Swarn mudra aur Businessman - 4 in Hindi Fiction Stories by Shakti Singh Negi books and stories PDF | स्वर्ण मुद्रा और बिजनेसमैन - भाग 4

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स्वर्ण मुद्रा और बिजनेसमैन - भाग 4

एक दिन सब काम निपटा के मैं जरा किसी काम से थोड़ी दूर स्थित एक मार्केट की तरफ चला. उस दिन ड्राइवर की छुट्टी थी अतः मैं खुद ही अपनी मर्सिडीज़ कार ड्राइव कर रहा था. हालांकि ड्राइविंग में मेरा हाथ पूरा सेट है. मैं अच्छी ड्राइविंग जानता हूं. लेकिन अचानक उस दिन ड्राइविंग करते - करते बार-बार मेरी आंखों के सामने अंधेरा सा छाने लगा. अचानक सामने से आते एक बड़े से ट्रक से मेरी कार की भिड़ंत हो गई. उसके बाद मुझे कुछ याद ना रहा.


कुछ देर बाद मेरी आंखें खुली तो मैंने देखा की सब कुछ हल्का - हल्का सा हो रखा है. और मैं एक खुशबूदार रास्ते पर अकेला बैठा हूं. मैं खड़ा हुआ. मुझे अपना शरीर हल्का और बढ़िया सा लगा. मैं रास्ते पर आगे बढ़ने लगा. रास्ते के दोनों तरफ सुंदर - सुंदर फूल लगे हुए थे. थोड़ी देर बाद मैं एक बड़े से सोने के फाटक के सामने पहुंचा. मेरे जाते ही फाटक खुल गया. फाटक पर लिखा था जन्नत.


मैं फाटक के अंदर दाखिल हुआ तो अचानक 72 हूरों ने मुझे घेर लिया. कुछ दिन तक मैं वही रहा. 72 परियों के साथ मैं पूरी जन्नत घूमता रहा. अचानक जन्नत के राजा ने मुझे बुलाया और बोला वत्स तुम यहां गलती से आ गए हो. मैंने अपने दूत को किसी और को लाने के लिए भेजा था. तुम्हारा नाम भी वही था. गलती से वह तुम्हें ले आया. जाओ तुम वापस चले जाओ.


फिर अचानक मैंने खुद को एक हॉस्पिटल के कमरे में देखा. सामने देख कर मैं आश्चर्य में पड़ गया. मैं तो वहां हॉस्पिटल के पलंग पर पड़ा हुआ था और साथ में अभी खड़ा भी था. अचानक मुझे एक झटका सा लगा और हम दो से फिर एक हो गए. हॉस्पिटल के पलंग में लेटे - लेटे मेरी आंखें खुल गई. अचानक सामने खड़ा व्यक्ति जो कि डॉक्टर था, ख़ुशी से चिल्लाया अरे वाह 3 महीने कोमा में रहने के बाद आखिर सर ठीक हो ही गये.


आपकी क्या राय है? यह क्या घटना हुई? ऐसी घटना किसी और के साथ भी हुई है? तो धड़ाधड़ कमेंट कीजिए धन्यवाद.








एक बार में ध्यान मैं बैठा हुआ था कि अचानक मुझे कुछ लोगों के चिल्लाने की आवाज सुनाई दी. मैंने अपना ध्यान और दृढ किया तो पता चला कि मेरे पितृ परलोक में बहुत परेशान हैं. कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने पाप किए थे. जिससे वे नरक लोक में सजा भुगत रहे हैं. साथ ही दुनिया में भी कई लोग परेशान हैं. मैंने सोचा कि मैं उन सब के लिए कुछ करूं.


मैं एक टाइम खाना खाने लगा. दो टाइम नहाने लगा. परोपकार करने लग गया. मैंने एक गाय भी पाली. एक काला कुत्ता भी पाल लिया. अब मेरा जीवन परोपकार के लिए समर्पित हो गया. रात - दिन मैं भगवान का नाम जपता और परोपकार करता. अचानक एक दिन भगवान प्रकट हुये. बोले पुत्र तुमने बहुत पुण्य किया है. बताओ तुम्हारी क्या इच्छा है.


मैंने भगवान से कहा हे भगवान जितना पुण्य मैंने किया है उसका 10% मुझे प्राप्त हो ताकि मेरा जीवन और भी पवित्र और परोपकार पूर्ण हो. 50% पृथ्वी के लोगों को मेरा पुण्य जाए ताकि उनका जीवन और भी सफल और भी अच्छा और भी मानवीय हो जाए. 20% मेरे मरे हुए पुरखों और पूर्वजों को मिले ताकि वे नरक की यातना से छूटें और परलोक में वह अपना जीवन सुखी और पवित्रता से बिताएं. बाकी बचा हुआ 20% सभी पूर्व में मरे हुए जीवों और मनुष्यों को मिले ताकि वह भी सुखी हों और स्वर्ग में वास करें. भगवान ने प्रसन्न होकर कहा तथास्तु.


आपकी राय में मैंने गलत किया या सही? कृपया कमेंट कीजिए धड़ाधड़ धड़ाधड़ धन्यवाद.








एक बार मेरे शहर में पानी की बहुत कमी हो गई.गर्मी का मौसम था. चारों तरफ त्राहि-त्राहि मच गई. अचानक मुझे न्यूज़ में पता चला कि मंगल ग्रह पर बर्फ के रूप में बहुत सा पानी है. मैंने एक अंतरिक्ष यान तैयार किया. अब मैं अंतरिक्ष यान में बैठकर मंगल ग्रह पर चला गया.


वहां से मैं बहुत सारा पानी बर्फ के रूप में पृथ्वी पर ले आया. कुछ मैंने अगल-बगल के पानी पीड़ित क्षेत्रों में बांट दिया और कुछ अपने शहर में ले लिया. शहर में मैंने तालाब भर दिये और जगह-जगह पानी की सप्लाई शुरू कर दी. इससे मैंने बहुत धन भी कमाया. लेकिन मैंने पानी की कीमत बहुत कम रखी. जिससे एक निर्धन व्यक्ति भी पानी को ले सके.


आपकी क्या राय है? क्या मैंने सही किया? तो कमेंट कीजिए धड़ाधड़ धड़ाधड़ धड़ाधड़.








मेरी दूर की एक आंटी थी. उनके पति थोड़ा बीमार ही रहते थे. इसलिए कुछ समय से उनकी दुकान कम चल रही थी. आंटी ने मुझे अपनी हेल्प करने के लिए कुछ समय के लिए बुलाया. जाते ही मैंने आंटी की दुकान संभाल ली. मैं दुकान चलाने लगा. दुकान थोड़ा कम ही चलती थी. मैंने देखा कि अंकल की बीमारी की वजह से पुराना काफी स्टॉक जमा हो चुका है.


इसलिए मैंने सबसे पहले दुकान की डेंटिंग - पेंटिंग करवाई. दुकान अब चमकने बैठ गई. इससे थोड़ा बिक्री बढ़ गई.अब मैंने दुकान के पूरे सामान के लागत मूल्य की गणना की तो पता चला कि दुकान में लगभग ₹50 लाख का सामान है. मैंने बिल्कुल निष्क्रिय बहुत पुराने फैशन वाले कपड़ों की सेल निकाल ली. इससे मुझे लगभग 20 लाख रुपए प्राप्त हुए. यह ₹20लाख मैंने दुकान के अकाउंट में जमा करवा दिये. अब दुकान थोड़ा खुली - खुली सी लगने बैठ गई. जिससे सेल थोड़ा बढ़ गई. लास्ट में मैंने दुकान का बाकि पूरा सामान 1 बहुत बडी़ दीपावली सेल में निकाल दिया. इसमें लगभग मुझे 35 लाख रुपए मिले. इसे भी मैंने दुकान के अकाउंट में जमा करवा दिया.


टोटल कीमत मुझे 55 लाख रुपए मिल चुकी थी. जिसमें ₹50 लाख का मुनाफा भी था. अब मैंने ₹51 लाख अकाउंट में ही रहने दिये और फायदे के बाकी ₹4 लाख से विभिन्न किस्म के थोड़े - थोड़े आइटम लिए. क्योंकि दुकान का रेनोवेशन हो चुका था और यह बिल्कुल नये फैशन का सामान बाहर से मंगवाया था. इसलिए दुकान बहुत तेजी से चलने लग गई. कुछ ही समय में 4 लाख रुपए की यह रकम बढ़कर फायदे के साथ करोड़ों में पहुंच गई.


मैंने आंटी के मकान का भी रेनोवेशन करवाया और उनके कुछ फालतू कमरे किराए पर चढ़वा दिये. जिससे उनकी इनकम बढ़ गई.


आंटी यह देख कर मुझसे बहुत खुश हुई. धीरे-धीरे मेंने अंकल जी का भी इलाज करवा दिया और घर में मौजूद सभी सदस्यों की छोटी-मोटी बीमारियों का भी इलाज करवा दिया. आंटी मुझसे बहुत खुश हुई. आंटी ने अपनी दूर की एक रिश्तेदार जो बहुत ही सुंदर लड़की थी, के साथ मेरी शादी करवा दी.


आंटी ने एक मकान मेरे नाम करवा दिया और कपड़े के बिजनेस में 60% हिस्सेदारी मेरे नाम कर दी. मैंने मकान का रेनोवेशन करवाया. कुछ कमरे अपने लिए रखे और बाकी कमरे किराए पर चढ़ा दिए. इससे मेरी इनकम और बढ़ गई.


अब अपनी इनकम का 75% हिस्सा मैं अनाथालय आदि सामाजिक कार्यों में दान देने लगा.


आपकी क्या राय है? क्या मैंने सही किया? अगर हां तो धड़ाधड़ धड़ाधड़ कमेंट कीजिए धन्यवाद.








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