उमा जानकी राम की तमिल मूल कहानी का अनुवाद एस.भाग्यम शर्मा
मठ की गली से साग-सब्जी लेकर आते समय गली के कोने में मैंने वासु को देखा।
अचानक उसके आमने-सामने पड़ते ही उससे क्या बात करूं एक मिनिट समझ नहीं पाया। ‘‘ कैसे हो मामा ! पदमा, वेणु सब कैसे हैं ? सब ठीक है ? ’’
‘‘सब कुशल मंगल हैं। तुम कैसे हो भाई ! ’’
‘‘ ऐसे ही हैं। अम्मा ही हमेंषा कह-कह कर दुखी होती रहती है। कहतीं हैं कि अप्पा के जाने के बाद आप घर की तरफ आते ही नहीं हैं। आपके परिवार के सभी सदस्य अब पहले जैसे न होकर अलग-थलग हो गये हैं। ’’
‘‘ ऐसा कुछ नहीं है। घर के बहुत से काम हो जाते हैं।’’ मैं जो कह रहा था वह सिर्फ अपने बचाव के लिए मुझे ही अपनी बेवकूफी भरी बात पर हंसी आई।
‘‘ अच्छा चलता हूं मामा। ’’
वासु के जाने के बाद मेरा मन घर जाने का न हुआ, अतः मैं पास के गाँधी पार्क में जाकर बैठ गया। उसके सामने पूरा अतीत पिक्चर की तरह घूम गया।
मैं पुरानी बातों के बारे में नहीं सोचूंगा ऐसा सोच कर दिमाग में जबरदस्ती एक पर्दा सा खींच रखा था। पर वासु के सामने पड़ते ही मैं सोचने को मजबूर हो गया। उस घटना को घटे पूरे दस महीने हो गये। वासु के अप्पा मूर्ती से मेरी अच्छी घनिष्ट दोस्ती थी। हम दोनों विद्युत कार्यालय में एक ही डिविजन में काम करते हुए तीन महिने पहले ही सेवा निवृत हुए।
दोपहर के समय कार्यालय में हम दोनों एक साथ मिलकर खाना खाते व एक दूसरे का खाना भी शेयर करते। शाम को दोनों साईकिल से साथ-साथ ही घर लौटते थे।
मेरा घर जिस गली में है उसी गली के नुक्कड़ में ही उसका घर भी है अतः दोनों परिवार वालों में भी घनिष्टता थी।
मूर्ती की पत्नी लक्ष्मी व मेरी पत्नी कमली दोनों साथ-साथ मन्दिर जाकर प्रसाद लेकर आते थे। दीपावली के त्यौंहार पर एक ही घर में दोनों मिलकर पकवान बनाते व आपस में सबको बांट लेते। दोनों ही घर में पैसों की तंगी अधिक थी अतः इस बारे में आपस में बात करने में दोनों को सहूलियत होती।
‘‘मामा आपको ‘पुलियेंदरै’ (इमली का चावल) बहुत पसंद है ना अतः अम्मा ने आपके लिए भिजवाया है। ’’ ऐसा कह कर वासु स्कूल जाते समय बीच रास्ते में मेरे घर आकर गरमा-गरम खुशबू वाला डब्बा मुझे पकड़ाता जाता।
मूर्ती को मैं व मेरे लिए वह इस तरह हम दोनों एक दूसरे के पूरक थे।
सत्ताइस साल पूरे होने के बाद भी मेरी बड़ी बेटी पदमा का कोई भी रिश्ता ठीक से जमा नहीं। जो भी वर पक्ष वाले आते वे जो मांग रखते वह मेरे लिये बहुत ज्यादा था। उसे पूरा करने में मैं समर्थ नहीं था। अपना हाथ मुझे पीछे खींचना पड़ता। पदमा लाचारी व विरक्ति में अपना जीवन चला रही थी।
हमें तब आष्चर्य हुआ जब एक लड़के ने न केवल पदमा को पसंद किया और उसके अम्मा अप्पा ने भी विषेष मांग नहीं की। जिस दिन उन्होंने लड़की देखी उसी दिन आपस में थाली बदल ली।(यानि रिश्ता पक्का करना) उसी दिन शादी का मूहूर्त भी देख कर निश्चित कर दिया। पदमा भी बहुत खुश नजर आई।
बैंक में जो जमा पूंजी थी सब निकाल लिए। मैंने व कमली ने पेपर पेन्सिल लेकर शादी का बजट बनाया। बेकार के खर्चों को खतम किया। फिर भी खर्चा जो हमारे पास था उससे कहीं ज्यादा ही बढ़ रहा था। कमली के दीदी के पति से कुछ उधार लेंगे सोचा था।
अचानक उन पर एक विपक्ति आई और वे बिस्तर पर पड़ गये। अतः उनसे पूछना न हो सका। इसके अलावा जहां-जहां मदद मांगी सभी ने इनकार कर दिया। उसी समय वीणू के कालेज में फीस भरनी थी तो कमली के गहनों को बेच कर कुछ सम्भले।
समय जल्दी-जल्दी बीतता चला गया। अब शादी में सिर्फ पन्द्रह दिन ही रह गये। मैं रूपयों के लिये भाग-दौड़ कर रहा था। चिन्ता मुझे खाये जा रही थी। बेटी की शादी की खुशी कहीं गायब हो गई।
उस दिन शाम को बाजार से आते समय वैसे ही रास्ते में मूर्ती से मिलने उसके घर चला गया।
हमेंषा की तरह मूर्ती बिना रूके बोलता चला गया।
‘‘रामू मैंने, पदमा की शादी के लिये एक नया शर्ट लेकर सम्भाल कर अंदर रख दिया है। हमारे घर में हर एक व्यक्ति शादी के लिये कुछ न कुछ नया खरीद रहा हैं। तुम फिकर मत करना रामू मैं एक दिन पहले ही शादी के हाल में पहुंच कर वहां के कामों की जिम्मेंदारी सम्भाल लूंगा। ’’बात करते हुए उसने मुझें छाछ लाकर दी।
‘‘ क्यों भई रामू, तुम कुछ परेशान दीख रहे हो। ’’
मूर्ती के ऐसे पूछते ही मैं अपने को सम्भाल न पाया और रो दिया। मूर्ती घबरा गया तो मैंने सब बातें बता दी।
‘‘शादी के खर्चों के लिए हाथ में रूपये नहीं है। बहुत डर लग रहा है मैं क्या करूं ! समझ में नहीं आ रहा है। ’’
पसीने से तरबतर होकर मेरे बात करते ही, बिना कुछ बोले मूर्ती अन्दर गया। पांच ही मिनिट में बाहर आया तो उसके हाथ में लाल कपड़े में बंधा एक लिफाफा था। जो उसने मुझे थमा दिया ।
‘‘रामू, मेरे गाँव में मेरी खेती भी है जो तुम्हें पता भी है। उसे मैंने बटाई पर दे रखा था। आज ही उसके एक लाख रूपये आए हैं। घर पर किसी को इसके बारे में पता नहीं है। मैं अब उन्हें बताने की ही सोच रहा था। ’’
‘‘ मूर्ती ...मैं ....सदमें में चकित हो मैं कुछ न बोल पाने की स्थिति में हडबडाया।
‘‘हम दोनों आर्थिक कष्टों के बीच ही जीवन निर्वाह करते आये हैं। पर आज इस वक्त मुझे मदद करने का अवसर भगवान ने दिया है। ’’
‘‘मुझे बहुत खुशी हो रही है रामू अब जाकर उत्साह पूर्वक सब कार्यों को शुरू करो।’’
मूर्ती ने मेरे हाथों को पकड़ कर बाहर तक आकर मुझे बिदा किया। अगले एक घण्टे के अन्दर ही मूर्ती के (हृदय गति बन्द होने) हार्ट अटैक से मरने की खबर मेरे पास आ गई। उसके दिये हुये रूपये वैसे ही बिना खोले अलमारी में सुरक्षित रखे हुये थे और मूर्ती चला गया।
रोते बिलखते, विलाप करते व दुखी होते मूर्ती के सब क्रिया-कर्म निपटा दिये गये।
उससे मैंने जो रूपये लिये उसके बारे में उनके घर वालों को बता दूँ सोचा, फिर बता दूंगा , सोच कर चुप रहा ........
पदमा की शादी हो जाने के बाद भी बता दूंगा सोच कर बिना बोले छोड़ दिया। शायद ये बात मूर्ती ने वासु से कह दी होगी। ऐसी बातें मन में जब-तब आकर मन को व्यथित कर देती। फिर भी कुछ-कुछ विचार मन में आने के कारण मैंने उनके घर आना जाना कम कर दिया। फिर उनके घर जाना बंद ही कर दिया।
पदमा अपने पति के घर चली गई। मेरा घर सूना हो गया।
रात को सोते समय जब नींद नहीं आती तो बिस्तर पर करवटें बदलते समय मूर्ती व उसके दिये रूपयों की याद आती। जैसे-जैसे दिन बीतते गये, इन यादों ने विशाल रूप धारण कर लिया और मुझ पर हावी हो मुझे परेशान करने लगी।
मैं जब घर से बाहर जाने के लिए निकलता यदि रास्ते में मूर्ती का घर से जाना होता तो मैं वहां से न जाकर लम्बे रास्ते से घूम कर उसके घर से बचते हुए जाता। हर वक्त मुझे खातें, पीते, चलते फिरते सभी समय ये बात काँटे की तरह चुभती रहती।
मातिरी मंगलम ग्राम में एक छोटी सी खेती की जमीन का टुकड़ा मेरे दादा जी की तरफ से मुझे मिला था जिसके कारण ही मुझे पेट भरने में दिक्कत नहीं होती थी क्यों कि हर साल खाने का चावल वहीं से आ जाता था। मैंने सोचा इसी को बेच कर ही मूर्ती के कर्ज को चूका दूं। मैंने निश्चय भी कर लिया।
इस बात को जब मैंने कमली को बताया तो उसने मुझे बड़े ही अजीब ढ़ग से देखते हुए ऊँची आवाज में चिल्लाकर बोली ‘‘ खाने के लिये क्या करोगे ? ’’
रात के समय जब चारों ओर अंधेरा व्याप्त हो गया तो वाचमेन बगल में आकर खड़ा हुआ। ‘‘ समय हो गया, जाओ जी ! ’’ भगाने जैसे उसके बोलते ही मैं उठ गया।
बाद में मैंने सोचा पद्रह दिनों में मूर्ती की बर्सी होने वाली है, उस समय इस रूपयो की बात को बता दूंगा। इतने दिनों तक मैंने नहीं बताया उसके लिये भी वे लोग मुझे शंका से देखेगे ! किसी तरह उस दिन की समस्या को सम्भलना होगा।
आगे कुछ दिनों में पुरानी समस्यायें मन में छिप जाने से मैं अपने को थोड़ा ठीक ही महसूस कर रहा था। रात में अकसर बीच-बीच में उठ कर बैठ शैतान जैसे खड़े पेड़ों को देख, देख कर पानी पीते रहना आदि बिल्कुल बंद हो गया।
मूर्ती के घर बर्सी के दिन मैं और कमली सुबह ही चले गये मूर्ती के फौटो को बड़ा करके टांगा हुआ था।
सभी काम अच्छी तरह होने के बाद मैं और कमली खाना खाकर उठ गये। रिश्तेदार सब बिदा होकर जाने तक मैं इन्तजार करता रहा। उसके बाद ही लक्ष्मी व वासु से सभी बातें कहनी होगी।
मुझे ऐसा लगा कोई छाया है। मुड़ कर देखा तो वासु था।
‘‘ मामा आपसे मुझे अकेले में बात करनी है। अन्दर आईये ना ! ’’ मन में अजीब सा डर लगा। ये क्या बात करेगा ? इन रूपयों के बारे में इसे पता चल गया होगा क्या ! मेरी बेइज्जती तो नहीं करेगा ? बड़े संकोच के साथ उसके पीछे गया।
‘‘ ये ले लो मामा ’’ कह कर मूर्ति ने दिया उसी तरह के लाल कपड़े में लिवटा लिफाफा मुझे दिया।
‘‘ ये क्या है बेटा वासु ? ’’
‘‘ मामा, अप्पा ने आपसे एक लाख रूपये उधार लिये थे शायद, आपने बड़प्पन से उसे हमें न बता कर छुपा लिया। अभी पिछले हफ्ते ही अप्पा के पुरानी डायरी को खोल कर देखा। उसमें ‘रामू ’ लिख कर उसके पास एक लाख रूपये लिखा था। ’’
‘‘वासु ......वासु .......
‘‘ आप कुछ भी मत बोलो मामा ’’
‘‘कैसे पूछे सोच कर आपने छोड़ दिया। पर हम न दें तो रात को हम अच्छी तरह कैसे सो सकते हैं ! ले लीजिये मामा। ’’ वासु आँखों में आंसू भर कर बोला तो मैं भौंचक्का होकर आश्चर्य से उसे देखने लगा।
‘‘ ‘रामू ’ बोले तो वह अलग ही है। उसके जैसा दूसरा कोई नही। ये आपके लिये अक्सर बोलते रहते थे। पर आप तो और भी बड़े हो गये अन्ना। ’’ लक्ष्मी दरवाजे को खोल झांक कर बोली।
वासु के हाथ में जो लाल रंग का कपड़ा है उसे देख स्तंभित होकर खड़ा हूं मैं। अब रात में सो पाऊँगा ये निश्चय नही !
उमा जानकी राम की तमिल मूल कहानी का अनुवाद एस.भाग्यम शर्मा
एस. भाग्यम शर्मा
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