wife's job in Hindi Love Stories by नन्दलाल सुथार राही books and stories PDF | पत्नी की जॉब

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पत्नी की जॉब

1


वह अपना करियर बनाना चाहती थी लेकिन उसका पति उसे रोक रहा था । शादी से पहले ही उसने सोच रखा था कि पहले करियर बनाउंगी फिर शादी लेकिन दादाजी ने अपनी मौत से पहले उसकी शादी की जिद्द ठान ली हालांकि आज शादी के 5 साल बाद भी दादाजी काफी तंदुरुस्त है।
जब वह अकेली होती तो कभी दादाजी को कोसती तो कभी अपने पति पर ।अपनी 2 साल की बेटी की सार संभाल और घर की ज़िम्मेदारी उसे अब बाहर जॉब करने की इजाजत नहीं दे रही थी। उसके सास ससुर ने भी अपने बेटे को बोला कि बहु को जॉब करने दे लेकिन बेटा हमेशा मना कर देता और इस बात पर रोज घर में तू- तू में- में हो जाती। मोनिका का पति रोहन जो एक दुकान में मुनीम था उससे घर का गुजारा न हो पाता था । मोनिका एक अच्छी खासी पढ़ी लिखी महिला थी और अपने बेंच की टॉपर , इतना टेलेंट तो था उसमे की कही से कोई जॉब प्राप्त कर ले। लेकिन रोहन की जिद्द के आगे उसकी एक न चलती ।

' आज फैसला हो ही जायेगा , मुझे भी अधिकार है अपने पसंद के कार्य करने का ; या तो मुझे जॉब करने दो या मैं अपने घर चली' मोनिका ने आज सुबह- सुबह ही रोहन को यह धमकी भरा नाश्ता दे दिया। रोहन फिर से उसी जिद्द पर अड़ा रहा ' मैं तुम सबको भूखा तो नहीं मार रहा हूँ , तुम्हे समय पर खाना मिल रहा है फिर तुम्हे क्यों जॉब करनी और घर पर भी तुम्हारे लिए नोकरानी रखी है ताकि तुम्हे कोई दिक्कत न हो फिर भी तुम जाना चाहती हों।'

'सिर्फ खाना ही जीवन नहीं होता बाकी घरों के और अपने घरों के हालात देखों अगर हम दोनों काम करे तो घर की हालत भी सुधर जाए आखिर तुम्हें दिक्कत ही क्या है ? पड़ोस वाली महिलाएं भी तो जॉब करती है ' मोनिका ने आखिरी उम्मीद से कहा और सोचा कि काश अब मान जाए। लेकिन रोहन भी अपनी जिद्द का पका था।

2

' अरे ये तुम आज सामान लेकर बिना बताए कैसे आ गयी' मोनिका की माँ ने विस्मित होते हुए कहा। ' आज मैंने उस घर को छोड़ दिया है जहाँ मेरी इच्छा की कोई कदर नहीं । मैं हमेशा कहती हूं कि मुझे जॉब करने दो लेकिन रोहन मेरी कभी सुनता ही नहीं , मुझे अब वहां नहीं रहना है ' मोनिका ने अपने पति के प्रति गुस्से को जाहिर करते हुए कहा।
मोनिका की माँ ने कहा ,मैने तो पहले ही कहा था अभी इसकी शादी मत करो लेकिन मेरी सुनता कौन है ? देख लो आज क्या दिन आया है ।' मोनिका का पिता जो कॉफी सुलझे हुए आदमी थे उसने कहा ' बेटी ऐसे घर छोड़ के नहीं आते वह तुम्हारा पति है और वहाँ तुम्हे क्या दिक्कत है; घर पर नोकरानी रखी है और तुम्हें तो वो घर का काम भी नहीं करने देता ।'
'पर घर की हालत तो देखो अगर में जॉब करू तो घर की स्थिति में कितना सुधार आएगा असल में वो रहा एक मुनीम उसे कहाँ बर्दाश्त हो कि उसकी पत्नी उससे ज्यादा पैसे कमाए। ' मोनिका से उसके तिरस्कार के भाव से कहा और बोला कि मुझे अब बस उस आदमी के साथ रहना ही नहीं है।

पिता ने उसे फिर समझाया लेकिन उसकी माँ ने बात बीच मे काटते ही बोला 'आप भी उसी मनोवृत्ति के है आखिर लड़किया जॉब करे उसमे प्रॉब्लम ही क्या है' ।
'तुम तो चुप रहो इधर बेटी का घर बिखर रहा है और तुम ऊपर से आग में घी डाल रही हो बेटी तुम वापस चली जाओ अपने घर, रोहन बहुत ही अच्छा लड़का है।' पिता ने अपनी बेटी को समझाते हुए कहा।

'नहीं,वो बहुत नीच मानसिकता वाले पुरुष है। अब मैं एक पल भी उसके साथ नहीं रह सकती अगर आप भी मुझे यहाँ न रखना चाहे तो मेरे लिए इस दुनियां में रहना ही किसी काम का नहीं! ' बेटी ने पिता को अंतिम वाक्य बोलने की स्थिति में ला दिया।
पिता ने आखिर वो बोल ही दिया जिसे बोलने के लिए उसके दामाद ने उसे मना किया था। ' क्या तुम जानती भी हो वो तुम्हे क्यों मना करता है? उसने तो मुझे शादी से पहले ही बोल दिया था कि तुम शादी के बाद भले ही अपना जॉब करो। लेकिन शादी के महीने बाद ही जब तुम बीमार हो गयी थी और तुम हॉस्पिटल में एडमिट थी तभी डॉक्टर ने उसे बताया कि तुम्हें कैंसर है और तुम्हारी ज़िंदगी में बहुत कम दिन बचे है जितना हो सके उतना तुम्हे काम न करना पड़े और आराम मिले और इसीलिए वो तुम्हे जॉब नहीं करने देता और घर का काम भी , तभी तो वो अपनी इस दयनीय आर्थिक स्थिति होते हुए भी तुम्हारे लिए नोकरानी लाया। क्या तुम अब भी उस आदमी से दूर रहना चाहोगी जो हर पल सिर्फ तुम्हारी फिक्र में ही जी रहा है।'
अपने पिता की इस बात को सुनते ही उसके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई । एक अपराधी की भांति अपने को धिक्कारती हुई अपना सामान उठाकर वापस रिक्शा का इंतजार करने लगी।

🙏नंदलाल सुथार"राही"🙏