Taapuon par picnic - 92 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | टापुओं पर पिकनिक - 92

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टापुओं पर पिकनिक - 92

पूरी बात जानकर आगोश की मम्मी बेहोश होकर गिर पड़ीं।
मान्या ने मनन को आवाज़ दी और दोनों ने मिलकर उन्हें संभाला।
ये भी अच्छा था कि आज मान्या और मनन वहीं थे, वरना आमतौर पर तो वो अकेली ही होती थीं। उनके पति तो अगर शहर में होते भी थे तो अक्सर क्लीनिक में ही होते थे।
जब आर्यन का फ़ोन आने पर उन्होंने आवाज़ देकर डॉक्टर साहब को पुकारा था तो वो आ नहीं सके। वो अपने कमरे में ही थे मगर आज सुबह- सुबह एक बेहद मोटी सी किताब लेकर उससे उलझे हुए थे।
वो पत्नी के बुलाने पर उठ कर आ तो नहीं सके थे पर उन्होंने वहीं से कह दिया था- प्लीज़ मुझे अभी थोड़ी देर में ही एक बहुत जटिल ऑपरेशन करना है, तुम मेरी तरफ़ से आर्यन को "थैंक्स" बोल दो।
उधर फ़ोन को होल्ड पर लिए खड़ा आर्यन मन ही मन झल्ला रहा था कि आंटी उसकी बात सुन ही नहीं रही हैं और जो वो कहना चाहता है उसे समझ भी नहीं रही हैं।
उसने तब थोड़ा तल्ख होकर कहा- आंटी आप पहले मेरी बात तो ध्यान से सुन लीजिए... अभी अंकल को मत बुलाइए, और फिर वो एक ही सांस में झटपट सब बोल गया था कि आगोश की मूर्ति मिली नहीं है बल्कि बनने के बाद आर्टिस्ट के घर से रात में चोरी हो गई है। उसने ये भी बताया कि पुलिस में रिपोर्ट दर्ज़ कराई गई है।
बस, इससे आगे आंटी कुछ सुन नहीं सकीं थीं क्योंकि वो बेहोश होकर गिर पड़ी थीं।
मान्या ने दौड़ कर उन्हें संभाला और फ़ोन काट कर वापस रखा।
जब से मान्या की शादी इस बंगले में रह कर ही मनन से हुई थी आगोश की मम्मी मनन को दामाद वाला मान देकर मनन जी कहने लगी थीं और वो भी अपनी इस नई ज़िम्मेदारी को बहुत सलीके से निभाता था।
आर्यन मनन और मान्या की शादी में तो आ नहीं सका था पर उसकी बात घर में किसी न किसी रूप में अक्सर होती ही रहती थी। अतः जब मान्या को पता चला कि अभी आने वाला फ़ोन फिल्मस्टार आर्यन का था तो वो बेहद रोमांचित हो गई थी।
उसे बाद में मन ही मन ये ख़लिश सी महसूस होती रही थी कि उसने आंटी के गिरने के बाद एकाएक फ़ोन उठा कर बंद क्यों कर दिया? कम से कम एक बार आर्यन की आवाज़ तो सुनती। उसने भी न जाने क्या सोच लिया होगा।
एक सर्वथा अपरिचित एक्टर से भी मान्या जुड़ गई थी।
आंटी को संभालने और इंजेक्शन देने के लिए क्लीनिक से एक नर्स आ गई थी और अब आंटी चुपचाप सो रही थीं।
कुछ देर बाद मान्या ने चाय बना कर आंटी को जगाया। अब वो पूरी तरह स्वस्थ हो गई थीं और उन्होंने मान्या से कह कर मनन को भी अपने कमरे में ही बुलवा लिया।
मनन के आते ही आंटी ने एकदम दृढ़ निश्चय से कहा- बेटा, ऐसे नहीं चलेगा। हमें ही कुछ करना होगा। तुम लोग चाइना चलने की तैयारी करो।
आगोश की मम्मी को कहीं से पता चला था कि चाइना में कोई ऐसा आर्टिस्ट है जो किसी ख़ास तकनीक से केवल तीन दिन में हूबहू इंसान की मूर्ति बना कर दे देता है। वह ये बात तो पूरी तरह गुप्त ही रखता था कि ऐसी मूर्तियों में वो कौन सा मैटेरियल इस्तेमाल करता है पर ये मूर्ति बहुत आकर्षक व मज़बूत होती थी।
दो बार उनका चाइना जाने का कार्यक्रम बनते- बनते रह गया था लेकिन अब आर्यन का फ़ोन आ जाने के बाद उन्हें मुंबई से मूर्ति मिल पाने की कोई आशा नहीं रही थी।
इस बार उन्होंने पक्का ठान ही लिया कि कुछ दिन चाइना जाकर वो थोड़ा घूमने- फिरने के साथ- साथ मूर्ति बनवा लाने का काम भी ज़रूर करेंगी।
मान्या और मनन ने आंटी की इस ज़िद को विवाह के बाद हनीमून मनाने के एक अकस्मात मिले अवसर के रूप में स्वीकार किया था और वो मन ही मन बहुत प्रसन्न थे।
मनन ने साजिद और सिद्धांत से भी ये चर्चा की।
साजिद ने तो छूटते ही उससे कहा- तूने मुझे तो बता दिया पर मनप्रीत के सामने ये बात भूल कर भी मत करना वरना वो भी मेरे पीछे पड़ जाएगी चलने के लिए। बाहर घूमने के लिए तो वो हरदम तैयार रहती है।
मनन ने कहा- इसमें भाभी की नहीं, तेरी ही ग़लती है। तूने ही तो उसे बार- बार हनीमून मनाने की आदत डाल दी है! जब देखो तब...
- साले चुप! साजिद ने उसका हाथ पकड़ कर ज़ोर से मरोड़ दिया। मनन दर्द से बिलबिला उठा।
मनन ने सिद्धांत से कहा- तूने तो अभी- अभी एक प्लॉट निकाल कर ख़ूब पैसे कमाए हैं... बोल, चलेगा हमारे साथ चाइना?
सिद्धांत बोला- एक शर्त पर चलूंगा।
- रहने दे, रहने दे.. मनन पहले ही बोल पड़ा।
साजिद ने कहा- अबे उसकी शर्त सुन तो ले, पहले ही तूने हाथ खड़े कर दिए?
- इसकी शर्त क्या सुननी है, वो तो मुझे मालूम है ये क्या बोलेगा? मनन ने कहा।
सिद्धांत हंसने लगा।
साजिद ने सिद्धांत से पूछा- अच्छा, मुझे बता दे तेरी शर्त क्या है?
मनन बीच में ही चिल्लाया- अरे इसकी बात मत सुनना, फंस जाएगा...
इस बार आगोश की मम्मी ने जैसे विदेश जाने के लिए कमर कस ही डाली।
मनन और मान्या ने भी जल्दी- जल्दी सब औपचारिकताएं पूरी कर लीं और फ़िर तीनों के टिकिट भी आ गए।
उन्हें दिल्ली से टोक्यो होते हुए ही आगे जाना था।
उनके प्रोग्राम के बारे में जब तेन और मधुरिमा को पता चला तो उन्होंने तत्काल फोन किया।
मधुरिमा चाहती थी कि आगोश की मम्मी कुछ दिनों के लिए उसके पास भी आएं। मनन व मान्या के लिए भी ये अच्छा अवसर था कि वो उन लोगों से मिल सकें।
तेन और मधुरिमा ने ज़ोर देकर उनका कार्यक्रम चाइना की जगह जापान का ही बनवा दिया। आगोश की बनाई कंपनी और उसके दफ्तर को देख पाने की लालसा तो उसकी मम्मी को थी ही।
सबसे अच्छी बात ये थी कि तेन ने उनका वो काम चाइना की जगह जापान में ही करवा देने का भरोसा दिलवा दिया जिसके लिए वो चाइना जा रहे थे।
तेन ने बताया कि वो आगोश की मूर्ति ख़ुद तैयार करवा कर उन लोगों के साथ भेजेगा।
तेन ने उन्हें ये भी समझाया कि जिस तकनीक से मूर्ति बनाने की बात उन्होंने सुनी है वो वास्तव में बहुत ही कॉमन है।
बल्कि उसके लिए उन्हें चाइना जाने की ज़रूरत भी नहीं है। जापान के छोटे- छोटे कस्बों तक में ऐसी मूर्तियां बहुत लोकप्रिय हैं और आसानी से बनती हैं।
लो, शायद ये तीसरा मौक़ा था जब आगोश की मम्मी का चाइना जाने का इरादा रद्द हो गया।
उन लोगों ने तेन के कहे अनुसार अपने टिकिट भी बदलवा डाले।
आगोश के पापा ने अपनी पत्नी को समझाया कि वास्तव में किसी की भी मूर्ति स्थापित करना केवल एक भावना का सवाल है जिसका असर कुछ समय तक ही रहता है।
इस बात पर आगोश की मम्मी से उनकी तकरार भी हुई, मम्मी ने कहा- आगोश मेरे लिए कुछ दिन की भावना का प्रश्न नहीं है!
- बेहतर होगा कि हम हॉस्पिटल परिसर में भीतर कहीं आगोश की फ़ोटो ही लगा दें, उससे वो पहचाना जा सकेगा। मूर्तियों की देखभाल मुश्किल होती है। कुछ समय बाद वे उपेक्षित पड़ी रहती हैं और खुले माहौल में पक्षी उन पर बसेरा बना कर बीट करते रहते हैं। डॉक्टर साहब ने समझाया।
चाहे बड़ा से बड़ा व्यक्ति हो, कोई शहीद हो या फिर खिलाड़ी या फिल्मी सितारा हो, कुछ दिन के बाद लोग उसे भुला देते हैं। मूर्तियां इतनी सटीक भी नहीं बन पाती हैं जो लंबे समय तक पहचानी जा सकें।
इस बहस के बाद आगोश की मम्मी के दिमाग़ में एक अजीबो- गरीब ख़्याल आकर उमड़ने लगा... कहीं आगोश की मूर्ति की चोरी के पीछे भी...
- नहीं, उन्हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए।
आर्यन ने उन्हें फ़ोन पर कहा था, कि वो मुंबई पुलिस है... वो किसी भी हाल में चोरी के अपराधी को पकड़ कर ही रहेगी।
मान्या, मनन और उनकी मौसी, अर्थात आगोश की मम्मी की जापान जाने की तैयारी शुरू हो गई।