BHAARITYA HOCKEY KII WAAPSI in Hindi Motivational Stories by Anand M Mishra books and stories PDF | भारतीय हॉकी की वापसी

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भारतीय हॉकी की वापसी

5 अगस्त! कुछ विशेष महत्वपूर्ण दिन! मन में उत्सुकता! क्या विशेष होगा इस वर्ष! भारतीय हॉकी के लिए यादगार दिन का गवाह बना! चार दशकों के ऐतिहासिक दर्द के बोझ को पार किया! निश्चित ही आने वाले समय के लिए एक सुखद सन्देश। हर भारतीयों के मन के दवाब को कम किया। बात भी सही है कि केवल दम रखने से नहीं होता है। जीतने का हुनर ​भी खेल के मैदान में चाहिए। यही बात जीवन में भी लागू होती है। टोक्यो ओलंपिक में रोमांचक मुकाबले में जर्मनी को 5-4 से हरा दिया। इस जीत ने ओलंपिक में भारतीय हॉकी के 41 साल पुराने सूखे को समाप्त कर दिया। भले ही हमारे देश की हॉकी टीम ने कांस्य पदक ही जीता हो। लेकिन हम भारतीय संतोषी स्वभाव के हैं। थोड़े में ही गुजारा कर लेते हैं। इस कांस्य पदक की गरिमा भी हम भारतीयों को सोने की तरह ही लगी। ख़ुशी की बात यह है कि हमारे देश की महिला हॉकी टीम भी अपना दम दिखाने में पीछे नहीं रही। महिला हॉकी टीम ने भी इतिहास रच दिया। पहली बार ओलिंपिक के हॉकी सेमीफाइनल में शानदार तरीके से प्रवेश किया। भले ही महिला टीम उस मैच को हार गयी लेकिन दिल में जगह तो बनाने में कामयाब हो ही गयीं। बेटियों ने दिखा दिया कि वे भी ‘अबला’ नहीं ‘सबला’ है। ये दो उपलब्धियां भारतीय हॉकी के लिए हैं। यह दिखा रहा है कि हॉकी टीम अपनी पुरानी गरिमा को प्राप्त करने की ओर अग्रसर है। उड़ीसा सरकार भी भारतीय हॉकी टीम के पुनरुद्धार में सहायक है। एक ऐसे क्षण में उडीसा सरकार ने टीम को प्रायोजित किया जब टीम को प्रायोजक नहीं मिल रहे थे। टीम के लिए पदक पाना एक स्वप्न की तरह हो गया था। सबसे बड़ी बात यह थी कि इसके लिए उड़ीसा सरकार ने प्रचार तंत्र का सहारा भी नहीं लिया। न केवल वित्तीय मदद की बल्कि आधारभूत संरचनाओं के निर्माण में भी सहायता की। निश्चित रूप से शांति से कार्य को कैसे किया जाता है यह तो उड़ीसा सरकार ने दिखा दिया। साथ ही भारतीय हॉकी टीम की आक्रामक खेल शैली, उनकी निडरता, पूर्ण नियोजन आदि बातों ने उसे फिर से नया जीवनदान दे दिया। अब फिर उम्मीद जग गयी है कि पुराने दिन वापस आने वाले हैं। भारतीय हॉकी टीम केवल अपने स्वर्णिम इतिहास को ही याद करती है, अब ऐसा नहीं कह सकते। टीम में दम है। यह उसने साबित कर दिया। वैसे पदकों का अकाल कुछ बाहरी परिस्थितियों के कारण हुआ था। घास से कृत्रिम टर्फ में परिवर्तन हो गया। खेल के नियम में नियम परिवर्तन हुआ। निश्चित रूप से समुचित प्रोत्साहन, प्रशिक्षण, पोषण आदि में कमी के चलते फिटनेस और गति भी प्रभावित हुई। इससे यह साबित हुआ कि समय बदलने के साथ खुद को बदलना भी आवश्यक है। नहीं तो अंग्रेजी भाषा में इसे ‘ आउटडेटेड’ कहने लगते हैं। बदलते समय के साथ भारतीय हॉकी टीम अपने को बदलने में असमर्थ होने लगी। खेल प्रशासकों की उदासीनता, अदूरदर्शिता, भ्रष्टाचार और राजनीति, इन सब कारणों का भी योगदान रहा। खिलाड़ियों को बेवजह हटा देना, प्रशिक्षक को बदल देना – आदि भी पतन के कारण हो सकते हैं। टोक्यो में सब कुछ अचानक नही हुआ होगा। इस उपलब्धि के लिए भी तैयारी की गयी होगी। उस तैयारी का ही फल हम सबको कांस्य पदक के रूप में प्राप्त हुआ। अब अभी से बिना समय गंवाए अगले ओलिंपिक पर ध्यान देने से स्वर्ण पदक भी प्राप्त होगा। बदलाव धीरे-धीरे ही होता है। तेज गति, भरपूर ताकत और अदम्य साहस इस बार देखने को मिला। इससे हॉकी टीम ने खेल की एक नई आक्रमण शैली विकसित की। टीम भावना और आत्म-विश्वास की एक नई संस्कृति देखने को मिली। अब भारतीय टीम मनोवैज्ञानिकों और प्रशिक्षकों, पोषण विशेषज्ञों, वैज्ञानिक सलाहकारों, फिजियो और वीडियो विश्लेषकों के स्टाफ के साथ यात्रा करती है। टीम ऊर्जा से लबालब भरी है। अब चोटी पर पहुँचने के लिए इसी दमखम के साथ सावधानी रखते हुए आगे बढ़ना है।