समर और शिवानी के घर से चले जाने के बाद संगीता जी पूरे दिन कभी तो अपने बिस्तर पर करवटें बदलती रहीं तो कभी कमरे में इधर - उधर टहलती रहीं और फिर आखिरकार उन्होंने अपनी बेचैनी के चलते अपने पति यानि कि शिवानी के पिता जी को दिल्ली में फोन मिला लिया मगर वो चाहते हुए भी उनसे अपनी बेचैनी और उलझन साझा नहीं कर पायीं। हालांकि शिवानी के पिताजी को संगीता जी की आवाज से कुछ गड़बड़ होने का अंदेशा ज़रूर हुआ पर उनके दो बार पूछने पर भी संगीता जी ने उन्हें बस थकान का बहाना करके टाल दिया और कुछ ही देर में हालचाल की हल्कीफुल्की वार्तालाप के बाद उन्होंने फोन रख दिया और अब वो अपनी बेचैनी को जस का तस लिए हुए पुनः एक बार बॉलकनी से कमरे में तो कभी कमरे से बॉलकनी में टहलने लगीं।
रात के ग्यारह बजते ही एक लम्बे इंतज़ार के बाद उन्होंने शिवानी को फोन किया जिसपर शिवानी ने उन्हें अपने अगले पन्द्रह मिनट में घर पहुंचने की बात बताई।
शिवानी के घर वापिस आने पर उन्होंने उसके साथ ही बैठकर बेमन थोड़ा सा खाना खाया और शिवानी के पूछने पर कि उन्होंने अभी तक खाना क्यों नहीं खाया था पर उन्होंने जी अच्छा न होने का कहकर बात बना दी। कुछ ही देर में जब शिवानी अपने बिस्तर पर लेट चुकी थी तब संगीता जी ने अपनी गहरी साँसों को सामान्य करते हुए शिवानी के सिरहाने बैठकर उसका सिर सहलाना शुरू कर दिया और वो धीरे - धीरे उससे अपने मन की बात कहने लग गयीं..... देख बेटा यूं तो मुझे समर में कोई कमी नज़र नहीं आयी पर फिर भी न जाने क्यों बस यही बात मुझे सुबह से अखरे जा रही कि कोई इतना सर्वगुणसम्पन्न आखिर कैसे हो सकता है और वो भी आजकल के दौर में, वो भी मुंबई जैसे शहर में! जैसा कि तूने बताया कि वो किसी तरह का शराब या सिगरेट का नशा वगैरह भी नहीं करता और....इससे पहले कि संगीता जी आगे कुछ और बोल पातीं शिवानी बोल पड़ी....है न माँ कमी,उसका गुस्सा जो कि अपने पापा से भी ज्यादा तेज़ है। सच में माँ मैंने पापा के बाद कोई दूसरा शख्स देखा है इतने गुस्से वाला और सच कहूं तो उनसे भी कई गुना तेज़ गुस्से वाला। और हाँ माँ एक और कमी जिसके कारण मैं अब तक समर के बारे में आपसे या पापा से कोई बात नहीं कर पाई और वो है उसकी बड़ी उम्र! माँ वो मुझसे दस साल बड़ा है।
"क्या ? मगर मुझे तो नहीं लगा कि वो तुझसे उम्र में इतना फासला रखता है। (वाहह, ज़रूर बम्बई का ही असर होगा जो कि हीरो लगता है और उसनें मुझे ज़रा भी अंदाजा नहीं होने दिया अपनी उम्र का!!), संगीता जी ने मन ही मन ऐसा सोचते हुए कहा।
"हाँ माँ इतना ही फासला है और यही कारण था कि मैं अब तक आप लोगों से उसके बारे में बात करने से झिझक रही थी पर आप तो कुछ और ही लेकर बैठे हो। अच्छा चलो अब मुझे सोने दो,कल ज़रा जल्दी ऑफिस जाना है माँ। बाकी बातें हम बाद में करेंगे,ओके गुडनाईट मेरी प्यारी सी और बहुत ही भोलीभाली सी माँ एंड माँ यू डोन्ट वरी,ही लव्स मी अ लॉट!!",कहते हुए शिवानी नें अपने कमरे की बत्ती बुझा दी और अब संगीता जी भी उसके बगल वाले कमरे में सोने के लिए जा चुकी थीं मगर ये और बात है कि शिवानी से बात करने के बाद तो अब उनकी नींद उनसे कोसों दूर जा चुकी थी ।
अगले दिन जब शिवानी ऑफिस चली गई तब संगीता जी ने एक बार फिर से शिवानी के पापा को फोन किया और इस बार उन्होंने बहुत ही धैर्य और समझाने वाले भाव में उनको शिवानी की पसंद समर और उसके साथ उसके जीवन बिताने के फैसले के बारे में बताया एवं समझाया मगर संगीता जी ने उन्हें उनकी चिंता के बारे में कुछ भी नहीं बताया!!
"यार क्या हुआ? ये तेरा मुंह क्यों सड़ा हुआ है? क्या आज फिर से तेरा और अथर्व का झगड़ा हुआ,बोल न शगुन!",शिवानी नें शगुन के कंधे पर अपना हाथ रखकर उसकी डेस्क पर बैठते हुए पूछा।
"हम्म!!", शगुन ने बस इतना ही कहा।
यार तू न उसे लेकर कुछ ज्यादा ही पजेसिव है। यार शगुन रिलेशनशिप्स ऐसे नहीं चलते खासकर वो रिलेशनशिप्स जिनका साथ हम उम्रभर चाहते हैं! तू मेरा और समर का ही देख ले, मैं उसे कितना स्पेस देती हूँ। देख हमारा रिलेशनशिप कितना हैल्दी है,हैं न।
शिवानी की बात को सुनकर इस बार उसकी कलीग शगुन की आँखों में आँसू थे। शगुन नें अपने आँसुओं को अपनी हथेलियों से पोंछते हुए कहा कि हम्म, तू सही है। मैं ही गलत हूँ।
यार,सॉरी अगर तुझे बुरा लगा। मैं शायद कुछ ज्यादा ही बोल गई न! इसके आगे वो कुछ बोल पाती तब तक अथर्व वहाँ पर आ गया और उसके साथ ही शिवानी की वर्क कॉल भी और वो वहाँ से उठकर चली गई।
रात को घर लौटते हुए जब इस सिलसिले में शिवानी ने अथर्व से बात करनी चाही तो अथर्व ने उसे इधरउधर की बातें करके टाल दिया।
शिवानी रातभर शगुन के बारे में ही सोचती रही क्योंकि शगुन और अथर्व,उन दोनों के झगड़े तो अक्सर ही होते थे लेकिन शगुन को इस तरह रोता हुआ शिवानी नें पहली बार ही देखा था और फिर शगुन इससे पहले हर बार शिवानी से अपने मन की बात या किसी भी झगड़े की बात को खुलकर बता देती थी मगर इस बार न जाने क्यों शिवानी को ऐसा लगा कि वो बताना चाहती थी पर बता नहीं पायी। सोचते - सोचते शिवानी की आँख लग गई। अगले दिन शिवानी का ऑफ था तो वो सुबह लगभग साढ़े ग्यारह बजे सोकर उठी।
क्या हुआ बेटा? तू कुछ परेशान सी लग रही है। क्या समर से कुछ....संगीता जी के पूछने पर शिवानी नें उन्हें शगुन और अथर्व के बारे में और कल रात शगुन के उसके सामने पहली बार रोने की बात बताई और ये भी बताया कि वैसै तो शगुन एक बेहद हंसमुख तथा मजबूत इरादों वाली लड़की है पर इस बार बात सचमुच काफी गंभीर होगी।
माँ न जाने क्यों कल मैंने उसे बेहद टूटा हुआ महसूस किया।
बेटा हो सकता है कि ये तुम्हारी गलतफहमी हो!!
"नहीं माँ, कुछ तो ऐसा ज़रूर है जो कि शगुन मुझसे छिपा रही है।", शिवानी नें एक बार फिर से चिंतित स्वर में कहा।
"बेटा तू जितना ध्यान दूसरों के रिश्तों पर दे रही है न काश कि उतना ही चिंतन तू अपने और समर के रिश्ते पर भी करती।", शिवानी से ये कहते हुए संगीता जी डाइनिंग से उठकर किचेन में चली गई।
शिवानी को इस वक्त अपनी माँ की बात पर बहुत गुस्सा आया और वो वहाँ से गुस्से में उठकर अपने कमरे में चली गई और फिर उसनें अपने कमरे का दरवाजा बड़ी ही तेज आवाज के साथ बंद कर लिया।
क्रमशः...
आपकी लेखिका...🌷निशा शर्मा🌷