Its matter of those days - 35 in Hindi Fiction Stories by Misha books and stories PDF | ये उन दिनों की बात है - 35

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ये उन दिनों की बात है - 35

रेडियो पर मैंने प्यार किया के गाने बजने लगे थे | चित्रहार पर भी इस फिल्म के गाने दिखाने लगे थे जो की अगले महीने की 29 तारीख को रिलीज़ होने वाली थी | सबकी जुबां पर इसी फिल्म की चर्चाएं जोर शोर से चल रही थी | गाने भी सबको कंठस्थ हो गए थे |

स्कूल-कॉलेज के लड़के-लड़कियाँ प्रेम और सुमन जैसे कपड़े पहनकर घूमने लगे थे | पेन्टर्स रात-रात भर जागकर फिल्म के पोस्टर तैयार करने में लगे हुए थे | कुल मिलकर सभी बहुत उत्साहित थे | वैसे तो पहले भी ये दोनों कलाकार परदे पर आ चुके थे | सलमान फिल्म "बीवी हो तो ऐसी में" पर उनका रोल छोटा था इसलिए किसी ने ज्यादा नोटिस नहीं किया और भाग्यश्री "कच्ची धूप" सीरियल में | इस सीरियल में भी भाग्यश्री को काफी पसंद किया गया था | और इस फिल्म के बाद से तो सलमान और भाग्यश्री सबके फेवरेट हीरो हीरोइन बन चुके थे | सबकी जुबां पर एक ही नाम रहता था "प्रेम-सुमन" | बस अब सबको इस फिल्म की रिलीज़ का ही इंतज़ार था |

मैंने भी मम्मी से कहकर ठीक वैसा ही सलवार कमीज बनवाया जो भाग्यश्री ने "कबूतर जा जा" गाने में पहना था, सफ़ेद रंग का जिस पर पत्तियाँ बनी हुई थी | सिर्फ दो दिन में ही मम्मी ने सूट तैयार कर दिया था |

क्लास में भी इसी पिक्चर की बातें होने लगी थी हम सभी लड़कियाँ अब ज्यादातर इसी फिल्म के गाने गाया करती | जब भी "मेरे रंग में रंगने वाली" गाना रेडियो पर बजता या चित्रहार में दिखता मुझे सागर की याद आने लगती | काश सागर इस गाने को मेरे लिए गाये, अपनी गिटार पर इसकी धुन बजाये |

हम सारी लड़कियाँ इस फिल्म को देखने के लिए बहुत हद तक अपनी इच्छा जाता चुकी थी लेकिन उस समय सिनेमा हॉल में फिल्म देखने जाना कोई छोटी सी बात नहीं थी और वो भी एक रोमांटिक पिक्चर | कॉलेज की लडकियां तो फिर भी चोरी छुपे फिल्म देखने चली जाया करती थी और चूँकि हम स्कूल में थे तो हमें तो फिल्म देखने की वैसे भी परमिशन मिलनी थी ही नहीं और पता है उस समय फिल्म का टिकट सिर्फ दस रूपए का हुआ करता था | तय तो खैर करीब-करीब सबने कर ही लिया था की फिल्म तो देखनी ही देखनी है |

नहीं, हम कैसेट माँगा लेंगे फिल्म की और फिर सब एक साथ देखेंगे टीवी पर |

पर मम्मी!!!
पर-वर कुछ नहीं | लोग क्या कहेंगे की छोरी को बिगाड़ रहे हैं

लेकिन मुझे तुरंत ही ये फिल्म देखनी थी और मैं बहुत बेचैन हो रही थी |

मुझे लगा था कि मम्मी इस फिल्म को देखने परमिशन दे ही देंगी पर मैं गलत थी |

उस शाम मैं सागर से मिली |

आजकल ऐसा क्या खाने लगी हो की दिन पर दिन खूबसूरत होती जा रही हो और सलवार कमीज ही पहनने लगी हो |
हम्म्म...........मेरा दिल तो सिर्फ फिल्म में ही अटका पड़ा था |
और उस दिन भी चुन्नी लगाई हुई थी तुमने मिडी टॉप पर!!

"क्यों" ?
"अब इस क्यों का जवाब क्या देती मैं" |
"यूँ ही" |
"अच्छा"|

थोड़ी देर के लिए हम दोनों के बीच ख़ामोशी छा गयी थी |
मैंने प्यार किया मूवी देखने चले? ख़ामोशी सागर ने ही तोड़ी पहले |

क्या!! सच्ची!! मुझे ऐसा लगा मेरे मन की मुराद पूरी हो गई हो | मैं लगभग उछल ही पड़ी |
मजाक तो नहीं कर रहे ना मेरे साथ!!
नो आई एम सीरियस, दिव्या!!
जबसे आई हो तबसे तुम काफी अपसेट लग रही हो |
तुमने कैसे जाना?
प्यार करता हूँ तुमसे.............

क्या करूँ!!! जबसे इस फिल्म के बारे में चर्चाएं सुनी, फ़िल्मी पत्रिकाओं में इस फिल्म के बारे में पढ़ा, रेडियो पर जबसे इसके गाने सुने तबसे मैं अपने आपको रोक ही नहीं पा रही हूँ |

तो ठीक है फिर इस संडे को चलते है |
मैंने सफ़ेद रंग का सलवार-कमीज पहना था, वोही भाग्यश्री वाला और कानों में सफ़ेद रंग की नन्हीं बालियाँ पहनी थी | सफेद रंग के रबड़ बैंड से वैसी ही पोनी बनाई थी जैसी भाग्यश्री ने ‘कबूतर जा जा’ गाने में बना रखी है | चूँकि हम सब लड़कियाँ यूँ ही पिकनिक मनाने चली जाया करती थी संडे को | इसलिए फिर से बहाना बना दिया पिकनिक पर जाने का | हालाँकि झूठ बोलना सही तो नहीं लग रहा था लेकिन मजबूरी थी |


इधर मैं तैयार हो रही थी | उधर सागर भी जबरदस्त तैयारी में लगा हुआ था |

सागर अपनी बाइक को ऐसे साफ़ कर रहा था जैसे बड़ी दिनों बाद गेराज से निकाली हो |

सागर बाबा, लाइए हमें दीजिये हम साफ़ कर देते हैं, रामू काका ने कहा |

अरे नहीं, नहीं, काका, बस हो गया, उसने शर्ट की बाँह से पसीना पौंछते हुए कहा | इतनी सर्दी में भी उसे पसीना आ रहा था |

हम पहले की तरह ही हवामहल के बाहर मिले | सागर ने ब्लैक कलर की जैकेट पहनी थी और मैं उसे देखती ही रह गई | एकदम मैंने प्यार किया के प्रेम की तरह लग रहा था वो |