Taapuon par picnic - 89 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | टापुओं पर पिकनिक - 89

Featured Books
Categories
Share

टापुओं पर पिकनिक - 89

ऐसा पहली बार हो रहा था। पहले कभी सुना नहीं!
दिल्ली के एक आलीशान सुपर सितारा हॉस्पिटल ने डॉक्टरों की एक बड़ी भर्ती की थी।
और ख़ास बात ये थी कि यहां आने वाले डॉक्टरों को पगार के रूप में करोड़ों के पैकेज ऑफर किए गए थे।
इंसान के लिए भगवान कहे जाने वाले इन पेशेवरों पर इतना भारी - भरकम चढ़ावा खुले तौर पर पहले कभी नहीं चढ़ता था।
हां, ये बात अलग है कि कुछ लोग चोरी छिपे धोखा- धड़ी से चाहे इससे भी ज्यादा कमा लें।
ये पेशा ही ऐसा था। इसमें नाम कमाने के लिए भावना और संवेदना के साथ रात दिन मेहनत करनी पड़ती थी पर नामा कमाने के लिए सिर्फ़ अपना ज़मीर गिरवी रखना पड़ता था।
हॉस्पिटल की ख्याति दिन दूनी रात चौगुनी होती चली जा रही थी।
यहां दुनिया की एक से बढ़कर एक बेहतरीन मशीनों के सहारे जटिलतम ऑपरेशंस अंजाम दिए जा रहे थे।
मरीज़ के जिस्म की जितनी जानकारी ख़ुद मरीज़ को भी नहीं होती थी उससे अधिक उसके जिस्मानी अस्तित्व का चप्पा - चप्पा इनके अख्तियार में होता था।
किस शख़्स के बदन के कौन से हिस्से में उसका कौन सा पुरज़ा रहे, कौन सा न रहे, ये निर्णय लेने में भी ये लोग सक्षम थे।
इतना ही नहीं बल्कि किस आदमी के कौन से अंग का ट्रांसफर दुनिया के किस देश के किस वाशिंदे के शरीर में कर दिया जाए ये तय करना भी इनका ही कार्यक्षेत्र था।
कहते हैं कि इंसान दुखों से सीखता है। कायनात किसी को ग़लत रास्ते जाते देखती है तो किसी न किसी तरीके से कसमसाती ज़रूर है। कभी भटके इंसान को झटका देकर तो कभी उसके कदमों के निशान पर बवंडर उठा कर।
लेकिन अब हम इंसानी करिश्मों और काबिलियतों के सहारे ग़लत राह पर उन्मत्त चाल से बेख़ौफ़ चलते रहने के भी गवाह बन चुके हैं। कभी- कभी हम नहीं सुनते कि कुदरत क्या कह रही है!
आगोश की मूर्ति इस हॉस्पिटल के प्रांगण में लगाए जाने की तैयारी तो हो रही थी मगर आगोश क्या चाहता था, क्यों व्यथित था, ये सोचने की फ़ुरसत किसी के पास नहीं थी।
आगोश की मम्मी ने आर्यन को फ़ोन लगाया तो उनके कुछ पूछने से पहले ही आर्यन बोल पड़ा- आंटी, आप बिल्कुल फ़िक्र मत कीजिए, मूर्ति का काम तेज़ी से चल रहा है और जल्दी ही मैं खुद उसे लेकर आऊंगा।
- अरे बेटा, मुझे उसकी क्या फ़िक्र है, जब तू देख रहा है तो काम बढ़िया ही होगा। पर मैंने तो तुझे इसलिए फ़ोन किया है कि मैं चाइना जाने की सोच रही हूं, तू चलेगा मेरे साथ? आगोश की मम्मी ने कहा।
आर्यन को बड़ा आश्चर्य हुआ कि जब वह आगोश की मनमाफ़िक प्रतिमा यहां तैयार करवा ही रहा है तो आंटी चाइना क्यों जा रही हैं? क्या उन्हें आर्यन पर भरोसा नहीं है? या फ़िर वो कुछ और सोच रही हैं!
आर्यन बोला- आंटी आप कहें तो मैं आपके साथ चाइना चल सकता हूं। मेरे पास अगले सप्ताह के बाद दो या तीन दिन का समय है जब मेरी कोई शूटिंग नहीं है। पर आंटी...
आंटी ने उसकी बात बीच में ही काट दी, बोलीं- मैं समझ गई तू क्या कहना चाहता है। यही ना, कि मैं चाइना क्यों जा रही हूं?
- हां, बिल्कुल आंटी... कोई सेंस ही नहीं है मूर्ति के लिए चाइना जाने का.. आर्यन बोला।
- बेटा, मैं मूर्ति के लिए वहां नहीं जा रही। वो तो तू मुंबई में बनवा ही रहा है। मुझे तो आगोश के कागज़ों में एक काग़ज़ मिला है जिससे पता चला है कि आगोश ने कुछ प्रॉपर्टी खरीदी थी जिसका ओनर चीन में ही है।
उस आदमी ने मुझसे संपर्क किया था और वो कह रहा था कि अगर हम चाहें तो खरीदी गई प्रॉपर्टी उसे वापस लौटा सकते हैं। उसे शायद आगोश के न रहने की बात पता चली है। इसी से वो हमारी मदद करना चाहता है।
उसी ने मुझे बताया कि आगोश ने प्रॉपर्टी का नॉमिनी मुझे बनाया था।
- ओह अच्छा - अच्छा आंटी। ये तो बिल्कुल अलग ही मैटर है। इसके लिए तो आपको एक बार अंकल से बात करनी चाहिए। फ़िर जैसा वो कहें वैसा ही कीजिएगा।
आगोश की मम्मी को एक बात का भारी अचंभा था कि बेशक आगोश को उसके पापा ख़ुश रखने के लिए बहुत पैसा दिया करते थे लेकिन फ़िर भी आगोश ने इतना ख़र्च कहां से कर लिया?
उन्हें पता चला कि आगोश ने जापान में एक ऑफिस लिया था और चाइना में भी एक वर्किंग कम रेजिडेंशियल अपार्टमेंट ले लिया ?
ये तो दोनों ही काफ़ी महंगे मिले होंगे।
गनीमत रही कि आर्यन ने उन्हें मुंबई में भी उसके फ्लैट खरीद लेने की जानकारी नहीं दी, नहीं तो शायद वो ये बात सुनकर बेहोश ही हो जातीं !
तो क्या आगोश भी किसी ग़लत धंधे में फंस गया था? या उसने हेराफेरी के गुर सीख लिए? कहीं ऐसा तो नहीं कि उसने भी बैंकों के साथ कर्ज़ दर कर्ज़ उठाने का कोई घोटाला कर दिया हो?
ख़ैर, अब जब बेचारा आगोश ख़ुद ही इस दुनिया में नहीं रहा तो फ़िर इन सब बातों के बारे में क्या सोचना।
आगोश की मम्मी ने अगले दिन जब ये चाइना वाली सारी बात आगोश के पापा, डॉक्टर साहब को बताई तो वही हुआ जिसका उन्हें अंदेशा था।
डॉक्टर साहब ने आराम से कह दिया कि कोई बात नहीं, उस प्रॉपर्टी के जो भी काग़ज़ तुम्हें मिले हैं वो मुझे दे दो, मेरा कोई न कोई आदमी चाइना जाता रहता है, वो वहां जाकर इस मामले को भी देख लेगा।
आगोश की मम्मी का चाइना जाने का अवसर दूसरी बार भी ख़त्म हो गया।
लेकिन कहते हैं कि जो भी होता है वो अच्छे के लिए ही होता है।
तो इस बार क्या अच्छा हुआ?
इस बार अच्छा ये हुआ कि आगोश की मम्मी के ऊपर बैठे- बैठे ही एक बड़ी भारी ज़िम्मेदारी आ गई। ये ज़िम्मेदारी ऐसी थी कि अगर वो चाइना जा भी रही होतीं तो शायद ये खबर सुन कर रुक जातीं।
खबर ये थी कि आगोश की मम्मी की बड़ी बहन जो लखनऊ में रहती थीं उनका अचानक फ़ोन आ गया। आगोश की इन मौसी ने बताया कि उनकी सबसे छोटी बेटी की शादी तय हो गई है। और लड़के वाले यहां जयपुर में ही रहते हैं।
- अच्छा, ये तो बड़ी ख़ुशी की बात सुनाई आपने बहिन जी। मान्या बिटिया शादी के बाद अब यहां हमारे शहर में आ रही है, इससे अच्छा तो कुछ हो ही नहीं सकता। आगोश की मम्मी ने कहा।
बात करते- करते उनका गला रूंध गया। फ़िर एकाएक सिसकने ही लगीं।
उधर से आगोश की मौसी की आवाज़ आई जो बार- बार पुचकार कर आगोश की मम्मी अर्थात अपनी छोटी बहन को सांत्वना देने की कोशिश कर रही थीं।
- सच बहन जी, आगोश होता तो इस खबर से कितना ख़ुश हो जाता। वो लगभग सिसकते हुए ही बोलीं।
मौसी ने बताया, लड़के वाले चाहते हैं कि हम लोग जयपुर आकर यहीं से शादी करें।
- अरे वाह। इससे अच्छी बात क्या हो सकती है। सच बहनजी, ये वीरान पड़ा बंगला अब काटने को दौड़ता है। आप यहीं से आकर शादी करोगी तो इसमें कुछ चहल पहल होगी, मनहूसियत भी ख़त्म हो जाएगी इस सुनसान पड़े घर की। आगोश की मम्मी ने अब प्रसन्नता से कहा।
- अरे बहन, तू क्यों इतनी परेशानी उठाती है। लड़के वालों से कहते हैं न, जब वो हमें शादी के लिए वहां इतनी दूर बुला रहे हैं तो शादी की जगह की व्यवस्था भी वो ही करेंगे। मौसी ने कहा।
शायद उन्हें थोड़ा संकोच हो रहा था कि शादी की व्यवस्था की लंबी- चौड़ी जिम्मेदारी अपनी छोटी बहन पर क्यों डालें?
अब अगर यहां उनके बंगले से ही शादी हुई तो वो लोग लखनऊ से आकर कितना भी सहयोग कर दें, सारा झंझट तो उन्हीं पर आयेगा। और वो ये भी जानती थीं कि डॉक्टर साहब उनसे पैसे- टके का कोई हिसाब किताब करेंगे नहीं। ऐसे में संकोच तो लाजिमी ही था।
मौसी जी के संकोच का एक कारण और था।
असल में पिछले दिनों मौसी ने मान्या बिटिया की रिंग सेरेमनी भी यहीं से की थी और यहां किसी को बताया नहीं था।
चुपचाप लखनऊ से गाड़ी में मान्या और उसकी छोटी बहन को लेकर दोनों पति- पत्नी सुबह आए थे और सेरेमनी करके वापस लौट गए।
लड़के वालों ने भी तो ज्यादा कुछ लोगों को नहीं बुलाया था... उनका होने वाला दामाद मनन, और उसके मम्मी- पापा। बस!