Taapuon par picnic - 55 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | टापुओं पर पिकनिक - 55

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टापुओं पर पिकनिक - 55

आगोश को कभी- कभी बचपन में उन्हें स्कूल में सिखाई गई बातें याद आती थीं तो वो भावुक हो जाता था।
उनके एक टीचर कहते थे कि यदि तुम हॉस्टल की मैस से दही या फल चुरा कर खा रहे हो तो ये ग़लत है, लेकिन यदि तुमने अपनी चुराई हुई रोटी किसी भूखे भिखारी को दे दी तो तुम्हारा अपराध कुछ कम हो जाता है।
वह लेटा - लेटा सोचता- क्या उसके पिता भी कोई ऐसा ही प्रायश्चित कर रहे हैं? क्या उन्हें ये अहसास हो गया है कि उन्होंने ग़लत तरीक़े से ढेर सारा पैसा कमा लिया है तो अब उन्हें उस पैसे को लोगों की भलाई में ही लगाना चाहिए? क्या वो इसीलिए इतना बड़ा हस्पताल खड़ा कर रहे हैं?
एक पल के लिए उसके सुलगते हुए दिल को ठंडक पहुंचती।
लेकिन अगले ही क्षण वह ये सोच कर फ़िर विचलित हो जाता कि सुल्तान और अताउल्ला जैसे शागिर्दों को लेकर उसके पिता किसी अच्छे काम की योजना बना रहे हों, ये बात गले नहीं उतरती। यह हॉस्पिटल नहीं, बल्कि हॉस्पिटल की आड़ में कोई व्यापारिक केंद्र ही होगा। जल्लादों का गांव! लोगों को लूटने वाला आखेट महल।
उसका पेट गुड़गुड़ाने लगता। उसे लगता कि पेट की इस खलबली को थामने का एक ही उपाय है, वह अलमारी से बोतल निकाल कर बैठ जाता।
फ़िर वो न दिन देखता, न रात। न अकेलापन देखता न साथ। शुरू हो जाता।
उसे तेन के दीवानेपन पर हंसी भी आती और खीज भी होती। ये उसने क्या किया? लोग हंसेंगे ही। उसे पागल भी समझेंगे ही।
ग़लती आगोश की ही तो थी। नशे में होता है तो किसी का भला- बुरा कुछ सोच नहीं पाता। सब कुछ उगल देता है।
उसी ने तो तेन को बता दिया था कि उसके एक्टर दोस्त आर्यन ने मधुरिमा से दोस्ती बढ़ा कर उसे प्रेगनेंट कर दिया है और अब अपने करियर का वास्ता देकर पीछे हटना चाहता है।
मधुरिमा बेहद भावुक है। वो आर्यन की निशानी से किसी भी क़ीमत पर छुटकारा नहीं पाना चाहती। वह बच्चे को जन्म देना चाहती है। और इसका एक ही उपाय है कि आर्यन मधुरिमा से शादी कर ले। क्योंकि शादी के बिना बच्चे को जन्म देना मधुरिमा जैसी लड़की को बर्बाद कर देगा। वह न जी पाएगी और न मर ही सकेगी।
उधर आर्यन कहता था कि लड़कियों को इतना भावुक नहीं होना चाहिए। यदि उन्हें लड़कों की दोस्ती में ज़रा सी असावधानी से ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ता है तो इसके लिए वैज्ञानिक उपायों का सहारा लेने में कोई हर्ज़ नहीं है।
भावना ज़िन्दगी को बेहतर बनाए, जटिल नहीं। अन्यथा आधुनिक जीवन की उपलब्धियों का मोल ही क्या?
अगर शरीर में कोई गांठ हो जाए तो ऑपरेशन से निकलवाते ही हैं न, तो वैसे ही शरीर में किसी का बीज पड़ जाने से कुछ उगने लगे तो उसे हटाने में क्या नुक़सान है?
आर्यन जैसा सुलझा हुआ लड़का भी ये बात इसलिए कहता था कि वो मधुरिमा को धोखा नहीं देना चाहता था। वह उसे कोई झूठा आश्वासन भी नहीं देना चाहता था। वह साफ़ कहता था कि वो मधुरिमा से कभी शादी नहीं करेगा।
आगोश के ये सब बता देने के बाद ही तेन के दिमाग़ में ऐसा फितूर आया था।
और कोई तरीका भी तो नहीं था मधुरिमा से अपने दिल की बात कहने का।
तेन ने ये अजीबो- गरीब कदम आगोश को बता कर ही उठाया था। वो मधुरिमा को एक करोड़ रूपए दे आया।
उसका गुप्त प्रस्ताव था कि मधुरिमा बच्चे को जन्म दे। यदि वो चाहेगी तो तेन बच्चे को ले लेगा।
यहां तक कि वो तो इस बात पर भी तैयार था कि मधुरिमा चाहे तो तेन से विवाह करके उसके साथ चले।
यही कारण था कि घर से लौट कर आने के बाद आगोश के पास सबके फ़ोन आए पर वो किसी को कुछ भी बता न सका।
कौतूहल, विस्मय और संदेह की लहरें उसके तमाम दोस्तों को भिगोती रहीं।
तेन की बात ग़लत नहीं थी। वह आगोश से कहता था कि दुनिया ग़लत तरीक़े से बनी हुई है। पहले संचार और आवागमन के प्रचुर साधन नहीं थे, इसलिए अलग- अलग देशों में अलग- अलग संस्कृतियां बन गईं। अलग- अलग मूल्य पनप गए।
एक जगह की धारणाएं दूसरी जगह कारगर नहीं हो सकतीं। कोई देश या समाज गोरे रंग को श्रेष्ठता का पैमाना मानता है, तो कोई ऊंचे लंबे कद को सौंदर्य कहता है। अब यदि किसी देश में लोग प्राकृतिक रूप से नाटे ही होते हैं तो क्या वहां कभी किसी को सुंदर माना ही नहीं जाएगा?
ऐसी भ्रांतियों और ग्रंथियों को तोड़ने के लिए ये ज़रूरी है कि लोग एक दूसरी जगह जाएं। एक दूसरे को देखें। आपस में घुलें - मिलें ताकि सार्वभौमिक मान्यताएं उजागर हो सकें। यदि नहीं हैं तो बनें।
यही दुनिया भर में टूरिज्म का फलसफा था। इसी के लिए प्रयत्न करना चाहते थे आगोश और तेन जैसे लोग।
तेन श्रीमती कस्तूरीवाला की छातियों का इसीलिए दीवाना था। वह आर्यन का बीज अपने देश में इसीलिए ले जाना चाहता था। उसे मधुरिमा जैसी लंबी लड़की अपने देश में नस्ल सुधार के लिए चाहिए थी। वो भारत की लाचार- गरीबी पर अपने देश की मुद्रा बरसाना चाहता था। वह दुनिया भर में पर्यटन की हवा फैलाने का कायल था।
आगोश कहता- हमारे देश की जनसंख्या ज़्यादा है। हम गरीब नहीं हैं। अगर तुम लोग हम लोगों जितने ही हो जाओ तो तुम्हें भी जीने की किल्लत हो जाएगी।
पर तेन उसे पलट कर जवाब देता- तुम हमेशा ऐसे ही रहोगे। क्योंकि तुम लोगों में आदमी से आदमी की होड़ का संक्रमण है। तुम सबको समान समझ ही नहीं सकते। तुम्हें एक भोगी और चार शोषित चाहिएं ही चाहिएं।
थोड़ी देर के लिए तुम चार कार लेकर संतुष्ट हो जाओगे पर जिस क्षण तुम्हारे पड़ोसी ने चार गाड़ियां ख़रीद लीं, उसी पल तुम फ़िर गरीब हो जाओगे। तब तुम्हें पांचवीं चाहिए।
हमारे यहां अस्सी साल का संपन्न आदमी भी बाज़ार से अपना सौदा- सुलफ खुद जाकर लाता है। तुम्हारे यहां एक संपन्न आदमी को चार नौकर या सहायक ज़रूर चाहिए।
- साले, चुप कर... आगोश कहता और दोनों पीने बैठ जाते।
आगोश को अपने पिता की निर्माणाधीन इमारत का पता चलने के बाद उन दोनों का वहां खोज- बीन के लिए जाना तो बंद हो ही गया था क्योंकि आगोश डरता था कि पिता के लोगों में से कोई भी उसे वहां देख न ले।
आगोश को मधुरिमा से झूठ भी बोलना पड़ा कि उसे तेन द्वारा दिए गए तोहफ़े के बारे में कुछ पता नहीं है।
इस बार आगोश घर आया तो सबने मिलकर उसकी ख़ूब हंसी उड़ाई।
मधुरिमा ने इतनी अक्लमंदी ज़रूर की थी कि तेन द्वारा दिए गए तोहफ़े के रूप में रुपयों से भरे पैकेट को वो मनप्रीत के साथ जाकर अपने बैंक लॉकर में रख आई थी। उसने अपने घर में इस बाबत किसी को कुछ भी बताया नहीं था।
लेकिन एक बात से सब चमत्कृत थे। वो सब ये जान कर हैरान थे कि मधुरिमा के पापा जिस वास्तुशास्त्री को अपने घर के अपशकुन को टालने के इरादे से लाए थे, उसके कहने पर उन्होंने घर में बहुत कुछ बदलाव किए थे। ऊपर वाले कमरे में भी एक खिड़की को बंद करवा कर दूसरी ओर की दीवार में खिड़की निकाली गई थी।
लेकिन सबसे ख़ास बात ये थी कि उस आदमी ने मधुरिमा के पापा से ये भी कहा था कि ये सब परिवर्तन हो जाने के बाद उनके घर पर धन की देवी लक्ष्मी का अंधड़ बरसेगा। कहीं से उड़ कर धन आयेगा।
शहर के बेहतरीन कॉलेज- स्कूलों में पढ़े ये सब बच्चे जो ऐसी बातों को अंधविश्वास कहते थे, इस संयोग पर हैरान थे।