Mout Ka Khel - 28 in Hindi Detective stories by Kumar Rahman books and stories PDF | मौत का खेल - भाग- 28

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मौत का खेल - भाग- 28

स्विमिंग


सिंड्रेला और सलीम आपस में पीठ जोड़े हुए बैठे थे। सिंड्रेला हाथों में फूल लिए उन की पंखुड़ियों को एक-एक कर के तोड़ रही थी। मानो कोई विश का फैसला कर रही हो कि पूरी होगी या नहीं। जब सारी पंखुड़ियां टूट गईं तो वह अचानक सार्जेंट सलीम उर्फ प्रिंस ऑफ बंबेबो के सामने आ कर बैठ गई। उसने दो-तीन बार पलकें झपकाईं और उसके बाद सलीम से पूछा, “तुम सचमुच प्रिंस हो?”

“बिल्कुल! तुम्हें शक क्यों है?” सार्जेंट सलीम ने उसकी आंखों में देखते हुए पूछा।

“प्रिंस जैसे लगते नहीं हो न!” सिंड्रेला ने मुंह बनाते हुए कहा।

“मतलब!”

“तुम में वह नजाकत और अदा नहीं है प्रिंसों वाली!”

“अदा तो लड़कियों में होती है और नजाकत हम महल में रख कर आते हैं। बाहर उनकी क्या जरूरत है!”

“मुझे भी दिखाओ न एक बार नजाकत! मैंने आज तक किसी प्रिंस को नहीं देखा न!”

“प्रिंस तुम्हारे सामने बैठा है। जितना चाहो उतना देख लो।”

“नहीं मुझे तुम्हारी नजाकत देखनी है। मैं जानना चाहती हूं कि नजाकत क्या होती है?” सिंड्रेला ने जिद करते हुए कहा।

सलीम ने हाथ बढ़ाकर एक फूल तोड़ा और फिर हाथों को हाफ राउंड देते हुए सिंड्रेला को फूल पेश कर दिया। उसके बाद कहा, “नजाकत इसे कहते हैं।”

“मैं समझी नहीं।”

“अगर मैं सीधे-सीधे आपको यह फूल यूं दे देता तो यह सिंपल सी बात होती, लेकिन जिस तरह से मैंने आपको पेश किया वही नजाकत है।” सलीम ने एक्टिंग करते हुए बताया।

“रुको मैं भी करती हूं।”

इसके बांद सिंड्रेला ने प्रिंस ऑफ बंबेबो यानी सार्जेंट सलीम को वह फूल पेश कर दिया। अलबत्ता उसने हाथ को दो बार घुमा दिया था। उसकी इस कोशिश पर सलीम मुस्कुराए बिना नहीं रह सका। सिंड्रेला हंसने लगी।

सलीम ने उससे पूछा, “तुम्हारे यहां कपड़े बहुत शानदार सिले जाते हैं। मैं सोच रहा हूं कि अपने कपड़े भी तुम्हारे यहां से सिलवाया करूं।”

“अफकोर्स!” सिंड्रेला ने कहा। फिर उसने पूछा, “अभी कपड़े कहां सिलते हैं तुम्हारे?”

“हमारे स्टेट के ही एक टेलर मास्टर हैं मियां जुम्मन। वह सीते हैं हमारे कपड़े। अब उनकी आंखों से जरा कम ही दिखता है। उन्होंने मेरी एक पैंट सिली है। उसमें एक पांयचा पैंट का है और दूसरा निक्कर का।” सलीम ने गंभीरता से कहा।

“अरे नहीं! ऐसा कैसे कर दिया उन्होंने!” सिंड्रेला ने ताज्जुब से पूछा।

“मैंने बताया न कि उन्हें अब जरा कम दिखता है। वह कपड़ा मैंने एक फंक्शन के लिए सिलवाए थे। फिर मुझे वैसे ही पहन कर जाना पड़ा। नतीजे में आज हमारी स्टेट में एक बड़ा और एक छोटा पांएचा फैशन बन गया है।” सलीम ने गंभीरता से कहा।

“सच कह रहे हो...!” सिंड्रेला ने कहा।

“झूठ बोलने की कोई वजह नहीं है।” सलीम ने जवाब दिया। फिर उसने पूछा, “एक बात बताओ... मैंने तुम्हारे यहां दस कपड़े दिए सिलने को और अगर वह बाकी कपड़ों में मिक्स हो गए तो मुझे फिर ऐसी ही कोई परेशानी होगी।”

“हम एक मैकेनिजम पर काम करते हैं। टेलर कपड़ों पर निशान लगाता है। यही नहीं टेलर जो कपड़ा सिलता है उसका रिकॉर्ड भी अपने पास रखता है।” सिंड्रेला ने समझाते हुए कहा।

“वेरी गुड...! अच्छा मैं तुम्हें एक कपड़ा दिखाता हूं। क्या तुम पता कर के बता सकती हो कि वह कपड़ा किसने सिलवाया था?”

“बिल्कुल!” सिंड्रेला ने कहा।

सार्जेंट सलीम ने मोबाइल में डॉ. वरुण वीरानी को पहनाए गए कपड़े और कॉलर पर लगा टैग उसे दिखा दिया। इसके बाद उसने दोनों ही फोटो सिंड्रेला के मोबाइल पर सेंड भी कर दिए।

“मैं तुम्हें कल तक बता दूंगी।” सिंड्रेला ने कहा। उसके बाद वह बोली, “तुम भी न... इतनी खूबसूरत जगह पर कपड़ों की बात लेकर बैठ गए। मैं जा रही हूं स्विमिंग करने।”

“तुम्हें स्विमिंग आती है?” सलीम ने पूछा।

“बिल्कुल आती है। मैं हार्स राइडिंग भी कर लेती हूं और स्कीइंग भी।” सिंड्रेला ने कहा।

उसके बाद उसने अपने कपड़े उतार दिए और टू पीस में झील में कूद गई। वह यकीनन अच्छी तैराक थी। सार्जेंट सलीम का चेहरा झील की तरफ ही था, लेकिन वह अपनी सोच में गुम था। उस का ध्यान केस में ही उलझा हुआ था।

“तुम भी आ जाओ।” सिंड्रेला ने आवाज दी।

“हमारे स्टेट में लड़कियों के साथ स्विमिंग करना मना है।” सार्जेंट सलीम ने टालते हुए कहा।

“किसी को क्या पता कि तुम मेरे साथ स्विमिंग कर रहे हो।”

“अब तुम भी जल्दी से बाहर आ जाओ।”

कुछ वक्त बाद सिंड्रेला झील से बाहर आ गई। सलीम के पास आकर उसने अपने सर को हलका सा झटका दिया और पानी की ढेर सारी बूंदें सलीम पर गिर कर बिखर गईं। सिंड्रेला खिलखिला कर हंसने लगी। सिंड्रेला अपने कपड़े लेकर सार्जेंट सलीम के पीछे चली गई। उसने पीछे से सलीम को हिदायत देते हुए कहा, “मैं कपड़े चेंज कर रही हूं। तुम पीछे मत देखना।”

नामों की लिस्ट


इंस्पेक्टर सोहराब लॉर्ड एंड लैरी टेलर्स के यहां से मिली लिस्ट को खंगाल रहा था। वह चेक कर रहा था कि थर्टी फर्स्ट की पार्टी में शामिल कितने लोग ऐसे हैं जो लॉर्ड एंड लैरी में कपड़े सिलवाते हैं। दो साल के ग्राहकों की लिस्ट से नाम तलाशना मुश्किल काम था। यह काम करना ही था। वह काफी देर से इसमें लगा हुआ था। उसे अब तक बीस नाम मिल चुके थे। बस कुछ पेज और बचे थे।

सोहराब ने सिगार सुलगा ली और बाकी बचे पेज भी चेक करने लगा। सिगार खत्म होते-होते वह पेजेज भी उसने चेक कर डाले। कुल 25 नाम ऐसे थे, जो राजेश शर्बतिया की पार्टी में शामिल थे और वह लार्ड एंड लैरी में कपड़े सिलवाते थे।

सोहराब ने एक बार फिर उन नामों को शार्ट आउट करना शुरू किया। इनमें सात नाम महिलाओं के थे। इन नामों को उसने लिस्ट से बाहर कर दिया। जो कपड़े डॉ. वरुण वीरानी को पहनाए गए थे, वह अपने रंग-रूप और आकार के हिसाब से पुरुष के कपड़े ही हो सकते थे। अब लिस्ट में कुल 18 नाम बचे थे। सोहराब ने वह नाम अपनी नोटबुक में दर्ज कर लिए।

शाम के छह बज रहे थे। सोहराब ऑफिस से निकल आया। वह पार्किंग लॉट की तरफ जा रहा था। उसने फैंटम का दरवाजा खोला और कार स्टार्ट कर दी। खुफिया विभाग के गेट पर पहुंचकर उसने रिमोट से गेट खोला और बाहर निकल आया। गेट से कुछ दूर जा कर उसने कार रोक दी। उसने मोबाइल निकाल कर राजेश शरबतिया को फोन मिलाया और कुछ देर बात करके फोन रख दिया। फैंटम एक बार फिर चल पड़ी।

फैंटम का रुख राजेश शरबतिया की शहर वाली कोठी की तरफ था। उसने बैक मिरर में पीछे की तरफ देखा। कहीं पीछा तो नहीं किया जा रहा है। कई बार चेक करने के बावजूद उसे ऐसी कोई गाड़ी नजर नहीं आई, जिस पर पीछा करने का शुबहा किया जा सके। फैंटम की रफ्तार तेज थी। सोहराब किसी सोच में डूबा हुआ था।

सोहराब की निगाहें विंड स्क्रीन पर जमी हुई थीं। वह बैक ग्लास में पीछे भी देख लेता था। उसकी कार राजेश शरबतिया की कोठी की तरफ घूम गई। तभी उसने एक कार को बाहर आते हुए देखा। उसे एक महिला चला रही थी। सोहराब ने पहली ही झलक में उसे पहचान लिया। यह वही महिला थी, जो थर्टी फर्स्ट नाइट की पार्टी में गलती से सोहराब के कमरे में आ कर सो गई थी। बाद में उसने उसे लाशघर में भी देखा था। उस महिला की सोहराब से कुछ पल के लिए नजरें भी मिलीं, उसके बाद वह दूसरी तरफ देखने लगी।

सोहराब ने गेट पर खड़े गार्ड को अपना परिचय बताया और उसने उसे अंदर जाने दिया। राजेश शरबतिया ने गार्ड को उसके आने के बारे में पहले ही बता दिया था। सोहराब ने कार को पार्किंग लाट में ले जा कर रोक दिया। वह फैंटम से उतर कर सीधे कोठी की तरफ चल दिया। बहुत आलीशान कोठी थी। सफेद संगमरमर से बनाई गई थी। शाम की लाली इस संगमरमर पर भी साफ नजर आ रही थी। कोठी का रंग गुलाबी सा हो गया था। पार्किंग के बगल में काफी लंबा चौड़ा बाग था। इस हिस्से से कोठी काफी ऊंचाई पर थी। कोठी तक जाने के लिए लिफ्ट भी थी और सीढ़ियां भी थीं।

सोहराब ने सीढ़ियों का रास्ता चुना था। वह 16 सीढ़ियां चढ़ने के बाद कोठी के बरामदे तक जा पहुंचा। बरामदे में ही उसे राजेश शरबतिया मिल गया। शायद उसने सीसीटीवी में सोहराब को देख लिया था। उसने सोहराब का बहुत गर्मजोशी से स्वागत किया। सोहराब ने उससे हाथ मिलाते हुए कहा, “नाइस सूट। बहुत शानदार फिटिंग है। कहां सिलवाते हैं?”

“थैंक्यू! हमारे यहां के कपड़े तो बरसों से लॉर्ड एंड लैरी के यहां ही सिलते हैं।” राजेश शरबतिया ने मुस्कुराते हुए कहा।

वह सोहराब का हाथ पकड़ कर ड्राइंग रूम में लेकर चला गया। ड्राइंग रूम यूरोपियन स्टाइल में सजाया गया था। एक कोने में एक आदमकद खूबसूरत सा स्टैचू खड़ा था। सफेद संगरमर से बना यह स्टैचू एक लड़की का था। उसकी आंखें बहुत खूबसूरत बनाई गई थीं। यूं लगता था जैसे वह लड़की आंखों से मुस्कुरा रही हो। मूर्तिकार ने अपना सारा हुनर उसकी आंखों में ही दिखा दिया था। हालांकि मूर्ति का बाकी हिस्सा भी बहुत बारीकी से उभारा गया था।

एक तरफ दीवार पर ऑयल पेंट से बनी तीन पेटिंग लगी हुई थीं। यह शायद शरबतिया के पुरखों की पेंटिंग थीं। यह पेंटिंग शरबतिया फैमिली के विकास क्रम को भी दिखा रही थीं। सबसे पहली पेंटिंग में दिखने वाले बुजुर्ग धोती और कमीज पहने हुए थे। सर पर उन्होंने काले रंग की टोपी लगा रखी थी। उनकी घनी मूंछें थीं। दूसरे नंबर की पेंटिंग में मूंछें जरा पतली हो गई थीं। उन्होंने भी धोती कुर्ता पहन रखा था। सर पर काली की जगह सफेद टोपी आ गई थी। तीसरी पेंटिंग राजेश शरबतिया के पिता की थी। उन्होंने छाती तक बंधी एक ढीली सी पैंट पहन रखी थी। होठों पर बार्डर लाइन मूछें थीं और सर पर गोल हैट था। वह अपनी फोर्ड मॉडल कार के सामने खड़े थे।

शरबतिया ने सोहराब को सोफे पर बैठाते हुए कहा, “तुम पहली बार यहां आए हो। मैंने तो कई बार बुलाया, लेकिन तुम और तुम्हारा काम। तुम्हें तो कहीं आने जाने की फुरसत ही नहीं है।”

“नहीं ऐसा नहीं है। बस इत्तेफाक रहा कि अकसर तुमसे मुलाकात ऑफिस में ही हो जाती थी। इस वजह से कभी इधर आना ही नहीं हुआ।”

“तुम शराब तो पीते नहीं हो। डिनर तो करोगे न साथ?” राजेश शरबतिया ने स्नेह से पूछा।

“मैं माफी चाहूंगा। डिनर फिर कभी कर लूंगा। दरअसल मैं इधर आया हुआ था। सोचा तुम से भी मिल लूं।” सोहराब ने कहा।

राजेश शरबतिया ने मेज से रिमोट उठा कर बेल बजाई और एक लड़की तेजी अंदर आ कर खड़ी हो गई। राजेश ने उससे कहा, “प्रिया, बेहतरीन नाश्ता लेकर आओ।”

“इस तकल्लुफ की जरूरत नहीं है राजेश!” सोहराब ने कहा।

“मुंह बांध कर आए हो क्या!” राजेश ने हंसते हुए कहा। सोहराब भी हंसने लगा।

“तुम्हारी तफ्तीश कहां तक पहुंची... याकि केस ही बंद हो गया?” राजेश शरबतिया ने पूछा।

“कुछ कह नहीं सकता कि क्या होगा!” सोहराब ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया। फिर कहने लगा, “बहुत अजीब केस है। अब तक यह ही तय नहीं हो सका कि यह हादसा था या कत्ल?”

“मतलब!” राजेश शरबतिया ने आश्चर्य से पूछा।

“यह भी तो मुमकिन है कि खेल-खेल में कातिल बने शख्स से गलती से ज्यादा गला दब गया हो!” इंस्पेक्टर सोहराब ने कहा।

“मुमकिन तो है।” राजेश शरबतिया ने सोचते हुए कहा।

“यह मौत का खेल खेलने की तजवीज मेजर विश्वजीत ने रखी थी न?” सोहराब ने पूछा।

“हां.. लेकिन क्यों?” राजेश शरबतिया ने चौंकते हुए पूछा।

“नहीं बस यूं ही ख्याल आ गया। काफी दिलचस्प खेल है।” सोहराब ने कुछ देर ठहरने के बाद कहा, “लेकिन अगर सचमुच का कत्ल न हो जाए तो!”

सोहराब की इस बात पर राजेश थोड़ा सकपका गया।

“अभी तुम्हारी कोठी से एक कार निकली है। उसे कोई लेडी चला रही थीं। वह भी तो पार्टी में मौजूद थीं न। क्या नाम है उनका?” सोहराब ने अचानक ही पूछ लिया।

“मेरे यहां तो कोई नहीं आया। मैं खुद अभी ऑफिस से लौटा हूं। तुम पहले मेहमान हो।” राजेश शरबतिया ने कहा।

तभी सोहराब की निगाहें खिड़की की तरफ उठ गईं। उसने देखा कि कोई खिड़की से झांक रहा है। सोहराब के उस तरफ देखते ही वह तेजी से हट गया। खिड़की पर हिलता उस का साया भी धीरे-धीरे ओझल हो गया।

*** * ***


राजेश शरबतिया के घर इंस्पेक्टर सोहराब क्यों गया था?
खिड़की से झांकने वाला कौन था?

इन सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़िए कुमार रहमान का जासूसी उपन्यास ‘मौत का खेल’ का अगला भाग...