विंडो सीट थी।
मौसम भी मस्त।
फ़िर भी कुछ तो ऐसा था जो कुछ देर के लिए मधुरिमा को उदास कर देता था।
लेकिन तभी आसमान से बादलों में छनती धूप नीचे ज़मीन के पेड़ों पर चिलका मारती और उन्माद लौट आता।
कल शाम को पापा लूडो की नीली गोट से खेलते हुए जीतते गए और ये सारा आसमान मधुरिमा के लिए नीला हो गया।
मम्मी हाथ में पीली गोट लिए पासे फेंकती रहीं और... और उनसे कुछ ही दूरी पर एक सादा समारोह में मधुरिमा के हाथ पीले हो गए।
हां रे ... सचमुच।
कल दो कारों में आगोश, सिद्धांत, साजिद, मनन, मनप्रीत, मधुरिमा और उसके मम्मी- पापा का जो काफ़िला आया था वो इसीलिए तो आया था!
मधुरिमा के मम्मी- पापा को तो सिर्फ इतना बताया गया था कि वो सब दोस्त लोग मधुरिमा को जापान जाने के लिए एयरपोर्ट छोड़ने चल रहे हैं।
और कुछ नहीं... उसकी शादी के बारे में तो बिल्कुल कुछ भी नहीं।
रास्ते के एक शानदार रिसॉर्ट में रुक कर मधुरिमा के मम्मी- पापा को मनन की देखरेख में आराम करने के लिए छोड़ा गया और उसी रिसॉर्ट के एक सुदूर एकांत कौने में जाकर सब दोस्तों ने मधुरिमा की तेन के साथ शादी करा दी।
...फ़िर रात को दिल्ली हवाईअड्डे पहुंच कर मधुरिमा को जापान जाने के लिए सी- ऑफ़ कर दिया गया।
यहां शादी की सारी तैयारी साजिद ने कराई। इस रिसॉर्ट के मालिक का बेटा उसका मित्र था। साजिद की बेकरी से उनके यहां रेगुलर कुकीज़ की सप्लाई होती थी। सब इंतजाम हो गया।
आगोश ने तेन को भी दिल्ली से वहीं बुलवा लिया था।
सिद्धांत के ताऊजी ने एक पारंगत पंडित पहले ही यहां भिजवा दिया था जिसने भारतीय पद्धति से विवाह की सब रस्में झटपट पूरी करा दीं।
अनजान बेखबर मम्मी - पापा कुछ दूरी पर बैठे खेलते रहे और दोस्तों ने ही कन्यादान भी करा दिया... इसीलिए तो कहते हैं कि दोस्त सब कुछ होते हैं- पीर- बावर्ची- भिश्ती- खर!
सब कुछ होने के बाद कपड़े बदल कर मधुरिमा भी भरी आंखें लिए मम्मी- पापा से आ मिली और शाम के चाय - नाश्ते के बाद झटपट सब गाड़ियों से निकल कर एयरपोर्ट के लिए रवाना हो गए।
मम्मी- पापा को बताया गया था कि इसी फ्लाइट से तेन भी जापान जा रहा है अतः मधुरिमा को रास्ते में कोई परेशानी नहीं होगी। ...और इसी परिचय के साथ एयरपोर्ट पर तेन से मम्मी- पापा का चरण स्पर्श भी करवा दिया गया।
मम्मी अपनी बेटी को जापान के लिए विदा करते समय देर तक रोती रहीं।
पापा से भी कोई अदृश्य नमी लिपटी ही रही।
सब दोस्तों से मिल कर, मनप्रीत के गले से लिपट कर आंखें पौंछती हुई मधुरिमा हाथ हिलाती हुई जापान जाने को विमान पर सवार होने के लिए ओझल हो गई।
मम्मी- पापा को ये भी पता न चला कि वो बेटी को कैसी विदाई दे आए हैं?
मधुरिमा व तेन के जहाज में जाते ही सब देर रात को भारी मन से वापस लौट गए।
आर्यन की निशानी गर्भ में लिए, तेन की पत्नी बनकर, मधुरिमा चली गई समंदरों के पार!
हवाई अड्डे से लौटने के बाद कुछ समय तक सब अनमने से रहे। दो दिन तक किसी की किसी से बातचीत नहीं हुई।
एक रात आगोश अपने कमरे में सोया हुआ था कि अचानक जाग गया।
देर तक ढेर सारी शराब पीकर सोने के बाद उसे प्रायः घोड़े बेच कर सोने वाले सौदागर सी गहरी नींद आती थी। मगर आज न जाने कैसे उसकी नींद बीच में उचट गई। कुछ देर कसमसा कर करवटें बदलता हुआ वो सहसा उठ बैठा।
उसे आर्यन की याद आई।
आर्यन को कुछ भी मालूम नहीं था कि यहां क्या हुआ है। वह काफ़ी दिनों से महाराष्ट्र में शूटिंग कर रहा था और उसका किसी से कोई संपर्क नहीं था।
आज अचानक नींद में वो आगोश के ख्यालों में चला आया।
आर्यन की आंखों में अजीब सी दहशत थी। आंखें लाल थीं। बाल भी बिखरे- फैले थे। वह जैसे किसी रेत के पहाड़ से उतरता हुआ चला आ रहा था। सफ़ेद कुर्ता- पायजामा पहने उसके पैर रेत में धंसते हुए बड़े - बड़े निशान बनाते हुए चले आ रहे थे।
आगोश डर गया। सचमुच उसे ऐसा लग रहा था मानो सामने की दीवार पर चलती हुई किसी फ़िल्म का नायक आर्यन थ्री- डी इफेक्ट के छायांकन से उसके एकदम करीब आ गया हो।
वह अपने हाथ से उसे इस तरह परे हटाने का उपक्रम करने लगा मानो सामने किसी लहर की तरह समीप आती हुई आर्यन की सूरत को रोकने की कोशिश कर रहा हो।
- क्या हुआ? उसने अपने आप से पूछा।
क्या उससे कोई ग़लती हुई है! क्या जल्दबाजी में वो कुछ ग़लत कर बैठा?
क्या उसे ये सारा घटनाचक्र अपने दोस्त आर्यन को बताना नहीं चाहिए था? क्या आर्यन को ये सूचना देने की कोई ज़रूरत नहीं थी कि तेरी औलाद... हां- हां.. औलाद, हमेशा के लिए किसी और की सरपरस्ती में दी जा रही है? क्या आर्यन की प्रेमिका के भविष्य का ये गीत लिखने और गाने से पहले ख़ुद मधुरिमा और उसके दोस्त आगोश को आर्यन का "नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट" लेने की कोशिश नहीं करनी चाहिए थी?
क्या आर्यन ये सब बताए जाने का हकदार भी नहीं था कि उसके जिस्म से निकला जान का एक कतरा कहीं और बसाए जाने के लिए रोपा जा रहा है।
ये ठीक है कि आर्यन ने एक दिन ख़ुद कहा था कि वो मधुरिमा से कभी शादी नहीं करेगा और ये भी... कि मधुरिमा के गर्भ में पल रहा बच्चा गिरा दिया जाना चाहिए... लेकिन...
बच्चे का भ्रूण नष्ट कर देना एक बात है, उसे छिप कर कहीं और जन्म लेने देना, बिल्कुल दूसरी बात। इसके लिए फ़िर से आर्यन की सहमति हर हाल में ली ही जानी चाहिए थी।
तो क्या आगोश से अपने दोस्त के ख़िलाफ़ कोई संगीन अपराध हो गया?
तो क्या मधुरिमा से अपने इस निर्दोष पहले प्रेमी के अधिकार के प्रति कोई अवज्ञा हो गई?
तो क्या आर्यन को ज़िन्दगी और जिस्म जैसी बातों के प्रति लापरवाही बरतने की ज़रूरत से ज़्यादा सख़्त सज़ा मिल गई?
ये सवाल आगोश को सुनहरी नींद से जगा कर चिकने सपाट काले बदबूदार दलदल में खींच ले गए।
अब आगोश क्या करे?
क्या फ़िर शराब पिए?
क्या सामने वाली दीवार से अपना सिर टकरा कर फोड़ ले?
क्या बचपन के दोस्त आर्यन से दुश्मनी ठान लेने के लिए कमर कसे?
उसे रह- रह कर वो क्षण याद आ रहा था जब मधुरिमा की शादी की रस्मों के बीच वो अचानक किसी बड़े बुजुर्ग की तरह कूद कर कन्यादान करने के लिए खड़ा हो गया था।
पंडित ने तो एक बार कहा भी था कि अगर लड़की के माता - पिता यहीं इस रिसॉर्ट में मौजूद हैं तो उन्हें थोड़ी देर के लिए यहां बुला ही लीजिए।
पंडित ने कहा कि किसी भी माता- पिता के लिए अपनी पुत्री का कन्यादान कर पाना जीवन के सबसे बड़े सौभाग्य- क्षणों में से एक माना गया है, इससे अकारण किसी को वंचित नहीं किया जाना चाहिए। किंतु सब कुछ जल्दी से निपटा डालने की इस मुहिम में तनाव में आए आगोश और सिद्धांत ने इसके लिए मना कर दिया।
यहां तक कि सिद्धांत ने तो पंडित जी को एक बार डांट भी दिया कि आपसे जो कहा गया है बस उस पर ध्यान दो। पंडित जी सिद्धांत के ताऊजी के दफ़्तर में मुलाजिम होने के कारण सहम कर तत्काल चुप हो गए और अपने काम में लग गए थे।
उन्हें ये भी भय था कि ये रहस्य उजागर होने पर मधुरिमा के मम्मी- पापा यहां न जाने क्या बखेड़ा खड़ा करें। फ़िर तेन इस सारे प्रकरण को न जाने किस रूप में स्वीकार करे!
स्वयं मधुरिमा की भी तो यही इच्छा थी कि पापा- मम्मी को कुछ न बताया जाए अन्यथा उसे मम्मी के कुछ भी कर बैठने का तो ख़तरा था ही, ये डर भी था कि पापा के सामने उसके कुंवारी मां बन जाने की कड़वी सच्चाई उजागर न हो जाए। सबकी ज़िन्दगी को उथल - पुथल से बचाने के एक निरापद उपाय के रूप में ही तो आगोश ने इस सारी योजना को अंजाम दिया था।
और अब, जबकि वह ख़ुद भविष्य में तेन के साथ मिलकर काम करने जा रहा था तो मधुरिमा का वहां तेन की पत्नी के रूप में मौजूद होना उसे किसी भी दृष्टि से अनुचित नज़र नहीं आया था।
... सारे प्रकरण में अगर एक विराट शून्य उभरता था तो वो था- आर्यन का नाम!