सरल नहीं था यह काम 3
काव्य संग्रह
स्वतंत्र कुमार सक्सेना
19 सुपर वाइजर बन गये लाल दीन दयाल
सुपर वाइजर बन गये लाल दीन दयाल
फूल गये फुकना हुए लाल हो गये गाल
हल्ला टीवी पर हुआ भारी मच गया शोर
टारगेट पीछे रहा केस हो गये भारे
अधिकारी खुश हुए और इनको मिला इनाम
पद तो ऊंचा कर दिया मही बढाए दाम
सेक्टर जो सबसे कठिन फौरन लिया संभाल
कीचढ़ से लाथपथ हुए कांटों से बेहाल
सुपर वाइजर बन गये लाल दीन दयाल
दौड़ धूप भारी हुई लाला हो गए बोर
पुर्जे ढीले हो गए निचुड़ गया सब जोर
लटक गये टी ए सभी नहीं हुआ पेमेंट
बढ़ी निराशा कुछ जगा असुरक्षा का सेंस
वायदा था पाया नहीं बंदुकी लायसेंस
चक्कर भारी पड़ गया उल्टी पड़ गई चाल
वर्कर उके वर्कर हुए लाल दीन दयाल
20 कस्बे का मेरा अस्पताल
कस्बे का मेरा अस्पताल
पूंछो न इसका हालचाल
रोगी के आते ही उसने
पर्चा हाथों में थमा दिया
सारे रोगों की एक दवा
नव अविष्कार ये बता दिया
छुट्टी हो या हो मार पीट
अनफिट होना है या फिट हो
सब दूर समस्याएं होंगी
बस बैंक गर्वनर की चिट हो
फैला था मोहक इन्द्रजाल
मेरे कस्बे का अस्पताल
डाक्टर ही था कुछ पिये हुए
एक नर्स साथ में लिये हुए
ओ टी के अन्दर घुसा हुआ
बाहर था पहरा लगा हुआ
बाकी सब करते कदम ताल
मेरे.................................
टेबिल पर लेटी मॉं तड़पे
बाहर जाकर सिस्टर झगड़े
जब तक न ही कुछ मोल भाव
बदले न उसके हाव भाव
कोई साहस करे शिकायत का
सब हंसकर देते बात टाल
मेरे कस्बे का अस्पताल
कोई था जन प्रतिनिधि का खास
कोई ऊंची अफसर का दास
कोई भेंट करे चावल शक्कर
कोई और चलावें कुछ चक्कर
हर नई चाल पर तुरूप चाल
मेरे कस्बे का अस्पताल
21 बहुत दिन हुए तुमको देखे खुराना
बहुत दिन हुए तुमको देखे खुराना
लगता है जैसे हो गुजरा जमाना
वे गजलें कहानी कविता ठहाके
रहा शौक बाकी बस पैसे कमाना
शगल है तुम्हारा पर अच्छा नहीं है
दिलदार यारों के दिल को दुखाना
अच्छा नहीं हर समय रोना गाना
सिखा देंगे हम तुमको अब मुस्कुराना
22 आत्मीयता
आत्मीयता हो इस कदर
कि जिधर भी जाए नजर,
मुस्कराते होंठ
खिलखिलाती ऑंखें
दूर से दौड़ कर कोई
डाल दे गले में बाहें
चुपचाप कान में कहें
बड़ी देर से आए
फौरन ही कर दें कुट्टी
फिर दोस्ती को मंडराए
आपकी तलाशे जेबे
गोद में समा जाए
बिना कुछ कहे ही
बहुत कुछ कह जाए
जीवन के कुछ क्षणों की कर दे मधुर
आत्मीयता हो इस कदर
23 डबरा को डबरा रहने दो
डबरा को डबरा रहने दो मत उल्टा पढो पहाड़ा
अगर मिटाना है मिटाओ तुम यहॉं कसाई बाड़ा
तुम सदियों पहले के करते भवभूति की बात
हो संवेदन शील करो कुछ अनुभूति की बात
मोहित हो अतीत से करते वर्तमान से घात
सजी चांदनी से हो फिर भी रात न होती प्रात
निर्मल लक्ष्यों का अंधे स्वर्थों ने किया कवाड़ा
डबरा को डबरा रहने दो..........................
डबरा की गलियों में पीडि़त कई माधव घूमे हैं
कुछ अपराधी बन बैठे कुछ मृत्यु्त्द्द्धार चूमे हैं
किसी मालती के खुले पाऐ न शिक्षा के द्वार
इन थोड़ी सी इच्छाओं से भी है जन लाचार
इनकी समस्याओं पर भी तो थोड़ा करें विचार
पता लगाए कौन है जिसने सारा खेल बिगाड़ा
डबरा को डबरा रहने दो..................
सारे गुरू जन बैठे रेल में चल देते हैं घर में लश्कर
बाकी खोल दुकाने घर पर बैठे रहते जमकर
हर कार्यालय में फैला दी राजनीति दलबन्दी
राजनीति की पंक्ति में है बस दलाल बहुधन्धी
विद्यालय में खोल रखा है तुमने खुला अखाड़ा
डबरा को डबरा रहने दो..........................
कच्ची पक्की आढ़त ने फैला रखी है सांसत
लूटा जाता हर किसान निकले है होकर आहत
जबरी चंदा ने व्यापारी की बिगाड़ दी हालात
दिखती नहीं यहां पर तुमको मची हुई लूट
आवश्यक बस नाम लगे है बाकी सारा झूठ
अवगुंठित ये रूप भयानक इसको कभी उधाड़ा
डबरा को डबरा रहने दो...............
खून पसीना एक करें तब वे गन्ना उपजाएं
बरसो पर बरसों बीते पर न उधार चुक पाए
आंदोलन करते ही सारे नेता आगे आए
गुपचुप समझौता होते ही चंदा से छुप जाए
की गई वे घनघोर गर्जना पल में भुला दी जाए
ठगा किसान चतुरों के द्वारा जाता पुन: लताडा
डबरा को डबरा रहने दो..................
छोड़ों मित्र नाम की महिमा करो काम की बात
थोड़ी सी उजियारी होवे में अंधियारी रात
डबरा को कुछ अगर बदलने की चाहत है मन में
ऐसे चमत्कार न होगा मित्र ये कुछ पल छिन में
साहस करके अंतर करना होगा रात में दिन में
लू लपटों में तपना होगा सहना होगा जाड़ा
डबरा को डबरा रहने दो मत उल्टा पढ़ो पहाड़ा
केवल निज यश खातिर मत पागल बनकर दौड़ो
अगली पीढ़ी के आगे कुछ उदाहरण तो छोड़ो
दृढ़़ संकल्प करो इस नगरी के दिन तब सवरेंगे
सिर्फ अकेले तुम्ही नहीं कई पग फिर साथ चलेंगे
नई दिशाएं गूंजेगी तब नई राह खोलेंगे
डबरा नगरी का बाजेगा चहुं दिश पुन: नगाड़ा
24 सुअर का बच्चा
एक दिन एक सुअर का बच्चा
तन का काला मन का सच्चा
ऊंच नीच से था अनजाना
नन्ही जानता छिपना छिपाना
बिल्कुल ही था भोला भाला
अपनी अम्मा से यह बोला
चौराहे पर उसने देखा
बोल रहा था भारी नेता
रोजगार के साधन होंगे
सबके ही घर आंगन होंगे
नाली सड़कें साफ करेंगे
टैक्स सभी के हाफ करेंगे
नल में पानी होगा दिनभर
बिजली न जायेगी पलभर
वादा मेरा बिल्कुल सच्चा
सुन ले हर कोई बूढ़ा बच्चा
बोला एक सुअर का बच्चा
अम्मा फिर हम कहां रहेंगे
कैसे अपना पेट भरेंगे
ये सफाई के तालिबान
क्यों करते हमकों हैरान
दफ्तर हो या हो स्कूल
सारे ही अपने अनुकूल
चाहे जहां करे निस्तार
यह अपना मौलिक अधिकार
यह कानून सभी से अच्छा
बेाला एक सुअर का बच्चा
अम्मा बोली प्यारे बेटे
तु हो जरा अकल के हेठे
मैं भी थी जब छोटी बच्ची
लगती मुझे कहानी सच्ची
बरसों पर जब बरसों बीते
इनके मारे वायदे रीते
जब आता चुनाव का मौसम
ये देते पब्लिक को गच्चा
बेाला एक सुअर का बच्चा
25 लड़ी लड़ाई बड़ी भयंकर मित्रों रामस्वरूप ने
लड़ी लड़ाई बड़ी भयंकर मित्रों रामस्वरूप ने
था निश्स्त्र पर कड़ी दी टक्कर दुश्मन को हर रूप में
घर में न खाने को दाने
बच्चे जब भूखे चिल्लाने
हाथ पैर कहना न माने
पॉंव धरे रिक्शे पर दौड़ा
कड़ी जेठ की धूप में
लड़ी लड़ाई बड़ी भयंकर मित्रों रामस्वरूप ने
मित्र पड़ौसी दौड़े थाने
निश्तेदार नहीं पहिचाने
अपने सारे हुए बेगाने
हालत के अनुरूप में
लड़ी लड़ाई बड़ी भयंकर मित्रों रामस्वरूप ने
पड़ा भयंकर रोग का साया
डाक्टर से पर्चा लिखवाया
मगर दवा वह ले न पाया
सपने उसको रोज धकेलें
भय से अंधे कूप में
लड़ी लड़ाई बड़ी भयंकर मित्रों रामस्वरूप ने
बेकारी ने डाला डेरा
कंगाली ने उसको घेरा
ऐसा बुरा समय का फेरा
दुश्मन उसको बहुत डराते
बदलें बदलें रूप में
लड़ी लड़ाई बड़ी भयंकर मित्रों रामस्वरूप ने
पत्नी कहती तोड़ो नाता
भैरव बन नाचे है भ्राता
जम कर रूप धरे जामाता
देव मूर्तिया क्षण में बदली
ज्यों असुरों के रूप में
लड़ी लड़ाई बड़ी भयंकर मित्रों रामस्वरूप ने
बड़े पेट देते आदेश
सत्य धर्म का दे उपदेश
स्वाभिमान का दे संदेश
पॉंव टिकाए जमे रहो तुम
दृढ़ हो तपती धूप में
लड़ी लड़ाई बड़ी भयंकर मित्रों रामस्वरूप ने
प्रभु से थी फिर जोड़ी आशा
मिली अफसरों से थी निराशा
नेता केवल बातें देकर
फेंके आश्वासन का पॉंसा
मगर गरीबी नहीं समाई
सरकारी प्रारूप में
लड़ी लड़ाई बड़ी भयंकर मित्रों रामस्वरूप ने