Taapuon par picnic - 73 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | टापुओं पर पिकनिक - 73

Featured Books
  • My Wife is Student ? - 25

    वो दोनो जैसे ही अंडर जाते हैं.. वैसे ही हैरान हो जाते है ......

  • एग्जाम ड्यूटी - 3

    दूसरे दिन की परीक्षा: जिम्मेदारी और लापरवाही का द्वंद्वपरीक्...

  • आई कैन सी यू - 52

    अब तक कहानी में हम ने देखा के लूसी को बड़ी मुश्किल से बचाया...

  • All We Imagine As Light - Film Review

                           फिल्म रिव्यु  All We Imagine As Light...

  • दर्द दिलों के - 12

    तो हमने अभी तक देखा धनंजय और शेर सिंह अपने रुतबे को बचाने के...

Categories
Share

टापुओं पर पिकनिक - 73

डॉ. तक्षशीला चक्रवर्ती... मनोरोग विशेषज्ञ
ये थी वो छोटी सी नेमप्लेट जो इस छोटे मगर खूबसूरत अहाते में कांच की एक मोटी दीवार पर लगी हुई थी। इसी के बाहर आगोश अभी- अभी कार से अपनी मम्मी को पहुंचा कर गया था।
आगोश की मम्मी ने डॉक्टर साहिबा से पहला सवाल यही किया था कि तक्षशिला तो सुना है, पर "तक्षशीला" नाम पहली बार देख रही हूं...
सामने बैठी हुई बेहद हंसमुख और संजीदा डॉक्टर ने जवाब दिया- आपने जो सुना वो एक पुराने प्रख्यात विश्वविद्यालय का नाम है, और यहां नेमप्लेट पर जो देख रही हैं वो मेरा नाम है... कुछ तो अंतर रहेगा ही न?
दोनों मुस्करा कर रह गईं।
- ख़ैर, मेरी समस्या ये नहीं, दूसरी है! आगोश की मम्मी बोलीं।
- बेशक... मैं समझ सकती हूं। कहिए! डॉक्टर ने कहा।
- मैडम मैं सीधे - सीधे ही आपको कहूं, ज़्यादा घुमा- फिरा कर कहने का कोई फ़ायदा भी नहीं होगा, मैं ये जानना चाहती हूं कि क्या समलिंगी होना कोई बीमारी है? और यदि है तो फ़िर इसका इलाज क्या है? आगोश की मम्मी ने कहा।
- समलैंगिक, "गे" या लेस्बियन होना एक स्थिति है। ये एक अल्पकालिक स्थिति भी हो सकती है और जीवन भर चलने वाली आदत या ज़रूरत भी। डॉक्टर ने समझाया।
इतना कह कर डॉक्टर तक्षशीला ने आगोश की मम्मी को एक लंबा - चौड़ा लेक्चर दे डाला।
वो ये भी अच्छी तरह पहचान गईं कि आगोश की मम्मी ख़ुद एक ख्यात चिकित्सक की पत्नी हैं और इतना ही नहीं, बल्कि उन्होंने बताया कि वो आगोश के पापा अर्थात डॉक्टर साहब को अच्छी तरह जानती हैं।
इस पहचान के बाद जैसे उन दोनों के बीच का रिश्ता ही बदल गया। अब वे डॉक्टर और मरीज़ की तरह नहीं बल्कि दो संभ्रांत सम्मानित परिचित महिलाओं की तरह एक दूसरे से मुखातिब थीं।
भीतर से उनके लिए चाय - पानी भी आने लगा।
आगोश की मम्मी ने भी तुरंत ये बताने में भी कोई कोताही नहीं की, कि वो अपने बेटे आगोश की बात ही कर रही हैं जो अभी- अभी उन्हें छोड़ने भी यहां आया था। उन्हें संदेह है कि उनके बेटे में ये आदत डेवलप हो गई है।
डॉक्टर ने बताया कि अभी उन्हें छोड़ने कौन आया था ये तो वो नहीं देख सकीं पर वो आगोश को जानती हैं।
- अरे, कैसे?
- ही इज वेरी एक्टिव... वो तो बहुत अच्छा लड़का है। वो एक नामी एक्टर "आर्यन" भी तो है न, उसके साथ एक फंक्शन में ही मैंने आपके बेटे को भी देखा था। मैं भी गई थी स्कूल के उस प्रोग्राम में! डॉक्टर साहिबा ने बताया।
इतना सब जान लेने के बाद आगोश की मम्मी के लिए अपनी बात कहना और भी सहज हो गया। वो बोलीं- मुझे आगोश की ही चिंता रहती है, मुझे लगता है कि उसमें भी ये आदत हो गई है... शायद वो..
- आपको कैसे पता? क्या आपका अनुमान है या फिर आपने ऐसा कुछ देखा है उसके साथ? तक्षशीला जी बोलीं।
- देखिए ना, थर्टी प्लस हो गया। न शादी के लिए हां करता है, न उसकी कोई गर्लफ्रेंड है... हमेशा लड़कों के साथ ही देखती हूं उसे।
डॉक्टर ने कुछ मुस्करा कर किंतु संयत होते हुए कहा- ये सब तो नॉर्मल है... कोई और बात? आगोश की मम्मी को चुप देख कर डॉक्टर ने ही कहना शुरू किया- देखिए मैडम, हम लोग शादी को लाइफ का एक स्टिग्मा सा बना लेते हैं... ये कोई ऐसा टैबू नहीं होना चाहिए है कि इससे ही किसी को जज किया जाए। आप ख़ुद ही सोचिए, हमारे देश में शादी जैसी कॉमन चीज़ को हमने कितना कॉम्प्लिकेटेड बना दिया है कि ज़िन्दगी का जैसे यही एक डिसाइडिंग फैक्टर हो।
बस, शादी हो गई तो गंगा नहाओ। शादी नहीं हुई, हाय अब क्या होगा?? शादी हो जाने के बाद भी जिंदगी की अस्थिरता बनी रह सकती है, शादी न होने पर भी सब कुछ व्यवस्थित चल सकता है। अरे सैकड़ों कारक होते हैं आज के बच्चों के साथ।
पढ़ाई, रोजगार, व्यवसाय। हरजगह गलाकाट स्पर्धा। अन्य लड़के- लड़कियों के साथ हुए अनुभव। तनाव। आशाएं। अपेक्षाएं। उनके अपने सपने। हमारी उम्मीदें! सत्ता की नीतियां। विदेशों के आकर्षण। देश का कानून! समाज की रवायतें। रस्म- रिवाज़, दुनिया के दस्तूर। जाति- धर्म- राजनीति का खुला तांडव। पैसे का नंगा नाच!... आई एम् सॉरी!
मैं ये सब क्यों कह गई? आप बताइए अपनी समस्या। क्या बस इसी बात से आपको लगा कि आपका बेटा...
बात अधूरी रह गई, क्योंकि इसी बीच आगोश ने आकर डॉक्टर साहिबा के कक्ष का दरवाज़ा खोल दिया। उसे लगा कि मम्मी फ़्री हो गई होंगी और वो उन्हें लेने चला आया।
उसे न तो ये मालूम था कि डॉक्टर के पास मम्मी अपना कौन सा रोग दिखाने आई थीं और न ही ये मालूम था कि डॉक्टर ने क्या दवा बताई।
उसने तो इस बात पर भी ध्यान नहीं दिया था कि ये कोई मनोरोग विशेषज्ञ हैं।
आगोश ने सामने बैठी डॉक्टर को नमस्कार किया।
आगोश की मम्मी एकदम से उठ लीं। फ़िर पर्स खोलते हुए बोलीं- क्या दे दूं आपको?
- अरे नहीं- नहीं, इट्स ओके, बाद में देख लेंगे। कहते हुए उन्होंने हाथ जोड़ दिए। मम्मी आगोश के पीछे - पीछे बाहर निकल आईं और गाड़ी में बैठ गईं।
दोनों मां- बेटे के लौटते समय डॉक्टर का पूरा ध्यान अब आगोश पर ही था। वह उसे जाते हुए भी कुछ गहरी नज़र से देखती रही थीं।
आगोश मम्मी को घर छोड़ कर फ़िर कहीं चला गया।
आगोश रात को देर से जब घर लौटा तो पहले अपने कमरे में न जाकर सीधा मम्मी के कमरे में चला गया।
उसे बड़ा अजीब सा लगा।
उसने नीचे से आते समय मनन की बाइक वहां रखी देखी थी।
और वह मम्मी से यही पूछने के इरादे से उनके कमरे में जा रहा था कि मनन आया था क्या?
लेकिन उसे बड़ा अटपटा सा लगा।
मनन आया था और वहीं मम्मी के पास उनके कमरे में बैठा था।
सामने अपने बिस्तर पर बैठी मम्मी मनन को न जाने क्या कहानी सुना रही थीं और मनन चुपचाप किसी आज्ञाकारी बच्चे की तरह कुर्सी पर बैठ कर मनोयोग से उन्हें सुन रहा था।
आगोश को देखते ही मनन उठ कर खड़ा हुआ और उसके पीछे- पीछे चलता हुआ उसके कमरे में आ गया।
- क्या कह रही थीं मम्मी? आगोश ने पूछा।
मनन ने बताया कि अभी- अभी एक टीवी सीरियल में आर्यन आया था। मैं तो तेरे कमरे में तेरा इंतजार कर रहा था पर मम्मी ने जैसे ही टीवी पर आर्यन को देखा तो मुझे आवाज़ दी।
अभी - अभी वही देख कर बैठे थे हम लोग। मनन बोला।
आर्यन अभी दो- तीन दिन पहले ही वापस गया था। आगोश उसे एयरपोर्ट छोड़ कर भी आया था।
- ग्रेट यार! मार्वलस एक्टिंग की थी छोरे ने आज। मनन बताने लगा।
रात काफ़ी हो चुकी थी पर आगोश मनन से बोला- यहीं सो जा।
मनन ने पहले तो कुछ ना- नुकर की, फ़िर रुक गया।
मनन सुबह जल्दी ही उठ कर चला गया।
आगोश तो तब तक उठा भी नहीं था, मनन को जगा हुआ देख कर मम्मी ने उसके लिए चाय कमरे में ही भिजवा दी।
मनन ने जल्दी- जल्दी चाय पी और पिलो के नीचे से बाइक की चाबी उठा कर आगोश को थपथपाता हुआ निकल गया।
आगोश दो पल को आंखें खोल कर कसमसाया और फिर करवट बदल कर सो गया।
कुछ देर बाद आगोश वाशरूम से निकल कर रसोई में ये देखने आया कि मम्मी क्या बना रही हैं, लेकिन तभी उसकी चीख निकल गई।
मम्मी ने भी चौंक कर देखा।
आगोश लॉबी में बर्तन और दूसरी क्रॉकरी हाथ में उठा- उठा कर दीवार पर फ़ेंक रहा था और चिल्लाता जा रहा था। उसकी आंखें क्रोध से लाल थीं। सारे में कांच और बर्तनों के दूसरे टुकड़े फैले बिखरे पड़े थे। वह बहुत खौफ़नाक लग रहा था।
अस्त- व्यस्त सी मम्मी उसे रोकने आईं तो उसने गुस्से में मम्मी पर भी हाथ उठा दिया!
सन्न रह गईं मम्मी!