Taapuon par picnic - 75 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | टापुओं पर पिकनिक - 75

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टापुओं पर पिकनिक - 75

ग़ज़ब हो गया।
सब परेशान थे। उधर जब एक छोटे से कैमियो रोल के लिए रामोजी फिल्म सिटी में आई सुपरस्टार अभिनेत्री के साथ हैदराबाद के सबसे आलीशान होटल में डिनर के लिए गए हुए आर्यन को फ़ोन से ये सूचना मिली कि आगोश घर छोड़ कर कहीं चला गया है तो उसे एकाएक यकीन नहीं हुआ। अभी कुछ दिन पहले तो वो उससे मिल कर आया ही था। दोनों दो दिन साथ ही रहे थे। अचानक ऐसा क्या हो गया कि उसे घर छोड़ कर जाना पड़ जाए।
पर सूचना ग़लत नहीं थी।
सिद्धांत, मनन और साजिद ने शहर का कौना- कौना छान मारा था आगोश को ढूंढने में।
आगोश जापान भी नहीं गया था। और ऐसा एकाएक ऐसे रूठ कर भारत से जापान चले जाना इतना सहज था भी नहीं। फ़िर भी मनप्रीत ने मधुरिमा से बात करके पूरी स्थिति का पता करने की कोशिश की।
मधुरिमा ने फ़ोन पर ख़ुद बताया कि जापान के आगोश के ठिकाने पर तो महीनों से ताला लटका हुआ है। वह जापान पहुंचता था तो सबसे पहले तेन के पास ही पहुंचता था।
इन दिनों यहां आना तो दूर, उसकी कोई खोज- खबर भी कहीं नहीं थी।
सबसे बड़े अचंभे की बात ये थी कि इन दिनों आगोश के पापा भी घर पर ही थे और वो अपनी पत्नी, अर्थात आगोश की मम्मी के साथ उसे तलाश करने में ज़मीन- आसमान एक किए हुए थे।
आगोश की इन दिनों अपने पापा से भी कोई खटपट नहीं सुनी गई।
आगोश के पापा ने दिल्ली के पास अपने नए बने हॉस्पिटल का चप्पा- चप्पा छनवा डाला था, क्या पता आगोश किसी गफलत या संदेह में वहां पहुंचा हुआ हो।
पर वहां से ऐसा कोई संकेत नहीं मिला कि आगोश वहां पहुंचा हो।
उसकी गाड़ी भी तो घर में ही खड़ी थी। बिना अपनी गाड़ी लिए तो आगोश कहीं जाता भी नहीं था, केवल जापान के सिवाय।
आगोश के सभी दोस्तों ने जहां - जहां भी उसके मिलने की संभावना हो सकती थी, सभी जगहों को खंगाल डाला था।
अखबारों में इश्तहार दे दिए गए थे, ताकि अगर कहीं किसी दुर्घटना या अनहोनी के चलते वह अपने घर नहीं पहुंच पाया हो तो आख़िर कोई तो सुराग मिल सके।
पुलिस स्टेशन में भी रिपोर्ट दर्ज करा दी गई थी।
किसी की समझ में ये बात नहीं आ रही थी कि आगोश इस तरह घर छोड़ कर कहां और क्यों जा सकता है।
उसकी मम्मी का रो- रोकर बुरा हाल था। उनके आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।
डॉक्टर साहब भी बेहाल थे। वो अच्छी तरह जानते थे कि आगोश उनसे नाराज़ और परेशान रहता है फ़िर भी वो ये समझ पाने में असमर्थ थे कि आगोश को इस तरह क्या धरती निगल गई या आसमान खा गया?
इस समय तो तत्काल कोई ऐसी बात भी नहीं हुई थी कि आगोश इतना बड़ा कदम उठा ले।
आगोश की मम्मी की गिरती दशा देखकर डॉक्टर साहब ने टीवी और रेडियो पर विज्ञापन के जरिए ये ऐलान भी करवा छोड़ा था कि आगोश की कोई भी सूचना देने वाले व्यक्ति को दस लाख रुपए का ईनाम दिया जाएगा।
इस घोषणा से प्रभावित होकर शहर की पुलिस भी चौकन्नी हो गई थी और उसकी गहमा - गहमी आगोश की तफ्तीश की दिशा में युद्ध स्तर पर शुरू हो गई थी।
और अब तो ग़ज़ब ही हो गया।
आगोश के कमरे की अलमारी में शराब की बोतलों के बीच छोटे से लिफ़ाफे में रखी वो चिट्ठी भी पुलिस को मिल गई थी जिसमें उसने साफ लिखा था कि उसे ढूंढने में वक्त बर्बाद न किया जाए क्योंकि वह किसी को भी मिलने वाला नहीं है। साथ ही उसने ये भी लिखा था कि वह जो कुछ कर रहा है उसके लिए पूरी तरह वो ख़ुद ही ज़िम्मेदार है, किसी और को दोषी न ठहराया जाए।
इसका अलावा और कोई संकेत नहीं मिला कि आख़िर वो क्या करने वाला है और वो है कहां।
पुलिस का कहना था कि किसी अनहोनी से भी इंकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि प्रायः आत्महत्या करने से पहले भी युवाओं की यही मानसिक स्थिति देखी जाती रही है।
पर आगोश अपने आप को ख़त्म क्यों करेगा? ये किसी के भी सोच के परे था।
क्योंकि आगोश की कंपनी ने जापान में भी अपना ऑफिस खोल लिया था अतः जापान की पुलिस को भी आगोश की गुमशुदगी के बाबत इत्तिला दे दी गई थी और वहां से भी इस बारे में मदद मांगी गई थी।
डॉ. तक्षशीला चक्रवर्ती ने जब अख़बार में ये खबर पढ़ी तो वह भी चौंक पड़ीं। वह उसी शाम आगोश की मम्मी से मिलने के लिए उनके घर भी पहुंच गईं।
डॉ. चक्रवर्ती को देखते ही आगोश की मम्मी रोते हुए उनसे लिपट गईं और बोल पड़ीं- तक्षशीला जी, मैंने उसे खो दिया।
- धैर्य रखिए, वो समझदार लड़का है, यदि किसी तात्कालिक खिन्नता से हताश होकर वह आपसे ओझल हो गया है तो कुछ समय बाद उसे आपके और उसके ख़ुद के निर्दोष होने का अहसास अपनी सामान्य ज़िन्दगी में लौटा लाएगा।
- कैसे धैर्य रखूं डॉक्टर। कैसे समझाऊं अपने आप को कि मैंने उसे मेरी ही ग़लती से नहीं खोया है?
- नहीं- नहीं... आपको ऐसा क्यों लगता है। ओके, अच्छा मुझे बताइए कि क्या हुआ था? आपने उसे आखिरी बार किस तरह देखा? क्या हुआ, क्या कहा उसने आपसे? या आपने उससे।
डॉ. तक्षशीला चक्रवर्ती के इस आह्वान पर आगोश की मम्मी चुप नहीं रह सकीं। उन्हें कुछ पल के लिए अपनी रुलाई रोक कर वो राज डॉक्टर को बताना ही पड़ा जो आगोश के घर से चले जाने के बाद से उन्हें कचोट रहा था। जिसे न वो आगोश के पापा से कह सकी थीं और न आगोश के दोस्तों से। वो पुलिस से भी ये बात छिपा गईं थीं।
- ओह, क्या हो गया था मेरी बुद्धि को! क्या मैं पगला ही गई थी? कोई ऐसे भी करता है भला अपने बच्चों के साथ। आगोश की मम्मी के माथे से ख़ून बह चला था क्योंकि उन्होंने अब डॉ. चक्रवर्ती से बात करते हुए अपना सिर पास की दीवार में टकरा दिया था। वह कलप रही थीं।
- प्लीज़, प्लीज़... मैडम, घबराइए मत। बताइए, हां बताइए मुझे पूरी बात, जो आपको परेशान कर रही है। कह डालिए.. क्या हुआ? क्या बात आपको परेशान कर रही है? बोलिए न.. मैं सुन रही हूं! आपका राज़ केवल मेरे और आपके बीच ही है.. झिझकिये मत! डॉक्टर बोलीं।
और तब भारी सिसकियों और हिचकियों के बीच आगोश की मम्मी ने उन्हें बताया कि उनसे एक बड़ी भारी मूर्खता हो गई थी...उसके कारण आगोश उन पर बहुत बिगड़ा था और गुस्से में आकर उसने उन पर उस दिन हाथ भी उठा लिया था। हां! सचमुच उनके बेटे ने उन्हें मारा! वह फिर से फूट- फूट कर रो पड़ीं।
तक्षशीला जी ने उन्हें संभाला!
उस महिला मनो चिकित्सक को ये विश्वास हो चला था कि सारे मामले की जड़ यही बात है जो इस कठिन समय में आगोश की मम्मी के मुंह से बाहर आने के लिए कुलबुला रही है। कुछ न कुछ ऐसा ज़रूर हुआ है जिसके लिए आगोश की मां अपने को दोषी मान रही हैं।
- क्या है ऐसा? बताइए, आपको आगोश की कसम! डॉक्टर तक्षशीला ने स्थिति के मर्म पर ही निशाना साधा। एक ऐसी मां, जो अपने इकलौते पुत्र के वियोग में तड़प कर छटपटा रही हो उसे पुत्र की ही सौगंध दे देने से बड़ा प्रहार इस समय और क्या होगा!
डॉक्टर ने ज़ोर डाला- इलाज करने के लिए रोगी का इतिहास जानना बहुत ज़रूरी है मैडम। घबराइए नहीं... आप कुछ कड़वा बोल कर भी अच्छा ही करेंगी। क्या हुआ था? उसने आपको क्यों मारा? क्या कर दिया था आपने? ... हां हां.. कहिए.. क्या हो गया था आपसे? उस सुबह ऐसा क्या घटा कि आपके इकलौते बेटे ने क्रोधित होकर आपको मारा? आप पर हाथ उठाया??? आप पर। अपनी मां पर???
डॉक्टर बुरी तरह उत्तेजित हो गई थीं।
- ...जी, कहूंगी... ज़रूर बताऊंगी आपको... मैंने ...मैंने अपने बेटे के कमरे में.. ओह! मैंने उसके कमरे में.. उससे पूछे बिना... उसे बताए बिना, सीसीटीवी कैमरे लगवा दिए! कह कर आगोश की मम्मी फ़िर से जार जार रो पड़ीं!