इसके बाद फिर कभी भी उपेन्द्र ने मोतीबाई पर शक़ नहीं किया,उसे प्रभातसिंह की बात अच्छी तरह समझ में आ गई थी कि प्रेम उथला नही गहरा होना चाहिए,अब मधुबनी कुछ भी कहती रहती और उपेन्द्र उसकी एक ना सुनता,इसी तरह जिन्द़गी के दो साल और गुज़र गए,वक्त ने करवट ली और एक बार फिर मोतीबाई की गोद हरी हुई,इस तरह उसने एक बार फिर से एक और बेटी को जन्म दिया,उसका नाम मोतीबाई ने मिट्ठू रखा।।
दो दो बेटियों को देखकर मधुबनी की नीयत खराब होने लगी,वो इन लड़कियों को भी कोठे पर बिठाने के सपने देखने लगी,अब उसके मन में मोतीबाई के लिए स्वार्थी प्रेम उमड़ने लगा था,वो बच्चियों का खूब ख्याल रखने लगी और मोतीबाई का भी,मोतीबाई सोचती थी कि शायद उम्र का तकाज़ा है, अब मधुबनी में सुधार आ रहा है,शायद इस उम्र में वो अपने आप को सुधारना चाह रही हो,लेकिन यहाँ मामला तो कुछ और ही था,मधुबनी का इरादा क्या है ये मोतीबाई नहीं समझ पाई?
समय रेत की तरह मुट्ठी से निकलता जा रहा था,रिमझिम और मिट्ठू धीरे धीरें बड़ी हो रहीं थी और स्कूल जाने लगी थी,रिमझिम सात साल की हो रही थी और मिट्ठू पाँच साल की,
इधर प्रभातसिंह जी की पत्नी चन्द्रिका भी एक दिन जिन्द़गी से मुँह मोड़कर चली गई,आखिर और कितने साल तक वो मौत से लड़ती,प्रभातसिंह जी के बच्चे भी अब बड़े हो चले थे और अब चन्द्रिका के जाने से उनकी जिम्मेदारियाँ भी कम हो गई थी,
अकेली हवेली में उनको घुटन होने लगी थी इसलिए उन्होंने अब अपने बच्चों को ननिहाल से बुला लिया था,बच्चों को कहीं कुछ बुरा ना लगें इस वजह से उन्होंने अब अजीजनबाई के कोठे पर जाना भी बंद कर दिया था,
लेकिन उन्होंने शायरी लिखना नहीं छोड़ा था ,जब भी कोई नई गज़ल लिखते तो नौकर के हाथ अजीजनबाई के कोठे पर भिजवा देते,बदले में मोतीबाई शुक्रिया अदा का ख़त भिजवा देती।।
इधर बच्चियों का स्कूल जाना देखकर मधुबनी के कलेजे पर साँप लोटते,मधुबनी को दोनों लड़कियों का पढना बिल्कुल भी पसंद नहीं था,लेकिन उपेन्द्र के आगें उसकी एक ना चलती,इसी तरह एक दिन रिमझिम स्कूल से आई तो चुपचाप जाकर अपने कमरें में रोने लगी और किसी से कुछ भी नहीं कहा......
जब मोती उसे बुलाने आई तो उसे रोता हुआ देखकर पूछ बैठी कि क्या हुआ?
दूर रहो मुझसे,मुझे हाथ मत लगाओ.....रिमझिम बोली।।
रिमझिम की बात सुनकर मोतीबाई को झटका सा लगा और पूछ बैठी लेकिन क्यों?
मेरी स्कूल के बच्चे कहते हैं कि तुम्हारी माँ गंदी है,हम तुमसे दोस्ती नहीं करेंगें,हमलोगों की माँ ने मना किया है,रिमझिम बोली।।
रिमझिम की बात सुनकर मोतीबाई वहीं बैठ गई और सोचने लगीं आखिर उसका काम उसकी बेटियों की जिंदगी के आड़े आ ही गया,बड़ी हिम्मत करके वो रिमझिम से बोली...
चुप हो जाओ,मैं तुम्हारा नाम किसी और स्कूल में लिखवा दूँगी,जहाँ तुमसे सभी बात करेंगें,अब तो खुश,बस कल ही मैं किसी और स्कूल वालों से बात करती हूँ,ऐसा कहकर उस समय तो मोतीबाई ने रिमझिम को समझा तो दिया लेकिन वो भी जानती थी कि स्कूल बदलना ही इस समस्या का हल नहीं है,
इस मामले पर उसने उपेन्द्र से बात की लेकिन उपेन्द्र को भी इस समस्या का कोई हल समझ नहीं आया,ये बात मधुबनी तक पहुँची तो वो बोली.....
बहुत हो चुकी लड़कियों की पढ़ाई,अब इन्हें स्कूल भेजना बंद करो,घर पर ही इनकी पढ़ाई का कुछ इन्तजाम कर दो और वैसे भी पढ़ लिख कर क्या करेंगीं? ये भी तो बड़े होकर अपनी माँ की तरह एक कोठे वालीं ही बनने वालीं हैं,इन्हें नाच गाने की तालीम दिलवाओ,वही आगें काम आएगा....
मधुबनी की जहरीली बातें सुनकर अब मोतीबाई चुप ना रह सकी और बोली......
खबरदार! तूने मेरी जिन्द़गी तो बर्बाद कर दी लेकिन मै अब अपनी बेटियों की जिन्द़गी तुझे बर्बाद करने नहीं दूँगी,मेरे इस काम की गन्दी परछाईं भी मेरी बेटियों पर नहीं पड़ेगी,अगर जरूरत पड़ी तो मैं किसी को मार भी सकती हूँ और मर भी सकती हूँ लेकिन अपनी बेटियों का सौदा हर्गिज़ नहीं करूँगीं।।
जिन्द़गी की जद्दोजहद ने आज मोतीबाई को ना जाने किस दोराहे पर खड़ा कर दिया था,अगर स्कूल भी बदला जाता है तो उसकी बदनामी वहाँ भी तो पहुँच जाएंगी,कुछ भी हो जाएं उसकी बेटियाँ कोठे पर नहीं बैठेगीं,ये उसने ठान लिया था और एक रात उसने अपने दिल पर पत्थर रखकर दूध के गिलास में धतूरे के बीज पीसकर पिला दिए,आधी रात गए दोनों बच्चियाँ इस जहर को सह नहीं पाईं और उन्हें उल्टियाँ शुरू हो गई,एक दो उल्टी के बाद भी जब उल्टियाँ नहीं रूकी तो उपेन्द्र घबरा गया ,अब तो उनके पास मोटर थी इसलिए मोटर में दोनों बच्चियों को डाला और डाक्टर के पास चल पड़ा।।।
डाक्टर ने इलाज शुरू किया, तब डाक्टर ने कहा कि बच्चियों को कुछ जहरीली चीज़ दी गई है,शुकर कीजिए कि जहर खाने के कुछ देर बाद उल्टियाँ शुरू हो गईं,इसलिए मेरा काम आसान हो गया,अगर उल्टियाँ ना होतीं तो आप इन्हें मेरे पास भी ना लाते और इन्हें बचाना नामुमकिन था,
बस सुबह तक इन्हें होश आ जाएगा,अब वे खतरे से बाहर हैं,अगर आप घर जाना चाहें तो जा सकते हैं,डाक्टर की बात सुनकर उपेन्द्र का पारा चढ़ गया उसे लगा कि ये काम हो ना हो उसकी माँ मधुबनी का है इसलिए वो बच्चियों को अस्पताल में छोड़कर घर आ गया मधुबनी की खबर लेने और घर पहुँचकर चींख पड़ा....
बाहर निकल नागिन! मेरे बच्चों को मारने की कोशिश की तूने,महुआ ने उन्हें कोठे पर बैठने को मना कर दिया तो तू उनकी जान की दुश्मन हो गई,आज मैं तुझे जिन्दा नहीं छोड़ूगा,चाहें मुझे जेल ही क्यों ना जाना पड़े?
उपेन्द्र का चीखना चिल्लाना सुनकर मधुबनी बोली.....
क्या कहता रे तू? मैं भला बच्चियों को क्यों मारने लगीं,मेरी भला उनसे क्या दुश्मनी हो सकती है।।
तू उन्हें कोठे पर बिठाना चाहती थी,तेरी ये मंशा पूरी ना हुई तो तू उनकी जान लेने पर आमादा हो गई,उपेन्द्र गुस्से से बोला.....
मैं ऐसा क्यों करने लगी?क्या वो मेरी पोतियाँ नहीं है,मैने भी तो उन्हें पाला पोसा है ,मधुबनी बोली।।
तूने अपने स्वार्थ के लिए उन्हें पाला पोसा था,उपेन्द्र बोला।।
क्या बकता है रे? मधुबनी चीखी।।
बकता नहीं हूँ,सच कहता हूँ,तूने ही उनके खाने में जहर मिलाया होगा,उपेन्द्र बोला।।
तू मुझ पर गलत इल्जाम लगा रहा है,मधुबनी बोली।।
तो तेरे सिवा ऐसा और कौन कर सकता है,उपेन्द्र ने पूछा।।
पीछे से आवाज़ आई....
ये मैने किया हैं?वो महुआ थी।।
महुआ तुम! ...तुम भला ऐसा कैसे कर सकती हो? तुम तो उनकी माँ हो ,तुमने उन्हें जन्म दिया है,उपेन्द्र ने पूछा।।
इसलिए कि मैं नहीं चाहती कि उनका सौदा हो,इसलिए कि मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से कोई उन पर ऊँगली उठाए और इसलिए मैं नहीं चाहती कि कोई उन्हें तवायफ़ की बेटियाँ कहें।।
तो तुम उन्हें मार दोगी,उनकी जान ले लोगी,कैसी माँ हो तुम,इस समस्या का कोई और हल भी तो हो सकता है,उपेन्द्र बोला।।
मुझे और कोई हल समझ नहीं आया तो मैने उन दोनों के दूध में धतूरे के बीज पीसकर मिले दिए,महुआ बोली।।
मैं अब और अपनी बेटियों को तुम्हारे पास नहीं रहने दूँगा,मैं कल ही जमींदार साहब के पास जाकर उनसे इस समस्या को हल करने के लिए कहता हूँ और इतना कहकर उपेन्द्र फिर से मोटर में बैठकर अस्पताल चला गया बच्चियों के पास ।।
बच्चियाँ जब घर आ गईं तो उन्हें घर छोड़कर वो उसी वक्त जमींदार साहब के पास पहुँचा......
अरे! उपेन्द्र बाबू! आप ,कहिए कैसे आना हुआ? प्रभातसिंह ने पूछा।।
बहुत जरूरी काम आ पड़ा और आपके सिवा इस समस्या का रास्ता सूझाने वाला मुझे और कोई नज़र ना आया इसलिए आ गया आपके पास ,उपेन्द्र बोला।।
अच्छा किया जो आप आएं लेकिन समस्या क्या है? जरा मैं भी तो सूनूँ,प्रभातसिंह बोले।।
महुआ बहुत परेशान है और परेशानी के चलते उस के हाथों से बहुत बड़ा पाप होने से बच गया,उपेन्द्र बोला।।
आगें भी कहिए,प्रभातसिंह बोलें।।
और उपेन्द्र ने प्रभातसिंह को सारी कहानी कह सुनाई,उपेन्द्र की बात सुनकर प्रभातसिंह बोलें...
बस,इतनी सी बात,मैने सोचा पता नहीं कौन सा पहाड़ टूट पड़ा?प्रभातसिंह बोले।।
ये आपको इतनी सी बात लगती है,अगर बच्चियों को कुछ हो जाता तो?उपेन्द्र बोला।।
हुआ तो नहीं ना, तो बेफिकर रहो बरखुरदार! जिन्द़गी है,कुछ ना कुछ तो होता ही रहता है,चिन्तित रहकर समस्याओं को बड़ा बनाने की कोशिश मत करों ,उन्हें सुलझाने की कोशिश करो,प्रभातसिंह बोलें।।
तो आपको इस समस्या का कोई हल सूझा,उपेन्द्र ने पूछा।।
एक ही हल है मियाँ! और वो है जुदाई,प्रभातसिंह बोले।।
मतलब क्या है आपका? उपेन्द्र बोला।।
ऐसा करों बच्चियों को किसी महफूज़ जगह रखवा दो,प्रभातसिंह बोलें।।
और वो जगह कौन सी होगी? उपेन्द्र ने पूछा।।
मेरी एक चचेरी बहन हैं जो लखनऊ में संगीत विद्यालय चलातीं हैं,बेवा हों गईं थी और दोनों बच्चे विलायत में जाकर बस गए तो उन्होनें अपना समय काटने के लिए संगीत कला केन्द्र खोल लिया,वहाँ स्कूल और हाँस्टल दोनों साथ में ही हैं,अनाथ लड़कियों के लिए उन्होंने ये स्कूल खोला था लेकिन अब अच्छे अच्छे घरों से भी लोंग अपनी बेटियों को यहाँ संगीत के लिए भरती करवाते हैं,तुम और मैं बच्चियों को लखनऊ में भरती करवा आते हैं,सब समस्याएँ खतम,जमींदार प्रभातसिंह बोले।।
बहुत बहुत शुक्रिया,जमींदार साहब ! बहुत एहसान हैं आपके हम पर ,एक और चढ़ गया,उपेन्द्र बोला।।
कैसी बातें करते हो बरखुरदार! मोतीबाई मेरी बहन है और इस नाते ये तो मेरा फर्ज बनता है,कल ही तैयारी कर लो,कल ही चलते हैं,प्रभातसिंह बोलें।।
और इस तरह एक बार फिर उपेन्द्र अपनी समस्या का समाधान लेकर प्रभातसिंह की हवेली से लौटा।।
क्रमशः....
सरोज वर्मा.....