उस दिन के बाद वीर प्रताप को फिर जूही से मिलने की जरूरत नहीं लगी। उसे याद बहुत आती थी। लेकिन उस याद का कोई मतलब नहीं था। वह जितना उससे दूर रहे, इसी में उन दोनों की भलाई थी। कुछ दिनों बाद राज उससे मिलने आया।
" अंकल इतनी सारी गोलियों के साथ क्या कर रहे हैं आप?" राज ने डायनिंग टेबल पर बैठे हुए वीर प्रताप से पूछा। उसके सामने कई सारी दवाइयों की बोतलें खोल कर रखी हुई थी पानी के गिलास के साथ।
" यह मेरी दवाइयां है सर दर्द के लिए बुखार के लिए वजन कम होने की वजह से तंदुरुस्ती के लिए उदासी के लिए।" वीर प्रताप ने धीमी आवाज में कहां।
" उदासी के लिए भी कोई दवाई होती है क्या ?" राज उसे देखे जा रहा था।
" उदासी के लिए मतलब यह मेरी डिप्रेशन की दवाई हैं । यहां क्यों आए हो चले जाओ मुझे अकेला रहना है।" वीर प्रताप ने चिड़ते हुए, राज से कहा।
" अरे अंकल सुनिए ना, आपको पता है दादा जी एक लड़की को लाए हैं। और मुझे उसकी सेवा करने के लिए कहा है। और यह तक कि उस पर आपका कोई महत्वपूर्ण काम सौंपा गया है। बताइए ना वह इतनी महत्वपूर्ण क्यों है ?" राज ने वीर प्रताप के सामने बैठते हुए पूछा।
" बदमाश कहीं के। जिसको भुलाने के लिए मैं अपनी दवाइयां खा रहा हूं। मेरे सामने बैठकर उसी की बातें किए जा रहे हो।" वीर प्रताप हर बोतल में से एक गोली ली और खा गया। अपनी जगह से उठकर बाहर चला गया।
राज कुछ देर तक वहीं पर बैठा रहा कुछ देर बाद यमदूत अपने कमरे से बाहर आया। " टेनेंट अंकल क्या आपको पता है मेरे अंकल इतना अजीब बर्ताव क्यों कर रहे हैं ?"
" पता नहीं।" यमदूत वीर प्रताप की कुर्सी पर बैठा। उसने भी सारी बोतल में से एक एक गोली ली और एक घूंट में गटक गया।
" यह क्या कर रहे हैं इतनी दवाइयां क्यों खाई?" राज ने उससे पूछा।
" मुझ में भी सारे वही लक्षण है। मैं एक लड़की को सामने देख रो पड़ा। उसके बाद से मुझे डिप्रेशन हो रहा है। नींद नहीं आ रही। बार-बार किसी की याद आ रही है। मुझे भी उसे भूलना है।" यमदूत ने जवाब दिया।
" यह हो क्या गया है आप दोनों को?" राज को दोनों का बर्ताव बहुत ज्यादा अजीब लग रहा था। उसने वह पूरा दिन दोनों के साथ बिताने का तय किया।
वीर प्रताप को बिल्कुल भी भूख नहीं थी। वह अपने बगीचे में बैठ जूही की दी हुई पत्ति को घूर रहा था। उसके दिमाग में सवाल थे। क्यों ? वही क्यों?
" अच्छा। तो वह अनोखी दुल्हन है। इसका मतलब मेरे अंकल की दुल्हन। जिसे वो कई सालों से धुडं रहे हैं। अब मैं समझा।" राज ने उसके सामने बैठे हुए यमदूत से कहा। " पर वह लड़की ही क्यों ?"
" नहीं पता।" यमदूत को राज को पूरी बात बताना जरूरी नहीं लगा।
" वह बिल्कुल भी अंकल के टाइप की नहीं है। इसीलिए वह डिप्रेशन में चले गए हैं। मेरे बेचारे अंकल।" राज ने अफसोस जताया।
" यह सब भगवान का खेल है। तुम जैसा इंसान समझ नहीं पाएगा।" यमदूत।
" भगवान भी ना। अजीब खेल खेलते हैं। वैसे आपको बता दूं, जो प्लेट आपने बैठे-बैठे जमा दी। वह मेरे अंकल की फेवरेट प्लेट है। वह इसे लूइज द ग्रेट..." यमदूत की आंखें देख राज ने अपने आप को उसी वाक्य पर रोक लिया।
" जरा फिर से कहना तो?" यमदूत।
" मैं मजाक नहीं कर रहा हूं। वह सच में...." यमदूत ने फिर से राज को आंखें दिखाई। " ठीक है खैर जाने दीजिए। आपको वह लड़की याद है ना, जिसको देखकर आप रोने लगे थे। आपको पूरा यकीन है कि, आप उससे पहली बार मिले थे। मतलब ऐसा भी हो सकता है। कि शायद आप उससे पहले भी कभी मिले हो। लेकिन यह बात आपको याद नहीं है याद करने की कोशिश कीजिए।"
" नहीं। मुझे पूरा यकीन है हम वहां पहली बार मिले थे।" यमदूत।
" ठीक से याद कीजिए उसकी आंखें उसके होंठ उसका चेहरा।" राज ने यमदूत को कुछ याद दिलाने के हिसाब से कहां।
यमदूत 5 मिनट के लिए फिर से उस वक्त में चला गया। जब वह सनी से पहली बार मिला था। यकीनन सनी बेहद खूबसूरत है। कई ज्यादा खूबसूरत। वही आंखें वही होंठ। भगवान के बनाए कानून के हिसाब से, यमदूत कभी किसी भी भावनाओं को महसूस नहीं कर सकते। लेकिन सनी को देख पहली बार इस यमदूत ने दुख महसूस किया था। दर्द महसूस किया था। ऐसा दर्द जिसकी वजह वह खुद भी नहीं जानता।
दूसरी तरफ जब जूही स्कूल जाने के लिए निकली बादल फिर से भर आए थे। ' मैंने कहा था ना तुम्हें मुझे नहीं बताना चाहिए था। क्यों बताया तुमने मुझे ? क्या आज भी तुम उदास हो ? क्या मेरा तुम्हारी उदासी बांटने का तक हक नहीं है ? तुम क्यों उदास हो ?' जूही के चेहरे की मुस्कान जमे हुए बादलों को देख ही चली गई थी ऊपर से वीर प्रताप की उदासी ने उसके मन में गहराई भर दी। एक उदासी दूसरे के दर्द की वजह बन गई। पहली बार किसी ने किसी से इतना अपनापन महसूस किया था। भला वो वीर प्रताप को अकेले कैसे छोड़ती।
अकेलेपन के साथ दोनों के दिन बीत रहे थे। पर ये अकेलापन उनके अलावा भी और किसी के जीवन में दस्तक दे रहा था। एक मुलाकात ने सनी का जीवन जो बदल दिया था।