Nainam chhindati shstrani - 49 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 49

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नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 49

49

मोहनचंद खन्ना ‘खन्ना गुड भंडार’ के मालिक लखपति रमेशचंद खन्ना का एकमात्र सुपुत्र था | कुछ दिनों से मोहन की शिकायतें आ रहीं थीं कि वह गुंडों की जमात में शामिल हो गया है | मोहन से बड़ी दो बहनें थीं जो विलास की माता जी के कन्या कॉलेज में पढ़तीं थीं | खन्ना जी भारद्वाज परिवार का बहुत सम्मान करते थे | रमेश जी की दोनों बेटियाँ अब इंदु के पास कत्थक नृत्य की शिक्षा लेने आतीं थीं | 

अचानक एक दिन शहर में हा –हाकार माच गया | मोहन ने आत्महत्या कर ली थी | पिछले दिन कॉलेज से आते हुए मोहन की बहन का दुपट्टा किसी गुण्डे ने खींच लिया था, वह लड़की रोते हुए अपने घर पहुँची थी | खन्ना परिवार इस घटना से मानसिक तनाव का शिकार हो गया | बेटियों की सुरक्षा के लिए चिंतित खन्ना जी कन्या कॉलेज की हैड मिस्ट्रेस श्रीमती रमा भारद्वाज तथा मैनेजिंग कमेटी के पास गए | मीटिंग में छात्राओं की समस्या को गंभीर रूप से रखा गया | इस घटना से सभी लोग बहुत चिंतित थे | न जाने घटना के समय रमेश जी का बेटा कहाँ था ?अपनी बहन के साथ हुई शर्मनाक घटना के के बाद भी वह न जाने कहाँ रहा ?न जाने कब देर रात में आकर बिना कुछ बोले, बिना खाना खाए वह अपना कमरा बंद करके सो गया | 

सुबह जब देर तक उसका कमरा नहीं खुला तब दरवाज़ा तोड़ा गया जहाँ उसकी निर्जीव देह पंखे से लटकती हुई मिली | कमरे में मोहन की मेज़ पर उसके हाथ से लिखा हुआ एक पत्र भी मिला जिसमें उसने लिखा था कि उसकी बहन के साथ होने वाली दुर्घटना के लिए वह तथा उसके साथी जिम्मेदार हैं | वह अपनी बहन को कभी अपना मुँह नहीं दिखा सकता था | इस कारण वह इस संसार से विदा ले रहा है | उसके साथी लड़कों को उसकी बहन के साथ हुई दुर्घटना के लिए कोई अफ़सोस नहीं है क्योंकि वह उनकी बहन नहीं है | उसका यह कदम उठाने में किसीका कोई दोष नहीं है | 

बारहवीं कक्षा में पढ़ने वाले युवा लड़के को खो देने का आघात रमेश खन्ना जी व उनकी पत्नी पर इस कदर लगा कि रमेश जी को दिल का दौरा पड़ा और उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए | उस दिन एक ही घर से दो अर्थियाँ उठीं| शहर में

हाहाकार मच गया था | पूरे वातावरण को सूनेपन की काली चादर ने अपने भीतर समेट लिया था | लगभग दो-एक सप्ताह तक भयंकर शांति छाई रही परंतु फिर से कुछ दिनों के बाद इस प्रकार की वारदातें सुनाई देने लगीं | 

इंदु को न जाने क्यों भीतर से बहुत घबराहट सी रहने लगी थी | विलास, उसकी सास तथा चंपा माँ उसे ढाढ़स देते पर वह अब उतनी खिली-खिली न रह पाती जितनी पहले रहती थी | उसका समाज को मार्गदर्शन देने का उत्साह फीका पड़ने लगा था और वह निरुत्साहित सी रहने लगी थी | 

डॉ. विलास बहुत गंभीर प्रोफ़ेसर सिद्ध हुए थे | उन्होंने कक्षा में सबको विस्तृत रूप से अध्ययन तथा परीक्षा का महत्व समझाया था लेकिन उनका समझाना नक्कारखाने में तूती की आवाज़ था | इस बार की परीक्षा में बहुत से छात्रों को पकड़ा गया था | हद तो तब हो गई जब उन्होंने अपने सामने ही एक लड़के को मेज़ के बीचोंबीच रामपुरी चाकू गड़ाकर आराम से किताब खोलकर पेज़ पलटते हुए देखा | 

डॉ. विलास स्वयं को वश में न रख सके, उन्होंने उस लड़के को पकड़ लिया ।उसकी उत्तर पुस्तिका लेकर उसे परीक्षा के कमरे से बाहर निकाल दिया और सबको एकत्रित कर लिया | पुलिस को भी बुला लिया गया था | वह लड़का रक्तिम आँखों से उन्हें घूरते हुए बार-बार पुलिस के हाथों से निकलने के लिए उछल-कूद मचा रहा था और डॉ. भारद्वाज को आगाह करता जा रहा था कि वह उन्हें देख लेगा | 

दादी माँ और चंपा की मृत्यु के बारे में सारांश ने अपनी माँ इंदु से ही सुना था | उसे अपना इलाहाबाद वाला घर कुछ-कुछ याद था | छोटा सा ही था तभी उसके पिता ने उसे  शिमला हॉस्टल में पढ़ने भेज दिया था | हॉस्टल में माँ ही अधिकतर उससे मिलने आतीं | पिता व्यस्त रहते | छोटे शहर को छोड़कर सारांश के माता-पिता दोनों इलाहाबाद विश्वविद्यालय में आ गए थे | इत्तेफ़ाक कुछ ऐसा बनता कि जब सारांश इलाहाबाद जाता तब उसके पिता अधिकांश रूप से शहर के बाहर होते| 

सारांश एम.बी. ए करने इलाहाबाद आया तो उसके पिता को जर्मनी विश्वविद्यालय से अध्यापन हेतु चार वर्ष के लिए निमंत्रित कर लिया गया था | जब उसे बंबई में नौकरी मिली तब भी माँ ही आ पाईं | सारांश व समिधा ने विवाह करने का निर्णय लिया | यह बात सारांश ने अपनी माँ इंदु से साझा की जिसे इंदु ने प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार कर लिया था | 

समिधा यानि सुम्मी भी उत्तर-प्रदेश की रहने वाली थी | अपनी स्नातक की परीक्षा पूरी करने के पश्चात उसने दिल्ली दूरदर्शन में उद्घोषिका के रूप में चयनित होने के लिए प्रपत्र भरा था, कुछ वर्ष पूर्व ही दिल्ली दूरदर्शन का प्रारंभ हुआ था| उसके पिता उसके इस प्रयत्न को महज एक औपचारिकता ही समझते थे | उनके विचार में उनकी योग्य बेटी उनके पास शिक्षा प्राप्त करके ही अपने जीवन में कुछ बन सकती थी | पापा की नकारात्मक सोच से शूल सी बातें सुनते हुए समिधा खीजने लगी थी | आख़िर उसे प्रयत्न तो करने दें, पहले ही तोड़कर रख देंगे | उसे लगता पापा में ही कहीं हीन भावना के बीज अंकुरित हो चुके हैं जिनको वे उसके भीतर भी फैला रहे हैं | 

“अब देखो न, तुम्हीं रह गईं पीछे ! किन्नी चली गई तुम्हें छोड़कर अमरीका ! ”

सुम्मी जानती थी पापा बचपन से ही इस बात से नाराज़ थे कि वे अपनी लाड़ली इकलौती बेटी की ज़िद के कारण उसे अपने पास दिल्ली में रखकर नहीं पढ़ा सके | जब भी इस बात का ज़िक्र आता वे उत्तेजित व असहज हो उठते| उनके लिए दिल्ली की शिक्षा सर्वश्रेष्ठ थी | वे यह क्यों नहीं समझ पाते थे कि गुज़रे हुए दिन कभी लौटकर नहीं आते | पीछे के पृष्ठ पर अटकने से यह अधिक अच्छा नहीं है आगे का अध्याय पूरे मनोवेग से पढ़कर आगे की कक्षा में पहुँचा जाए !

सभी चीज़ें मनुष्य के अपने हाथ में नहीं होतीं | किन्नी ने कॉलेज में प्रवेश लिया ही था कि उसका रिश्ता आ गया | उनकी जाति के परिवारों में शिक्षित वर मिलना सहज नहीं था सो राजवती बीबी व मुन्नी जीजी तथा उनके पति ने तुरंत ही विवाह के लिए वह रिश्ता स्वीकार कर लिया |  मुन्नी जीजी की शादी दो वर्ष पूर्व हो चुकी थी | उनके पति बैंक में कार्यरत थे| किन्नी का बी. ए भी पूरा नहीं हो पाया कि उसका विवाह हो गया | कुछ दिनों बाद वह अपने पति के साथ विदेश में जा बसी जिसे वहाँ अध्ययन के लिए छात्रवृत्ति प्राप्त हुई थी | 

किन्नी के पिता लंबी बीमारी को भोगकर चल ही बसे थे | मुन्नी जीजी के पति बहुत योग्य निकले | उन्होंने अपनी ससुराल के दायित्वों को प्रसन्नतापूर्वक संभाल लिया था | अब घर का सबसे बड़ा पुरुष सदस्य मुन्नी जीजी के पति ही थे | ऐसी स्थिति में किन्नी के लिए यह रिश्ता मिलना परिवार के लिए किसी वरदान से कम न था | 

विवाह के बाद तो दोनों सहेलियों को अलग होना ही था, इसमें क्या अनोखा था | दोनों लड़कियाँ इतनी समझदार हो चुकी थीं कि जीवन की वास्तविकता से बाबस्ता हो सकें | किन्नी को इतना अच्छा जीवन साथी मिलने पर सुम्मी तथा उसकी माँ कितने प्रसन्न हुए थे | पापा भी किन्नी से कम स्नेह नहीं करते थे | बस, उनको सदा सुम्मी की मित्रता में किन्नी की मित्रता बाधक नज़र आती रही थी | अब जब वह अपनी पसंद के क्षेत्र में हाथ-पैर मार रही थी तब पापा न जाने क्यों स्वयं के साथ माँ-बेटी दोनों का मनोबल गिराने पर तुले थे | कुछ लोग परिणाम से पूर्व ही परिणाम की असफलता के बारे में सोच-सोचकर चिंतित व विचलित होने लगते हैं | उन्हें संभव : “ज़माना क्या कहेगा ?”की चिंता व्यर्थ में सताती रहती है| सुम्मी के पापा भी इसी दायरे में आते थे | माँ को अच्छा नहीं लग रहा था | अरे! लड़की कोशिश कर रही है, साथ दें उसका, ये क्या हुआ कि उसे नकारात्मकता में घसीट लें | 

“सुन सुम्मी ! ये क्या सूने माथे जाएगी, ले छोटी सी बिंदी लगा ले माथे पर, स्क्रीन टैस्ट है –चेहरा खिल जाएगा | “दिल्ली में पापा के घर से सटे हुए बँगले में सूद आँटी रहती थीं, दूरदर्शन में साक्षात्कार देने जाते समय वे उसको शुभकामना देने आईं थीं | जल्दी से अंदर जाकर माँ की ड्रेसिंग टेबल से सलाई वाली गीली बिंदी की शीशी लाकर उन्होंने समिधा के माथे के बीचोंबीच एक छोटी सी बिंदी लगा दी थी | 

“देखा, कैसा खिल उठा है चेहरा ! अब मुस्कुराते हुए टैस्ट देना –पूरे उत्साह के साथ | अरे! इन लल्लो-झँपों करने वाली लड़कियों में कुछ दम नहीं होता | देखना, तेरा ही नंबर आएगा | ”

सूद आँटी की आकाशवाणी से सुम्मी और माँ के लटके हुए चेहरों पर मुस्कुराहट पसर गई थी पर पापा यूँ ही निर्विकार बने रहे | उस दिन समिधा का एक बार नहीं कई बार ‘स्क्रीन टैस्ट’लिया गया, कई बार संवाद बुलवाए गए | अंत में यह कहकर घर भेज दिया गया कि एक सप्ताह में परिणाम घर पर भेज दिया जाएगा |