Taapuon par picnic - 80 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | टापुओं पर पिकनिक - 80

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टापुओं पर पिकनिक - 80

किसी ने सपने में भी ये कल्पना नहीं की थी कि ये दिन देखना पड़ेगा।
आख़िर क्या चाहता है विधाता? उसकी लीला अपरम्पार!
सिद्धांत, मनन और साजिद को अब इन तैयारियों में लगना पड़ा। मनप्रीत अपने इन सब दोस्तों के साथ आ तो नहीं सकी थी लेकिन घर में कई बार रोई।
मधुरिमा का तो फ़ोन पर ही बुरा हाल था। तेन ने भी एक मिनट तक फ़ोन पकड़े - पकड़े ख़ामोश रह कर मानो वहीं से श्रद्धांजलि दी।
आर्यन भी दोपहर की फ्लाइट पकड़ कर चला आया।
आगोश की मम्मी का तो रोते- रोते बुरा हाल था। उन्हें खाने- पीने की कौन कहे, सांस तक लेने की सुध- बुध नहीं थी। बेतहाशा कलप रही थीं।
डॉक्टर साहब स्तब्ध थे कि दस लाख रुपए के ईनाम की घोषणा के साथ बिजली सी फुर्ती से आगोश को तलाशने में जुटी पुलिस आख़िरकार ये सूचना लेकर आई??? आगोश, उनका बेटा, उनके सामने आया भी तो इस तरह? एक निर्जीव बुत के रूप में।
किसी से देखा तक नहीं गया था। आगोश की मम्मी भी सफ़ेद चादर हटाते ही मूर्छित होकर गिर पड़ी थीं।
उसका चेहरा तो बुरी तरह कुचला गया था। चेहरे का कोई भाग न दिखाई देता था और न पहचाना जा सकता था।
जंगल में गिरे उस मलबे की तलाश से ही आगोश के कपड़े और पहचान पत्र, पर्स, बैंक कार्ड आदि देख कर शिनाख्त हो सकी। इस हेलीकॉप्टर हादसे में तीनों लोग मारे गए थे। तीनों के ही शव क्षत- विक्षत हालत में पाए गए।
गनीमत ये थी कि शव के टुकड़े नहीं हुए थे। यद्यपि हादसे को लगभग दो दिन का समय बीत जाने के कारण जंगली जानवर मृत शरीरों को खाने की चेष्टा में इधरउधर खींच ज़रूर ले गए थे।
जिस समय आगोश की अंतिम यात्रा निकाली गई, जैसे आधा शहर ही उमड़ पड़ा। उसके तमाम साथी, परिजन, मित्रगण और अन्य परिचित इस शवयात्रा के बेहद गमगीन माहौल में साक्षी बने।
शहर के कई युवा और बच्चे तो उछलते - कूदते यही देखने के लिए शामिल हो गए कि इस भीड़ में उनके साथ - साथ प्रसिद्ध फ़िल्मस्टार आर्यन भी चल रहा था। सफ़ेदझक्क कुर्ता- पायजामा पहने आर्यन आंखों पर काला चश्मा लगाए अर्थी के साथ आगे- आगे ही चल रहा था। सिद्धांत, मनन, साजिद और दूसरे दोस्तों ने अर्थी को कंधा दे रखा था। लोग फूल फेंकते हुए चल रहे थे।
आगोश के पापा कुछ अन्य लोगों के साथ एक लम्बी सी कार में चल रहे थे।
जिस शहर में आगोश पढ़ा, वहां उसके स्कूल- कॉलेज के सहपाठी भी ढेरों थे, जबकि ये सब अब बहुत पुरानी बातें थीं।
डॉक्टर साहब के बंगले से जब आगोश का दिवंगत शरीर अपनी अंतिम यात्रा के लिए निकाला जा रहा था तब शहर के स्थानीय पुलिस स्टेशन के कई अधिकारी और सिपाही भी वहां मौजूद थे।
पुलिस ने आगोश को ढूंढने में रात- दिन एक कर दिया था। लेकिन ये तमाम कवायद आगोश को ज़िंदा लौटा कर न ला सकी। उन्हें आगोश की लाश ही मिली।
आख़िर ये सब हुआ कैसे?
आर्यन ने सबको बताया कि यहां से निकल कर जाने के बाद एक बार अचानक उससे मिलने वो मुंबई में भी आ गया था। उस दिन भी वो न जाने कैसी उखड़ी- उखड़ी बातें कर रहा था। यहां तक कि आर्यन से हुई बातचीत में उसने एकबार अनजाने ही मरने की बात भी की थी।
तो क्या आगोश को यह अहसास पहले से ही हो गया था कि उसकी ज़िन्दगी ख़त्म होने वाली है? या फिर वो स्वयं आत्महत्या करने की हालत में पहुंच गया था? वह अक्सर डिप्रेशन में तो रहने ही लगा था।
यहां भी उसकी गुमशुदगी के बाद पुलिस को तलाशी में जो काग़ज़ मिला था उसमें भी तो इस तरह का संकेत था कि वो जो कुछ करने जा रहा है, उसके लिए कोई दोषी नहीं है।
तो क्या सच में आगोश ने सुसाइड कर लिया?
लेकिन कैसे? जिस समय उसका ये जानलेवा हादसा हुआ तब वो अकेला नहीं था। उसके साथ दो लोग और भी तो थे। ये दुर्घटना आत्महत्या कैसे कही जा सकती है?
जिस हेलीकॉप्टर से दुर्घटना हुई वो एक कोरियर सर्विस का अपना निजी हेलीकॉप्टर था। पुलिस को बताया गया कि आगोश को फ्लाइट का टिकिट न मिल पाने पर उसने उस कोरियर कंपनी में संपर्क किया था और काफ़ी पैसा चुका कर वो इस हेलीकॉप्टर में आने की अनुमति पाने में सफ़ल हुआ था। उसे क्या खबर थी कि उसकी मौत उसे वहां खींच ले जा रही थी।
हेलीकॉप्टर का चालक एक नौजवान युवक था। न जाने कैसे एक पहाड़ी क्षेत्र के समीप से गुजरते हुए वह संतुलन खो बैठा। उसने भी आगोश और कोरियर सर्विस के एक अन्य आदमी के साथ - साथ अपने प्राणों से हाथ धो लिए।
ये भी गनीमत रही कि हेलीकॉप्टर में गिरने के बाद तत्काल आग नहीं लगी जिससे कुछ समय बाद क्षत- विक्षत हालत में कम से कम सभी के शव मिल तो गए। अन्यथा आग लगने पर तो कुछ भी हो सकता था। संभवतः किसी की भी शिनाख्त तक नहीं हो पाती।
अगले दिन शाम को डॉक्टर साहब के बंगले के सामने विशालकाय शामियाना लगवाया गया। बहुत बड़े क्षेत्र में बिछायत करवाई गई।
आगोश के दोस्तों के साथ- साथ डॉक्टर साहब के क्लीनिक के स्टाफ और शहर के सबसे प्रतिष्ठित टेंटहाउस के लोग इस शोकसभा की तैयारियों में जुटे।
मृत्यु के तीसरे दिन होने वाली तिये की बैठक का आयोजन था।
वास्तव में तो आज चौथा दिन था क्योंकि दुर्घटना के बाद दो दिन तक तो मृतकों के बारे में किसी को कुछ पता ही नहीं चल सका था।
शामियाने में एक ओर ऊंचा सा मंच बना कर उसपर आगोश की एक तस्वीर कांच के बेहद आकर्षक फ़्रेम में जड़ कर सजाई गई थी। तस्वीर पर गुलाब के फूलों की महकती हुई माला डाली गई थी।
चारों ओर अगरबत्तियों की महक और सुगंधित धुआं फ़ैलकर मानो विषाद और शोक के उस अनमनेपन से लड़ रहा था जो घर के इकलौते चिराग के इस तरह अल्पायु में ओझल हो जाने से सारे में बिखर गया था।
आगोश के सभी दोस्त मुस्तैदी से सारी व्यवस्था संभाल रहे थे। मनप्रीत ने आगोश की मम्मी को सहारा देकर संभाल रखा था।
कहते हैं कि तमाम निकट संबंधी, मित्र - जन, परिचित- जन, पड़ोसी - गण इस मौक़े पर इकट्ठे होकर दिवंगत आत्मा के आत्मीय परिजनों को ये एहसास और आभास दिलाते हैं कि जो हुआ उसे ईश्वर का विधान मान कर वो विश्व के निर्बाध चलते रहने की कामना करें। और भविष्य की सभी गतिविधियों में उनके सम्मिलित होते रहने का आश्वासन भी समाज को दें।
- "द शो मस्ट गो ऑन"!
आगोश की तस्वीर के एक ओर बैठे पंडित जी इस अवसर पर शोक संदेश वाचन के साथ - साथ उन मंत्रों व क्रियाविधियों का उच्चारण भी कर रहे थे जो मनुष्य के इस दुनिया से वापस लौटने के विधान हेतु बनाए गए थे।
शोकमग्न लोगों के सामने जन्म- मरण की व्याख्या की जा रही थी।
लोगों से इस दुनिया को हर समय उनके जीवित रहने वाला स्थाई स्थल न समझने का आह्वान किया जा रहा था।
आगोश के पापा भी श्वेत परिधान में सिर झुकाए वहां उपस्थित थे। उनके साथ उनके क्लीनिक के तमाम कर्मचारी भी वहीं थे जो मानव जीवन के नश्वर होने का आख्यान सुन रहे थे।
एक ओर महिलाओं का हुजूम था जिसमें सबसे आगे आगोश की मम्मी बेहद गमगीन मुद्रा में बैठी हुई थीं।
धर्म - कर्म - जन्म - मरण - स्वर्ग - नर्क आदि की सैद्धांतिक बातें हो रही थीं।
शहर भर से उमड़ी भीड़ का रेला यहां लाने वाले वाहनों की लंबी कतार सड़कों पर दूर तक फैली हुई थी।
सब में हलचल थी। सब में स्पंदन था। सबमें गति थी।
वहां निष्प्राण, निस्पंद यदि कुछ था तो केवल आगोश की वो बेजान तस्वीर थी जो मायूसी से ये सार्वजनिक ऐलान कर रही थी कि वो अब कभी लौट कर नहीं आयेगा।
आर्यन एकटक उस तस्वीर को देखे जा रहा था और सोच रहा था कि उसके दोस्त की ये वही तस्वीर थी जो एक दिन बातों- बातों में आगोश ने ये कह कर खिंचवाई थी कि इसे अपने पास रखना और यदि कहीं तेरी किसी फ़िल्म में ऐसे थोबड़े की ज़रूरत पड़े तो मुझे बुला लेना!
गीली आंखों के साथ भी उसके होठ कुछ मुस्कुरा उठे।