Taapuon par picnic - 87 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | टापुओं पर पिकनिक - 87

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टापुओं पर पिकनिक - 87

इस बंटिम तेहरानवाला का भी जवाब नहीं।
कहने को आर्यन का पीए था, पर कई- कई दिन तक दिखाई न देता।
जब घर से लौटने के बाद पूरे दो दिन तक भी आर्यन को जनाब के दर्शन नहीं हुए तो उसने खाना बनाने वाले लड़के से पूछा- बंटी कहां है?
लड़का सिर खुजाता इधर- उधर देखता वापस चला गया मानो बंटी को ढूंढ कर लाने ही निकल रहा हो।
फ़िर एकदम पलट कर वापस आया और बोला- साब तो कोट्टायम गए हैं।
आर्यन को खीज हुई पर अब इस एब्सेंट- माइंडेड लड़के से क्या पूछे! आर्यन कपड़े बदलने लगा।
आर्यन अभी वाशरूम से आकर बैठा ही था कि लड़का चाय ले आया।
साथ में एक पेस्ट्री और एक बड़े से प्याले में कुचला हुआ भुना आलू भी।
आर्यन ने एक छोटा सा टुकड़ा उठा कर मुंह में डाला और चाय पीने लगा।
बंटी से फ़ोन पर बात करने के लिए आर्यन ने फ़ोन उठाया तो उसे बंटी का एक लंबा सा मैसेज दिखा। बंटी ने लिखा था कि शापुरजी एंड शापुरजी से डील फाइनल हो गई है और पूरे पचास एकाउंट में भी आ गए हैं।
आर्यन का चेहरा खिल उठा। उसने बात करने का ख़्याल छोड़ कर मोबाइल वापस रख दिया और पैर फ़ैला दिए।
वह मोटे से तकिए को हाथों में दबा कर अभी कुछ सोच ही रहा था कि दरवाज़े की घंटी बजी।
कुक ने जाकर दरवाज़ा खोला। सामने आर्यन की मसाज करने के लिए आया लड़का खड़ा था।
कुछ बेमन से आर्यन ने सामने टंगी हुई घड़ी में टाइम देखा और उठने लगा।
आर्यन को जिम में वर्कआउट के लिए जाना था। जिम में जाने से पहले ही बॉडी मसाज करने के लिए ये लड़का वहीं से आता था। जिम बिल्कुल पास वाली बिल्डिंग में ही था।
संभ्रांत इलाक़े के इस पॉश जिम में अधिकतर वीआईपी कस्टमर ही आते थे।
जिम से लौट कर आर्यन देर तक ठंडे पानी से नहाता रहा और फ़िर फ्रेश होकर दिन की दूसरी पारी के लिए अपने को तैयार करने में जुट गया।
दिन की ये दूसरी पारी हर रोज़ अलग- अलग होती थी। पहली पारी में तो अक्सर शूटिंग में व्यस्त ही रहना होता था पर शाम के बाद के इस समय में लोगों से मिलना, नए अनुबंधों की संभावनाएं तलाशना, ज़िन्दगी का आनंद लेना, रिश्ते तलाशना, निभाना, और दुनियावी रस्मों का निभाव होता।
इतना घुमा- फिरा कर क्या कहना, सीधी बात ये थी कि आज एक लड़की उसके पास पूरी रात बिताने के लिए आने वाली थी।
उसके एक मित्र ने इस मीटिंग का बंदोबस्त किया था। उसका कहना था कि ये सोनचिरैया है, जल्दी ही ऊंची उड़ान भरेगी इसलिए इसे शीशे में उतार लो।
आर्यन ने कुक को खाने के लिए मना कर दिया। ड्राइवर से केवल इतना कहा कि शेरेटन में डिनर के लिए चलेंगे, अभी रुक जाओ, फ़िर मुझे घर छोड़ कर वापस जाना।
ड्राइवर और रसोइया दोनों ही लगभग फ़्री हो गए और नीचे लॉबी में गप्पें लड़ाने बैठ गए।
- लेगा? ड्राइवर ने धीमी आवाज़ में लड़के से कहा।
लड़के ने होठों को बिचका कर कुछ इस तरह का इशारा किया मानो ड्राइवर पर अहसान कर रहा हो। अब ये ड्राइवर पर ही निर्भर था कि वो इसे हां समझे या ना।
ड्राइवर उठ कर गैरेज के सामने पोर्च तक गया और झटके से गाड़ी का दरवाज़ा खोला। पलक झपकते ही दरवाज़ा बंद भी कर दिया और आकर वापस बैठ गया। लड़का कुछ उसके और करीब सरक आया।
ड्राइवर ने आंखों को मिचमिचाते हुए बोतल का ढक्कन खोलने के लिए दांतों में फंसाया और एक झटके में ढक्कन दूसरी तरफ़ उछालते हुए बुदबुदाया - सूखी ही लेगा क्या, ज़रा कुछ चिकनाई तो उठा ले।
लड़का किचन में गया और एक तश्तरी में सुबह के बचे मछली के कुछ टुकड़े उठा लाया।
- मुंह में ले ले... मुंह लगा ले... ड्राइवर ने लड़के को बोतल ऊपर से हलक में उंडेलते हुए देख कर कहा। लड़के ने मुंह लगा कर दो - तीन घूंट लिए फ़िर ड्राइवर को पकड़ा दिया।
ड्राइवर ने हाथ में लेकर ज़रा हिलाया और एक छींटा परे उछाला फ़िर गटागट आधी बोतल ख़ाली कर दी।
तभी ऊपर से आर्यन की आवाज़ आई।
लड़का ऊपर जाने के लिए अंधेरे से कुछ उजाले में आया तो उसने देखा उसकी टीशर्ट पर नीचे कुछ छींटे पड़े हैं। लड़के ने टीशर्ट को चलते- चलते ही लोअर के भीतर दबाया और आर्यन के सामने जा खड़ा हुआ।
- ड्राइवर को भेज दे।
- यहां?
- यहां नहीं, उसे उसके घर जाने के लिए बोल दे। उसे कह दे कि अब कहीं नहीं जाना है, वो वापस जाए। आर्यन ने धीरे- धीरे रुक- रुक कर कहा।
लड़का कुछ अचंभित सा वापस नीचे आने लगा।
- हो गया तुम्हारा काम! लड़का ड्राइवर से बोला- साहब बोले, अब कहीं नहीं जाना, तुम घर जाओ।
ड्राइवर ने ऊपर मुंह उठा कर सामने खड़े लड़के को देखा फिर किसी अशक्त बूढ़े की तरह लड़के का सहारा लेता हुआ खड़ा हुआ।
लड़का हंसता हुआ छिटक कर पीछे हटा। लड़के के टीशर्ट को लोअर के भीतर घुसा लेने से लोअर का मोटा सा नाड़ा बाहर लटक रहा था। ड्राइवर उसी को पकड़ कर सहारा लेता हुआ उठने लगा तो लड़का बिदक गया।
ड्राइवर ने गाड़ी को स्टार्ट करके गैरेज में लगाया और चाबी लड़के को पकड़ाता हुआ गेट से बाहर निकल गया।
लड़के ने ख़ाली बोतल को उठा कर पीछे रखे एक कचरा पात्र में फेंका और ख़ाली तश्तरी हाथ में लेकर भीतर आ गया।
लड़के को एकाएक ख्याल आया कि साहब खाने के लिए बाहर जाने वाले थे, पर अब नहीं जा रहे तो उनके डिनर का क्या होगा?
वह जल्दी - जल्दी सीढ़ियां चढ़ता हुआ ऊपर गया और आर्यन से बोला- खाना लगा दूं साहब?
- क्या खिलाएगा?
- जो आप बोलो।
- कुछ है बना हुआ? आर्यन ने आशान्वित होकर पूछा।
- बना दूंगा... लड़का उत्साह से बोला।
- दही है? तू आज पुलाव खिला दे बढ़िया...
आर्यन ने पढ़ने के लिए कुछ कागज़ों का एक पुलिंदा सा उठा लिया और लड़का तत्परता से नीचे रसोई में चला गया।
डिनर के बाद रात पौने बारह बजे लड़के ने जब आर्यन के बेड के पास पीने का पानी और कॉफी का थर्मस रखा तो आर्यन बोला- अभी थोड़ी देर में कोई मेहमान आएं तो दरवाज़ा खोल देना और उन्हें ऊपर पहुंचा जाना।
लड़का गहरी नज़र से देखता हुआ नीचे उतर गया।
आर्यन जिस मेहमान के बारे में बोला था वो एक मेमसाब थीं।
लड़का उन्हें ऊपर पहुंचा गया। बाप रे, कितनी लंबी थी मैडम... बिल्कुल साब के बराबर।
लड़की सुबह - सुबह अंधेरे में ही वापस चली गई। वो गाड़ी भी ख़ुद चला कर लाई थी।
लड़की बहुत लंबी थी। आर्यन जो ख़ुद अच्छी खासी हाइट का था, उससे बस एक- डेढ़ इंच ही कम होगी।
लड़की ने बताया था कि पिछले महीने मिस इंडिया रीजनल में सैकंड रनर्स-अप रही।
आर्यन को लड़की से ही पता चला कि उसे पिछले दिनों शापुरजी एंड शापुरजी से कॉल आया था जहां उसकी दो मीटिंग्स हो चुकी हैं और उसका स्क्रीन टेस्ट भी लिया जा चुका है।
लड़की ने ही रात को आर्यन के सीने पर अंगुलियां गढ़ाते हुए ये भी बताया कि उसे आर्यन के साथ कम्फ़र्टेबल होने की सलाह ही नहीं, बल्कि हिदायत दी गई है।
- नो नो.. ही इज़ नॉट ए कास्टिंग काउच। वो तो रिश्तों की गमक के विशेषज्ञ हैं। उनका काम भूमिकाओं के नैचुरल समन्वय का है...तुम मुझे जैसे देखोगे वैसे ही तो दर्शक देखेंगे। मैं तुमसे बची, तो लोग मुझसे बचेंगे। हमारा खेल ही ख़त्म हो जाएगा...
- रात बहुत छोटी है। आर्यन ने उकता कर कहा।
- ओह! तुम्हारे विचार तो तुम्हारे हाथों से भी तेज़ दौड़ते हैं... ये बहुत सख़्त हैं.. संभालो इन्हें। ये तो सारे आलम को चीर डालेंगे। लड़की इठलाई।
- तो तुम रात की छांव को फ़ैला दो न।
- तुम मुठ्ठी से धूप तो छोड़ो...
आर्यन सुबह उसके जाने के बाद देर तक सोता रहा। मुठ्ठी की धूप कौन कहे, खिड़की से छनकर आता सूर्यदेव का ताप भी खौलने लगा था।
अलार्म कई बार बज कर चुप हो गया था।