love and tree in Hindi Love Stories by Lalit Rathod books and stories PDF | प्रेम और पेड़

Featured Books
Categories
Share

प्रेम और पेड़

बहुत पहले हमारे बीच एक पेड़ हुआ करता था। जब पेड़ छोटा था तो हम रोज उसके बड़े होने की कामना में अपने हिस्से का थोड़ा पानी पेड़ को दे जाते। पेड़ से लगाव इसलिए भी अधिक था, क्योंकि हम दोनों को लगता था कि हमारा संबध पेड़ के जड़ों से जुड़ा हुआ है, जो हर दिन मजबूत और भीतर से गहरा हो रहा। पेड़ के बिना प्रेम की कल्पना अधूरी थी। कुछ वर्ष बीतने बाद पेड़ की परछाई हमें छांव देने लगी। दोनों का लंबा समय पेड़ के नीचे बीतने लगा था। अक्सर छांव के नीचे बैठे हम पत्तों की ओर देखकर पेड़ में फल होने की कामना करते।

अधिकतर लोगों को मालूम था, पेड़ से हमारा रिश्ता जुड़ा हुआ है। काम की व्यस्तता में दोनों का मिलना कम होने लगा था। छांव में दोनाें की अनुपस्थिति लंबी होने लगी थी। एक दिन हमारे बीच समय ना देने को लेकर मतभेद हुआ। देखते ही देखते बात बिगड़ती चली गई और दोनों संबध के अंतिम छोर पर पहुंच गए। दोनों में से अगर कोई एक कदम आगे बढ़ाता तो रिश्ते की नींव ढह जाती। यह साहस
किसी ने नहीं किया। उस वक्त हम अपने यादगार क्षणों को याद करने लगे थे। अपने अंतिम संवाद के बीच दोनों को पेड़ याद आ रहा था। ना जाने क्यों हमें यह महसूस हाेने लगा था, किसी ने उनके पेड़ को नुकसान पहुंचाया होगा, तभी हमारे बीच इतनी उलझने हैं। बातचीत खत्म होते ही दोनों को पेड़ देखने की इच्छा हुई। अगर पेड़ टूट गया होगा, तो दाेनाें उसे ठीक कर रिश्तों की उलझन सुलझा लेंगे। रात में बिना एक-दूसरे को बताए पेड़ के पास पहुंचे।

आस्था पहले से वहीं थी। वह शांत थी उसके आंखों से आंसू बह रहे थे। दोनों शांत मुद्रा में एक अजनबी की तरह खड़े थे। रोहन को दूर से आते उसने देख लिया था। करीब आने पर उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। दोनों का अंदेशा सही था। किसी ने पेड़ की जड़ों को कुल्हाड़ी से काट दिया था। पेड़ जमीन से अलग हाेकर दोनों के सामने एक मृत लाश की तरह पड़ा हुआ था। पेड़ की जड़ें अलग होते ही दोनों के बीच की दूरी बढ़ने लगी थी। जितना पुराना पेड़ था उतना ही पुराना दोनों का रिश्ता था। कुल्हाड़ी की धार से जितना दर्द पेड़ को हुआ था, उतना ही दोनों को जुदाई का था।

दोनों ने देखा, पेड़ की एक डाली में फूल के साथ फल भी था। वह पेड़ का पहला फल था, जिसका उन्हें लंबे समय से इंतजार था। प्रेम में रहते समय दोनों ने तय किया था कि पेड़ का पहला फल पेड़ की छांव में बैठकर खाएंगे। वह फल सुख की तरह था। दोनों उस फल को देख रहे थे और सोच रहे थे कि पेड़ काटने वाले ने एक पेड़ नहीं गर्भवती मां को मारा है। अचानक आस्था की आंखों के आंसू रोहन के हाथों में आ गिरे। रोहन ने आस्था की ओर देखा। दोनों एक-दूसरे को देखने लगे। दोनों की आंखों में एक ही सवाल था-पेड़ को किसने काटा होगा? दोनों ने एकाएक कहा-समय ने मारा है। अगर पेड़ को समय देते तो हम भी साथ होते। हमारे साथ होने में पेड़ भी शामिल होता। अब दोनों नहीं है। दोनों पेड़ और फल को जमीन पर छोड़कर नम आंखों से लौट गए। उस दिन से हमने बात करना भी बंद कर दिया।