ?” अचानक से शुभी को उदास देख कर ऋषभ ने पूछा !

“ऋषभ प्यास लग रही है और टैंक का पानी जम गया है।”

“तो इसमें इतना परेशान होकर क्या होगा ? पानी जम गया तो जम जाने दो ! मैं हूँ न !”

“अब तुम इसमे क्या कर लोगे ?”

“मैं पानी पिलाकर प्यास बुझा दूंगा !” ऋषभ ने मुसकुराते हुए कहा !

“लेकिन कैसे ?”

“तुम बस देखो कि मैं क्या करता हूँ ?” ऋषभ ने गैस के पास से एक भगौना उठाया और एक कलछी लेकर कमरे से बाहर निकल गया !

“अरे यह कहाँ से पानी लेने जा रहे हैं इतनी तेज गिरती हुई बर्फ में !”

“नहीं ऋषभ रहने दो मुझे पानी नहीं चाहिए इतनी ठंड में कहीं भला प्यास लगती है !” किसी अनजाने भय की आशंका से उसका दिल ज़ोर से धडक रहा था।

“तुम क्यों घबरा रही हो, देखो न मैं क्या करता हूँ ? आओ मेरे साथ !” शुभी का हाथ अपने हाथ से पकड़ते हुए ऋषभ ने कहा ।

“अरे अरे, छोड़ो न मेरा हाथ, कहाँ जा रहे हो ?”