Betrayal-(Season-2)--Part(18) in Hindi Fiction Stories by Saroj Verma books and stories PDF | विश्वासघात-(सीजन-२)--भाग(१८)

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विश्वासघात-(सीजन-२)--भाग(१८)

दूसरे दिन सुबह नाश्ते की टेबल पर शर्मिला बुझी बुझी सी नहीं लग रही थी,उसे रात में करन ने बड़े प्यार से समझाया था,करन का साथ पाकर शर्मिला को जीने की राह मिल गई थी,वो भी उसे चाहने लगी थी,सेठ गिरधारीलाल जी ने भी सोचा था कि जैसे ही विश्वनाथ वाला मामला रफा-दफा होता है तो वे करन और शर्मिला की शादी कर देंगें,
यही मर्जी धर्मवीर और अनवर चाचा की भी थी,उन्हें भी शर्मिला,करन के लिए पसंद थी और लाज के लिए उन्हें प्रकाश पसंद था,धर्मवीर चाहते थे कि विश्वनाथ के जेल जाने के बाद वें दोनों बच्चों के उनकी पसंद के संग हाथ पीले कर देंगें।।
तभी सुरेखा ने शर्मिला को टोकते हुए कहा....
शर्मिला! लगता है आज तुम्हारा जी अच्छा है।।
हाँ! आज वेटर फील कर रही हूँ,शर्मिला ने जवाब दिया।।
और क्या बिटिया? ऐसे ही रहा करो,तुम्हें खुश देखकर हम सबको भी अच्छा लगता है,सेठ गिरधारीलाल जी बोले।।
जी! अंकल ! अब आपको शिकायत का मौका नहीं दूँगी,शर्मिला बोली।।
देख शर्मिला! आज तेरी ही पसंद का नाश्ता बनवाया है,आलू के पराँठे,पुदीने-धनिए की चटनी और साथ में बूँदी का रायता,आज तो खाकर बस मजा ही आने वाला है,सुरेखा बोली।।
थैंक्स! सुरेखा! तू मेरा कितना ध्यान रखती है,शर्मिला बोली।।
थैंक्स किसलिए? मैं तेरे लिए इतना भी नहीं कर सकती,मुझे लगा तुझे अच्छा लगेगा,इसलिए बनवा दिए,सुरेखा बोली।।
मुझे बहुत अच्छा लगा,शर्मिला बोली।।
और सब गरमागरम आलू के पराँठो का मज़ा लेने लगें,तभी फोन की घंटी बजी और दीनू ने जाकर फोन उठाया और फिर बोला....
छोटे साहब! आपके लिए फोन है।।
आता हूँ,इतना कहकर करन फोन उठाने चला गया,फोन सुनकर वापस टेबल पर आया तो सेठ गिरधारीलाल जी ने पूछा....
बेटा! किसका फोन था?
जी! वो प्रकाश भइया का था,कुछ जरूरी कागजात के बारें में बात कर रहे थे,उन्हें कुछ पता चला है,दोपहर में विकास पेपर दे जाएगा,मैं तो घर पर रहूँगा नहीं तो सुरेखा तू विकास से पेपर ले लेना,करन ने कहा।।
जी! भइया! ले लूँगी पेपर,सुरेखा बोली।।
हाँ! ध्यान रहें,जरूरी पेपर हैं,सम्भाल कर मेरे कमरे में रख देना,करन बोला।।
जी! भइया! मुझे सब मालूम है,सुरेखा बोली।।
हाँ! अब मेरा नाश्ता खतम हो चुका है,मैं अब पुलिसचौकी जाता हूँ,इतना कहकर करन ने घर से बाहर आकर अपनी मोटरसाइकिल स्टार्ट की और चल पड़ा,पुलिसचौकी की ओर।।
दोपहर हुई ,शर्मिला और सुरेखा बस दोपहर का खाना खाने ही जा रहीं थीं,गिरधारीलाल जी अपने आँफिस गए हुए थे और तभी दरवाजे की घंटी बजी,दीनू ने जाकर खोला और सुरेखा से बोला.....
मेमसाब! कोई विकास बाबू आएं हैं।।
अच्छा! ठीक है,उन्हें अन्दर भेज दो,सुरेखा बोली।।
जी,मेमसाब! और इतना कहकर दीनू ने विकास को भीतर आने को कहा,
विकास भीतर आया तो सुरेखा बोली...
जी! तशरीफ़ रखिए,
विकास सोफे पर बैठते हुए बोला....
प्रकाश भइया ने करन भाई के लिए कुछ पेपर भेजे थे।।
जी! पुलिसचौकी जाने से पहले भइया ने बताया था,सुरेखा बोली।।
तभी शर्मिला भी बाहर आकर बोली....
विकास जी !आप! उस रात की पार्टी के बाद आज मुलाकात हुई है।।
जी! शर्मिला जी! सही कहा आपने,विकास बोला।।
मैं दीनू से बोलकर इनके लिए चाय बनवा देती हूँ,सुरेखा बोली।।
चाय-वाय रहने दो सुरेखा! खाने का समय ,साथ मे मिलकर खाना ही खा लेते हैं,शर्मिला बोली।।
तुम जानती नहीं हो क्या शर्मिला? ये कितने भुक्खड़ हैं?हमारे लिए कुछ भी नहीं बचेगा,पार्टी वाली रात देखा था ना कि कैसे दबा दबा कर खाया था इन्होंने,बिल्कुल गले तक,सुरेखा बोली।।
ये सुनकर शर्मिला हँस पड़ी फिर बोली....
तू भी कैसीं बातें कर रही है? मेहमानों के खाने से कहीं खाना कम पड़ता है क्या?अरे !विकास जी! आप आइए और हमारे साथ लन्च कीजिए।।
पहले आपकी सहेली तो इजाज़त दे दे,विकास बोला।।
अरे,ये तो बड़बोली है,इसकी बातों का क्या बुरा मानते हैं? दिल की बुरी नहीं है,शर्मिला बोली।।
हाँ,मुझे भी ऐसा ही लगता है,विकास बोला।।
ऐ...सुनो...कोई गलतफहमी मत पालो,मैं सच में बहुत बुरी हूँ,सुरेखा विकास को धमकाते हुए बोली।।
खाने के लिए बैठू या नहीं,पता चला बैठ गया तो उस रात की तरह हाथों से प्लेट छिन जाएं,विकास बोला।।
अरे ! आप बैठिए,मैं तो हूँ,डरिए मत,शर्मिंला बोली।।
डरना पड़ता है शर्मिला जी! भूखी शेरनियों से डरना पड़ता है....,विकास बोला।।
अरे,ये तो डरपोक चुहिया है,अभी काँकरोच देख ले ना तो डरकर सोफें पर चढ़ जाएगी,आप बैठिए,मैं खाना परोसती हूँ,शर्मिला बोली।।
और फिर सभी खाना खाने लगें,आज शर्मिला का जी अच्छा था इसलिए आज उसने पकौड़ा-कढ़ी और भरवाँ बैंगन बनाएं थे और बाकी खाना तो दीनू ने ही बनाया था,विकास खाने बैठा तो बस खाता ही गया,उसे खाने का बहुत शौक है ,जब कभी मन करता है तो घर में भी खाना पकाता है।।
उसका खाना देखकर सुरेखा चिढ़ रही थी और विकास जब उसकी तरफ देखता तो वो अपने खाने की रफ्तार कुछ कम कर लेता,लेकिन धीरे धीरे फिर रफ्तार बढ़ जाती,उन दोनों के तमाशे शर्मिला ध्यान से देखकर मंद मंद मन ही मन मे मुस्कुरा रही थी।।
सबका खाना खतम हुआ तो विकास बोला....
अच्छा जी! तो मैं अब चलता हूँ।।
हाँ! जाइए ना! किसने रोका है आपको? सुरेखा बोली।।
देखिए जी! इस तरह से बात मत कीजिए,खाना ही तो खाया है मैने आपका कोई धन थोड़े ही छीन लिया है,विकास बोला।।
मैं आपसे कोई बहस नहीं करना चाहती,सुरेखा बोली।।
लेकिन मुझे आपसे बहस करने में बहुत मज़ा आता है,विकास बोला।
मुझसे बहस करने में आपको कौन सा मज़ा आता है भला! सुरेखा ने पूछा।।
जब आप गुस्से से लाल-पीलीं होतीं हैं तो बड़ी प्यारी लगतीं हैं,विकास बोला।।
फिर सुरेखा कुछ ना बोल सकी और अपनी पलकों को झुकाकर रह गई और विकास चला गया,विकास के जाने के बाद शर्मिला ने सुरेखा से मज़ाक़ करते हुए कहा....
लगता है तुझ पर फिद़ा हैं जनाब!
मैं तो ऐसों को घास भी ना डालूँ,सुरेखा बोली।।
घास ना डाल लेकिन कभी कभी खाना जरूर डाल दिया कर,बन्दा खाने का शौकी़न लगता है,शर्मिला हँसते हुए बोली।।
सच कहती हो,बस चरता ही जा रहा था,साँस ही नहीं लेता खाने के वक्त,सुरेखा हँसते हुए बोली।।
मैं भी सब देख रही थी और उसे खाता देख कर तू चिढ़ रही थी,शर्मिला बोली।।
चिढ़ नहीं रही थी,बस उसकी हरकतों से परेशान हो जातीं हूँ,वैसे बन्दा दिल का बुरा नहीं है,सुरेखा बोली।।
वो तो मुझे तभी पता चल गया था जब उसने कहा था कि तुम गुस्से में प्यारी लगती हो,लगता है कि वो तुझे पसंद करने लगा है,शर्मिला बोली।।
ऐसा कुछ नहीं है,सुरेखा बोली।।
ऐसा ही है मेरी जान,तेरी पलकों को मैने शरम से नीचे होते हुए देखा था,शर्मिला बोली।।
तुम्हें कोई गलतफहमी हुई है,सुरेखा बोली।।
इश्क और मुश्क छुपाएं नहीं छुपते,तुम चाहे कितनी भी कोशिश कर लो,शर्मिला बोली।।
और इसी तरह सुरेखा और शर्मिला के बीच विकास को लेकर के हँसी-मज़ाक चलता रहा...
फिर शाम हुई और शाम से रात हुई और उधर विश्वनाथ के बँगले के टेलीफोनफोन की घण्टी बजी,विश्वनाथ ने टेलीफोन उठाकर हैलो बोला....
उस तरफ से आवाज़ आई....
बाँस मैं रंगा,आपको जरूरी खबर देनी थी....
हाँ बोलो! मैं सुन रहा हूँ,विश्वनाथ बोला।।
बाँस मुझे बिल्ला ने आकर ये ख़बर दी है कि उस जूली का असली नाम लाज है,रंगा बोला।।
हरामखोर! ये बात तो मुझे भी पता है कुछ नया बताओ,विश्वनाथ गुस्से से चीखकर बोला।।
हाँ! बाँस! और वो इन्सपेक्टर करन है ना वो लाज का सगा भाई है,करन का असली पिता सेठ गिरधारी लाल नहीं कोई टैक्सी ड्राइवर धर्मवीर है,उसके घर का हमने पता कर लिया है,रंगा बोला।।
ये सुनकर तो एक पल के लिए विश्वनाथ के होश ही उड़ गए और खुद को सम्भालते हुए उसने रंगा से पूछा,
और इसके अलावा क्या क्या पता किया?
यही कि बचपन में करन अपने बाप धर्मवीर से बिछड़ गया था,उसे सेठ गिरधारीलाल ने पालपोसकर बड़ा किया है,सेठ गिरधारीलाल की एक बेटी भी है और क्लब का खबरी प्रकाश है ना उसकी एक बूढ़ी माँ भी है,छोटा भाई भी है जो उसके साथ क्लब आता है,शकीला बानो को सबकुछ पता है और उसने ये बात आपसे छुपाई,रंगा बोला।।
शकीला नमकहराम को तो मैं देख लूँगा,लेकिन पहले तुम अपने आदमियों से कहो कि जो शहर से बाहर काली पहाड़ी है वहाँ चूना पत्थर की खादानों के पास मेरा एक और वहाँ अड्डा है,तुम प्रकाश की माँ,जूली ,गिरधारीलाल की बेटी को उठवाकर वहाँ बंद कर दो,फिर मैं उस हरामजादे करन को टेलीफोन करता हूँ,अगर हिम्मत है तो बचा ले सबको,विश्वनाथ बोला।।
लेकिन बाँस! आज रात तो जूली का कैबरे डान्स है क्लब में और वहाँ प्रकाश जरूर आऐगा अपने भाई के साथ,कमीने को वहीं धर दबोचेगें,रंगा बोला।।
जो कुछ करना है जल्दी करो,मुझे केवल अच्छी खबर ही चाहिए,विश्वनाथ बोला।।
जी! बाँस! ऐसा ही होगा और इतना कहकर रंगा ने टेलीफोन काट दिया....
तभी विश्वनाथ मन में सोचने लगा.....
अच्छा तो करन और लाज,धर्मवीर के बच्चे हैं और लाज सारी सच्चाई से वाकिफ है,मुझे इतने दिनों धोखा दे रही है,मैं उनका ये प्लान कभी भी कामयाब नहीं होने दूँगा,हरामजादा धर्मवीर भी जिन्दा है अभी तक तो वो अनवर भी जिन्दा होगा,तो ये सब मिलकर मेरे खिलाफ सुबूत जुटा रहे हैं,मैं ये हर्गिज़ नहीं होने दूँगा।।

और उस रात जब जूली का कैबरे खतम हुआ तो वो अपने मेकअप रूम पहुँची,वहाँ उसके पास प्रकाश भी आया,दोनों बातें कर ही रहे थे कि मेकअप रूप के दरवाज़े पर दस्तक हुई,प्रकाश और जूली डर गए,प्रकाश ने इशारों में जूली से कहा कि दरवाजा खोलो,तुम जैसे ही दरवाजा खोलोगी,मै दरवाजे की ओट में छिप जाऊँगा.....
जूली ने जैसे ही दरवाजा खोला तो वहाँ विश्वनाथ अपने कई गुण्डो के साथ खड़ा था और उसने जूली से पूछा....
जूली!मुझे पहचानती हो।।
जी! नहीं ! कौन हैं आप? और यहाँ क्या कर रहे हैं?जूली बोली।।
मै तुम्हारा विश्वनाथ अंकल हूँ,जिसने तुम्हारी जिन्दगी बरबाद की है,विश्वनाथ बोला।।
अब यहाँ क्या करने आएं हो?मैं तुम्हारा खून पी जाऊँगी,तुमने ही मेरी माँ को मारा था और इल्जाम पापा पर डाल दिया था,जूली चीखी।।
इतना नाजुक गला और इतनी तेज आवाज़,जरा सा और चीखी तो पीटर को तेरे गले पर छुरी चलाते देर ना लगेगी और इतना कहकर विश्वनाथ मेकअप रूम के भीतर आ गया फिर उसने लाज और प्रकाश को रस्सी से बँधवा दिया और उनके मुँह पर भी पट्टियांँ बाँध दीं।।

क्रमशः....
सरोज वर्मा.....