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Chapter-5.5: प्यार एवं जुदाई
कीर्ति वापस से अपनी ज़िंदगी की यादों को Rewind मोड पर ले गई। उस पल जब दोनों एक दूसरे के भरपूर प्रेम में थे, और नई नई जगह घुमा करते थे।
“बाप रे कितनी ऊंची जगह है, मैंने तुझे कहा है ना मुझे ऊंचाई से डर लगता है, फिर तू ऐसी जगह क्यों ले आया मुझे?”
“तुझे खाई में गिराने ले आया हूं।” माधव ने गुस्से में आकर कहा, “हद है तेरी! तुझे एक तो इतनी अच्छी रोमेंटिक जगह पर ले आया हूं और तू है कि फालतू में डरे जा रही है। मैं हूं ना तेरे साथ। सच कहूं तो मुझे एडवेंचर स्पोर्ट्स का बहुत शोख़ है। ज़िंदगी में कभी मौका मिला तो बंजी जंपिंग ट्राय करूंगा।”
“अच्छा ठीक है जिस दिन तू ट्राय करेगा उस दिन मैं भी तेरा साथ दूंगी, पर सच ये है कि मुझे ऊंचाई देख कर चक्कर आते है इसीलिए मैं उस तरफ नहीं देखूंगी।”
“कोई बात नहीं।”
“माधव एक बात पूछ सकती हूं?”
“पूछ ना!”
“हमें प्यार हुए इतना टाइम हो गया तेरे मन में कभी वैसे ख़्याल नहीं आए?” कीर्ति ने पूछा।
“वैसे कैसे?”
“अरे वैसे!”
“यार मुझे सच में समझ नहीं आ रहा, तू किसकी बात कर रही है?”
“पी. आर. की सोच।“
“प्यार की सोच? उसके ख़्याल में तो मैं हंमेशा रहता हूं।”
“बुद्धू मैं प्यार नहीं पी. आर. के बारे में पूछ रही हूं।”
“पी. आर.? वो क्या होता है?”
“जाने दे तू नहीं समझेगा।”
“अरे तो समझा ना यार! बिना समझाए मैं कैसे समझूंगा?”
“मैं पी. आर. मतलब फ़िजिकल रिलेशन के बारे में पूछ रही हूं।”
माधव दो घड़ी कुछ बोल नहीं पाया, वो बस कीर्ति को देखता रह गया।
“ऐसे मत देख, मैं बस पूछ रही हूं। कुछ उलटा मत सोच लेना।”
“नहीं, मुझे ऐसे ख़्याल कभी नहीं आए, मैंने तुझसे प्यार किया है, तेरी बोड़ी से नहीं।”
“तू सच बोल रहा है? या सिर्फ मुझे इम्प्रेस करने के लिए ये सब कह रहा है?”
“यार तेरी कसम खा के कहता हूं, मैं सच कह रहा हूं।”
“मेरी इतनी खूबसूरती होने के बावजूद भी तुझे कभी ऐसा ख़्याल नहीं आया?”
“मैंने कहा ना मैंने तुझसे प्यार किया है, तेरी बोड़ी या तेरी खूबसूरती से नहीं। पर अचानक से तू ऐसे सवाल क्यों पूछ रही है? मेरे प्यार पर भरोसा नहीं है क्या तुझे?”
“ऐसा नहीं है, बस ये बात दिमाग में आ गई सो पूछ लिया। फुरसत में कहूंगी तुझे इस बारे में। फिलहाल तू ये बता मुझे तू ये महाबलेश्वर क्यों ले के आया?”
“बस यूं ही घूमने फिरने। मुझे ऐसी जगह पसंद है। तू भले ऊंचाई देख के डर रही हो पर मैंने तुझे कभी कहा नहीं की मुझे एडवेंचर स्पोर्ट्स में काफ़ी दिलचस्पी है। बचपन में मैं खेलकूद में बहुत दिलचस्पी लेता था पर मेरे मां-बाप को यह पसंद नहीं था। इसीलिए में उसमें आगे नहीं बढ़ पाया। मेरी दिल से ख्वाहिश है कि मैं कोई एडवेंचर स्पोर्ट्स में हिस्सा लू।”
“तो अभी के अभी हिस्सा लेगा क्या? यहां आसपास तो कोई एडवेंचर स्पोर्ट्स नहीं है।” ये कहकर कीर्ति जोर से हँस पड़ी।
“एक तो मैं तुझे अपने दिल की बात बता रहा हूं और तू है कि मज़ाक उड़ा रही है मेरा, तुझे कुछ बताना ही नहीं अब से।”
“माफ कर दे यार, मैं तो माहौल हल्का करने के लिए ऐसा बोल गई। तेरा मजाक नहीं उड़ा रही थी।”
“कोई बात नहीं। तू बता तुझे ऐसे कोई शोख़ है जो पूरे करने हो?”
“नहीं! पर मैं भी एडवेंचर स्पोर्ट्स में हिस्सा लेना जरूर चाहूंगी।”
“तो डील डन! हम साथ ही कोई एडवेंचर स्पोर्ट्स में हिस्सा लेंगे।”
“पक्का।” कीर्ति ने कहा।
“उससे पहले एक और एडवेंचर करना है।”
“वो क्या?”
“तुझसे शादी जो करनी है।” ये कहकर माधव हल्का सा मुस्कराया।
कीर्ति एक दम से शांत हो गई और इधर उधर देखने लगी।
“यार मैं शादी के लिए तुझसे बात कर रहा हूं, और तू ध्यान ही नहीं दे रही है।”
“मैंने फिलहाल शादी के बारे में नहीं सोचा है, और मुझे इस बारे में कोई बात भी नहीं करनी।”
“कोई बात नहीं। और बता तेरी सिंगिंग कहां तक पहुंची?”
“अब जमाना तेज़ हो गया है, तुझे नहीं लगता हम दोनों इस तेज़ तर्रार दुनिया से आगे नहीं निकल पाएंगे।”
“ऐसा क्यों बोल रही है?”
“पहले का जमाना कुछ और था, अब दिन प्रतिदिन नए गायक और गायिका आने लगे है। बॉलीवुड इतना विस्तृत हो चुका है कि आने वाले समय में हम जैसे गायकों के लिए कोई जगह ही नहीं बचेगी।”
“तू सही कह रही है, पर मुझे गाने के अलावा और कुछ आता भी तो नहीं है। मैं अपना पूरा दिन अपनी आवाज़ और गायकी सुधारने में ही बिताता हूं। मुझे ऐसा लग रहा है कि मैं अपनी गायकी में सुधार ला सकता हूं पर ला नहीं पा रहा हूं। पता नहीं ऐसा क्यों हो रहा है।”
“तेरी आवाज़ लोगों को पसंद है, तुझे सुनना भी लोग पसंद करते है। मेरा कहना यह है कि इसी आवाज़ और इसी एक तरह की गायकी से हम लोग आगे तक नहीं जा पाएंगे। हमें नई कलाए सीखती रहनी होंगी। समय के साथ चलते रहना होगा। तभी हम कुछ कर पाएंगे।” कीर्ति ने कहा।
“तू फिजूल में इतना सोच रही है। जब जैसा वक़्त आएगा तब वैसा जीया जायेगा।”
“कोई नहीं मुझे कोई ज़्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। मैं तो एक आम सिंगर हूं, तू बहुत बड़ा गायक है। छोटे से बड़ा होना सब को अच्छा लगता है, पर कभी बड़े से छोटा होना पड़ा तो वो दर्द क्या होगा इस बात का अंदाज़ा नहीं है तुझे।”
“ऐसी बद्दुआ मत दे यार, कभी कभी बद्दुआ लग भी जाती है।”
“नहीं लगेगी। मैं तो दुआ करूंगी की मेरे हिस्से की कामयाबी भी तुझे हासिल हो।”
“तुझसे यही उम्मीद थी। चल अब बातें बहुत हो गई, अब कहीं घूमते फिरते है, फिर डिनर लेते है किसी रेस्टोरेंट में।”
“हां चल चलते है।” इतना कहकर दोनों चल दिए।
Chapter 5.6 will be continued soon…
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✍️ Anil Patel (Bunny)