जानिये आपकी ऊर्जा कौन से चक्र तक जा पाती हैं?
लेखन और लेखक के बारे में :-
मैं एक चिंतक हूँ और प्रति पल, प्रति क्षण ज्ञान की प्राप्ति ज्ञान के मूल स्रोत (चिंतन) से करता रहता हूँ। ज्ञान के अन्य स्रोतों से ज्ञान प्राप्ति को महत्व नहीं देता क्योंकि वहाँ से ज्ञान तो प्राप्त हो जाता है परंतु उसके सही मायने ज्ञान के मूल स्रोत से ही प्राप्त होते है। अन्य स्रोतों का सहारा तो केवल इसकी पुष्टि के लिये करता हूँ, उस सूत्र के माध्यम् से जो मैंने चिंतन से ज्ञात किया है; उसकी कसौटी पर कस अन्य स्रोतों के ज्ञान की पुष्टि करने हेतु मैंने। जब भी ऐसा कुछ ज्ञात होता है, जिसे की सभी के लिये जानना महत्वपूर्ण है, उसकी अभिव्यक्ति यथा संभव मैं परम् अर्थ (हित) की सिद्धि हेतु अपने लेखों, कविताओं तथा उद्धरणो के माध्यम से कर देता हूँ परंतु जिस तरह मूल स्रोत (चिंतन) को छोड़ अन्य स्रोतों से ज्ञान की प्राप्ति मेरे लिये उचित नहीं क्योंकि जब तक उस ज्ञान के सही मायनों को नहीं समझ सकता, वह मेरे लिये बाबा वचन [थोड़ी सी भी या पूरे तरीके से समझ नहीं आ सकने वाली या तुच्छ/व्यर्थ बातें (ज्ञात होने वाला ज्ञान)] ही है ठीक आपके लिये भी यह वही तुच्छ या समझ से परे ज्ञान है अतः आप भी मेरी ही तरह चिंतन से इसे प्राप्त कीजिये तथा मेरी ही तरह उस सूत्र के माध्यम् से जो आप मेरी तरह चिंतन से ज्ञात करोगें; उस सूत्र की कसौटी पर कस मेरे द्वारा दिये ज्ञान की पुष्टि करोगें तभी उसके सही मायनों में ज्ञात कर सकोगें।
लेख:-
समय : 00:53
दिनांक: 13:09:21
समय बनेगा गवाह . . .
यदि आप अपनी पाँच कर्म इन्द्रियों के वशीभूत हो और यही आपकी, पाँच कर्म इन्द्रियों, ज्ञान इन्द्रियों, प्राण, मन, मस्तिष्क, चित्त और शुद्ध चेतना को नियंत्रित करते हैं तो इसका अर्थ हैं कि आपकी ऊर्जा मूलाधार चक्र तक ही जा पाती हैं।
इसी तरह आप यदि अपनी पाँच ज्ञान इन्द्रियों के वशीभूत हो और यही आपकी कर्म इन्द्रियों, पाँच ज्ञान इन्द्रियों, प्राण, मन, मस्तिष्क, चित्त और शुद्ध चेतना को नियंत्रित करते हैं तो इसका अर्थ हैं कि आपकी ऊर्जा स्वादिष्ठान चक्र तक ही जा पाती हैं।
आप यदि अपने प्राणों के वशीभूत हो और यही आपकी कर्म इन्द्रियों, ज्ञान इन्द्रियों, प्राण, मन, बुद्धि, चित्त और शुद्ध चेतना को नियंत्रित करते हैं तो इसका अर्थ हैं कि आपकी ऊर्जा स्वादिष्ठान चक्र तक ही जा पाती हैं।
आप यदि अपने मन के वशीभूत हो और यही आपकी कर्म इन्द्रियों, ज्ञान इन्द्रियों, प्राण, बुद्धि, चित्त और शुद्ध चेतना को नियंत्रित करता हैं तो इसका अर्थ हैं कि आपकी ऊर्जा अनाहत चक्र तक ही जा पाती हैं।
आप यदि अपने मस्तिष्क के वशीभूत हो और यही आपकी कर्म इन्द्रियों, ज्ञान इन्द्रियों, प्राण, मन, मस्तिष्क, चित्त और शुद्ध चेतना को नियंत्रित करता हैं तो इसका अर्थ हैं कि आपकी ऊर्जा विशुद्धि चक्र तक ही जा पाती हैं।
आप यदि अपने चित्त के वशीभूत हो और यही आपकी कर्म इन्द्रियों, ज्ञान इन्द्रियों, प्राण, मन, मस्तिष्क , चित्त और शुद्ध चेतना को नियंत्रित करता हैं तो इसका अर्थ हैं कि आपकी ऊर्जा आज्ञा चक्र तक ही जा पाती हैं।
आप यदि अपने स्वयं के अर्थात् अपनी शुद्ध चेतना के वशीभूत हो और यही आपकी कर्म इन्द्रियों, ज्ञान इन्द्रियों, प्राण, मन, मस्तिष्क , चित्त और शुद्ध चेतना को नियंत्रित करता हैं तो इसका अर्थ हैं कि आपकी ऊर्जा सहस्रार चक्र तक जा पाती हैं।
- © रुद्र संजय शर्मा