Taapuon par picnic - 67 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | टापुओं पर पिकनिक - 67

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टापुओं पर पिकनिक - 67

उस दिन मनप्रीत और मधुरिमा लगभग सवा घंटे तक फ़ोन पर बात करती रहीं। पता ही नहीं चला कि इतना वक्त कैसे निकल गया।
बातें ही जो इतनी थीं बताने को।
ओह, समय भी कैसे बदल जाता है। देखते- देखते उम्र फासले तय करती चली जाती है और वो सब होता चला जाता है जो किसी ने कभी सोचा तक न था।
मधुरिमा को ये जानकर बहुत मीठा सा अचंभा हुआ कि उसकी सहेली मनप्रीत अब अपना धर्म परिवर्तन कर के आयशा बन गई।
ये मीठा सा अचंभा क्या होता है?
मीठा अचंभा वो होता है जिसके लिए दिल कहता है कि ये एक न एक दिन ज़रूर होगा। ... और फिर एक दिन हो जाता है।
... अरे, तो फ़िर ये अचंभा कैसे रहा? जब मन कहता है कि ये एक दिन होने ही वाला है तो इसमें आश्चर्य की बात ही क्या?
आश्चर्य की बात ये है कि मधुरिमा की सहेली मनप्रीत शुरू से कहती थी कि देखना एक दिन साजिद का धरम - करम सब बदल कर उसे पंजाबी मुंडा बना दूंगी। मधुरिमा को बड़बोली मनप्रीत की बात पर यकीन भी हो जाता था क्योंकि उसकी ये सहेली थी ही इतनी दबंग। और साजिद भी तो अपनी उमंगें हाथ में लिए उसके पीछे दौड़ता ही रहता था। दोनों अक्सर साथ देखे जाते।
फ़िर अब क्या हो गया? ख़ुद मनप्रीत बदल कर आयशा कैसे बन गई?
कुछ भी हो झुकना तो लड़की को ही पड़ता है अब देखो तो शादी होते ही मनप्रीत आयशा बन कर साजिद की सेज सजाने चली आई।
पर मनप्रीत बहुत ख़ुश थी इस शादी से।
मधुरिमा को शादी के सब हालचाल सुनाते समय मनप्रीत उससे ये भी कहना न भूली कि देख, अगर हो सका तो हनीमून मनाने तेरे पास जापान ही आयेंगे।
मधुरिमा की आंखों में ख़ुशी के आंसू आ गए।
धीरे से ये भी पूछ ही बैठी कि... आर्यन आया था क्या शादी में?
- अरे ना रे, बातें तो इतनी बड़ी- बड़ी बना गया था कि शादी में ज़रूर आऊंगा चाहे कहीं भी रहूं, पर अब इतना बिज़ी हो गया कि फ़ोन भी शादी के अगले दिन किया, बोला- सॉरी यार, निकलना हो ही नहीं पाया।
मनप्रीत ने मधुरिमा को ये खबर भी दी कि अगले रविवार को नए दूल्हा- दुल्हन साजिद और मनप्रीत को मधुरिमा के पापा- मम्मी ने लंच पर बुलाया है।
सुन कर मधुरिमा न जाने कहां खो गई! उसका जी न जाने कैसा- कैसा हो गया। उसे अपने घर की बेसाख्ता याद आ गई।
मनप्रीत को आभास हो गया कि मैडम कुछ गुमसुम सी हो गई हैं, तो उसका मूड ठीक करने के लिए फ़ोन पर ही डींगें हांकनी शुरू कर दीं। मधुरिमा से बोली- पता है सिद्धांत तो कह रहा था कि हेमा मालिनी, शर्मिला टैगोर और करीना कपूर सब की सब शादी के बाद मुस्लिम ही बन गई थीं तो मैंने सोचा, यदि ऐसा है तो मैं ही उस बेचारे साजिद को पंजाबी क्यों बनाऊं, मैं भी मुस्लिम ही हो जाऊं!...वो मनन तो मुझे शादी के बाद से करीना ही बुलाता है।
मधुरिमा उसकी बातें सुन- सुन कर मुस्कुराती रही, फ़िर बोली- सिद्धांत ये बोला, मनन वो बोला, ये सब छोड़ न। तू तो ये बता साजिद क्या बोला?
- धत, वो क्या बोलेगा? मनप्रीत ने कहा।
- अच्छा, तो हाथों में मेहंदी लगते ही मैडम ने बेचारे साजिद की बोलती भी बंद कर दी?
मनप्रीत शरारत से बोली - मैंने तो उसे साफ़- साफ़ कह दिया कि अब बातें बंद, केवल काम पर ध्यान दो।
दोनों हंसने लगीं।
मधुरिमा बोली- चल अच्छा है, फ़िर तो तू जल्दी ही तनिष्मा को भाई- बहन देगी।
- सुन सुन.. तुझे पता है साजिद का सबसे छोटा भाई अभी कुल छह साल का है...
- सच? हाय कहीं तेरी सास जी के साथ तेरा कॉम्पिटिशन न शुरू हो जाए! साजिद से कहना संभल कर चले। मधुरिमा ने कहा।
- वो तो कहता है, मुझे बेकरी के साथ- साथ अब्बू का सब काम संभालना है.. मनप्रीत बोल पड़ी। अब्बू तो उसकी बहुत तारीफ़ करते हैं, कहते हैं कि ये लड़का तो बहुत मेहनती है, मुझसे भी आगे जाएगा।
अभी बातें और न जाने कितनी देर तक चलती रहतीं पर तभी पीछे से तनिष्मा अपनी मम्मी को पुकारती हुई चली आई।
- चल रखती हूं... कहते- कहते भी मधुरिमा ने मनप्रीत को बिटिया की आवाज़ भी फ़ोन पर सुनवा ही दी। मनप्रीत ने चहक कर उसे किस किया, फ़िर उसे "बाय" कह कर फ़ोन रख कर भीतर वाले कमरे में चली आई।
आगोश भी साजिद और मनप्रीत की शादी के बाद वापस जापान चला गया था। शादी में खूब धूमधाम रही। सब दोस्त लोग काम में जुटे ही रहे।
अब आगोश काफ़ी व्यस्त हो गया था। उसका दिमाग़ आगे से आगे किसी न किसी प्लान में उलझा ही रहता था। उन लोगों ने दुबई से इंडिया का एक टूर प्लान किया था जिसे वो विशेष तैयारी के साथ एक्सक्लूसिव बनाना चाहते थे।
आगोश का ख़्याल था कि यदि उनका ये ट्रिप लोकप्रिय और अच्छा रहता है तो भविष्य में इसके एक रेगुलर फीचर में बदल जाने की उम्मीद हो सकती थी। इस ट्रिप में संभावनाएं भी ज़बरदस्त थीं।
इसका कारण ये था कि भारत से बहुत से लोग दुबई,ओमान, मस्कट, दोहा, कुवैत आदि खाड़ी देशों में काम करने के लिए जाते रहते थे। ज़्यादातर ये लोग कुछ ही समय के लिए जाते थे और ऐसी इच्छा रखते थे कि वो कुछ वर्ष वहां काम करने के बाद भारत वापस लौट आयेंगे क्योंकि इन देशों में भारतीयों को काम मिलने की संभावना बहुत बनी रहती थी। पैसा भी काफ़ी मात्रा में मिलता था तो ये लोग चाहते थे कि कुछ समय मन लगा कर वहां जम कर काम करें और फिर बड़ी रकम अपनी अंटी में लेकर स्वदेश लौट आएं और यहां आराम से अपना कारोबार जमाएं।
ये लोग इन देशों में हमेशा के लिए बस जाने का इरादा नहीं रखते थे।
खाड़ी देशों में जीवनयापन काफ़ी नीरस भी था और खर्चीला भी। इसलिए इंडिया से जाने वाले लोग प्रायः परिवार के साथ न जाकर अकेले ही जाया करते थे। अधिकांश युवक तो अविवाहित रहते हुए वहां से ख़ूब पैसा बटोर कर लाते और फिर भारत लौट कर शान से घर बसाते। जो विवाहित होते थे वो भी अपने परिवार को इंडिया में ही छोड़ जाना पसंद करते थे।
तेन और आगोश की कंपनी ने भारत और खाड़ी देशों के बीच परस्पर भ्रमण का ये कार्यक्रम काफ़ी शोध और जानकारी के बाद तैयार किया था।
इसी कार्यक्रम ने इन दिनों आगोश को उलझा रखा था। इस प्रोग्राम में लगभग अस्सी सीटें रखी गई थीं। भारत से वहां जाने और आने वालों के लिए पूरी व्यवस्था संभालने के लिए आगोश ने बहुत सोच समझ कर अपनी कंपनी में कुछ और भर्तियां भी की थीं।
इस टूर से एक साथ तीन - चार मकसद सधते थे।
कुछ ऐसे लोग जो भविष्य में इन देशों में जाने का सपना रखते थे, एक बार इन्हें देख आते थे।
वहां रह कर दिन रात पैसा कमाने वालों के लिए एक बार अपने परिवारों को इन देशों की तड़क- भड़क दिखला देने का अच्छा अवसर रहता था।
वहां के सख्त अनुशासन से आजिज़ आए लोग भारत को भी ललचाई नज़रों से देखते थे।
साथ ही साथ अंतरराष्ट्रीय तस्करों की दिलचस्पी भी इन देशों में बनी ही रहती थी।
सोना और अन्य महंगे माल का भारत भी एक अच्छा और बड़ा बाज़ार था। इंडिया और इन देशों के बीच घूमने- फिरने के लिए निकलने वाले लोगों के लिए तो ये यायावरी ऐसी थी कि आम के आम, और गुठलियों के दाम!
ये दो विपरीत सोच रखने वाली संस्कृतियों के बीच एक ऐसा सांस्कृतिक पुल भी था जिसका अपना अलग ही आकर्षण था।