उजाले की ओर-----संस्मरण
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सस्नेह नमस्कार
स्नेही मित्रों
कुछ पाने -खोने का नाम है जीवन
सिमटने-बिखरने का नाम है जीवन
इस जीवन में हम कितनी बार कुछ पाते-खोते हैं ,सिमटते-बिखरते हैं --हमें ही पता नहीं चलता |
जैसे कोई पवन उड़ाकर ले जाती है और हम किसी पेड़ की टहनी पर किसी कटी पतंग सी लटके रह जाते हैं |
या फिर कोई कॉपी के फटे पन्ने की तरह से अचानक आई आँधी सी पवन सुदूर किसी इलाक़े में उड़ाकर ले जाती है |
जहाँ हमें अपना पता ही नहीं लगता ,हम कहाँ खड़े हैं ? यहाँ कैसे आए? कहाँ जाना है ? कहाँ अपना ठिकाना है ?
मन स्वयं को समझाता है ,कितनी बार घुड़कता भी है ,कितनी बार फैलता है और कितनी बार सिकुड़ता भी है |
पर --हम तो ऐसे माटी के गुबार हैं जो कभी भी ,कहीं भी ,यहाँ से वहाँ मन के साथ भागते ,दौड़ते रहते हैं |
जीवन के अनगिनत थपेड़ों में हम कभी टूटते ,बिखरते हैं ,कभी स्थिर होने का प्रयास करते हैं |
मोह छोड़ने की बात करते हैं ,पर छूटता कहाँ है मोह !
शायद ,यह हमारी त्रासदी है कि हम सब कुछ समझते हैं फिर भी जैसे किसी अंधकार में जा छिपते हैं |
किसी प्रकाश की प्रतीक्षा में ,हम अपना सारा जीवन ही अंधकार में छिपे रहते हैं |
यह आवरण है ,इस आवरण को हम उतार नहीं पाते |
कभी मन में पीड़ा समेटे ,आँखों में आँसू भरे हम बहुत से भ्रमों के पीछे भागते रहते हैं
मणी के जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव आए | कोई विशेष बात नहीं है | सभी के जीवन में उतार-चढ़ाव आते ही हैं लेकिन जब ये पीड़ा काँच सी चुभने लगे
तब कैसे इससे दूर जाया जाए ? उसके भ्रमों ने उसे इस स्थिति में रखा कि वह समझ ही नहीं पाई कि जीवन के जिस ओर वह खड़ी है ,
वह ठीक है या उसे दूसरी ओर जाना चाहिए |
मणी की बहुत प्यारी दोस्त ने उससे कन्नी काट ली | कारण भी कोई विशेष तो था नहीं |
केवल यह कि उसकी दोस्त ने उसके कान मणी के विरुद्ध भर दिए थे | अच्छी खासी मध्यम आयु की थी मणी लेकिन सरल व सहज !
वह उससे बातों -बातों में बहुत कुछ निकलवाकर उसके बारे में गलतफहमियाँ फैलाती रही और मणी उस पर पहले जैसा ही विश्वास करती रही |
मणी की बड़ी दीदी ने उसे समझाया भी कि वह अपनी सारी बातें अपनी दोस्त रीमा से शेयर न करे क्योंकि वह उसकी बातों का ढिंढोरा पीट रही है |
किन्तु मणी ने अपनी दोस्त के प्रति अंधविश्वास ने उसे दीदी की बात पर विश्वास करने से रोक दिया |
अब जब रीमा उससे बिल्कुल अलग हो गई ,उसकी आलोचना करने लगी तब उसे दीदी कि कही बात याद आईं |
उसे लगा कि उसने दीदी की बात न मानकर बहुत बड़ी गलती की है |
उसने अपने घर की सारी बातों के राज़ उसके सामने फ़ाश कर दिए और फिर अपनी दोस्त की बेवफ़ाई से दुखी होकर बैठ गई |
उसका सब पर से विश्वास उठने लगा और उसने सोचा कि दीदी का कहना न मानकर उसने कितनी बड़ी गलती कर डाली थी |
लेकिन अब चिड़िया फुर्र से उड़ गई थी ,उसके पास अब पछताने के अलावा कुछ भी न था |
हमें नहीं पता चलता और कभी-कभी दोस्ती के धागे ऐसे कच्चे पड़ जाते हैं कि हम ताउम्र उसका मलाल करते रह जाते हैं |
कभी-कभी अपनी सरलता व सीधेपन में हम बहुत कुछ ऐसे काम कर जाते हैं जो हमें पीड़ा के अतिरिक्त कुछ नहीं देते |
क्या ही अच्छा हो कि हम अपने बड़ों के समझाने से एक बार कुछ सोचकर तो देख लें |
वे अवश्य ही हमें सही सलाह देंगे | उनकी बात सुनें तो सही |
केवल ज़िद में आकार ऐसा कोई काम न करें जो हमें ताउम्र पीड़ा देता रहे |
आपकी मित्र
डॉ. प्रणव भारती