Bepanaah ishq in Hindi Love Stories by दिलीप कुमार books and stories PDF | बेपनाह इश्क़

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बेपनाह इश्क़


इलाहाबाद शहर ही नही यह एक जीवन शैली है इसे एक और नाम से जाना जाता है | जिसका प्राचीन नाम "प्रयाग" है ।
पौराणिक तत्त्वों के आधार पर यहाँ गंगा, जमुना और सरस्वती का संगम माना जाता है | अतः यह त्रिवेणी संगम कहलाता है | प्रत्येक बारह मास और छह मास में यहाँ कुंभ और अर्द्धकुंभ का आयोजन होता है | जिसमें दुनियाभर भर से करोड़ो की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है | पतितपावनी गंगा जमुना और सरस्वती के संगम में आस्था की डुबकी लगाती है | पर मुख्य रूप से आप यहाँ गंगा जमुना का संगम देख सकते है |

अगर आप एक बार यहाँ आ जाएं तो स्वयं ही एक सुंदर सी अनुभूति का आभास करने लगेंगे | शहर की बनावट, रहन-सहन, खानपान यहाँ की जीवन धारा अपने आप में अनूठी है | पत्थर गिरिजा चर्च से लेकर लेटे हनुमान जी का मंदिर तक,अकबर के किले से लेकर शहजादे खुसरो के बाग तक, अरैल घाट से लेकर बड़ी अटाला मस्जिद तक,पुराने यमुना पुल लेकर नए केबिल वाले यमुना पुल तक,कही भी जाए यहाँ की हर जगह आपको रोमांच से भर देगी | हर सड़क, हर एक गली, शहर का कोना-कोना गंगा-जमुनी तहजीब से सराबोर है | और इसी शहर के एक छोटे से गाँव का रहने वाला गबरू जवान अंकित जिसकी उम्र महज सत्रह साल थी जिसे एक सुंदर सी लड़की से प्यार हो जाता है |

साल २००५..

अंकित पहली बार अपने फुफेरे भाई राजेश और पूजा (राजेश की पत्नी) के साथ कमाने की चाह में दूसरे शहर धनबाद कि ओर प्रस्थान करता है जहाँ राजेश एक सीए की पोस्ट पर कार्यरत था |
जहाँ राजेश अपनी पत्नी पूजा के साथ आदित्यपुर कॉलोनी में खुद के फ़ैलेट में रहता था |

बनारस, गंगा नदी के तट पर बसा एक विश्वप्रसिद्ध शहर हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा तीर्थस्थल सैकड़ों वर्षों से ये शहर अपनी अलग ही पहचान बनाये हुए है | देवों के देव महादेव का शहर बनारस जो आस्था का सबसे बड़ा सूचक है | वो शहर ही नही वो साक्षात भगवान महादेव की नगरी है | जिसे काशी के नाम से भी जाना जाता है | जिसे "दीपों का शहर, ज्ञान नगरी आदि विशेषणों से भी संबोधित किया जाता है |
यह बहुत बड़ा पूज्यनीय स्थल है | हिन्दू धर्म के साथ-साथ बौद्ध और जैन धर्म का पवित्र स्थल है जिसकी खूबसूरती शाम होते ही गंगा घाट पर गंगा आरती के साथ देखते ही बनती है | जैसा की कहा जाता है कि भगवान शिव जी काशी के परमात्मा हैं, इसलिए इस वजह से अन्य ग्रह भी अपनी मर्ज़ी से यहाँ पर कुछ नहीं कर सकते थे जब तक कि शिव जी का आदेश न हो | जहाँ संध्या काल के गंगा आरती के दौरान दशाश्वमेध घाट जीवंत जान पड़ता है |
भगवा रंग के परिधान धारण किए गए पंडितों द्वारा प्रस्तुति और गंगा आरती एक विस्तृत समारोह के रूप में आयोजन होता है | नदी किनारे जलती दीपक की रौशनी और चंदन की महक घाट को ढक लेती है | दिन-रात पूजा अर्चना करने वाले श्रद्धालुओं से भरा रहने वाला ये घाट अपने आप में आलौकिक है |

यही राजेश की पत्नी पूजा का मायका है | राजेश पूजा को उसके मायके छोड़ने अंकित को अपने साथ लेकर जाता है | वही पहली बार अंकित की मुलाकात संजना से होती है जो पूजा की बहन है | और पहली ही मुलाकात में अंकित उसे देखकर अपना दिल दे बैठता है | संजना के प्रति अंकित के मन में प्रेम और श्रध्दा की एक भावुक प्रतिक्रिया वही से प्रारंभ होती है |

उस समय संजना इंटरमीडिएट की पढ़ाई कर रही थी घर में उसका छोटा भाई अमित जो दसवीं कक्षा में पढ़ता था | पिता दीनानाथ गुप्ता एक अच्छे कारखाने में ऊँचे ओहदे पर थे | जो एक बेहद साफ संजीदा दिल और मिलनसार व्यक्तित्व वाले इन्सान थे | माँ सरला देवी जो एक होनहार पत्नी के साथ-साथ एक अच्छी गृहणी भी थी |

वर्षा ऋतु का महीना अगस्त, सुबह का समय ठंडी-ठंडी हवाओं के साथ रिमझिम फुहारों की छोटी-छोटी बूंदे टर्र-टर्र करते हुए मेढकों का कोलाहल वातावरण की सुंदरता को दोगुना कर रहा था | भीगी हुई मिट्टी से निकलने वाली सोंधी-सोंधी महक हवाओं के साथ मिलकर वातावरण में घुलती प्राकृति की सबसे मनमोहक इत्र बिखेर रही थी |
सामने पेड़ों की डालों पर डाले गए झूलों पर से युवतियों के गीतों की सुरीली तान की उमंग बाहर खड़े रैलिंग के पास कंधे पर टॉवल डाले अंकित के मन को गुदगुदे उत्साह का अनुभव करा रही थी |
तभी अंकित स्नान के लिये बाथरूम की तरफ बढ़ा कि अचानक सामने से संजना अपने बालों को सुखाते हुए अंकित के करीब से गुजर रही थी | गुलाब की पंखुड़ियों से गुलाबी उसके होंठ,बड़ी-बड़ी नुकीली पलकें, कजरारी आँखें, बिखरी खुली रेशम सी जुल्फें सुराई के सामान लंबी गर्दन कोमल बदन परियों सी मुस्कान किसी अप्सरा की तरह जान पड़ती थी |

अंकित उसे मदहोश भरी नजरों से अल्हड़ की भांति उसे निहार रहा था | निहारते-निहारते अंकित कल्पनाओं की दुनिया में अपने और संजना के प्यार के ताने-बाने बुन रहा था | कि अचानक संजना उसके करीब पहुँचती है और उसकी टॉवल को उठा कर उसके हाथ में देती हैं | जोकि अंकित संजना के ख्यालों में इतना गुम हो चुका था, कि उसे अपनी उस गिरी हुई टॉवल का जरा भी ख्याल नही रहता |

संजना के इस बर्ताव को देख वो बेहद खुश हो जाता है | संजना का उसके यूँ करीब आना अंकित के दिल में उसके प्रति प्रेम को और गाढ़ा कर देता है | और फिर अंकित गुदगुदी मुस्कान दमकते चेहरे के साथ जल्दी से स्नान करने के लिए बाथरूम की ओर बढ़ जाता है | अंकित संजना का ख्याल मन में भरकर फटाफट स्नान कर जैसे ही बरामदे में खड़ा होता है | वैसे ही संजना अपने कॉलेज के लिये तैयार होकर उससे बाय बोलकर मुस्कुराती हुई वहाँ चली जाती है |

उसका मुस्कुराना और बाय बोलना अंकित के दिल में एक सुखद अनुभूति को जन्म देता है | अंकित का दिल अब अंकित के बस में नही रहता है, उसके दिल ने संजना को अपने मन ही मन अपने भविष्य का हमसफ़र मान लिया उसके साथ जीने मरने की कल्पना भी करने लगा वो संजना नाम के सपनों में खोने लगा था | परन्तु एक ही झटके में उसकी कल्पना चूर-चूर हो जाती है | जब उसे अपनी माली स्थिति का ज्ञात होता है तो उसकी सारी कल्पनाएं और सारे सपने धरे के धरे रह जाते हुए नजर आने लगते है | पर कहते है न दिल पर किसका जोर चला है आजतक जो उसका चलता | और इश्क़ में इंसान प्रेम के नए-नए क़सीदे पड़ने लगता है वैसा ही अंकित साथ भी हुआ |

अंकित संजना से प्यार तो कर बैठा परन्तु उसमे वो हिम्मत नही की अपने दिल के अरमानों को किसी के सामने बयां कर सके | उसने अपने दिल में संजना के नाम की मूरत तो बना ली पर वो अपनी इन परिस्थितियों के आड़े मजबूर होने लगा | क्योंकि घर की माली स्तिथि ठीक नही थी जिसे सुधारने के वास्ते वो आज राजेश के साथ कमाने की चाह में घर से निकला था | मगर वो कुदरत के इस खेल से कहा वाकिफ़ उसे क्या पता कि इन माली परिस्तिथियों के दरमियान उसे किसी से बेपनाह मोहब्बत हो जाएगी | पर कर भी क्या सकता मोहब्बत कोई समझ बूझ कर थोड़ी न की जाती है, ये तो वो बीज है, जो खुद ब खुद एक दूसरे के दिल में पनप जाता है मगर सबसे बड़ी बात ये कि मोहब्बत अभी तक एक तरफा ही थी |

दोपहर के बारह बज रहे थे संजना अभी कॉलेज से आई भी नही कि इधर राजेश ने बनारस से धनबाद जाने की दो टिकटें बुक करा ली |
राजेश और उसकी पत्नी पूजा को अंकित से काफी लगाव था जिसके कारण राजेश उसकी माली परिस्थितियों को देख कर उसे अपने साथ लेकर आया था | जिससे कुछ दिन वो वहाँ घूम भी लेगा जब उसका वहाँ मन लग जायेगा तो उसे अच्छी सी नोकरी पर रखवा देगा |

पूजा का काफी समय के बाद अपने मम्मी पापा के पास आना हुआ था इसलिए वो अब कुछ दिन अपने मम्मी पापा के साथ रहने वाली थी |
अंकित को राजेश के संग बनारस आय दो दिन बीत चुके थे लेकिन वो दो दिन शायद दो घंटे की तरह गुजर गए और उसे पता भी न चला |
अब वो समय भी आ गया जब राजेश और अंकित को वहाँ से धनबाद के लिये निकलना था |
अंकित का चेहरा अब मुरझाये हुये फुलों की तरह सूखा जा रहा था ये सोचकर कि कम से कम जाते समय एक बार भर नजर देख तो लेता संजना को पर ये मुम्किन कहा था | संजना अभी तक कॉलेज आई ही कहा थी |
उसे संजना से दूरी का एहसास अभी से सताने लगा वो ये भी भली भाँति समझता था कि संजना उसकी किस्मत में नही पर ये दिल कहा सुनता फिर भी वो उससे दिल लगाने की जुर्रत कर बैठा |
अपनी दो दिन की यादों में संजना को संजोए अपने मुरझाये हुये चेहरे के साथ अंकित राजेश के साथ रेलवे स्टेशन पहुँच चुका था |

रेलवे स्टेशन पर चहल कदमी करते लोगों की भीड़, सभी दिशाओं आए स्त्री-पुरूष, नवयुवक-नवयुवतियां रंग बिरंगे पोशाक में अलग-अलग प्रांत की भाषाएं बोलते, कुलियों वालों की टुकड़ी, खाने पीने की वस्तुएं बेचने वालों की रेडी,या फेरीवाले,जो जोर-जोर से चिल्लाकर इधर से उधर आते जाते एक दूसरे से होड़ करते हुए अपनी वस्तुएं बेच रहे थे, थोड़ी-थोड़ी देर पर रेलगाड़ियां आती जाती तो लोगों की भीड़ उस दिशा की ओर बढ़ने लगती | धक्का मुक्की के साथ कुछ लोग चढ़ते तो कुछ लोग उसमें से बाहर उतरते नजर आते |
ये सब अंकित के आकर्षण का केंद्र बना था | जिसने पहली बार रेलवे स्टेशन पर कदम रखा था | थोड़ी-थोड़ी देर पर रेलगाड़ियों को आता जाता देख अंकित मायूस हो जा रहा था उसकी हृदय गति बढ़ती जा रही थी | आँखों मे नमी अपनी दस्तख देने लगती जिन्हें वो राजेश से पलकें चुराते साफ कर लिया करता | क्योंकि वो भी किसी न किसी रेलगाड़ी में बैठकर संजना से हमेशा-हमेशा की लिए दूर जाने वाला था | जो शायद कभी न मिलने को |
उसके कदम आगे की ओर नही बढ़ रहे थे,दिल तो बस संजना के दीदार को बैचेन था पर ये मुम्किन कहाँ | वो इस दर्द को अपने दिल में समेटे राजेश के साथ अपने गंतव्य के लिए बढ़ चला था आखिरकार वो दोनों खमोशी के साथ एक बेंच पर आकर बैठ गए औऱ अपनी गाड़ी के आने की प्रतीक्षा करने लगे |

अंकित चेहरे के भाव और खमोशी को देख, राजेश के मन मे थोड़े सवालियां भाव उमड़ रहे थे, क्योंकि जब वो अपने घर से राजेश के साथ चला तो वो बेहद खुश था पर अभी उसके चेहरे पर शिकन ये राजेश को समझ नही आई, लेकिन राजेश ने ये सोच कर भी उससे पूछने की जुर्रत नही की कि शायद हो सके पहली बार वो अपना घर वार छोड़ परदेश कमाने के लिए जा रहा था | हो न हो उसे अपने घर की याद आ रही हो |
रेलगाड़ी अब धीरे-धीरे रेलवे स्टेशन की तरफ बढ़ती आ रही थी |
राजेश अंकित के साथ बेंच से उठ खड़ा हुआ और रेलगाड़ी के रुकने की प्रतीक्षा करने लगा | जिस डिब्बे में उसकी सीट थी इत्तफ़ाकन वो डिब्बा उसके सामने ही आकर रुका ओर झट से वो अंकित को अपने साथ लेकर उस डिब्बे में दाखिल हुआ और अपनी जेब से टिकट निकालकर अपनी सीट का मुआयना किया और सीट मिलते ही उस पर जाकर बैठ गया | सीट खिड़की के किनारे वाली थी अमूमन राजेश को खिड़की के पास में बैठना अच्छा लगता परन्तु आज उस सीट पा अंकित बैठा था |
थोड़ी देर में रेलगाड़ी अपने हॉर्न की आवाज के साथ बनारस स्टेशन को पीछे छोड़ते अपने गंतव्य के लिए रवाना हो गई |
अंकित राजेश से नजरें चुराए खिड़की के बाहर के उस नजारे को देख रहा था जो उसके विपरीत दिशा में भागते फेरीवाले,रेड़ीवाले,कुली वहाँ मौजूदा कर्मचारी इत्यादि | और साथ-साथ वो शहर बनारस जिसने अंकित के हृदय में संजना नाम के प्यार की अनुभूति को जन्म दिया था |

अपनी पलकों से उन आँसुयों को पोछ रहा था जो अभी से संजना की याद में उसकी आँखों से छलक रहे थे | और वो उसके ख्यालो में इतना मशगूल हो गया कि कब धनबाद आ गया उसे पता ही न चला |
ट्रेन से उतर कर राजेश सीधे ऑटो स्टैंड में गया जहाँ से उसने एक ऑटो बुक किया और अंकित लेकर सीधे अपने कमरे पर पहुँच गया |
कमरे पर पहुँच कर दोनों बारी-बारी से फ्रेश हुए फ्रेश होने के बाद राजेश ने अपने और अंकित के लिए कुछ खाने का प्रबंध किया | ट्रेन की हरासमेंट थी तो खाने के बाद दोनों को नींद आ गई |

शाम हो चुकी थी जब राजेश की आँख खुली पर उसे अकिंत नजर नही आया वो उठा और वेशिंग के पास पहुँचा और अपने मुँह पर पानी की हल्की-हल्की छीटे ली और टॉवल से मुँह पोछ कर वो सीधे छत पर चल दिया जहाँ रेलिंग से अपने आप को टिकाए अंकित गुमसुम सी मुद्रा में खड़ा था |
राजेश उसके पास पहुँचा,और अंकित से,-"क्या बात है अंकित तुम इतने गुमसुम से उदास क्यों खड़े हो यहाँ पर ?

कुछ नही भैया बस यूँही कोई खास कारण नही है सोने की वजह से चेहरे पर उदासी के भाव है अंकित ने बड़ी सफाई के साथ राजेश की बातों का जवाब दिया | आगे कुछ पूछने की जरूरत न समझते हुए राजेश नीचे चला जाता है

अगले दिन कुछ काम के सिलसिले में राजेश अंकित को घर पर छोड़ घर से बाहर गया हुआ था |
लौटा तो उसने अंकित को एक बार फिर गुमसुम सा पाया पर आज उसने अंकित से पूछ ही लिया,'आख़िर वो क्या बजह है जो तुम यूँ गुमसुम से रहते हो अंकित ?

'अंकित राजेश से,- कुछ नही हुआ भैया, मैं ठीक हूँ थोड़ा हिचकिचाते हुए |
लेकिन राजेश को उसकी बातों से ऐसा लग रहा था जैसे वो राजेश से कुछ छुपा रहा हो राजेश ने बात को घुमाते हुए,-"अच्छा संजना कैसी लगती है तुम्हें,?

संजना का नाम सुनकर अंकित के चेहरे पर मुस्कान तैर गई उसने अपनी इस मुस्कान के साथ ही राजेश की आँखों में आँखे डालते हुए हा वो अच्छी लगती है |
उसकी मुस्कान को देख राजेश को अंदाजा हो चुका था, कि संजना का नाम सुनते उसके चेहरे पर मुस्कान का आ जाना, ये बेवजह तो नही, हो न हो कही प्यार-व्यार का चक्कर तो नही, राजेश अपने मन में सोचने लगता है |
राजेश को मन ही मन पूर्ण विश्वास हो चुका था उसके इस गुमसुदा होने की वजह सिर्फ संजना ही है |

रात के आठ बज चुके थे,अचानक दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी राजेश दरवाजा की ओर बढ़ा और दरवाज़े पर पहुँच कर दरवाजा खोलता है तो राजेश ने देखा कि दरवाजे पर प्रेमा जी हाथ में टिफ़िन लिये खड़ी थी |
पूजा के न रहने पर खाने पीने का पूरा ख्याल प्रेमा जी ही रखती थी | जो पूजा की पड़ोसी थी,और वो पूजा को अपनी बड़ी बेटी के जैसा मानती थी |

पूजा भी उनका उतना ही मान सम्मान करती | प्यार से वो उन्हें आँटी कह कर पुकारा करती |
उनके पति डॉक्टर थे जिनका नाम विजेंदर साह था |और उनकी एक बेटी भी थी जिसका नाम नैना था |

प्रेमा जी अंदर आते ही अंकित को देखकर राजेश से बोली, 'बेटा ये कौन है ?
राजेश अंकित का परिचय प्रेमा जी से कराता है, अंकित अपने दोनों हाथ जोड़ कर प्रेमा जी को प्रणाम करता है | प्रेमा जी अंकित के प्रणाम को स्वीकारते हुए किचन में टिफ़िन रखती है और जाते वक़्त अंकित से बेटा किसी चीज की जरूरत लगे तो बेझिजक चले आना घर पर.... इतना कहकर वो वहाँ से चली जातीं हैं |

धीरे-धीरे यूँही दिन बितते गये,अंकित अब कभी-कभी प्रेमा जी के घर घूम आता था और अब प्रेमा जी की फैमली से उसकी अच्छी जान पहचान भी हो चुकी थी |खासकर इस दरमियाँ नैना से उसकी अच्छी खासी दोस्ती हो गई | नैना के पास जब भी खाली समय होता तो वो अंकित के संग गपशप करती रहती और उसे हमेशा छेड़ती रहती | नैना उसे बार-बार काली कहकर चिढ़ाती रहती थी जो नाम उसे पूजा ने दिया था |

धीरे-धीरे नैना का झुकाव अंकित की तरफ कुछ ज्यादा ही बढ़ रहा था |अब प्रेमा जी को राजेश और अंकित के खाने पीने की फिक्र नही करनी होती,क्योंकि उसकी सारी ज़िम्मेदारी अब नैना ने जो ले ली थी | इसी बहाने उसे अंकित से मिलने का मौका भी मिला जाता | जैसा कि वो चाहती थी |

नैना ने ग्रेजुएशन पूरा कर के आगे की पढ़ाई छोड़ दी थी और बच्चों को घर पर टियूशन कराती टियूशन वो शौख से कराती थी न कि उसे पैसो की जरूरत थी |
माँ बाप की इकलौती होने के नाते उसके पास दौलत की कोई कमी नही थी बस वो अपनी खुशी के लिये बच्चों को टियूशन पढ़ाया करती |

उसकी पढ़ाई छोड़ने की वजह उसके ही कॉलेज का लड़का अमन जो अमीर बाप की बिगड़ी हुई औलाद जो आये दिन उसे छेड़ता रहता नैना की आई साइड थोड़ी कमजोर थी जिसकी वजह से वो मोठे-मोठे काँच का चश्मा पहना करती | इसी वजह से अमन उसे बैटरी-बैटरी कहकर चिढ़ाता नैना अगर उसे कुछ बोलती तो वो उसके साथ बत्तमीजी पर उतर आता | नैना ने उसकी काफी कंप्लेन की परन्तु उसका कोई खास परिणाम नही निकला | पूरा कॉलेज उससे खोफ खाता था क्योंकि वो उस कॉलेज के ट्रस्टी का बिगड़ैल बेटा था जो ड्रग्स के नशे में हमेशा चूर रहता कॉलेज के टीचर भी उसे बोलने की जुर्रत नही करते |

ये बात उसने अपने पेरेंट्स को नही बताई लेकिन जैसे तैसे ग्रेजुएशन पूरा कर लिया और आगे की पढ़ाई छोड़ दी,पेरेंट्स के लाख कहने पर उसने आगे पढ़ने से साफ इंकार कर दिया | इकलौती होने की बजह से पेरंट्स ने उसके ऊपर कोई दवाब नही डाला औऱ उसकी मनमानी में ही उसकी भलाई समझी |

समय अपनी रफ्तार से निकल रहा था लेकिन अंकित के दिल से संजना का ख्याल समय के साथ-साथ बढ़ता ही जा रहा रहा था | वो हर घड़ी अब संजना ख्यालो गुम रहने लगा |

शाम का वक्त था राजेश के चेहरे की चमक कुछ बयां कर रही थी | ये देख अंकित के मन में सवालिया भाव उमड़ने लगे उससे रहा न गया और उसने राजेश से पूछ ही दिया इस चमक की बजह क्या है भैया ?

राजेश ने उत्सुकता से,-अरे तुम्हें नही पता कल सुबह पूजा जो आने वाली है |
इतना सुनते अंकित के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई सच ये तो बहुत खुशी की बात है | क्योंकि पूजा का उससे काफी लगाव था पूजा भी उस पर जान छिड़कती थी | अंकित था भी ऐसा बहुत ही हँसमुख और मिलसार उसका लाडला देवर |

अंकित जानता था अगर उसे कोई संजना से मिला सकता है, तो वो सिर्फ पूजा ही है वैसे अंकित भी पूजा का काफी सम्मान करता था |

अगली सुबह दस बजे पूजा धनबाद रेलवे स्टेशन पर होती है | राजेश अंकित से पूजा को रेलवे स्टेशन से लाने के लिये कह कर अपने ऑफिस चला गया था | क्योंकि इस समय ऑफिस के काम से राजेश को फुर्सत नही थी |

अंकित पूजा की एक्टिवा लेकर स्टेशन की ओर चल देता है, आज उसकी खुशी देखते ही बनती थी | उसकी इस माली परिस्थितियों में अगर कोई उसका और संजना का मिलन करवा सकता है तो पूजा ही थी | आज अंकित खुश तो था लेकिन एक सवाल उसके मन में खटक रहा था वो संजना से प्यार तो करता था पर जो तड़प उसके दिल में संजना के लिए है क्या संजना भी उससे प्यार करती होंगी ?

ये सवाल उसके मन में आज समुंद की लहरों की तरह हिलकोरे मार रहा था |
परन्तु उसके दिल में एक उम्मीद अभी जिंदा थी और वो थी पूजा | मगर वो पूजा से किस तरह से संजना के बारे में बात करेगा वो भी एक सवाल ही था क्योंकि वो पूजा का काफी सम्मान करता था |
हवा के झोंके की तरह अंकित रेलवे स्टेशन पहुँच जाता है सड़क की धूल से उसका चेहरा चमक रहा था, जैसे ही पूजा की नजर अंकित पर पड़ती है पूजा ठहाके मार कर हँसने लगती है |
मज़ाकिया अंदाज में पूजा अरे ये का हाल बना रखा है काली साहिबा प्यार से वो अंकित को काली ही कहकर पुकारती थी।

अंकित को पूजा का यूँ ठहाके मार कर हँसना समझ नही आया और तो वो अपने चेहरे को गाड़ी में लगे साइड मिरर में देखता है देखकर खुद झेंप जाता है | सड़क की धूल से उसका चेहरा चमक जो रहा था फ़ौरन ही वो अपनी जेब से रुमाल निकता है और अपने चेहरे को अच्छे से साफ करता है | और फिर पूजा को लेकर वहाँ से घर के लिए निकल जाता है |
शाम राजेश जब ऑफिस से घर पहुँचता हैं तो पूजा को देख वो बेहद खुश हो जाता है हो भी क्यों न पूरे दो महीने के बाद जो उससे मिल रहा था | उसकी शादी को अभी छे ही महीने तो हुये थे | पूजा और राजेश एक परफेक्ट कपल थे जो एक दूसरे से बहुत प्यार करते और कभी कोई भी सिकवा गिला एक दूसरे प्रति नही रखते | यूँ तो अब तक की जिंदगी में बहुत सी उलझनें आयीं, पर उन्होंने किसी भी परिस्थिति में कभी भी अपने प्यार को आड़े नही आने दिया |
पूजा को आये दो दिन बीत चुके थे उसे कुछ बदला-बदला सा लग रहा था वो बदलाव उसको अपने अंकित के चेहरे पर झलक रहा था जो पूजा से पहले की अपेक्षा थोड़ा कतरा रहा था |
पूजा ने इन सारी बातों को बड़े गौर से नोटिस किया क्योंकि इससे पहले उसने अंकित को इतना गुमसुम कभी नही देखा पूजा जहाँ होती अंकित उसके पास उससे हँसी ठिठौली करता ही रहता मगर आज वो उससे दूर-दूर भाग रहा था ये सोच कर पूजा की परेशानी बढ़ने लगी |

अंकित संजना के बारे में सोच-सोच कर उसके ख्यालों की दुनिया में खोया रहता किस तरह वो अपने के दिल के इस अरमान को पूजा के सामने पेश करे, यही सब उसके मन में चलता रहता | इसी उधेड़बुन बुन में वो छत पर चला जाता है और झूले पर जाकर बैठ जाता है |
राजेश ने अपनी छत पर छोटा सा झूला लगवाया था पूजा के लिए, जिस पर बैठकर हर शाम वो नॉवेल पढ़ा करती पूजा को कहानियाँ पढ़ने का काफी शौख था सबसे मजे की बात की उसे हॉरर कहानियाँ पढ़ने का काफी शौक था
पूजा को अंकित का यूँ मायूस रहना अच्छा नही लगा ये देख वो उसके पीछे-पीछे छत पर पहुँच जाती है और पीछे से उसके झूले को रोक अंकित से पूछ ही देती है, " मैं जब से आई हूँ, मैं देख रही हूँ, कि तुम कुछ परेशान लग रहे हो ऐसी क्या बात है ? जो तुम इतने गुमसुम रहने लगे हो |
अंकित चुपचाप सर झुकायें बैठा था पूजा फिर से एक बार बोलो अंकित क्या बात है ? उस पर दुलार दिखाते हुए अंकित ने जैसे ही पूजा से कहना चाह ही था कि अचानक नैना वहाँ पर आ धमकती है | उसे देख अंकित चुप हो जाता है |

पूजा नैना को देख मुस्कराते हुए कैसी हो नैना ?

हँसते हुए नैना ने कहा,मैं ठीक हूँ दी आप कैसी है ?

पूजा नैना से मैं ठीक हूँ, और फिर दोनों आपस में बात करने लगते है काफी लम्बें समय बाद नैना की मुलाकात पूजा से हुई थी |

नैना भी अंकित को मन ही मन पसन्द करती थी | पर वो कह नही पाती,कहे भी तो कैसे अंकित सुनता ही कब था उसकी...
वो तो हमेशा बस संजना के ख्याल में डूबा रहता | लेकिन इस बात से नैना अंजान थी |
पूजा नैना से बात तो कर रही थी, पर नैना पर उसकी बातों का कोई असर नही था | नैना अपनी सुदबुद खो कर अंकित के ख्यालो में थी वो पूजा के सामने बैठी तो जरूर थी लेकिन ध्यान तो बस उस झूले पर था जिस पर अंकित शांत मोन धारण किये बैठा था |
नैना बार-बार अंकित की तरफ देखे जा रही थी लेकिन अंकित ने अपना सर जो नीचे किया फिर उसने अपने सर को ऊपर की तरफ उठाया नही | बातें करते-करते पूजा और नैना नीचे चले आये |
कुछ देर बाद अंकित भी नीचे आ जाता है और वो सीधे राजेश के बेडरूम में जा कर टीवी चालू कर बेड पर लेट जाता है | पूजा किचन में थी अंकित को टीवी पर कार्टून देखना काफी पसंद था जो कार्टून चैनल लगा कर कार्टून देख रहा था | थोड़ी देर बाद राजेश भी ऑफिस से आ जाता है |
इधर पूजा का खाना भी तैयार हो जाता है कुछ ही देर बाद खाने की टेबल पर पूजा ने राजेश और अंकित के लिए खाना लगा दिया साथ में अपना खाना लेकर भी उनके साथ बैठ गई | राजेश और पूजा खाने के दौरान एक दूसरे से बातें कर रहे थे | पर अंकित चुपचाप अपना भोजन कर रहा था ये देख पूजा से रहा न गया, और उसने इशारों में राजेश से जानने की कोशिश की आखिर क्या वजह है जो अंकित इतना मुरझाया-मुरझाया सा रहता है | राजेश पूजा की व्याकुलता देख मुस्कुराने लगता है और मुस्कुराते हुए वो भी इशारे में पूजा से मुझे नही मालूम तुम्हारे देवर के मुरझाए हुए चेहरे का राज |
पूजा के मन में अंकित की मायूसी को लेकर एक युद्ध सा चल रहा था |
पूजा मन में बड़बड़ाते हुये कल पूछ कर ही रहूँगी इस काली के बच्चे से, राजेश पूजा की ओर देख रहा था पूजा के हिलते होंठो को देख मुस्कुराने लगा था |
तुम ठीक हो पूजा वो हँसते हुए बोला, पूजा मुस्कुराते हुए हा जी हम बिलकुल ठीक है आपको कोई शक |
नही बस मैं यूँही पूछ रहा था और फिर राजेश खाना खाने लगता है |

तीनो खाना खाने के बाद अपने-अपने बैडरूम में चले जाते है |
अंकित अपने बिस्तर पर लेट छत की ओर एकटक नज़रों से देख रहा था | आँखों में नींद नही थी मन में संजना का ख्याल लिये वो आज एक बार फिर ग़मगीन हो जाता है,आँखों मे थोड़ी नमी आ जाती है उसे अपनी परिस्थितियों पर घृणा होने लगती वो मन में यही सोच रहा था अगर आज उसकी माली हालत इतनी खराब न होती तो वो अपने प्यार को पाने के लिए उसके परिवार से अपने रिश्ते की बात कर सकता था | और अपनी जिंदगी को कोषता आखिरकार वो नींद के गिरफ्त में समा ही जाता है |

अगली सुबह पूजा उठकर उसके कमरे आती है अंकित को सोया देख उसके सर पर प्यार से हाथ फेरती है | मासूम सा चेहरा क्या वजह होगी जो इतना उदास सा रहता है अंकित उसके सिरहाने बैठें इसी सोच में डूब जाती है | कि अचानक दरवाजे पर किसी की दस्तक होती है जिससे पूजा की तंद्रा टूटती है और वो दरवाजे की तरफ चल देती है दरवाजा खोलते ही दीदी दूध,दूध की डोलची लिये सामने बाला खड़ा था |
उसके हाथ से डोलची लेकर पूजा अंदर आती है । किचन में डोलची रख वो फ्रेश होने चली जाती है |
थोड़ी देर में पूजा चाय लेकर राजेश के कमरे में दाखिल होती है | राजेश की एक आदत थी वो बिना चाय बिस्तर से नही उठता जब तक उसके समक्ष चाय नही आती उसकी नींद नही खुलती |

सुबह के साढ़े सात बज चुके थे अभी तक राजेश बिस्तर पर ही था पूजा चाय रख राजेश को जगाती है राजेश करवट बदल मुँह दूसरी तरफ मोड़ कर फिर सो जाता है |

पूजा राजेश के गालों पर हाथ रख कर,ऑफिस जाने का कोई इरादा नही है क्या ?
राजेश आँखें खोलते हुए पूजा को अपने समीप खींच लेता है पूजा भी अब राजेश के समीप लेट जाती है

"क्या इरादा है,?

राजेश ने पूजा को आलिंगन में लेते हुए, होठों को होठों से सटाते हुए कहा,

"यही इरादा है,|

सुबह-सुबह प्रभुवतय की बेला में आपको रोमांस सूझ रहा है | छोड़िए उठिए,

जनाब दिन चढ़ आया है। राजेश अपनी दोनों बाहें फैलायें उठते ही पूजा को अपनी बाहों कस कर भर लेता है और उसमें डूबने उतरने के लिये बेताब होता है । एक अच्छे तैराक की भाँति समुन्द्र के निश्छल साफ पानी में खुद को जज़्ब कर देना चाहता है | पूजा के मासूम से चेहरे पर खूबसूरती का वो तेज जो भी देखे वो लालाइत हो जाय | पूजा ने प्यारी सी मुस्कुराहट भरते हुए उसे प्यार हटाया |

जनाब ज्यादा रोमांटिक मत होइये चलिये अब जल्दी से चाय पी कर फ्रेश हो जाइये नही तो ऑफिस के लिये लेट हो जायेंगे पूजा ने मद्धिम सी मुस्कान के साथ कहा |
औऱ फिर राजेश अपनी बाहों की गिरफ्त से पूजा को आजाद करता है |
पूजा वहाँ से उठ सीधे किचन की ओर बढ़ जाती है जहाँ से दूसरा चाय कप लेकर वो अंकित के बैडरूम में जाकर उसे जगाती है और उसे चाय देकर फिर वो किचन में वापस चली जाती है |
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इधर नैना अपने घर में, "आठ बजने को थे लेकिन वो अभी तक सोई हुई थी | माँ और पापा की लाडली थी इस वज़ह से उसे कोई कुछ नही कहता वैसे नैना भी अपने घरवालों को कभी बोलने का मौक़ा भी नही देती पर आज न जानें क्यों इतनी लेट तक सोई हुई थी |
अचानक उसकी नींद में बाधा बनकर सुमित उसके पास आकर चिल्लाने लगता है, दीदी उठो, दीदी उठ जाओ सुमित बड़ा ही शैतान लड़का था उम्र आठ साल जो नैना से टियूशन पढ़ता था |

इतने में सारे बच्चे भी वहाँ आ जाते है | जिन्हें नैना टियूशन पढ़ाती थी |
बेमन से अंगड़ाई लेते हुये नैना उठकर सीधे बाथरूम की तरह चली जाती है और उधर से लौटते ही उन सारे बच्चों की छुट्टी कर देती ये बोलकर की आज उसकी तवियत ठीक नही है और सारे बच्चें वहाँ से चले जाते है |

इधर पूजा राजेश का लंच पैक कर रही थी,कि अचानक उसका फ़ोन बजता राजेश को जल्दी से लंच दे उसे बाय बोलकर वो अपने फोन की तरफ दौड़ती है फोन देखते उसकी आँखों की चमक बड़ जाती है,फ़ोन उसके मायके से था |

पूजा ने फोन उठाया उधर से उसकी माँ सरला देवी ने पूजा का हाल चाल लिया..पूजा ने सब ठीक ठाक है कहते हुए आप बताओ माँ कैसी हैं और संजना कैसी है ?

हम सभी ठीक है तम्हारे पापा ने तुम्हारी बहन संजना का रिश्ता ठीक कर दिया है,पास ही के गाँव रामपुर में लड़का सॉफ्टवेयर कंपनी में इंजीनियर है,नाम अभिषेक है,अगले साल में शादी का दिन ठीक हुआ है सरला देवी ने फोन पर पूजा से कहा |
इतने सुनते पूजा की खुशी का ठिकाना न रहा औऱ उसने उत्तेजित होकर माँ से लड़का संजना को पसन्द हैं न ?
'हा, में सरला देवी ने पूजा को जवाब दिया |
सरला देवी ने अपनी बात पूरी करने के बाद फोन काट दिया |

पूजा के मन में संजना के लिए निश्चल प्रेम था,'समुन्द्र के नीले जल की तरह पूजा का दिल बिल्कुल साफ था संजना को लेकर,उसे भी यहीं चिंता होती कि समय पर संजना के हाथ पीले हो जाए,संजना पूजा से एक साल ही तो छोटी थी |
पूजा आज बहुत खुश थी,चलो अच्छा हुआ कि संजना की शादी ठीक हो गई कहते हुए वो मन में बड़बड़ाये जा रही थी |
तभी अंकित की नजर पूजा पर पड़ी पूजा के चेहरे पर खिलखिलाती खुशी देखकर अंकित ने तय कर लिया कि वो आज पूजा को अपनी सारी बातें बता देगा | अपनी लाचारी और बदकिस्मती को अपने प्यार के बीच नही आने देगा | आज वो अपने दिल की बात कह कर रहेगा पूजा से, क्योंकि पूजा इस वक्त काफी खुश थी | तो इस वक्त पूजा से बात करना उचित होगा अंकित अपने अंतरमन में बातें करते हुए |
वो पूजा के पास पहुँच जाता है | पर अपनी बात न रखने की बजाय पहले उसने पूजा के चेहरे की मुस्कुराहट का राज जानना चाहा |

'अरे क्या बात है ? आज अचानक तुम्हारे चेहरे की चमक में इतना इज़ाफ़ा क्यों है ? अंकित ने पूजा से कहा |

पूजा अनायास अंकित से आज मैं बहुत खुश हूँ अंकित क्योंकि संजना का रिश्ता जो ठीक हो गया है,बड़ी मृदलता और निश्छल भाव से,पूजा भगवान जी को हाथ जोड़ कर शुक्रियादा करती है चेहरे पर लम्बी मुस्कान लिए चलो अच्छा हुआ कि संजना को लड़का पसंद आ गया पूजा अंकित से कहती है ये चौथा ऐसा मौका था जब संजना का रिश्ता ठीक हुआ था | इससे पहले जब भी संजना का रिश्ता ठीक होता था वो कोई न कोई अड़चन या कोई न कोई कमी निकल कर उस रिश्ते को ठुकरा देती |

इतना सुनते ही अंकित के चेहरे की हवाइयाँ उड़ गई मानो उसके जिस्म में जान ही न बची हो | दिल सदमें से बैठा जा रहा था | उसके आँखों के सामने मानो दिन में ही रात की तरह अंधेरा सा छाया जा रहा हो,पूजा की बातें सुन अंकित का दिल एक काँच के टुकड़े के तरह टूट कर बिखर चुका था | जिसका दर्द असहनीय सा था अंकित के लिए |लेकिन वो अपने चेहरे पर एक बनावटी मुस्कान लिए उसकी बातों पर बिना मन से सहमती जताते हुए ये तो बहुत अच्छी खुशखबरी है कहता है औऱ अपने सीने के राज को अपने सीने में समेटे वो ऊपर छत पर चल देता है,और ऊपर झूले पर जा कर बैठ जाता है |

आँखें भर आयी गला सूखता जा रहा था उसका आज वो छोटे बच्चों की तरह सिसक-सिसक कर रोये जा रहा था, बेचारा अपनी किस्मत को कोस रहा था | उसकी आँखों से छलकते आँसु इस बात का प्रमाण दे रहे थे कि वो कितनी शिद्दत से संजना से प्यार करता था | आज वो अपने आपको बेसहारा और लाचार समझ रहा था | उसे अपनी जिंदगी से अह्वेलना होने लगी | वेशक उसका प्यार एकतरफा था पर वो संजना को हृदय की गहराइयों से प्यार करता था |

इधर नैना बच्चों की क्लास खत्म कर सीधे अंकित के घर चली आती है,उसके मन में भी अंकित के प्रति प्रेम भावना चल रही थी | आज उसने भी इरादा कर लिया कि वो अंकित को अपने दिल की बातों से जरूर रूबरू करायेंगी पर अंकित के पास पहुँचकर उसे देख वो स्तब्ध रह जाती है | और झट से वो उसके करीब पहुँचती है |

नैना,-'क्या हुआ अंकित ?

अंकित,-अपने आँसू पोछते हुए, कुछ नही यूँही बस परेशानी की कोई बात नही मैं ठीक हूँ अपने दर्द को छुपाते हुए नैना से बोला |

नैना,-'फिर ये आँखों से आँसू किस लिए बोलो... दीदी ने कुछ कहा क्या ?

अंकित,-'नही बस वो माँ की याद आ रही थी तीन महीने जो हो गये यहाँ आये हुये इसलिए थोड़ा इमोशनल हो गया था | अपने दर्द को अपने दिल में छुपाये चेहरे पर नाटकीय मुस्कान लाते हुए, ख़ैर मेरी छोड़ो अपनी बताओ,इस अंदाज में जैसे कि उसे पूजा की कही का बातों का कोई प्रभाव ही न हो | नैना भी उसकी बातों पर भरोसा कर आगे उससे कोई सवाल नही करती और उसके पास ही झूले पर बैठ जाती है,थोड़ी देर वो दोनों चुप्पी साधे झूला झूलते है |

नैना ने ये समय उचित न समझा अपनी बात रखने का इसलिए वो अपनी बातों को अंकित के सामने नही रख पाई, वो दोनों काफी देर तक यूँही चुप रहते है | इतने में प्रेमा जी और पूजा ऊपर आ जाती है

अंकित और नैना को पास में बैठा देख, पूजा,- 'क्या गुफ़्तुगू चल रही काली और नैना के बीच हमें भी बताओ जरा, मज़ाकिया अंदाज में...

नैना:-कुछ नही दी हम अपनी पर्शनल बातें कर रहे है |

बेबाकी से भरे उसके लफ्ज़ो को सुन कर प्रेमा जी अपनी चेहरे की हँसी को नही रोक पाई | पूजा इस बात को पुनः दोहराते हुए ओह..हो...पर्शनल क्या बात है ? लगता है हमारी नैना भी अब बड़ी हो चुकी है | जो पर्शनल बातें भी करती है,पूजा और नैना एक दूसरे के ऊपर यूँही छींटा कसी कर रहे थे | पर इन बातों से बेखबर अंकित संजना के ख़यालो डूबा गुमसुम बैठा था |

इतने हँसी मज़ाक के माहौल में भी अंकित का यूँ गुमसुम होना पूजा समझ नही पा रही थी | उसके मन को अंकित की चुप्पी एक चुभन की तरह लग रही थी | पूजा का मन अंकित को देख करुणामयी हुआ जा रहा था | वो इस सोच में पड़ गयी ऐसा क्या हुआ है जो अंकित इस तरह से उदास सा रहता है | काफी समय से यूँ अंकित का मायूस रहना उसे समझ नही आ रहा था | पूछनें की चाह में पूजा हर घड़ी भूल जाती पर आज उसने मन बना लिया था कि वो प्रेमा जी और नैना के जाने के बाद उससे पूछ कर मानेंगी |

इंतजार था बस उनलोगों के जाने का, कि अचानक दरवाजे पर कोई आ पहुँचता है | पूजा झट से नीचे उतर दरवाजा खोलती है | दरवाजे पर खड़ा नंदू उसे देख मुस्कुरा रहा था उसने पूजा को प्रणाम किया,पूजा उसे देख हैरान हो जाती है |
नंदू राजेश का छोटा भाई जो अंकित का हमउम्र था | वही पास में ही वो में अपने छोटे चाचा दिनेश सिंह के साथ रहता था |

पूजा,-'क्या बात है,बड़े दिनों के बाद याद आई,या रास्ता भूल गए मज़ाकिया अंदाज में,

नंदू पूजा की बातों को सुन मुस्कुराते हुए अंकित कहा है ? और फिर उसे घर में इधर-उधर देखने लगता है | अंकित को कमरों में न पाकर वो छत पर चल देता है | जहाँ प्रेमा जी नैना और अंकित साथ में बिराजमान थे | प्रेमा जी को देख नंदू ने उनके चरण स्पर्श करता है तत्पश्चात प्रेमा जी ने अपना हाथ उसके पीठ पर फेर जुग-जुग जियो मेरे लाल कहते हुए उसे आशीर्वाद दिया |

अंकित नंदू को देख खुश हो जाता है अंकित और नंदू एक दूसरे के काफी नज़दीक थे,उन दोनों में काफी घनिष्टता थी पर पूरे तीन महीनों के बाद नंदू अंकित से मिलने आया था |

नंदू अंकित को देख बहुत खुश होता अंकित भी कुछ पल के लिए अपने गमो को भूल हर्षोल्लास से उससे गले मिलता है | प्रेमा जी और नैना भी अब वहाँ से अपने घर चले जाते है |

समय अपनी रफ्तार से दौड़ रहा था नंदू के आने से अंकित पहले की अपेक्षा अब थोड़ा खुश नजर आने लगा | जिससे पूजा की भी चिंता अब अंकित के खुश रहने से खत्म हो चुकी थी |
समय के साथ-साथ अंकित अपनी ज़िंदगी को आनंद के साथ जीने लगा | धीरे-धीरे दिन माह गुजरते गए राजेश ने अंकित को एक अच्छी सी नोकरी पर रखवा दिया, उसकी दिनचर्या अब पहले की तरह न रही, उसके दिमाग में जो पहले हर घड़ी संजना का ख्याल रहता वो अब दिमाग के अलग-अलग खानों में अलग-अलग तरीकों के विचार को जगह देता ना कि वो देवदास बना रहता | क्योंकि उसके अलावा और भी बहुत सी जरूरते थी उसकी, मगर ऐसा नही की वो अपनी जरूरत की वजह से संजना को भूल जाय क्योंकि उसका प्रेम अथाह सागर के उस जल की तरह था जिसमे कभी सूखा नही पड़ता | वो ये भी भलीभाँति जानता था कि संजना के लिए उसका कोई महत्व नही | और उसने भी नंदू के सिवा किसी और से अपने प्यार का जिक्र नही किया | उसने अपने अरमानों को अपने अंदर ही जज्ब कर लिया | सब कुछ सामान्य ढंग से घटता जा रहा था | नैना का अंकित से मिलना जुलना अभी भी जारी था पर नैना अंकित से अपने प्यार का इज़हार अभी तक नही कर पाई |

साल २००६/०५/०८...
पूजा की गाँव जाने की तैयारियाँ जोरो पर चल रही थी राजेश के साथ मिलकर वो अपनी खरीदारी में जुटी हुई थी क्योंकि संजना की शादी में अब दिन ही कितने बचे थे |

एक शाम राजेश जब ऑफिस से घर पहुँचा तो उसने अंकित से शादी में चलने का ज़िक्र किया पर अंकित ने जाने से इंकार कर दिया ऐसा नही था कि जाना नही चाहता वो, उसके लिए तो संजना को एक नजर देखना मात्र ही उसकी खुशी थी | पर संजना को किसी और का होते कैसे देख सकता लिहाज़ा उसने अपने दिल के अरमानों का गला घोंट दिया |

२००६/०५/०९
जाने की पूरी तैयारी हो चुकी थी, पूजा और राजेश दोनों तैयार थे |
नंदू ने एक कैब बुक की थी उन दोनों को रेलवे स्टेशन जाने के लिए कैब आने में अभी देरी थी तो पूजा अंकित को हिदायत दे रही थी घर पर समय आना, समय पर खाना खा लेना, और फालतू इधर उधर मत घूमना, और फिर नंदू से अंकित का ख्याल रखना |
क्योंकि जब तक राजेश और मैं नही आते तब तक तुम अंकित के साथ यही रहना |

नंदू ने पूजा की बातों का सुन हा में अपना सर हिलाया | इतने में कैब वाले ने वहाँ दस्तक दी नंदू ने पूजा और राजेश का लगेज़ गाड़ी में रख दिया फिर राजेश औऱ पूजा भी गाड़ी में बैठ गए | पूजा एक बार फिर अंकित से अपना ख्याल रखना और ठीक से खाना पीना करना कहती हुई वह से रेलवे स्टेशन के लिए रवाना कैब से रवाना हो गई |

२००६/०५/११ दिन गुरुवार.......
पूजा को गए हुए दो दिन बीत गए,सूरज ढल चुका था शाम गहराती जा रही थी बेमतलब सा अंकित छत पर इधर से उधर घूम रहा था एक बेचैनी थी उसके अंतरमन में क्योंकि यही बेला में संजना हमेशा-हमेशा के लिए अभिषेक की होने जा रही थी | अंकित की छलकती पलकों से आज साफ ज़ाहिर हो रहा था कि कितनी शिद्दत से वो संजना से प्यार करता था | अपनी ज़िंदगी की रफ्तार को पटरी पर लाने के लिए उसने अपने दिल पर पत्थर रख अपने प्यार की कुर्वानी दे दी |

धीरे-धीरे दिन बीतते गए समय अपनी रफ्तार में मग्न होकर हर पल चलता जा रहा था | संजना से मुलाकात से संजना की शादी तक का समय सब बीतता चला गया पर अंकित ने अपनी जुबान पर संजना का नाम तक न आने दिया | अंकित ने बिना किसी से कहे अपने प्रेम को सिर्फ अपने दिल मे पनाह दी | न जाने किस हद तक की ये मोहब्बत थी उसकी |
कहते है समय के साथ-साथ हर दर्द कम हो जाता है परन्तु अंकित की जिंदगी में अभी शायद कुछ असामान्य घटित होना बाकी था |

शादी के कुछ दिन बाद पूजा और राजेश वापस लौट आए नंदू भी अब अपने चाचा जी के पास वापस लौट गया घर में फिर सब सामान्य तरीके से चलने लगा |
अंकित भी अब पहले की अपेक्षा बदल चुका जो नही बदली वो थी उसकी संजना से बेपनाह मोहब्बत न जाने ये उसका कैसा प्यार जो संजना के किसी और का होने के बावजूद भी उसका दिल अभी भी संजना के नाम से ही धड़कता था | ये प्रेम भी बड़ी विचित्र सी अनुभूति है जिसमे पड़कर इंसान बेबात ही खुश हो लेता है |

जैसे-जैसे समय बढ़ रहा था वैसे-वैसे अंकित का प्रेम संजना के प्रति और बढ़ता जा रहा था | छुट्टी का दिन ठंड की दोपहरी राजेश पूजा और अंकित छत पर धूप सेक रहे थे | राजेश अपने ऑफिस की कुछ फाइलें ऊपर ले आया था धूप सेकने के साथ जिन्हें वो चेक भी कर था |

पूजा और अंकित आपस में बातचीत कर रहे थे किसी कारण वश उनकी बातों में संजना का नाम आता उसके नाम का जिक्र होते ही अंकित के चेहरे पर मुस्कान तैर आती है | पर अंकित की आँखों में पश्चयाताप साफ-साफ दिखाई दे रहा था | जो शायद उसे अपनी परिस्थिति पर घृणा करने पर मजबूर कर रहा था | लेकिन उसकी मनोदशा पहले की तरह नही रही जो हर वक्त संजना के ख्यालों में गुमसुम रहे | पर आज एक बार फिर उसके चेहरे पर वहीं उदासी थी जो अक्सर पहले दिखा करती | जिसे देख पूजा को कुछ अटपटा सा लगा और उसने आज पूछ ही दिया,क्या बात है अंकित ? ' आज एक बार फिर वही शिकन तुम्हारे चेहरे पर नजर आ रही जो बीते कुछ महीने पहले दिखा करती थी |
अंकित हिचकिचाते हुए, ऐसा कुछ भी तो नही लगता मुझे पर शायद तुम्हारे देखने के नज़रिए से लग रहा हो अपनी सफाई देते हुए |
इस बार भी अंकित ने अपने दिल के राज को राज ही रखने की एक और नाकाम कोशिश की पर राजेश के कान पूजा और अंकित की बातों को ध्यान से सुन रहे थे | तभी राजेश ने अपनी फाइलों को समेटते हुए पूजा से कहा हमारे अंकित के चेहरे की शिकन की वजह कोई और नही तुम्हारी छोटी बहन संजना है |
इतना सुनते पूजा स्तब्ध रह गई | ये क्या वाहियात बातें कर रहे है आप पूजा ने खीझते हुए कहा और ये कैसे हो सकता है और संजना से अंकित का क्या लेना देना पूजा ने राजेश से कहा |
अंकित भी राजेश की तरफ हैरानी भरी निगाहों से देख रहा था और सोच रहा था ये कैसे मुम्किन है इस बात को मेरे सिवा कोई नही जानता फिर राजेश भैया इतने दावें के साथ कैसे कह सकते है | खैर अंकित ने उनकी बातें सुनकर चुप्पी साधना ही ठीक समझा |

यही सच है राजेश ने अपनी बातों पर जोर देते हुए कहा क्योंकि अंकित संजना से प्यार करता है |
पूजा एक बार फिर राजेश की बातें सुनकर चोंक जाती है |

'क्या ये सच है अंकित,? पूजा ने अंकित की तरफ देखते हुए कहा |
अंकित चुपचाप शून्य में बैठा सर को झुकाए हुए बोला "हा.. ये सच है |
पर ये सच है तो तुमनें आज तक ये बात छुपाई कैसे और कहा क्यों नही ? पूजा ने भावुक होते हुए कहा |

अंकित की आँखों में इस बार अश्कों का शैलाब उमड़ आया | गला बैठा जा रहा था उसका उसने अपनी भर्राती आवाज में काँपते होठों से कहा, किस मुँह से कहता, उस समय मेरी स्थिति इतनी अनुकूल नही थी की मैं आप सब से संजना के बारे में कहता और फिर संजना मुझसे प्यार भी तो नही करती प्यार तो सिर्फ और सिर्फ मैं ही करता था उससे,और जब मैंने कहना चाहा था आपसे तो उसी वक्त आपकी माँ साहेब का फोन आ गया था | जिससे ये पता चला कि संजना की शादी ठीक हो चुकी है | और तुम्हारे चेहरे पर इतनी ज्यादा खुशी थी जिसे मैं अपने स्वार्थ की वजह से कम नही करना चाहता लिहाज़ा मैंने आप सब से ये बात छुपाई... बस |

पूजा जानकर बहुत दुखी हुई, उसकी आँखों में भी अंकित का दर्द देख, आँसुयों का शैलाब उमड़ आया और कुछ पल खमोशी से अंकित की तरफ देखती रही | अपनी घुटी हुई खमोशी को संभाले आँखों से आँसुयों को पीछे धकेलने लगी |
कुछ क्षण फिर खमोशी ने ले लिए | फिर पूजा धीरे से अंकित की ओर देखते हुए बोली, "अब तुम क्या सोचते हो ?
आपनी खमोशी को तोड़ते हुए अंकित ने कहा मैं तो बस बेइंतिहा प्यार करता हूँ और करता रहूँगा |
पूजा का मन अंकित की बातों को सुनकर एकदम खाली हो चुका था,कोई सोच नही, कोई भाव नही |
पर एक ऐसी जुदाई जिसका की कभी मिलन ही नही हुआ, और बिना मिलन के ही अंकित उसकी जुदाई का दर्द सह रहा था | जिसे पूजा आज भलीभाँति महसूस कर रही थी | लेकिन राजेश आपको कैसे पता चला कि अंकित संजना से प्यार करता है पूजा ने कहा |
राजेश ने मुस्कुराते हुए पूजा से कहा,जिस दिन मैं और अंकित तुम्हारे घर से जमशेदपुर के लिए निकले थे उस दिन अंकित की आँखों में आँसू थे और वो आँसू सिर्फ और सिर्फ संजना की ही खातिर ही थे, क्योंकि जब अंकित अपने घर से निकला था तब ऐसा कुछ भी नजर नही आया मुझे इसलिए मुझे समझने में देर नही लगी | इसकी उदासी को मैं भलीभाँति समझ चुका था परन्तु मैं इसके मुँह से सुनना चाहता था पर मुझे ये मालूम नही था कि ये बात इसके मुँह से आते-आते इतनी देर हो जाएगी |

पूजा ने एक मुस्कान के साथ अंकित के सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा, काश की तुमनें ये बात उसी समय बताई होती तो शायद संजना अभिषेक की जगह आज तुम्हारी होती | खैर जो हुआ उसे भूलने में हम सबकी भलाई है, पूजा ने अपने चेहरे पर हल्की मुस्कान भरते हुए कहा | अंकित ने चिरपरिचित अंदाज में पूजा की बातों का अभिवादन किया और मुस्कान के साथ हा में अपना सर हिलाया |

समय की रफ्तार के साथ-साथ सब कुछ धीरे-धीरे समान्य हो गया समय बदल गया अंकित के खुद के हालात भी बदल गए पर नही बदला तो संजना को बेवनाह प्यार करना |
अब भी अंकित उसे उतना ही प्यार करता था लेकिन उसके दिल में उसे पाने की ख्वाहिश नही थी | वेशक उसका प्यार एक तरफा था लेकिन उसका प्यार समुंदर के निश्छल नीले जल की तरह साफ और स्वक्ष था जिसे वो अपनी यादों में समेटे अपने जिंदगी के सफर में उसकी तस्वीर को अपने दिल में संजोए काफी आगे बढ़ चुका था और छूटा तो वो दौर जहाँ उसकी दर्द भरी जिंदगी बेवश और लाचारी थी |

साल २००९..

शाम का वक्त हल्की-हल्की ठंडी हवाएं चल रही थी | इधर नैना गुमसुम सी अपनी छत पर बैठी थी | तभी पीछे से उसके पिता डॉ. साह उसके पास पहुँचे मगर वो अपने अंकित के ख्यालों में इतनी शिद्दत से डूब चुकी थी कि उसे उनके आने की खबर तक नही हुई | उसकी इस हरकत को देख डॉ. साह दंग रह गए, ऐसा क्या हो गया नैना को,आखिर किस ख्याल में वो इतनी गुम है की उसे मेरे आने की भनक तक न लगी | यही सोचते वो उसके निकट पहुँचे, औऱ नैना को छूकर,-क्या हुआ बेटा कहा गुम हो तबियत तो ठीक है न तुम्हारी ?
जैसे ही नैना को अपने शरीर से किसी की छुअन का एहसास हुआ वैसे ही उसकी तंद्रा भंग हो गई और सामने अपने पिता जी को पाकर वो थोड़ा हिचकिचाई और दूसरे ही पल वो डॉ.साह से,-'कुछ नही पिता जी बस यूँही बैठी थी | इतना कहकर वो नीचे की ओर चल दी | उसे यूँ जाता देख डॉ. साह की चिंताएं बढ़ गई आखिर क्या बात हुई जो उसका चेहरा आज हमेशा की अपेक्षा बदला-बदला नजर आ रहा है |
शायद ये नई जगह है नया घर है इसलिए उसे यहाँ थोड़ा समय लगेगा मन लगाने में, डॉ. साह अपने मन ही मन बड़बड़ाते नीचे उतर आए | क्योंकि डॉ. साह अपना पुराना फ्लैट बेचकर पूजा के घर से दूर जो आ बसे थे |

सुबह के पाँच बज चुके थे पूजा तैयार होकर अंकित के कमरे में दाखिल होती है और अंकित को जगाते हुए,- 'अंकित जल्दी से उठ जाओ मंदिर चलना है, पाँच बज चुके है चलो उठो और जल्दी से फ्रेश हो लो |
अंकित पूजा की आवाज सुनते ही उठ जाता है और जल्दी से फ्रेश होने के लिए बाथरूम की तरफ चल देता है |नित्यक्रिया के बाद तैयार होकर अंकित और पूजा राजेश को बताकर मंदिर के लिए निकल जाते है, मंदिर पहुँच कर पूजा एक प्रसाद की दुकान से प्रसाद खरीदती है | उसके बाद अंकित को लेकर मंदिर में दाखिल होते ही पूजा अपने हाथ में लिए प्रसाद को मंदिर के पुजारी को सौंपती है, और हाथ जोड़कर भगवान के सामने खड़ी हो जाती है अंकित पूजा को देख आँखें बंद कर खुद भी भगवान के सामने खड़ा हो जाता है |
इत्तफाक से नैना अपनी माँ प्रेमा जी के साथ मंदिर आई हुई थी जैसे ही उसकी नज़र अंकित पर पड़ी वो झट से अंकित की तरफ भागी, लेकिन कुछ ही पल में अंकित उसकी आँखों से औझल हो जाता है और नैना उसे पागलों की तरह इधर-उधर ढूंढती है पर उसके न मिलने के बाद वो हार थक कर एक बेंच पर बैठ जाती है |
तभी प्रेमा जी आती है और नैना से,- क्या हुआ बेटा तुम यहाँ आकर क्यो बैठ गई तबियत तो ठीक है न तुम्हारी |
हा माँ तबियत ठीक है बस यूँही बैठ गई थी मैं नैना ने अपनी माँ से कहा और उठ खड़ी हुई, और अपनी एक्टिवा स्टार्ट की औऱ फिर अपनी माँ के साथ अपने घर चली आई |

इधर पूजा अंकित का लंच बॉक्स तैयार कर उसे देते हुए,उससे कहती है,अगर आज लंच बॉक्स में खाना वापस आया तो चार दिनों के लिए तुम्हारा खाना पानी बंद,अंकित पूजा की बातों को सुन मुस्कुराते हुए,-अच्छा बाबा आज से लंच बॉक्स का खाना वापस नही आएगा | "ठीक है,

अगले दिन सुबह-सुबह डॉ. साह नाश्ते के लिए बैठे थे पर उन्हें नैना की उपस्थिति कही नजर नही आ रही तो उन्होंने नैना की माँ प्रेमा जी से,-प्रेमा नैना अभी तक सो कर नही उठी क्या ? " नही जी, आज उसकी थोड़ी तबियत ठीक नही लग रही इसलिए मैंने उसे नही जगाया |

क्या हुआ नैना को डॉ.साह ने हैरानी भरी नजरों से प्रेमा जी की तरफ देखते हुए पूछा |

प्रेमा जी,- चिंता करने की कोई बात नही है हल्का बुखार था तो मैंने उसे दवाइयाँ दे दी है और उसे आराम करने को कहा है |
डॉ. साह,-"ठीक है,उसे आराम करने दो अगर ज्यादा परेशानी होगी तो मुझे बताना, डॉ.साह नाश्ता करने के बाद अपने क्लिनिक के लिए निकल गए |
डॉ. साह के जाने के बाद प्रेमा अपने घर के कामों जुट गयीं |

दोपहर हो चुकी पर नैना अपने कमरे से बाहर नही आई, जिससे प्रेमा जी की चिंताएं बढ़ने लगी तभी वो दौड़ी नैना के कमरे में गयीं और देखा कि नैना अभी तक बिस्तर पर ही पड़ी है, " क्या बात है, अभी नैना का बुखार कम नही हुआ क्या, मन में बड़बड़ाते वो उसके पास जाकर उसके माथे पर हाथ रख उसका बुखार चेक करने लगी, पर नैना का बुखार अब उतर चुका था | प्रेमा जी का हाथ अपने सर पर देख नैना ने अपनी आँखें खोली |

उठो बेटा अब दोपहर हो चुकी चलो मुँह धो लो सुबह से तुमनें कुछ खाया नही है |

नैना अपने बिस्तर से उठी और अपनी माँ के गले लग कर सिसकने लगी |
उसके इस रवैए से प्रेमा जी हैरान होते हुए,-क्या हुआ मेरे बच्चें को ? क्या बात है मेरा बच्चा रो क्यों रहा है ? नैना पर अपना प्यार लुटाते हुए प्रेमा जी ने कहा | नैना कुछ क्षण खमोश रही और कुछ ही क्षण उपरांत उसने प्रेमा जी से,- " माँ हम किसी से प्यार करते है, नैना की बात सुन प्रेमा जी मुस्कुरा दी और मुस्कुराते हुए वो कौन खुश नसीब है जिसे हमारी बिटिया रानी प्यार करती हैं | जरा उसका नाम हम भी तो पता चले |
प्रेमा जी की बात सुन नैना के चेहरे पर मद्धिम सी मुस्कान उभर आई |

नैना,-लेकिन माँ हमें ये पता नही वो हमें प्यार करता भी है नही |

प्रेमा जी,-हमें जरा उसके बारे तो बताओ क्या करता है कहाँ रहता है क्या नाम है तभी तो हम उससे अपनी बिटिया रानी के बारे में बात करेंगे |

नैना एक लंबी साँस के साथ, माँ उसका नाम अंकित है,पूजा दीदी का देवर, " अरे वाह तुम्हारी पसन्द तो लाखों में एक है प्रेमा जी मुस्कुराते हुए,चलो हम आपके पिता जी से बात करेंगें, फिर हम पूजा और राजेश से अंकित के बारे में बात करेंगें | "ठीक है, अब तुम जल्दी से उठो और फ्रेश हो कर कुछ खा लो |

अंकित अपनी कंपनी में अपने बॉस के साथ मीटिंग में था तभी उसके मोबाइल पर फोन आता है अंकित अपनी जेब से अपना मोबाइल निकलता है और बिना उसे देखे साइलेंट कर वापस अपनी जेब में रख अपने बॉस की बातों पर ध्यान देता है ।
जैसे ही अंकित की अपने बॉस के साथ मीटिंग खत्म होती है वो अपना मोबाइल अपनी जेब से फ़ौरन निकलता है तो देखता है कि वो कॉल पूजा की थी,और फिर वो पूजा को कॉलबैक करता है |

पूजा चहकते हुये अंकित से,-'अंकित मैं आज बहुत ही बहुत खुश हूँ | मेरे लिए आज बहुत बड़ी खुशखबरी है |

अंकित,-"अरे वाह, जरा हमें भी तो बताओ क्या बात जो आप इतना खुश हो ?

पूजा,- "आज मैं राजेश के साथ हॉस्पिटल गई थी |

अंकित,-चोंकते हुए अरे क्या हो गया तुम्हें ?

पूजा,-'अरे मंदबुद्धि मैं ठीक हूँ, मुझे कुछ नही हुआ,"मैं अब माँ बनने वाली हूँ |

अंकित,- "अरे ये तो बहुत बड़ी खुशखबरी है,बहुत-बहुत शुक्रिया भगवान का जो उसने इतने दिन बाद तुम्हारी सुन ली, ठीक है, मैं कुछ काम में व्यस्त हूँ शाम को आकर बात करता हूँ |

पूजा,-ठीक है ओके बाय,कहकर फोन काट देती है |

अंकित पूजा की बात सुनकर काफी खुश था | क्योंकि पूजा को अपनी शादी के बाद से काफी लंबा इंतजार करना पड़ा इस रिश्ते के लिए जिससे वो अब तक मशरूफ थी |
कभी-कभार तो पूजा को लोगों के ताने भी सहने पड़ते, पर क्या करती सब कुछ तो इंसान के हाथ में नही होता न कुछ में भगवान की मर्जी भी तो होती है |
परन्तु भगवान की बनाई इस फानी दुनिया में इंसान की अहमियत भी तो बहुत है |
अगर इंसान सच्चे दिल से भगवान से कुछ माँगता है तो उसकी मनोकामना जरूर पूरी करते है भगवान, जैसा कि आज भगवान ने पूजा की मनोकामना पूरी कर दी |

शाम अंकित जब घर पहुँचता है और राजेश और पूजा के चेहरे पर मुस्कान देखता है तो उसके चेहरे पर भी एक मीठी सी मुस्कान उभर आती है | उसी मुस्कान के साथ वो पूजा और राजेश को बधाई देते हुए चेयर पर बैठ अपने जूते के फीते खोलने लगता है |

तभी राजेश पूजा से,- क्यों अगर हम संजना को कुछ दिनों के लिए यहाँ बुला ले, जिससे तुम्हारा मन भी लगा रहेगा, और तुम्हारे काम में हाथ भी बटवा दिया करेगी, "क्यों क्या कहती हो, ?

अंकित के कानों में ये शब्द नगाड़े के डंके की तरह बजने लगे,कुछ पल के लिए वो भूल चुका था कि वो अपने जूते के फीते खोल रहा है | उसकी आँखों में गजब की चमक थी संजना का नाम सुनकर |

राजेश की बातें सुन पूजा एक रहस्यमयी मुस्कान के साथ अंकित की तरफ देखते हुए अपनी आँखों को गोल गोल घुमाते हुए बोली, क्या कहते हो अंकित ,कैसा रहेगा |

अंकित थोड़ा झेंपते हुए, अपना सर झुकाए अपने फीते खोलते हुए,-"अरे मुझसे क्यों पूछ रही हो इससे मेरा क्या रोल ये आप लोग को देखना है | इतना कहकर वो चेयर से उठकर बाथरूम की ओर चला गया | पर संजना के नाम से अंकित के चेहरे की चमक दोगुनी हो गई थी जिसे पूजा अच्छे से भाँप चुकी थी |

थोड़ी देर बाद सब खाने की टेबल पर बैठ गए,तभी राजेश अपना मोबाइल पूजा की तरफ बढ़ाते हुए बोला, लो अभिषेक जी का नंबर मिलाओ और उनसे बात कर लो, अगर वो संजना को आने की अनुमति दे तो नैना नंदू के साथ चली आएगी नंदू इस समय गाँव में ही है मैं दोनों की ऑनलाइन टिकट बुक करा दूँगा |
"अच्छा ठीक है, पहले खाना तो कहा लीजिए आप उसके बाद दोनों आदमी बात करते है न ,राजेश अपनी बातों पर जोर देते हुए अरे कोई बात नही तुम अभिषेक जी का नंबर डायल कर फोन को लाउडस्पीकर पर करो दो हम खाना खाने के साथ-साथ उनसे बात लेंगे |
अंकित उनकी बातें सुन मन ही मन बहुत खुश हो रहा था उसका दिल आज उनकी बातें सुन संजना को देखने के लिए बेताब हो रहा था | हो भी क्यों न बिचारा प्यार तो वो अब भी उसी से करता था |

पूजा राजेश की बात सुन लाउडस्पीकर पर न बात करने की बजाय वो अकेले ही अभिषेक से बात करती है, और उसे अपनी स्थिति से अवगत कराती है | और थोड़ी देर बात करने के पश्चात फोन रख देती है |

राजेश,-क्या कहा अभिषेक जी ने ?

पूजा कुछ पल के लिए खमोश हो जाती है | पूजा की खमोशी देख राजेश,- क्या हुआ तुम बोलती क्यों नही,? मना कर दिया क्या अभिषेक जी ने |

पूजा अपना चेहरा लटकाए राजेश से,-हा अभिषेक जी ने मना कर दिया |

इतना सुनते माहौल में एकदम सन्नाटा पसर जाता है,अंकित के चेहरे की चमक फीकी पड़ने लगती है उसकी धड़कनों की रफ्तार फिर एक बार बढ़ने लगी | पूजा की बात सुन राजेश के चेहरे पर बारह बजने लगते है |

तभी उस खमोशी को चीरते हुए पूजा ठहाके मार कर हँसने लगती है |

जिसे देख राजेश,- अरे क्या हो गया तुम्हें जो इतना जोर-जोर से हँस रही हो ?

पूजा,-'अरे बुद्धू बनाया मैंने आपको, अभिषेक जी ने संजना को आने की परमिशन दे दी है,अब चलिए जल्दी से नंदू से बात कर दो टिकट बुक कर लीजिए |

पूजा की बात सुन अंकित की तेज धड़कने समान्य हो गई, जो चमक फीकी पड़ने लगी थी वो अब वापस अंकित के चेहरे पर कायम हो गई | और राजेश भी अब पूजा के साथ उसकी हँसी में शामिल हो गया | लाओ मेरा फोन दो मैं टिकट देख कर बुक करा देता हूँ राजेश ने पूजा से कहा पूजा राजेश को मोबाइल देते हा हुए लीजिए अब देर मत कीजिए |

अगले दिन प्रेमा जी का पूजा को कॉल आता है,
पूजा फोन रिसीव करती है,

पूजा,- "हा..हैलो,

प्रेमा,-हा हैलो बेटा पूजा

पूजा,-'जी आँटी जी बोलिये,

प्रेमा,-बेटा वो कल नैना का जन्मदिन है, तो हमनें एक छोटी सी पार्टी ऑर्गनाइज की है, तो कल उसमें तुम्हें और राजेश को आना है, और हा साथ में अंकित को भी ले आना |

पूजा,-ओके आँटी हम पहुँच जायेंगे |

प्रेमा जी,-ठीक है,अच्छा मैं फ़ोन रखती हूँ, समय से आ जाना |

पूजा,-'जी आँटी जी |

शाम पूजा, राजेश और अंकित के संग नैना के घर पहुँची,घर पर छोटी सी पार्टी ऑर्गनाइज की थी जहाँ खाने का भी प्रोग्राम किया गया था | जिसमें उन्होंने खास-खास महमानों को इनविटेशन दिया | हॉल को बहुत अच्छे तरीके से डेकोरेट किया था |

पूजा अपना गिफ़्ट नैना की तरफ बढ़ाते हुए,-हैप्पी बर्थडे नैना, राजेश भी नैना से, हैप्पी बर्थडे, बर्थडे गर्ल
नैना,-थैंक्यू दी,एंड जीजू पर अंकित नही आया क्या ?

पूजा,-क्या बात है ? अंकित को बड़ा पूछा जा रहा है |

तभी पीछे से प्रेमा जी,-'अरे पूजा बेटा आओ-आओ बैठो, "जी आँटी जी, पूजा ने कहा और राजेश संग पूजा सोफे पर जाकर बैठ गई |

प्रेमा जी उनलोगों के लिए कोल्डड्रिंक लेकर आयीं, "अरे अंकित कही नजर नही आ रहा, क्या बात है वो नही आया क्या ? राजेश से कहते हुए |

'अरे हा अंकित तो साथ में था हमारे पर कहा चला गया, राजेश पूजा से कहते हुए |

तभी नैना के साथ अंकित हॉल में पहुँचा |
अभी तो तुम अंकित को ढूंढ रही थी और अभी दोनों साथ मे आ रहे हो चक्कर क्या है ? पूजा ने नैना से कहा,

दी आप नही समझोगी ये हमारी पर्सनल बातें है कहते हुए नैना पूजा के पास बैठ गई,
ओय होय..तुम्हारी पर्सनल बातें पूजा ने नैना को छेड़ते हुये कहा |
नैना पूजा की बात सुनकर झेंप गई, बस-बस दी अब रहने दो | चलो अब केक काटते है,
हा हा सब आ गए है तो अब शुरू करते है पूजा ने कहा |

नैना ने केक काटा और बारी-बारी से अपने हाथों से सबको खिलाया | उसके बाद खाने पीने का भी प्रोग्राम शुरू हो गया |

कुछ देर बाद...

सारे मेहमान जा चुके थे |
तभी प्रेमा जी,-पूजा बेटा मुझे तुमसे कुछ बात करनी है |

पूजा,- राजेश के चेहरे की तरफ देखते हुए,बोलिये न आँटी जी क्या कहना है |

प्रेमा जी,- पूजा तुम्हें अंकित और नैना की जोड़ी कैसी लगती है ?

पूजा,- मैं कुछ समझी नही |

प्रेमा जी,- मैं ये कहना चाह रही थी, अगर नैना और अंकित का रिश्ता हो जाए तो कैसा रहेगा क्योंकि नैना अंकित से बहुत प्यार करती है | देखो वो दोनों कितने खुश लग रहे है, प्रेमा जी ने नैना और अंकित की तरफ इशारा करते हुए कहा |

पूजा प्रेमा जी की बात सुनकर असमंजस में पड़ जाती है वो कुछ बोल पाती उससे पहले राजेश,-"पर आँटी ये कैसे मुम्किन है,इसमें तो उसके घर वालों की इजाजत लेनी पड़ेगी न |

प्रेमा जी,-एक बार अंकित से बात करके देखो न बेटा अगर उसे इस रिश्ते से एतराज नही तो फिर हम उसके माँ और पिता जी से बात करेंगें |

अंकित..अंकित जरा इधर सुनो राजेश आवाज देते हुए,
जी भैया अभी आया, नैना भी उसके साथ-साथ उसके पीछे-पीछे चली आई | और पूजा से चिपक कर बैठ गई |

अंकित,-"जी भैया बोलिए क्या बात है |

राजेश,-"अंकित आँटी तुमसे कुछ बात करना चाहती है

इतना सुनते अंकित हैरान हो जाता, आँटी जी मुझेसे क्या...क्या क्या बात करेंगी ?

प्रेमा जी,- अंकित हमें तुमसे कुछ बात करनी थी |

अंकित,-जी बोलिए न,

प्रेमा,-वो ये है कि बेटा नैना तुमसे बहुत प्यार करती है,तो हम चाहते कि नैना और तुम्हारा रिश्ता.....!!

इतना सुनते ही अंकित नैना की तरफ आँखें बड़ी-बड़ी कर देखते हुए, प्रेमा जी से,-सॉरी आँटी पर मैं नैना से प्यार नही करता मैंने उसे कभी उस नजर से नही देखा | और न ही मेरा कोई इरादा है अभी शादी करने का |

उसकी बातें सुन प्रेमा जी के चेहरे की हवाइयां उड़ गई वो आगे कुछ कह पाती उससे पहले अंकित नैना के सामने जाकर अपने घुटनों के बल बैठ, सॉरी नैना अगर तुम्हें बुरा लगा तो पर ये सच है यार मैंने तुम्हें एक अपना सच्चा दोस्त माना उसके सिवा मेरे दिल में तुम्हारे प्रति और कुछ भी नही |

नैना कुछ पल खमोशी से अंकित की आँखों में देखती रही आज उसका दिल टूटा था मगर उसने उफ तक न कि क्योंकि वो भी सच्चा प्यार करती थी अंकित से, और वो शायद जानती थी सच्चा प्यार तो वो होता है जिससे हम प्यार करे वो हमेशा खुश रहे चाहे हमारे साथ अन्यथा फिर हमसे दूर...फर्क नही पड़ता उससे, प्यार न मिला तो क्या हुआ उसे एक नया रिश्ता तो मिला अंकित की दोस्ती का |

नैना अपने नैनों की नमी को साफ करते हुए,-"चलो अब जल्दी उठो मेरी काली और नौटंकी बंद करो औऱ ये बताओ तुमनें केक खाया ऊपर से खाना भी खाया पर मेरा
गिफ्ट कहा है ?

नैना की बातें सुन हॉल सभी के ठहाकों से गूंज उठा |

अंकित,- सॉरी-सॉरी पर मैं तो कुछ लाया नही |

नैना,-"अच्छा बच्चू फिर वो जेब में क्या है ?

अंकित,-"अरे वाह, तुम्हारी तो बाज की है नजर है बहुत तेज और बिल्कुल सटीक |

चलो अब जल्दी से निकालो नैना ने कहा,
"ओके बाबा ओके, वंस अगेन हैप्पी बर्थडे अपने जेब से डेरिमिल्क निकाल कर नैना को देते हुए |

नैना,-'थैंक्यू माई डियर काली |

रेपर को फाड़ उसमें से एक टुकड़ा तोड़ा और सबसे पहले उसने अपनी काली को खिलाया उसके बाद सबको सबको दिया | सब हँसी खुशी अपने घर लौट आए |

अगले दिन अंकित अपने ऑफिस बैठें संजना के बारे में सोच रहा था संजना के आने में अब दो ही तो दिन बचे थे | तभी उसके खुरापाती दिमाग में नंदू का ख्याल आया उसने अपनी जेब से मोबाइल निकाला और नंदू को फोन लगाया

"हैलो मैं अंकित बोल रहा हूँ,

नंदू,-'अरे हा अंकित कैसा है तू ?

अंकित,-मैं ठीक हूँ तू बता कैसा है और बुआ और फूफा जी कैसे है ?

नंदू,-यहाँ सब ठीक है,अच्छा तुझे पता है संजना मेरे साथ धनबाद आ रही है |

अंकित,-"क्या बात कर रहा तू |

नंदू,-"अच्छा बच्चू नौटंकी कर रहा है जैसे तुझे पता ही नही |

नंदू की बातें सुन अंकित जोर-जोर से हँसने लगा |

अंकित,-सॉरी-सॉरी यार मैं तो मजाक कर रहा था चल आ जा उसके बाद बात करते है |

नंदू,-ठीक है ठीक है ओके बाय |

अंकित,-"ओके बाय,कहकर फोन रख देता है |

दो दिन बाद....

शाम जब अंकित ऑफिस से घर पहुँचता है, आइए जनाब बहुत लंबी उम्र है आपकी नंदू ने मुस्कुराते हुए कहा,
ओह क्या बात है,सच में मेरी बात हो रही थी,नही नही वो तो काली नागिन की बात हो रही थी पूजा अंकित को छेड़ते हुए,तभी संजना सामने आती है औऱ अंकित से, हाय...

संजना को देख अंकित के हाथ पाँव फूलने लगे गले की आवाज गले में अटक गई धड़कन अब जोर-जोर से धड़कने लगी लड़खड़ाती आवाज में वो संजना को हाय बोलकर अपने कमरे चला गया |

संजना को सामने पाकर उसे अपनी आँखों पर विश्वास नही हो रहा था | वो अपने बेड पर लेट घूमते पंखे को एकटक निहारे जा रहा था | संजना को देख आज उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था |
थोड़ी देर में पूजा ने अंकित के कमरे में दस्तक दी,क्या बात है ऐसे क्यों लेटे हो खाना नही खाना क्या ? कुछ नही,आप चलो मैं अभी आया अंकित ने कहा, और वो फिर खाने की टेबल पर जाकर बैठ गया पर उसे कुछ अजीब लगा,क्योंकि वो आज अकेला ही खाने की टेबल पर बैठा था |
उसने अपना सर इधर-उधर घुमाया पर उसे कोई नही दिखा वो सोच में पड़ गया आखिर सब के सब कहाँ चले गए अभी तो सब यही थे |
अंकित सोच ही रहा था कि संजना आती है और उसके लिए खाना परोसने लगती है,ये देख वो ये हैरान था कि खाना सिर्फ और सिर्फ उसका ही परोसा जा रहा है | "अच्छा इसका मतलब सब खाना खा चुके है, अंकित मन ही मन फुसफुसा रहा था |

पर न जाने क्यों संजना को देख उसकी की हालत खराब होने लगती उसकी धड़कनें तेज होने लगती है,साँसों की रफ़्तार बढ़ जाती है, वो सर को झुकाए खमोशी से चुपचाप खाना खाए जा रहा था तभी संजना उस खामोशी को चीरते हुए, आपको फिशकरी पसन्द आई |
अंकित घबराहट भरी आवाज में ब..ब..बहुत अच्छी बनी है | और जल्दी से खाना खा कर वो पूजा के कमरे में पहुँचा तो देखता है सब बैठें बातें कर रहे है | अंकित को देख राजेश और पूजा के चेहरे पर रहस्यमयी मुस्कान ठहर जाती है,उन्हें मुस्कुराता देख अंकित उनके मन की भावनाओं को अच्छे से समझ जाता है |

क्या बात है सबने मुझे बिना बताए आज खाना खा लिया ऐसा क्यों ? अंकित ने पूजा से कहा |

'अरे तुम्हें खिलाने और तुम्हारे साथ खाने वाली तो थी न तुम्हारे पास फिर अकेले कैसे हुए तुम ? पूजा ने मशकरी करते हुए कहा |

पूजा की बात सुन अंकित झेंप जाता है | तभी पीछे संजना भी आती है और पूजा से,- दीदी आप तो कह रही थी कि अंकित को फिशकरी पसन्द नही आएगी कि उसमें नमक तेज पर इन्होंने तो पसन्द से खाई |

ये काली नागीन बड़ी दलबदलू टाइप की है खाने में चुटकी भर नमक तेज हो जाए तो उस दिन खाना हलक से नही उतरता परन्तु आज देखो मुँह से एक आवाज तक नही निकली |
अंकित अपने सर को खुजलाते हुए सबको गुड़ नाइट कहकर अपने कमरे में चला जाता है साथ में नंदू भी उसके कमरे में चला जाता है |

संजना के आने से घर में एक्स्ट्रा खुशियों का मेला लग चुका था | ऐसा समझो जैसे कि संजना अपने साथ-साथ खुशियाँ भी लेकर आई हो | उसके आने की खुशी पूजा को तो थी ही पर उससे कही ज्यादा अंकित को थी |
हर सुबह एक नई ताजगी के साथ दिन की शुरुआत होती थी | कुछ दिन यूँही बीत गए नंदू भी अपने चाचा के पास चला गया था |

संजना को आये हुए हप्ता बीत चुका | पर अभी भी अंकित संजना के सामने जब भी होता तो उसकी धड़कने सामान्य गति से ज्यादा तेज हो जाती |

१६ जुलाई सुबह १० बजे...

आज तेज हवाओं के साथ बारिश ने अपना रौद्र रूप धारण कर रखा था पूरा इलाका जलमग्न हो चुका था जगह-जगह सड़कों पर पानी का तेज बहाव था | इसी दरमियान पूजा को प्रशव की पीड़ा शुरू होने लगी ऐसी कठिन परिस्थिति में पूजा को इन हालातों में किस तरह हॉस्पिटल ले जाया जाए सब यही सोचकर सब घबरा रहे थे | बारिश थी कि रुकने का नाम ही नही ले रही थी | जैसे-जैसे पीड़ा बढ़ती जा रही थी वैसे-वैसे सबकी चिंताए भी बढ़ती जा रही थी लेकिन इन बढ़ती चिंताओं के बीच हल्की-हल्की खुशियों का आभास भी हो रहा था सबके चेहरे से, तभी राजेश ने प्रेमा जी को फोन किया |

कुछ देर में डॉ.साह अपनी गाड़ी लेकर प्रेमा जी के साथ पहुँचे, पूजा और राजेश को अपनी गाड़ी में बैठाया और हॉस्पिटल के लिए रवाना हो गए | सेमिमेर मेडिकल कॉलेज जहाँ डॉ.साह की अच्छी खासी जान पहचान थी |

एक बार फिर अंकित और संजना आमने-सामने हॉल में बैठें हुए थे,पर वो आपस में बात नही कर रहे और न ही एक दूसरे की तरफ देख रहे थे |

अंकित जब भी संजना के सामने होता तो न जाने क्यों खामोशी उसे अपनी गिरफ्त में ले लेती,पर आज संजना को मंजूर नही थी, उसकी खामोशी |

"अंकित तुम अब भी मुझसे प्यार करते हो ? संजना ने कहा | अंकित चोंक जाता संजना के मुँह से इन शब्दों को सुनकर, पर एक अंजाने शख्स की तरह वो चुप्पी साधे रहता है कि एक बार फिर,-बोलो अंकित बोलते क्यों नही बताओं, ? एक आह भरी आवाज में संजना ने कहा |

अंकित ने अपनी चुप्पी तोड़ी और नजरें झुकाए बनावटी अल्फ़ाज़ में अब क्या फायदा इन सब बातों का और चुप हो गया | पर सच तो ये था कि वो संजना को हर घड़ी यूँही निहारता रहे, अपनी झुकी नजरें के साथ-साथ मन की आँखों से उसे देखता रहे वो सिर्फ और सिर्फ उसके पहलू में रहना चाहता था,क्योंकि प्यार तो आज भी वो उसी को करता है पर हिम्मत नही जुटा पाता | और कर भी क्या सकता उसकी हाथ की लकीरों संजना का नाम जो नही था |

तभी अंकित की नजर सामने टंगी दीवार घड़ी पर पड़ी शाम के चार बज रहे थे राजेश का अभी तक कोई कॉल नही आया वही सोचकर अंकित वहाँ से उठा और कमरे में अपना मोबाइल लेने चला गया |
मोबाइल देखा तो राजेश की दो मिस कॉल आई हुई थी
उसने फ़ौरन ही राजेश को फोन मिलाया |

"हैलो,

राजेश,-हैलो हा अंकित,

अंकित,-कैसी तबियत है भाभी जी की ?

राजेश,-"सॉरी अंकित,बच्ची हुई थी,पर पूजा ठीक है |

अंकित,-चोंकते हुए, हुई थी मतलब,?

राजेश,-"हा, वो नही रही, 'सी इज डेड,पर ये बात संजना को मत बताना |

इतना सुनते ही अंकित के होश उड़ गए उसके पैरों तले जमीन सरक गई, आँखें भर आईं अंकित की, फोन पर उसकी बात राजेश से होता देख संजना उसके पास आ गई , "क्या हुआ अंकित ? अंकित अपने आपको संभालने की नाकाम कोशिश करते हुए,बोलो अंकित तुम क्या छुपा रहे हो क्या बात है ? संजना ने अंकित से पूछा |

कुछ नही संजना, अंकित अपना मुँह पीछे की ओर घुमाते हुए,

नही-नही तुम कुछ छुपा रहे हो सच-सच बताओ क्या बात है ? अंकित का हाथ पकड़कर जोर से उसे खिंचते हुए संजना ने पूछा |

जैसे ही अंकित ने संजना को बताया, वो फफक पड़ी और अंकित के कंधे पर सर रखकर फूट-फूट कर रोने लगी | जैसे ही संजना का सर उसके कंधे पर पड़ा वो सहम गया उसके दुख भरे मन में एक अजीब सी लहर दौड़ गई उसका शरीर सुन पड़ गया हाथ पाँव फूलने लगे वो चाहते हुए भी हिम्मत नही जुटा पा रहा था संजना का सर अपने कंधे से हटाने की |
शाम हो चुकी थी पर बारिश का कहर अभी खत्म नही हुआ बादलों के गरजने के साथ-साथ बिजली के कड़कने की आवाज उन दोनों के मन को भयभीत कर रही थी |

रात ९ बजे...

अंकित अपने कमरे में सोने जा रहा था तभी संजना पीछे से सहमी आवाज में क्या तुम मेरे साथ मेरे कमरे में सो सकते हो अकेले मुझे डर लगेगा |
अंकित भी तो यही चाहता था कि संजना उसकी आँखों से एक पल के लिए भी ओझल न हो | पर चेहरे पर बनावटी झलकियाँ लिए अंकित,-'मैं यही पास ही के कमरे में तो हूँ,डरने की क्या बात है |

संजना,-नही फिर भी मुझे डर लगेगा |

"ठीक है, चलो मैं आता हुँ कहकर अंकित अपने कमरे में गया और वहाँ से एक बैडशीट और एक तकिया लिया और संजना के कमरे में चला गया | ठीक है तुम यहाँ बैड पर सो जाओ हम वहाँ नीचे बिछा कर सो जाते है | अरे यहाँ जमीन पर संजना ने कहा,
'अरे कोई बात नही मुझे आदत है | अंकित ने संजना से कहा,अंकित को यूँ जमीन पर लेटा देख संजना को अच्छा नही लग रहा था | अंकित अपना मुँह दूसरी ओर किए संजना के बारे सोच रहा था और संजना भी अंकित को निहारे जा रही थी | उसकी आँखों में भी नींद नही थी कि अचानक उसने हल्की सहमी आवाज में कहा, क्या तुम्हारा मुझसे बात करने का मन नही होता, माना की हम एक नही हो सकते, तो क्या हुआ, तुम अपने जज्बातों को यूँही घोटते रहोगे |
उसकी बात सुन अंकित चोंक जाता, और हैरानी भरे लहजे में "मतलब,

'हा अंकित, ये सच है न की तुम अब भी मुझसे उतना ही प्यार करते हो जितना की मेरी शादी से पहले |
"नही-नही ये किसने कह दिया तुमसे अंकित झेंपते हुए, अगर ये झूठ तो मुझसे नजरें क्यों चुराते हो ?
दीदी ने मुझे तुम्हारे बारे में सब कुछ बता रखा है की तुमनें मेरी खुशी को अपनी खुशी माना, और अपनी परिस्थितियों को देखते हुए अपने प्यार की कुर्वानी दे दी और अपनी जिंदगी से समझौता कर लिया |

अंकित ने एक गहरी साँस भरते हुए कहा, हा ये सच है मैं तुम्हें आज भी उतना ही प्यार करता हूँ जितना की कल करता था | और फिर अपने दिल पर एक बड़ा सा पत्थर रखते हुए बोला, मगर संजना तुम्हारी दुनिया अलग है हमारी दुनिया अलग है |

संजना,-क्या दो अलग-अलग दुनिया के लोग एक नही हो सकते |

अंकित,- नही हो सकते,

संजना,-क्यों नही हो सकते ,

अंकित,-क्योंकि तुम एक शादीसुदा हो |

संजना,-क्या मेरे शादीसुदा होने के बाद तुमनें मुझसे प्यार करना छोड़ दिया,'बोलों, बताओं |
ये सच है अंकित तुम्हारे बारे में जानकर मुझे भी तुमसे प्यार हो गया था | अगर शादीशुदा लड़की किसी लड़के से प्यार करती है, तो वो जानती है, न तो वो उसकी हो सकती है और न ही वो उसका हो सकता है | वो उसे पा भी नही सकती और उसे खोना भी नही चाहती | फिर भी वो इस रिश्ते को अपने मन की चुनी डोर से बाँध लेती | तो क्या वो अपनी सीमा की दहलीज को नही जानती ?
वो समाज को भी जानती है और सीमा की दहलीज को भी जानती है | मगर वो कुछ पल के लिए अपनी जिम्मेदारी भूल कुछ पल उस शख्स के साथ बाँटना चाहती है जो शायद किसी के साथ नही बाँट सकती है |
आज अंकित के मन में एक सुखद अनुभूति का एहसास हो रहा था क्योंकि उसका प्यार आज एक तरफा नही रह गया | बात करते-करते कब सुबह हो गई उन दोनों को पता ही न चला |

दो दिन बाद पूजा हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हो कर घर आई उसके चेहरे पर मायूसी और आँखों में ढेर सारे आँसू थे उसके ऊपर दर्द का पहाड़ टूट पड़ा था | लेकिन सबके प्यार और दिलासा ने पूजा के इन आँसुयों को उसकी आँखों में दुबारा आने की इजाज़त नही दी और उसे उस दर्द से उभरने में कोई कसर नही छोड़ी | हप्तेदिन बीत चुके थे अब पूजा भी धीरे-धीरे सामान्य होती जा रही थी |

एक रात फिर से बारिश तूफान के साथ कहर बनकर टूट पड़ी उस तूफान के कहर ने जगह-जगह लाइटों के खम्बों को गिरा दिया जिससे शहर में कही-कही लाइट जा चुकी थी | जिसमें आदित्यपुर भी शामिल था |

लाइट न होने की वजह से पूजा ने हॉल में नीचे सोने की इच्छा जाहिर की ऐसी स्थिति में राजेश पूजा की बात मानते हुए, हॉल में सबके लिए बिस्तर लगा देता है |

सब एक साथ में सोए हुए थे राजेश के बगल में पूजा फिर संजना और किनारे अंकित |
सब सो चुके थे कि अचानक संजना जोर से चिल्लाई और अंकित के गले से जा लिपटी |
राजेश और पूजा क्या हुआ क्या हुआ करते चोंक कर उठ गए | संजना अंकित के गले से, उसे कसकर पकड़े हुए,डरी हुई आवाज में बी..बी.बिल्ली...

सामने देखा तो सच में एक बिल्ली थी जो राजेश की गलती से मेनडोर खुला रहने की वजह से अंदर आ गई थी राजेश ने उसे भगाया और दरवाजा बंद कर दिया लेकिन संजना अभी तक अंकित के गले से लिपटी हुई थी जिसे देख राजेश और पूजा ठहाके लगा कर हँसने लगे | उन्हें हँसता देख संजना झेंपते हुए अंकित से अलग हुई |
जाने अनजाने में ही सही परन्तु संजना का अंकित से गले लगना अंकित के रोम-रोम को संजना के जिस्म की भीनी-भीनी खुश्बू से महका गया | वो पल अंकित की ज़िंदगी का सबसे हसीन पल था,उसने उस बिल्ली का तहेदिल से शुक्रिया किया और चेहरे पर मुस्कान लिए सो गया |

सुबह जब अंकित उठा, तो सबके चेहरे पर खिलखिलाती मुस्कान थी, जो साफ जाहिर कर रही थी कि रात का वो दृश्य उन सबके जहन में अभी भी शिरकत कर रहा है |
दिन बीतते गए समय अपनी रफ़्तार में बढ़ता जा रहा था और पूजा समय के साथ अपने दर्द और गमो को भूल चुकी थी कि अचानक एकबार फिर पूजा तबियत की खराब हो गई जिससे उसे हॉस्पिटल में एडमिट होना पड़ा उसे टाइफाइड हो गया था जिससे उसके शरीर में हेमोग्लोबिन की कमी आ गई | पर स्थिति सामान्य थी चिंता की कोई बात नही थी | पर एकबार फिर जिंदगी ने संजना और अंकित को उसी रात की तरह वही लाकर खड़ा कर दिया जहाँ उनका प्यार परवान चढ़ा था |

घर में आज भी वो बीती उस रात की तरफ अकेले थे पर इस बार संजना को ये कहने की जरूरत नही पड़ी की उसे डर लगेगा | आज वो उस रात की तरह ही एक ही कमरे में एक ही छत के नीचे गुमसुम थे बैठे थे, आज उन्हें आने वाले दो दिनों के बारे में सोचकर चिंता हो रही थी |
क्योंकि संजना के घर वापस लौटने का समय जो नज़दीक आ चुका था | वो एक ही जगह गुमसुम एक दूसरे के कंधे पर सर रख कर बैठे थे, | तभी संजना,- अगर हमारा साथ लिखा ही नही तो हम दुबारा मिले ही क्यो ? हमारी किस्मत ही खराब है |

अंकित,-मैंने भी गलती कर दी जिस पल मैंने तुम्हें देखा था,काश उस पल ही मुझे तुमसे कह देना चाहिए था |

संजना,-काश की तुम पहले कह पाते तो मैं आज कही और होती | मगर अब ये सब जान के भी क्या फायदा, लेकिन फिर तुमने मुझसे न कहने की वजाय पूजा दीदी से कैसे कहा |

अंकित,-उस दिन तुम बहुत सुंदर लग रही थी जिस दिन तुम सुबह में कॉलेज जा रहीं थीं और मुझे हाथ हिलाकर बाय बोलकर वहाँ से निकली, उस दिन मैंने तुम्हारा बहुत इंतज़ार किया पर तुम नही आई | और न चाहते हुए भी हमें स्टेशन निकना पड़ा |
तुम्हारी मौजूदगी में कहना तो बहुत चाहा पर उस समय मेरे हालात आज की तरह उतने अच्छे नही थे | और कोई पेरेंट्स ये नही चाहता कि वो अपनी बेटी को एक ऐसे शख्श को सौंपे जिसका की कोई अस्तित्व ही न हो, रहने को ठीक से घर नही, सर छुपाने को अच्छी सी छत नही, किस मुँह से कहता अपने दिल की बात, मैं जानता था मेरे कहने से भी कुछ हासिल नही होने वाला और ये सच है कि शायद उस समय मैं तुम्हें खुश नही रख पाता | इसलिए मैं तुमसे उस समय नही कह पाया और कुछ ही दिन बाद तुम्हारी शादी हो गई |
इतना कहते-कहते अंकित सिसकियाँ भरने लगा उसे सिसकता देख संजना भी फफक पड़ती है और संजना अंकित को अपने गले से लगाते हुए,प्लीज मत रोयो चुप हो जाओ | कहते हुए उसकी आँखों से उसके आँसुयों को पोछने लगी | कुछ देर बाद संजना वहाँ से उठती है और उसके लिए कॉफी लेकर आती है कॉफी पीने के बाद, अंकित संजना से, "अच्छा रात ज्यादा हो चुकी है अब तुम सो जाओ नही तो तबियत खराब हो जाएगी |

संजना,-"अच्छा इधर आओ,मेरे पास बैठो,इतने सालों बाद हम मिले है और हमारी ये आखिरी मुलाकात होगी इसे मैं तुम्हारे साथ बिताना चाहती हूँ | मुझे इसके लिए भगवान को शुक्रिया कहना चाहिए और वो मैं बाद में कह दूँगी, पर सो जाओ, रात ज्यादा हो चुकी है, तबियत खराब हो जाएगी, मुझे ये फिजूल की बातें नही सुननी | मुझे तुम्हारे साथ रहना है तुम्हें यूँही देखते रहना है सारी रात,और बहुत सारी बातें करनी है |

अंकित,-अपना सर हा में हिलाता है |

दोनों ही नीचे फर्श पर लेट गए संजना का सर आज अंकित की बाँहों था | ऐसा नही की संजना का ज़मीर मर चुका था पर अंकित के प्यार में वो अपने आप को भुला चुकी थी |

संजना,- अंकित क्या तुमनें कभी किसी और लड़की को नही चाहा |

अंकित,-कोई तुम सी मिली ही नही,

संजना,-अंकित तुम शादी कर लो जो लड़की तुमसे शादी करेगी वो दुनिया की सबसे खुशनसीब लड़की होगी |

अंकित,-क्या तुम अपनी लाइफ में खुश हो,
संजना,-"अब क्या फायदा अंकित इन बातों का,कहते हुए उसकी आँख भर आई |

संजना की आँखों को भरता हुआ देख अंकित संजना को अपनी बाँहों में भर लेता है और उसके माथे को धीरे से चूम लेता है | उस रात वो दोनों एक दूसरे में सिमटते चले गए | दिन सूरज की किरणों के साथ आ धमका पर वो एक दूसरे में इस कदर डूब चुके थे की उन्हें उसके आने की आहट तक न हुई | पर दरवाजे की बजती डोरवेल ने उनकी तंद्रा भंग की अंकित उठा और दरवाजा खोलता है बाहर देखता तो सूरज अपनी हल्की -हल्की रौशनी के साथ दस्तख दे चुका था और सामने दूध वाला लड़का बाला खड़ा था |
क्या बात है भैया आज दरवाजा इतनी देर तक बंद है क्या पूजा दीदी घर पर नही है ?

अंकित,-नही बाला वो हॉस्पिटल में शायद आज उन्हें छुट्टी मिल जाए |

बाला,-क्या हुआ पूजा दीदी को ?

अंकित,-टाइफाइड पर वो अभी ठीक है | चिंता की कोई बात नही |

बाला,-ठीक है भैया चलता हूँ |

शाम राजेश पूजा को हॉस्पिटल से घर ले आता है उसकी हालत में अब काफी सुधार था |
अगली सुबह संजना को जाना था उसके बारे में सोचकर अंकित का दिल बैठा जा रहा था | रात दस बज रहे थे सबने खाना खा लिया था | पूजा अपने कमरे में जा चुकी थी पर संजना का मन छत पर टहलने का हुआ तो उसने पूजा से कहा वो छत पर जाना चाहती है | तो पूजा ने अंकित से,- जरा संजना के साथ छत पर चले जाओ |

अंकित संजना के साथ छत पर चला गया और झूले पर जा कर बैठ गया संजना भी उसके बगल में बैठ गई उसकी बाँहों में बाँहे डाले उससे कंधे पर सर रख कर, मौसम भी खुशनुमा था हल्की-हल्की ठंडी हवा चल रही थी बीच-बीच में कभी-कभार बारिश की एक दो बूंदे उनके चेहरे को स्पर्श करती |
दोनों खमोशी से बैठे रहे कुछ देर में संजना अंकित के कंधे पर सर रखे-रखे सो गई | उसे सोता देख अंकित उसके चेहरे को निहार जा रहा था वो जानता था कि कल सुबह संजना उसे हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ कर चली जाएगी इसलिए वो आज उसे जी भर कर देख लेना चाहता था |

अगली सुबह संजना के जाने की पूरी तैयारी हो चुकी थी
संजना की आँखों में आँसुयों का शैलाब उमड़ आया था उसे देख पूजा की भी आँखें भर आयी, संजना ने पूजा और राजेश से विदा ली,उसके बाद अंकित ने बैग उठाया और संजना को लेकर स्टेशन के लिए निकल चुका | उसे जाता देख राजेश भी गमगीन हो चुका था |
अंकित संजना को लेकर रेलवे स्टेशन पहुँच चुका था दोनों की आँखों से एक दूसरे को छोड़ने का दर्द साफ झलक रहा था |

संजना और अंकित एक बेंच पर दस मिनट तक एक दूसरे से बातें किए बिना खमोश बैठे रहे |
कुछ ही देर में ट्रेन प्लेटफार्म की तरफ बढ़ती आ रही थी जैसे-जैसे ट्रेन प्लेटफार्म की तरफ बढ़ रही थी वैसे-वैसे दोनों की धड़कनें बढ़ती जा रही थी | दोनों ही बेंच से खड़े होते है | संजना आँखों में आँसू लिए अंकित की तरफ देख रही थी |

अंकित,-अरे क्या हुआ ?

संजना,-क्या तुम मेरे साथ और आगे तक नही चल सकते ?

अंकित,-संजना अब मेरा टिकट मिलना मुश्किल होगा |

संजना,-प्लीज़ अंकित,
संजना अपनी भरी हुई निगाहों से अंकित की तरफ देख रही थी |

अंकित,-इस तरह देखकर मुझे कमजोर मत करो संजना |

अंकित की आँखों से भी आँसू छलक रहे थे ट्रेन प्लेटफार्म पर आकर रुक चुकी थी |

अंकित,-चलो संजना जल्दी करो नही तो ट्रेन छूट जाएगी

संजना अंकित के हाथ को पकड़ते हुए, प्लीज अंकित,क्या तुम मेरे साथ और आगे तक नही चल सकते ?
अंकित संजना का हाथ थामे उसको अपने साथ लेकर ट्रेन में दाखिल हो गया और एक सीट पर संजना के साथ बैठ गया दोनों एक दूसरे से बाते नही कर रहे थे,लेकिन एक दूसरे के बारे में सोच जरूर रहे थे | लम्बा सफर तय करने के बाद आखिरकार संजना की मंजिल आ चुकी थी | ट्रेन ने अपनी रफ्तार पर अंकुश लगना शुरू कर दिया था,जैसे-जैसे ट्रेन धीरे होती जा रही वैसे वैसे अंकित और संजना की धड़कनों की रफ्तार बढ़ती जा रही थी |

संजना बुझे मन से अपना समान समटने लगी, और अपनी यादों में अंकित का प्यार और उसके संग बिताए लम्हों को अपने संग लिए इस सफर को हमेशा-हमेशा के लिए अलविदा कह रही थी

संजना एक बार फिर अंकित के गले से लिपट सिसकते हुए उससे जाने की इजाजत लेती हुई उससे कहती है,-फिर मुलाकत होगी अगर जिंदगी सलामत रही तो | फिर वो अपना बैग उठा कर चल देती है अंकित अपनी इन नम हुई आँखों से उसे निहारता रहा |

संजना गेट से नीचे उतर गयीं,और आगे की ओर चल दी..संजना का गेट से उतरना और अंकित का गेट पर जाना, खड़े होकर उसे देखना मानो ऐसा लग रहा था जैसे अंकित का शरीर अब उसका न रहा उस शरीर से आत्मा निकल कर उस कदमो के साथ जा रही हो जो उसकी आँखों से थोड़ी देर में ओझल होने वाले थे और फिर धीरे धीरे कदमो से वो आगे बढ़ती जा रही थी,अचानक रुकी और पीछे की ओर मुड़ी और फिर मुड़कर वो मुस्कुराई,आँखों की नमी से ज्यादा उसके होंठो से वो दर्द बयां हो रहे थे | जिस दर्द को वो अपनी झूठी मुस्कान में समेटे इस बेपनाह मोहब्बत को शायद हमेशा के लिये छोड़कर जा रही थी।

समाप्त