सभी के मध्य एक बार किसी ने मुझे कुछ कहा, मैंने उस समय उसे ज़रा सी भी गंभीरता से नहीं लिया, दरअसल उस समय उसमें मुझे गंभीरता से लेने योग्य कुछ भी नहीं लगा। कुछ समय पश्चात वहाँ से जब मेरे मित्र ने हमारे गंतव्य स्थान के लिये मेरे साथ प्रस्थान किया तो मार्ग में वह मुझसे कहने लगा कि उसने तुम्हारा इतना बड़ा अपमान कर दिया और तुमनें उसे सह लिया, वह अपमान तुम्हारा कर रहा था तब मैं उसका विरोध तत्काल की करने जा रहा था परंतु जितना तुम्हारा अपमान करना मुझें अनुचित लग रहा था उतना ही तुम्हारा उस स्थिति में समान्य रहना मुझे आश्चर्य चकित कर रहा था, मैंने असमंझस वश रह गया, कोई कोई प्रतिक्रिया देता उसके पूर्व ही वह वहाँ से चला गया। मैंने कहा कि तुमनें उस बात को इतनी गंभीरता से ले लिया, मैंने तो अभी तक ध्यान में रखने की तो बहुत दूर की बात, तब भी उसे इतना गंभीरता से नहीं लिया क्योंकि मुझे तो उसका ऐसा करना अत्यंत सामन्य ही लगा, मैंने उसकी मूर्खता समझा तथा बिना सोचे उसके इतना कहने का, उसके आलस्य दोष को कारण समझा तथा क्योंकि उसे उसके विकार से मुक्ति मिलना उसकी ही आत्मप्रेरणा से संभव था जिसकी उत्पत्ति का दायित्व क्योंकि परिस्थितियों के माध्यम से करवाना नियति का है तो नियति पर ही छोड़ दिया। मेरा उस समय उस सामन्य सी बात को इतना अन्यथा लेना कि अपमान का नाम देना मुझें अनुचित लगा; वैसे भी मेरे लिये सम्मान क्या और अपमान क्या; मैं सम्मान और अपमान से बहुत दूर हूँ और मेरा इनसे परे होने का कारण यह है कि यह दोनों मेरे लिये समान तथा समान्य ही है। सम्मान देने का अर्थ होता है कि किसी को भी, किसी न किसी आधार पर महत्व देना तथा अपमान का अर्थ होता है कि किसी न किसी को किसी न किसी आधार पर तुच्छ कहना। पहले (उन जैसे जिनका मुझें वह कहना जो उन्होंने कहा अपमान लगा था।) जो अपने विकारों के अधीन होकर इतना भी धैर्य खो देते है जितना कि उन्हें कभी भी, किसी के भी संबंध में कुछ भी करने के पूर्व सोचने तथा समझने दे, वह क्या किसी का सम्मान तथा अपमान करेंगें; उनका इन दोनों में से कुछ भी करना किसी का भी सम्मान तथा अपमान नहीं अपितु जो होगा उसे उनकी (जो सोचने-समझने का धैर्य नहीं रखते) मूर्खता के अतिरिक्त अन्य कुछ भी कहना अनुचित्ता ही होगी तथा दूसरे जो, जो भी करते है सोच समझ कर करते है उनमें से पहले जो मेरी तरह अपनी समझ से इस तथ्य का ज्ञान कर चुके कि कोई भी सम्मान तथा अपमान करने योग्य समान ही है वह सभी को समान महत्व देंगें ऐसे लोगो के निर्णय को गंभीरता से लेने के साथ सत्य की कसौटी पर कसने की आवश्यकता है। तथा दूसरे जो अपनी समझ से सभी समान महत्वपूर्ण है इस तथ्य को नहीं जान सके वह किसी को कम महत्व तथा किसी को ज्यादा महत्व देंगें। यह यदि सम्मान या अपमान करें तो सत्य की कसौटी पर इनका निर्णय कसने योग्य हैं।
सभी किसी न किसी आधार पर महत्वपूर्ण है तथा किसी न किसी आधार पर तुच्छ है। जिस तरह सभी का महत्वपूर्ण होना तथा तुच्छ होना समान है ठीक उतना ही उन्हें महत्व देने तथा नहीं देने के आधार भी समान ही है।
- © रुद्र संजय शर्मा