Taapuon par picnic - 71 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | टापुओं पर पिकनिक - 71

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टापुओं पर पिकनिक - 71

जापान से लौट कर आने के बाद से साजिद और मनप्रीत का एक बड़ा बोझ और भी उतर गया था। वो मधुरिमा के पैसे उसे सकुशल वापस लौटा आए थे।
बोझ तो था ही वो।
कितना मुश्किल होता है आज के ज़माने में किसी की अमानत के तौर पर साठ लाख रुपए को संभाल कर रखना! वो भी ऐसे मित्रों के, जिनकी ज़िन्दगी ख़ुद ही अनिश्चय के भंवर में हिचकोले खा रही हो।
अब अपनी आंखों से मधुरिमा की गृहस्थी को देख आने के बाद उन्हें तसल्ली हो गई थी और मनप्रीत ने ही मधुरिमा को रुपए वापस पकड़ाते हुए समझाया था कि अब ये धन अमानत के तौर पर हमारे पास रखने का कोई औचित्य नहीं है।
हे राम! ये कोई हनीमून था? हनीमून के नाम पर न जाने क्या- क्या!
चलो, विदेश घूम आए। अपने बचपन के दोस्त आगोश की चौसर देख आए जो वो अपने भविष्य के लिए जापान में बिछा रहा था।
अपनी ख़ास सहेली मधुरिमा का बसा - बसाया घर देख आए।
दुनिया के अजूबे कहे जाने वाले एक विलक्षण देश की आपाधापी और तकनीक- प्रियता देख आए। भविष्य में आदमी के कम हो जाने पर रोबोटों के काम संभालने और तकनीकी दुनिया गढ़ने के विज्ञान के इरादे देख आए।
और...घर की चिल्लपों से दूर एक- दूसरे के बदन में घुस कर युवा ज़िन्दगी की छलकती ललक देख आए!
एक ट्रिप में और क्या - क्या होता?
क्या होता है मधुचंद्र?
क्यों होता है हनीमून?
ये मज़ेदार परिपाटी किसने और क्यों शुरू की? कब शुरू की?
वाह! जिसने भी की... क्या खूब की!
शहद सी मिठास में डूबा हुआ आकाश में खिसकता चांद देखने की ख्वाहिश सच में दुनिया का एक अजूबा ही तो है।
इसी से तो पता चलता है कि दुनिया कैसे चलती है। दुनिया में नया इंसान बनने की अनुज्ञाप्राप्त प्रविधि! एक घर के परिपक्व हो जाने के बाद उसमें से दूसरा घर निकलने की समाज- स्वीकृत प्रक्रिया!
ये केवल नवविवाहितों के कोरे बदन का एकांतिक अंग- भंग ही तो नहीं है।
जापान से लौट कर साजिद अपने काम में रम गया। मनप्रीत भी घर में व्यस्त हो गई।
लेकिन आज एक बात ग़ज़ब हुई।
अचानक बैठे- बैठे मनप्रीत को न जाने क्या सूझा कि वो किसी से बिना कुछ कहे, सीधी अपनी गाड़ी उठा कर दोपहर में मधुरिमा की मम्मी के घर पहुंच गई।
तेज़ी से गाड़ी चलाती मनप्रीत आज ये ठान कर ही घर से निकली थी कि अभी जाकर मधुरिमा की मम्मी को सब कुछ सच - सच बता देगी। बहुत हुआ। बेचारे मधुरिमा के मां - बाप जाने तो सही कि समय ने उनके जीवन में क्या गुल खिलाया है?
मनप्रीत सोचती हुई निकली कि - मधुरिमा की शादी किन नाटकीय परिस्थितियों में हुई और कैसे हम सबने आपसे सारी बात को छिपाकर रखा... सब जाकर उन्हें बता दे।
मनप्रीत ने मधुरिमा के घर पहुंच कर देखा कि संयोग से मधुरिमा के पापा भी आज घर ही में थे। वे भी आ बैठे। बिटिया के हालचाल जानने की उत्कंठा तो उन्हें भी थी ही।
- कैसा रहा तुम्हारा जापान ट्रिप? पापा ने पूछा।
जवाब में मनप्रीत कुछ मुस्कुराते हुए अपना बैग खोलने लगी तो मम्मी बोल पड़ीं- क्या ले आई अपने आंटी- अंकल के लिए?
- सबसे पहले ये देखिए... कह कर मनप्रीत ने एक बड़ा सा टैबलेट निकाला और उसमें वो फ़ोटो निकाल कर मम्मी की ओर बढ़ाया जिसमें मधुरिमा और तेन अपनी बिटिया तनिष्मा को लिए खड़े थे..
धरती घूमने लगी। ऐसा लगा मानो छत का पंखा कोई झंझावात उगल रहा हो... मम्मी एक ओर को निढाल होने लगीं और हड़बड़ा कर मधुरिमा के पापा ने उन्हें संभाला। उनके एक हाथ में टैबलेट था और दूसरे से वो पत्नी के कंधे को सहारा दिए हुए थे जो अब लगभग उनके कंधे से लग कर निश्चेष्ट सी हो गई थीं।
मनप्रीत किसी ऐसे जज की तरह स्थिर और संयत बैठी हुई थी जो कोई अटपटा फ़ैसला सुना कर अपने मुवक्किल- वकीलों को स्तब्ध कर देता है।
ये तो होना ही था। आंटी- अंकल को एक बार तो झटका लगना ही था।
कुछ देर बाद अपनी लाल आंखों को आंचल से पौंछती हुई मधुरिमा की मम्मी एक- एक बात कुरेद- कुरेद कर मनप्रीत से इस तरह पूछ रही थीं मानो मनप्रीत उनके जीवन के सारे सत्य को समेटे बैठी हुई कोई मुर्गी है जिसे चीर कर वो एक साथ सारी जानकारी पा कर ही रहेंगी।
उनके साथ अन्याय भी तो ख़ूब हुआ...उस दिन चंद कदम के फासले पर बैठी हुई वो लूडो खेलती रहीं और उनकी बेटी की मांग भरके वो परदेसी उसे अपने साथ उड़ा ले गया!
मधुरिमा के पापा भी सब जानने के बाद भीतर से आहत और हैरान थे पर किसी तरह अपने को ज़ब्त किए चुपचाप बैठे हुए थे कि कहीं उनके तेवर से पत्नी की तबीयत और न बिगड़ जाए।
कुछ ख़्याल मनप्रीत का भी था। उन्हें इस बात की हैरानी थी कि उनकी बिटिया ने जीवन के इतने बड़े -बड़े फ़ैसले अकेले अपनेआप ले लिए और उन्हें इतने दिनों तक इस कुशलता से छिपाए रखा? कभी भनक तक न लगने दी।
उनके सामने ये राज़ भी खुला कि उनकी बेटी को इतनी बड़ी रकम उसके होने वाले पति तेन से ही मिली, किसी यूनिवर्सिटी में प्रवेश होने और वजीफा मिलने की सारी बातें मनगढ़ंत ही थीं। उन्होंने दांतों तले अंगुली दबा ली। अचंभित रह गए बच्चों के दिमाग़ की शातिर प्लानिंग पर।
लेकिन जो हुआ, अच्छा हुआ। मनप्रीत के दिल से जैसे कोई बड़ा भारी बोझ उतर गया।
वह घर लौटी तो अपने आप को बेहद हल्का और ज़िम्मेदार महसूस कर रही थी।
उस दिन पहली बार रात को मनप्रीत ने साजिद को रोका।
- क्या हुआ? साजिद कुछ चिंतित हुआ।
पर मनप्रीत ने उससे लिपट कर पहले उसे आज दोपहर की सारी घटना के बाबत बताया कि किस तरह वो जाकर मधुरिमा के पापा और मम्मी को उसकी सच्चाई बता आई है।
साजिद ने काफ़ी संजीदा होकर उसकी सारी बात सुनी फ़िर धीरे से फुसफुसाया- अच्छा किया!
लगभग दो सप्ताह बाद मधुरिमा के घरवालों ने अपने घर के बाहर एक विशाल शामियाना लगवाया और शहर- भर में फैले अपने सारे रिश्तेदारों, मित्रों, पड़ोसियों और परिचितों को शानदार दावत दी। इस अवसर पर बाहर से भी उनके परिजन आए।
बाकायदा कार्ड छपवा कर सबको मधुरिमा के विवाह का निमंत्रण बांटा गया। सबको बताया गया कि विवाह की रस्म जापान में संपन्न हुई है और रिसेप्शन यहां किया जा रहा है।
हैरान होकर पूछताछ करने वाले परिजनों को समझाया गया कि मधुरिमा का विवाह वहीं जापान में उसके साथ पढ़ने वाले एक युवक से हुआ है। इतना समय नहीं था कि लड़का और लड़की विवाह करने भारत आ सकें क्योंकि कोर्स पूरा होते ही दोनों की नियुक्ति कॉलेज के प्लेसमेंट ड्राइव से ही होनी थी, ऐसे में विवाहित होने पर दोनों की नौकरी एक ही स्थान पर सुनिश्चित करने के लिए जल्दबाजी में ऐसा किया गया।
अन्तिम समय तक ये मिथ्या बात भी फैलाए रखी गई कि रिसेप्शन पर लड़का- लड़की भी आयेंगे।
मधुरिमा के पापा का कहना था कि जब ज़माना हमें धोखा दे सकता है तो क्या हम अपनी इज्ज़त बनाए रखने के लिए कुछ नहीं कर सकते?
लो, जिस मधुरिमा के विवाह को कभी उसके माता- पिता वहां मौजूद होते हुए भी नहीं देख सके थे उसी ने अपनी शादी का ये भव्य रिसेप्शन वीडियो पर जापान में अपने पति तेन और बेटी तनिष्मा के साथ बैठ कर देखा।
आगोश,साजिद, सिद्धांत, मनन और मनप्रीत ने इस दावत के आयोजन में मधुरिमा के पापा और मम्मी की न केवल ख़ूब बढ़- चढ़ कर बहुत मदद ही की बल्कि इसमें ज़बरदस्त रौनक भी लगाई।
मधुरिमा के मम्मी- पापा के सब गिले- शिकवे दूर हो गए। उसके भाई और भाई के दोस्तों के चेहरे भी इस सारी रहस्यमयी कहानी के सुखद पटाक्षेप से खिल उठे।
लेकिन रिसेप्शन पार्टी के बाद देर रात जब आगोश अपने घर पहुंचा तो ग़ज़ब हो गया।