Bepanaah - 12 in Hindi Fiction Stories by Seema Saxena books and stories PDF | बेपनाह - 12

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बेपनाह - 12

12

कितने प्यारे लगते हैं मुस्कुराते हुए लोग ! शुभी ने उनके चेहरे को देखते हुए सोचा, ना जाने क्यों आँसू और दुख दर्द बना दिये ईश्वर ने सिर्फ मुस्कान ही बाँट देते जिससे सब लोग हमेशा हंसते और मुस्कुराते रहते ।

आइस क्रीम खाकर सभी के चेहरे पर मुस्कान आ गयी थी ! वाकई बड़ी स्वादिष्ट थी ! अभी हम लोगों के पास टाइम है कहो तो सब लोग यहाँ के घूमने वाले जगहों पर घूम आये, कल मसूरी चले चलेंगे, शाम तक आ जाएंगे फिर यहाँ पर प्ले देख लेंगे ।“ सर ने अपनी बात रखी ।

“हाँ ठीक है चलिये ।” सब एक साथ बोल पड़ी !

“सही है ।” सर बोले ।

“नहीं अभी कहीं नहीं जाएँगे, कल सुबह चलेंगे ! थकान भी हो रही है और ठंड भी बढ़ रही है ।” अंकित ने बीच मेँ ही बात को काटते हुए कहा ।

“यह अंकित भी न, मेरा मन कर रहा है अभी इसका खून कर दूँ ।” हिना मेरे पास आकर धीरे से बड़बड़ाई ।

“हाँ बहन ! इसका बीच मेँ बोलना जरूरी था क्या ? इससे तो किसी ने पूछा ही नहीं था ।” काजल ने अपना मुंह चिड़ाते हुए कहा ।

चलो बच्चो, अब कल सुबह ही चलेंगे ! तुम सब अपने कमरे मेँ जाकर आराम कर लो ! खाने के समय पर बुला लेंगे ! सर ने हम सबसे कहा और खुद अंकित के साथ बाहर की तरफ चले गये ! वे सब कमरे में आकर अंताक्षरी खेलने लगी और शुभी ऋषभ को फोन मिलाकर उससे बात करने लगी ।

रात को अचानक से आँख खुल गयी तो देखा रात के 2 बज रहे थे ! इस समय यह इतना शोर शराबा कहाँ हो रहा था ! जैसे कल हो रहा था ! रात के सन्नाटे में यह शोर कुछ ज्यादा ही तेज हो गया था ! मैंने ध्यान से सुनने की कोशिश की, वही कल जैसे स्वर आ रहे थे ! आदमी चीखता हुआ कह रहा था, साली तीस साल पुरानी पिटी हुई औरत तू क्या समझती है मैं आजीवन तेरा दीवाना बना रहूँगा । उसी आदमी की ज़ोर से हाहाकार मचाता हुआ अट्टहास जैसे रावण हँस रहा हो ।

हे भगवान, यह कैसा आदमी है ? यह कैसी बातें कर रहा है आज सुबह तो खुद ही बैठा रो रहा था और अब इसका यह रूप ! यह सब क्या है ? क्या कहानी है ? क्यों यह अपनी औरत को ऐसी बातें कहता है ? क्या इसे शर्म नहीं है या इसके दिल में दिल नहीं है ? अगर यह इसकी औरत है और तीस साल पुरानी है तो यह भी तो तीस साल पुराना हुआ ? यह कैसे नया हो जायेगा जब वो पुरानी है ।

हे ईश्वर, मर्द खुद को क्या समझता है ? क्या औरत उसकी गुलाम है ? अगर वो उसे प्यार करती है उसके साथ रहती है उसकी सेवा करती है । उसकी हर बात बिना शर्त मान लेती है तो उसे यह सब सुनने को मिलेगा ? जिसने अपनी पूरी जवानी एक मर्द के नाम कर दी, क्या यह सब सुनने के लिए ? मन में बहुत उथल पुथल सी मच गयी और उस मर्द की वजह से हर मर्द के लिए मन में गलत भावना भरने लगी ! किसी औरत के प्यार और समर्पण का यह फल मिलता है तो धिक्कार है इंसान की इंसानियत को ! वो अभी जाकर उस औरत के दर्द को बांटना चाहती थी ! न जाने किस अथाह पीड़ा से अकेले गुजर रही होगी ? कैसे सहन कर रही होगी यह सब और ना जाने कब से ?

“मैं तुम्हें प्रेम करती हूँ, बहुत प्रेम करती हूँ, तुम उस औरत के चक्कर में खुद को बर्बाद मत करो, छोड़ो यह बोतल, अब मैं तुम्हें पीने नहीं दूँगी ।” उस स्त्री का दबा दबा स्वर उभरा ।

“क्यों नहीं पीऊँ ? यह सब तेरी वजह से होता है, अगर मैं तुझे छोड़ दूँ तो वो लौट कर आ जाएगी लेकिन तेरे यह प्यार और समर्पण के झूठे नाटक में फंस जाता हूँ !

“मैं झूठ नहीं हूँ मैं एकदम सच हूँ ! मैं तुम्हें आज भी पहले दिन जैसा ही प्यार करती हूँ और तुम्हारे बिना मर जाऊँगी, मैं नहीं जी सकती हूँ ।”

“तो जा, मर जा जाकर ।” मर्द का कड़कता स्वर और दरवाजे के खुलने और बंद होने की आवाज आई । क्या उस स्त्री को आदमी ने इतनी रात को घर से बाहर निकाल दिया वो भी इतनी ठंड में । हे ईश्वर यह क्या हो रहा है उस औरत की मदद करो या मुझे माध्यम बना दो और किसी भी तरह से इसका जीवन बचा दो, इसका प्रेम बचा दो । इसके सच और विश्वास की मर्यादा मत तोड़ो । इसके मन में प्रेम के लिए जो श्रद्धा है उसे कम मत होने दो क्योंकि श्रद्धा का मतलब होता है आत्मविश्वास और श्रद्धा को जरा भी चोट लगी तो इंसान का अपने ऊपर से ही विश्वास कम होने लगता है और इंसान डिप्रेशन में चला जाता है । इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन डिप्रेशन ही होता है, तब न वो जीने में होता है और न मरने में । मुझे इसके लिए कुछ करना ही होगा ।शुभी के हाथ स्वतः जुड़ गए थे और आँखों से आँसू बह निकले । हे ईश्वर ! अगर तू इस दुनिया में कहीं होगा तो प्रेम की इज्ज़त जरूर बनाए रखेगा,,,किसी के कारण किसी का विश्वास न टूटे ।

उस स्त्री के रोने की तेज आवाजें कुछ धीमी हुई थी लेकिन अभी बंद नहीं हुई थी और वो पुरुष जिसे मर्द कहने का उसका बिलकुल मन नहीं हो रहा था, अभी चुप था, उसकी कोई आवाज कानों में नहीं आ रही थी । कैसे कहूँ मैं उसे मर्द, जो पुरुष अपनी स्त्री पर हाथ उठाए और उसे अपशब्द कहे और उसके प्रेम का अपमान करे, तो वो मर्द कैसे हो सकता है? उसे तो इंसान कहलाने का भी कोई हक नहीं है ।

हे ईश्वर, तुम कमजोर को ही हमेशा क्यों सताते हो ? उसे ही क्यों दुख देते हो ? क्या तुम नहीं जानते कि वो कमजोर है, असहाय है और तुम्हारे सहारे पर है तो क्यों नहीं देते हो उसे अपना सहारा ?

न जाने कितना दर्द मन में भर आया था, न जाने उस पर क्या बीत रही होगी ? काश उसके पास अभी जा पाती तो उसके दर्द को कुछ तो कम करने की कोशिश कर ही सकती थी! भले ही बात करके उसके मन को बहला देती ! उससे कुछ अच्छी बातें करती, लेकिन अभी कैसे जा सकती थी और किसी तरह से चली भी जाती, तो क्या वो मुझसे बातें करती? ना जाने वे कैसी स्त्री होती होंगी जो दूसरी स्त्री का दर्द नहीं समझ पाती होंगी ! मेरा मन तो इसके कारण बहुत बेचैन और व्याकुल सा हो उठा है । शुभी सोच सोच कर परेशान हो रही थी ।

कल की तरह आज भी नींद आँखों से गायब हो चुकी थी ! दूर दूर तक कहीं भी नींद का नामों निशान नहीं था ! क्या करूँ अब ? कैसे नींद आएगी ? क्या नाजमा को जगा लूँ ? नहीं रहने दो, बेचारी अभी ही तो सोई है ! चलो गाने सुन लेती हूँ, शायद बेचैन मन को सकूँ आ जाये । मोबाइल पर यू ट्यूब पर रिलेक्सिंग म्यूजिक लगाया लेकिन बिना ईयर फोन (लीड) के सुन नहीं सकती ! अगर ऐसे ही प्ले कर दिया तो यह सब जग जाएंगी और इनकी नींद खराब होगी ! हे भगवान अब ईयर फोन कहाँ देखूँ अंधेरे में ? तभी याद आया कि हिना सॉन्ग सुन रही थी उसके ईयर फोन यही कहीं होंगे ! हाथ से तकिये के पास टटोला तो वही पर रखे थे ! कान में ईयर फोन लगाकर म्यूजिक प्ले कर दिया ! अनुष्का शंकर का सितार वादन वाला म्यूजिक था ! मन को बड़ा सकूँ सा लगा फिर पता ही नहीं चला कब नींद आ गयी ? सुबह नाजमा के हिलाकर जगाने पर ही आँख खुली ! कानों में अभी भी ईयर फोन लगे थे लेकिन म्यूजिक बंद था ! किसने बंद किया होगा ! मोबाइल उठा कर देखा तो पता चला कि बैटरी खत्म हो गयी है इसीलिए म्यूजिक बंद हो गया ।

“क्या अभी सोने का समय है ? चलना नहीं है ?” नाजमा ने फिर से हिलाया ।

“जग गईं हूँ न, बस अभी उठ रही हूँ ! वैसे कहाँ जाने का प्लान है ?”

“सर ने कहा है, सहस्त्र धारा जा रहे हैं और वहीं पर जाकर नहाये, धोयेंगे ।” नजमा बोली।

“ओके बाबा ठीक है ! सब लोग जा रहे हैं न ?” उसने पूछा ।

“हाँ सब जाएँगे ! अब कोई सवाल जवाब नहीं पहले तैयार हो जाओ ।“

“तैयार कैसे ? नहा कर ही तैयार होंगे न ?”

“अरे भाई मेरा मतलब है बाथरूम जाकर फ्रेश हो जाओ ।” नाजमा मुस्कुराई ।

चलो ठीक है ! आज तो उस महिला से हर हाल में मिलना ही है और उससे उसकी कहानी भी जानना है साथ ही अपनेपन का अहसास देकर ढाढस भी बंधाना है । वो कल रात कितना हलकान हो रही थी ! न जाने कब से वो यह दर्द सह रही है जरूर बहुत बड़ी परेशानी में होगी, ! मुझे शक्ति देना ईश्वर, जिससे मैं उसकी कुछ तो मदद कर सकूँ ! अभी तो सबके साथ जाना ही पड़ेगा, नहीं तो सर नाराज होंगे, क्यों खामखा बात को बढ़ाया जाये।

हम सब तैयार होकर अपने कमरे से बाहर आ गए ! सर और वे सभी लोग चाय पी रहे थे, हम सबने भी चाय पी और सहस्त्र्धारा जाने के लिए निकल गए अभी सुबह के 8 बज रहे थे मौसम बहुत सुहावना हो रहा था थोड़ी ठंडी हवा भी चल रही थी । वहाँ से सहस्त्र धारा काफी दूर थी इसीलिए रोडवेज की बस से जाने के लिए स्टॉप तक आए ! करीब ही था बस स्टॉप लगभग 500 मीटर की दूरी रही होगी ! सभी लोग बस में चढ़ गए, शुभी अभी नीचे ही थी कमरे से बाहर आकर मन बहुत अच्छा हो गया था थोड़ी देर को उस महिला की टेंशन भी दिमाग से निकल गयी थी । सेल्फी लेने का मन हो रहा था तो उधर ही पास में खड़े होकर वो अपनी सेल्फी लेने लगी, उसे इस बात का ध्यान ही नहीं रहा कि सब बस में बैठ गए हैं । तभी पीछे से आकर अंकित ने उसे आवाज लगाई, “क्या बात है शुभी, तुझे चलना नहीं है ? अपनी ये सेलफ़ी लेने की आदत को कभी तो छोड़ दिया कर ।

“ओहह ! हाँ हाँ ठीक है और सब लोग कहाँ है ?”

“वे सब बस में बैठे तेरा इंतजार कर रहे हैं कि तू आकर बैठ जाये तो बस यहाँ से प्रस्थान करे ।” अंकित व्यांगात्मक लहजे में बोला ।

“ज्यादा मत बोला कर ! चल रही हूँ न !” शुभी अंदर से थोड़ा डरी हुई थी फिर भी उसे डपटने के लहजे में बोली ।

वाकई उसके बस में बैठते ही बस चल पड़ी ! उसने देखा सर पीछे बैठे उसे ही लगातार देख रहे हैं । चलो अब मैं आगे से ध्यान रखूंगी उसने अपने मन को समझाया ।

करीब एक घंटे के सफर के बाद वे सब वहाँ पहुँच गए थे ! पतला सकरा रोड जिसके दोनों तरफ दुकानें लगी हुई थी । चप्पल, कपड़े, प्रसाद, खिलौने और वो सब चीजें भी जो किसी मेले में मिलती हैं ।

काजल को एक ड्रेस अच्छी लगी वो दुकान के अंदर जाकर उसके रेट पूछने गयी, तभी सर जो साथ ही चल रहे थे ने कहा, “इसी दुकान से तुम सब लोग भी अपने लिए दो घंटे को किराए पर कपड़े ले लो फिर तुम्हारे कपड़े गीले नहीं होंगे ।”

“किराये पर ?” शुभी ने उत्सुकता वश पूछा !

“हाँ भई ! देखो यह जो हल्के हल्के से टी शर्ट और लोवर हैं न, इनको पहन कर नहा लेना फिर वापस कर देना तुम लोगों के कपड़े गीले नहीं होंगे और सुखाने के झंझट से बच जाओगे ।” वे समझाते हुए बोले ।

ओहह अच्छा तभी यह हर दुकान के बाहर धूप में इतने सारे गीले कपड़े हैंगर में सूखने के लिए लगे हुए हैं ।

सभी लोगों ने वहाँ से ही कपड़े ले लिए और चेंजिंग रूम में चेंज करके सहस्त्र धारा की धारा में उतर गए ! जिसे तैरना आता था वो तैरने लगा बाकी सब किनारे पर ही मिलजुल कर मस्ती करने लगे ! पहाड़ों के ऊपर से टपकती हुई सहस्त्र धाराएँ और इतनी तेज बहाव वाली नदी, लग रहा था कि बड़ी तेजी से भाग कर दूर चली जाना चाहती हो, जैसे कोई इसका इंतजार कर रहा है और इसे उससे मिलने की बेचैनी उस से भी ज्यादा हो। वाकई बहुत ही अच्छा लग रहा था पानी के साथ खेलते हुए और कब दो घंटे गुजरे पता ही नहीं चला ।

“अब तुम सब लोग आ जाओ, चाय पी कर कुछ खा पी लो, नहीं तो ऐसे ही पानी में बैठे रहोगे क्योंकि यहाँ अच्छा ही इतना लगता है कि मन ही नहीं करता वहाँ से हटे ।”

“अभी आ रहे हैं सर बस थोड़ी देर और ।” अंकित ने तैरते हुए कहा ।

“लेकिन बेटा यह कपड़े भी वापस करने हैं फिर वो ज्यादा पैसे माँगेगा ।”

“हाँ हाँ सर ठीक है हम लोग आ रहे हैं !” नाजमा ने बड़े रौले में कहा ! आज शायद वो फूल मस्ती के मूड में थी ! सर चुप रहे वे कुछ नहीं बोले और चाय की दुकान पर जाकर चाय पीने लगे ! थोड़ी ही देर में सबने कपड़े बदले और चाय पीकर छोले भटूरे खाये ! वो खाना इतना स्वादिष्ट लग रहा था कि जिंदगी में कभी वैसा खाना खाया ही नहीं हो ! हालांकि भटूरे से तेल टपक रहा था और छोले में मिर्च तेज थी फिर भी वो जीवन का सबसे अच्छा खाना था ! क्योंकि सब को पानी से खेलते खेलते भूख लग आई थी ! “पापा मेरे लिए मैगी बनवा दीजिये मैं यह नहीं खाऊँगी ।“ हिना अपने पापा से लाड़ दिखाती हुई बोली ।

“ठीक है अभी बनवा रहे हैं ।“ यह कहकर उन्होने होटल के काउंटर पर जाकर मैगी बनाने का ऑर्डर कर दिया ।

अरे सर ने इसे कुछ भी नहीं कहा ! सारी बातें बिना किसी परेशानी के मान लेते हैं ! कितने प्यारे होते हैं पापा लोग ! मन ही मन सोच कर शुभी उदास हो गयी । काश मेरे पापा होते ! क्यों बुलाया भगवान ने इतनी जल्दी उन्हें अपने पास, हर बात मानते थे और हर रोज छुपा कर पैसे भी देते थे कि कहीं मम्मी न देख लें अगर वे देखेंगी तो देने नहीं देंगी ! दुनिया कि सारी खुशियाँ मेरे पास थी कभी उदासी नहीं, कभी कोई दुख नहीं ! पापा मुझे वही सारी खुशियाँ चाहिए । शुभी मन ही मन बुदबुदाई ।

“अरे भाई, क्या सोचने लगी तुम ? और यह आँखों में आँसू ?” मनीष पास में बैठते हुए पूछने लगा ।

“नहीं कोई बात नहीं है बस अपने पापा की याद आ गयी ।”

“अरे यार, इसमें इतना परेशान होने की क्या बात है हम सब हैं न तेरे साथ, बोल क्या चाहिए तुझे ?” अंकित ने उसके सर पर स्नेह से अपना हाथ फेरते हुए कहा ।

“नहीं नहीं कुछ चाहिए थोड़े ही न, बस तुम सब यूं ही मेरे साथ बने रहना ।“ उसकी आँखों से छलकते हुए आँसू थम गए थे । सच में कितने प्यारे हैं यह सब लोग ।