"सबने अपनी अपनी कहानी सुना दी,"गबन के आरोप में सजा काट रहे देव ने जयराम के कंधे पर हाथ रखा था,"दोस्त तुम नही बताओगे तुम्हे कैसे यहाँ आना पड़ा?"
"यहां लोग क्यो आते है?सजायाफ्ता जेबकट चन्दर ने फ़िकरा कसा था,"इसी ने भी किसी का माल मारा होगा या तुम्हारी तरह सरकारी पैसे का गबन किया होगा?"
"तुम चुप रहो।हर समय जुबान कतरनी सी चलाते रहते हो।"देव ने चन्दर कक डांटा था
देव, जयराम के सामने ज़मीन पर आलती पालती मारकर बैठ गया।देव को देखकर चन्दर, सोना और कल्लू भी जयराम को घेरकर बैठ गए।
पुलिस के घण्टे ने टन टन करके रात के गयारह बजने की उद्धघोसना की थी।वातावरण एकदम शांत था।किसी तरह की कोई आवाज नहीं।कोई शोर नही। रात की नीरवता को कभी कभी सन्तरी के बुटो की आवाज जरूर भंग कर देती थी।बुटो कि आवाज दूर से पास आती फिर दूर चली जाती
अक्टूबर का महीना।साफ खुले आसमान में पूनम के चांद का एक छत्र राज्य था।जेल की कोठरी के छोटे से रोशनदान से प्रवेश करके चन्द्रमा का प्रकाश कोठरी की दीवार पर सिनेमा का सफेद सा पर्दा बना रहा था।
जयराम ने अपनी पीठ को जेल की कोठरी की दीवार से सटा लिया।सिर उठाकर उसने अपने सामने बैठे जेल के साथियों के चेहरों को देखा।सबकी आंखों में जिज्ञासा के भाव थे और चेहरों पर कुछ जानने की उत्सुकता ।
"औरत की जिद्द ने मुझे काल कोठरी में भेज दिया"जयराम ने चारों तरफ देखने के बाद कहा था।
"औरत की जिद्द ने तुम्हे जेल के सिकंचों के पीछे पहुंचा दिया,"जयराम की बात सुनकर सोना बोला,"कहीं अवैध सम्बन्धो का चक्कर मे तो----
"नही,"जयराम ने सोना की बात को बीच मे काट दिया था।
"फिर वो कौन औरत है जिसकी जिद्द को पूरा करने के लिए तुम्हे जेल में आना पड़ा" कल्लू ने पूछा था।
"वो औरत और कोई नही मेरी पत्नी है।"
"तुम्हारी अपनी पत्नी,"जयराम कज बात सुनकर देव चोंककर आश्चर्य से बोला,"पत्नी की जिद्द ने तुम्हे यहाँ ला दिया।"
"हां।मेरी पत्नी की जिद्द ने मुझे जेल की हवा खिला दी।"
"वो कैसे?"सब एक साथ बोले थे।
"यह एक लंबी कहानी है।"जयराम के चेहरे पर अवसाद की रेखाएं उभर आयी।ऐसा लगा मानो किसी ने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया हो।उसने नज़रे उठायी और जेल के सिकंचों के पार देखने लगी।मानो अपना अतीत खोज रही हो।जयराम के सामने गुज़रे हुए दिन साकार हो उठे।
वह छोटा था।पांच साल का रहा होगा।लेकिन उसे याद सब है।उसके पिता को कैंसर हो गया था।एक तो गरीबी दूसरे छोटे से गांव में चिकित्सा सुविधा का अभाव।फिर भी उसके बड़े भाई और माँ ने जी भी हो सकता था।किया था।उसके पिता को बचाने के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया था।कर्ज लेकर इलाज के लिए पिता को मुम्बई भी लेकर गए।लेकिन कुछ नही हुआ।लाख प्रयास के बाद भी पिता कक नही बचाया जा सका।
पिता के गुज़र जाने के बाद जयराम और माँ की ज़िम्मेदारी बड़े भाई रामदेव के कंधों पर आ पड़ी।रामदेव ज्यादा पढ़ा नही था।वह रेलवे में क्लास फोर्थ में काम करता था।लेकिन वह चाहता था।जयराम खूब पढ़ लिख ले ताकि अच्छी नौकरी कर सके।
उसके गांव में प्राइमरी स्कूल था।जयराम को उसमे भर्ती करा दिया गया।जयराम ने खूब मन लगाकर पढ़ाई की और पांचवी तक वह पढ़ने में खूब होशियार रहा।
(आगे अगले भाग में)