1.भैरव पहाड़ी की यात्रा
---------------------------------------------
विराजनाथ तंत्र के गुप्त रहस्य की खोज में हिमालय के गुप्त क्षेत्रों की यात्रा कर रहा था और चारों तरफ मंद-मंद हवा का झोंका चल रहा था जो तन और मन को एक अलग ही आनन्द दे रही थी और प्रकृति का मधुर मनोहर वातावरण जो व्यक्ति के मन मोह ले और सुर्य की सुनहरी किरणें इस वातावरण के सौंदर्य को और भी अधिक निखार रही थी।मानों बसंत ऋतु का सुनहरा मौसम हो और आसमान में उमड़ रहे कुछ काले-काले बादल भी मानों प्रकृति श्रृंगार कर रहे हो और विराजनाथ मदमस्त होकर आनन्द के साथ प्रकृति के मनोहर दृश्य के साथ अपनी यात्रा को करता ही जा रहा था।
विराजनाथ अपने मदमस्त मिजाज के साथ आगे बढ़ता ही जा रहा था ।मानों कि एक छोटा बालक आज प्रकृति के साथ आनन्द के बिछौरे ले रहा हो।
विराजनाथ तंत्र के गुप्त रहस्य को जानने और तंत्र की उच्चकोटि की साधनाओं में निष्णात पाने के लिए दृढ़ संकल्पबद्ध होकर भैरव पहाडी की तरफ बढ़ता ही जा रहा था।
विराजनाथ की तंत्र जिज्ञासा समय के साथ इतनी ही प्रबल होती जा रही थी कि वह तंंत्र की गुप्त विद्याओं को सीखने के लिए अनेक दुर्लभ क्षेत्रों की यात्रा करता रहता था परंतु उसके मन की अंदर तंत्र की जिज्ञासा खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही था।तंत्र को सीखने की जिज्ञासा समय के साथ इतनी प्रबल होती जा रही थी ...जैसे एक प्यासा हिरण पानी की तलाश में वन में इधर -उधर ही दौड़ता रहता है।विराजनाथ की हालात भी इसी हिरण जैसी थी।इसलिए उसकी तंंत्र की जिज्ञासा उसे भैरव पहाडी की ओर लेती जा रही थी।
विराजनाथ को काली बाबा से पता चला था कि भैरव पहाड़ी में तंत्र के उच्चकोटि का सिद्ध योगी कालभैरवनाथ रहते है जो तंत्र के क्षेत्र में अपने आपमें ही उच्चकोटि के है और उन्होंने तंत्र की अनेक गुप्त विद्याओं को सिद्ध किया है और तंत्र के गुप्त कौलाचार में भी वे अद्वितीय सिद्ध पुरूष हैं।
काली बाबा से ही कालभैरवनाथ के विषय में विराजनाथ को पता चला था।काली बाबा ने ही विराजनाथ को कालभैरवनाथ के बारे मे बताया था और काली बाबा से कालभैरव नाथ के बार में सुनकर विराजनाथ के मन में अब कालभैरवनाथ से तंंत्र की गुप्त विद्याओं को और कौलाचार की साधनाओं को सीखने की तीव्र ईच्छा होने लगी।
तो विराजनाथ ने कालीबाबा से कालभैरव नाथ के विषय में और अधिक जानने की ईच्छा प्रकट की। विराजनाथ....कालीबाबा के आश्रम में उनके पास रहकर मंत्र रहस्य के बारे में जानने के लिए और मंत्र के उच्चारण को सीखने के लिए आया था और काली बाबा के सान्निध्य में उसने ढाई वर्ष तक मंत्र रहस्य और मंत्र उच्चारण की सभी गुढ़ विधियों को सही रूप से सीख लिया था। काली बाबा के सभी शिष्यों में विराजनाथ सभी से मेधावी और काबिल शिष्य था और काली बाबा का सबसे प्रिय शिष्य था और काली बाबा ने विराजनाथ को मंत्र के सभी गोपनीय रहस्य को सीखाने में कोई भी कमी नहीं की।परंतु विराजनाथ की तंत्र की तीव्र जिज्ञासा को देखकर कालीबाबा ने विराजनाथ को कालभैरवनाथ के विषय में बताया था। कालभैरवनाथ के बारे में आगे बताते हुये काली बाबा ..विराजनाथ से कहते है।
पुत्र विराजनाथ !.. योगी कालभैरवनाथ अपने आपमें ही तंत्र के अद्वितीय पुरूष है और तंत्र के क्षेत्र में उनका मुकाबला करना किसी भी तांत्रिक के बस की बात नहीं हैं और उन्हें हारनाभी बेहद ही मुश्किल है।
उन्होंने तंत्र की सबसे उच्चकोटि की कौलाचार की भैरवी साधनाओं को सम्पन्न किया और इसी साधना के द्वारा उन्हें अद्वितीय सिद्धियां और ब्रह्मविद्या में पूर्णता प्राप्त की है।
कहा जाता है कि कालभैरवनाथ किसी से भी नहीं मिलते है और भैैैरव पहाड़ी में वे किस जगह रहते हैं ये किसी को भी मालुम नहीं है।बहुत से लोगों ने कालभैरवनाथ से मिलने का बहुत प्रयत्न किया परंतु भैरव पहाड़ी में किसी को भी कालभैरवनाथ के आश्रम का पता किसी को भी नहीं चल सका।
तो उनके आश्रम के बारे में आज तक कोई नहीं जान पाया है और काली बाबा ने कालभैरवनाथ के विषय में बताते हुये आगे बताया कि योगी कालभैरवनाथ तंत्र के उच्चतम स्तर को पार करके ब्रह्म अवस्था प्राप्त कर ली है और कहा जाता है कि उनका आश्रम अदृश्य है और किसी भाग्यशाली व्यक्ति को ही योगी कालभैरवनाथ के दर्शन होते है और बहुत ही किस्मत वाले व्यक्ति को हो वे अपने आश्रम में प्रवेश देते है और वे अपने शिष्य का चयन करने में ही कठोर परीक्षा लेते है और यदि कोई साधक परीक्षा में उतीर्ण हो जाता है तो वे उसे अपना शिष्य बना लेते है और उसे तंत्र की अद्वितीय सिद्धियों में ही निष्णात कराते है।उनका शिष्य बनना और उनसे सीखना अपने आपमें ही अद्वितियता है।
पुत्र विराजनाथ तुमने पूरे ढ़ाई वर्ष में ही मुझसे मंत्र विद्या के सभी रहस्यों का ज्ञान को प्राप्त कर लिया है ...परंतु तुम्हारी तंत्र की तीव्र जिज्ञासा को देखकर मेरे पास जो भी ज्ञान था वो सब मैंने तुम्हें सीखाया और उसमें निष्णात भी करवाया।इसके अलावा मेरे पास तुम्हें देने के लिए अन्य कोई भी गुप्त विद्या नहीं है । परंतु तुम चाहों तो भैरव पहाड़ी जाकर कालभैरवनाथ से दुर्लभ गोपनीय विद्याओं को सीख सकते है।
वत्स एक गुरू की ईच्छा सदैव यही रहती है कि उसका शिष्य हर क्षेत्र में निष्णात होकर आगे बढ़ता रहे।
यह सब कहकर काली बाबा विराजनाथ को भैरव पहाडी का रास्ता बताते है और विराजनाथ को आशीर्वाद देकर उसे अगले दिन आश्रम से विदा कर देते है और उसकी यात्रा सफल होने का आशीर्वाद देते है।
काली बाबा के आश्राम से विदा लेकर विराजनाथ अपनी यात्रा को शुरू कर देता है और काली बाबा के बताये रास्ते चल पड़ता है।
भैरव पहाडी का रास्ता बहुत ही दुर्गम और पत्थरीला व कंटीलों से भरा हुआ था। पत्थरीले मार्ग को पार करने के बाद ही विराजनाथ एक मनोहर और प्रकृति के सुगंधमय वातावरण में पहुंच कर अपनी यात्रा को प्राराम्भ करता है।चारों तरफ हरियाली से भरे पर्वतीय मार्ग और मंद -मंद चलने वाली हवा पर्वतीय क्षेत्र के इस मार्ग को और भी शोभयमान बना रहा था।
विराजनाथ इस प्रकृति के मनोहर वातावरण के साथ अपनी यात्रा को सुखमय के साथ कर रहा था और इस वातावरण में चलने वाली मंद-मंद हवा ने विराजनाथ के शरीर की सारी थकान को खत्म कर दिया था और उसके शरीर को पूरा तरोताजा बना दिया हो।
शरीर और मन की सारी थकावट को इस तरह दूर कर दिया था मानों कि किसी शीतल जल से स्नानकर शरीर तरोताजा हो जाता है और शरीर व मन की सारी थकावट दूर हो जाती है।
इस शांत वातावरण में यात्रा करते हुये विराजनाथ धीरे-धीरे भैरव पहाडी की ओर बढता ही जा रहा था ...करीब दो घंटे तक इस मनोहर वातावरण में यात्रा करते हुये विराजनाथ घने जंगल के प्रवेश करता है।चारों तरफ बडे-बडे पेड़ और साथ ही एक पंक्ति में लगे देवदार के बडे-बडे पेड़ जो इस जंगल की मार्ग की शोभा और अधिक बढ़ा रहे थे और सूर्य का मंद-मंद प्रकाश इस मार्ग की शोभा व सुन्दरता में चार चाँद लगा रहें थे।
करीब आधे घण्टे तक इस जंगल के मार्ग में यात्रा करते हुये विराजनाथ को भुख लगने तो विराजनाथ एक बडे पेड़ की छांव में बैठकर अपनी झोली से अपना भोजन निकाल कर भोजन करने लगता है और भोजन करने के पश्चात विराजनाथ थोड़ी देर तक उसी पेड़ के वृक्ष के नीचे विश्राम करने का मन बना लेता है।
थोड़ी देर पेड़ की छांव में लेटते ही विराजनाथ को यात्रा की थकान की बजह जल्दी ही नींद आ जाती है और विराजनाथ गहरी नींद में सो जाता है।इस तरह से विराज की नींद और अधिक गहरी हो जाती है क्योंकि पेड़ के छांव और मंद-मंद ठंडी हवा के झौंके लगतर बह रहे थे जिसके कारण विराजनाथ गहरी नींद में सो जाता है।