गाई द मोपासां की कहानी ‘सिमॉन’स पापा’ का हिन्दी अनुवाद
बारह बजे थे। स्कूल का दरवाजा खुला और जल्दी से बाहर निकलने की फ़िराक़ में एक-दूसरे को धकियाते बच्चे बाहर निकले। लेकिन शीघ्रता से तितर-बितर होने और खाने के लिए घर जाने की बजाय, जैसा कि उनका प्रतिदिन का रूटीन था, वे कुछ दूर जाकर रुक गए और ग्रुपों में बँटकर कानाफूसी करने लगे।
बात यह थी कि उस दिन ला बलैंचटे का पुत्र सिमॉन पहली बार स्कूल आया था।
उन सभी बच्चों ने अपने-अपने परिवार में ला बलैंचटे के बारे में सुना हुआ था; और यद्यपि सार्वजनिक रूप से उसका स्वागत होता था, फिर भी माताएँ आपस में उसके प्रति घृणा की भावना रखती थीं। यह बात बच्चों को भी पता थी चाहे वे इसका कारण नहीं जानते थे।
जहाँ तक सिमॉन का प्रश्न है, वे उसे परिचित नहीं थे, क्योंकि वह कभी बाहर नहीं निकाला था, और न ही गाँव की गलियों या नदी किनारे उनके साथ खेला था। इसलिए वे उससे प्यार नहीं करते थे; और आश्चर्यमिश्रित जिज्ञासा से वे आज सुबह ग्रुपों में इकट्ठा होकर, चौदह-पन्द्रह वर्ष के एक बालक जिसे सब कुछ पता होने का गुमान था, द्वारा गढ़ा गया यह वाक्य आपस में दोहरा रहे थे : ‘तुम्हें पता है! - सिमॉन का पापा नहीं है।’
ला बलैंचटे का पुत्र अपनी बारी आने पर स्कूल की दहलीज़ पर प्रकट हुआ।
वह सात-आठ वर्ष का बच्चा था। वह कमजोर किन्तु साफ़-सुथरा था, लेकिन भीरु व अटपटा लग रहा था।
वह अपनी माँ के पास घर जा रहा था कि उसके स्कूल के साथियों के विभिन्न ग्रुप जो निरन्तर कानाफूसी कर रहे थे तथा उसके साथ कोई क्रूर शरारत करने पर उतारू थे, उसके इर्द-गिर्द इकट्ठे होने लगे और उसे घेर लिया। वह हैरान, परेशान था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वे उसके साथ क्या करने वाले हैं।
जिस बालक ने यह ख़बर फैलाई थी कि सिमॉन का पापा नहीं है, उसने अपनी सफलता पर इतराते हुए पूछा - ‘तुम्हारा क्या नाम है?’
उसने उत्तर दिया - ‘सिमॉन।’
‘सिमॉन क्या?’ दूसरे ने प्रतिवाद किया।
बुरी तरह से घबराए बच्चे ने दुहरा दिया - ‘सिमॉन।’
बालक उसपर चिल्लाया - ‘तुम्हारा नाम सिमॉन ‘कुछ’ तो रखा गया होगा! केवल सिमॉन कोई नाम नहीं हो सकता।’
रोने की कगार पर पहुँचे उसने तीसरी बार उत्तर दिया - ‘मेरा नाम सिमॉन है।’
शरारती बच्चे हँसने लगे। बालक ने विजय की मुद्रा में ऊँची आवाज़ में कहा - ‘अच्छी तरह देख लो, इसका पापा नहीं है।’
गहरी चुप्पी छा गई। बच्चे इस असम्भव व अजीबोग़रीब घोषणा से भौंचके रह गए कि एक लड़का ऐसा भी है, जिसका पापा नहीं है। वे उसे एक अद्भुत, अस्वाभाविक प्राणी के रूप में देखने लगे और अपनी माताओं की ला बलैंचटे के प्रति अब तक अबूझ दया की अनुभूति अपने अन्तर्मन में महसूस करने लगे। स्वयं सिमॉन एक वृक्ष के सहारे खड़ा हो गया ताकि वह गिरने से बच सके और वह इस प्रकार स्तब्ध खड़ा था जैसे कि कोई आसन्न आपदा घटित होने वाली हो। वह कुछ कहने का प्रयास कर रहा था, किन्तु उसे कोई उत्तर नहीं सूझ रहा था। इस भयंकर आरोप को झुठलाने का कोई उपाय नहीं था कि उसका पापा नहीं है। आख़िरकार हताश होकर वह चिल्लाया - ‘हाँ, मेरा पापा है।’
लड़के ने जवाब माँगा - ‘कहाँ है वह?’
सिमॉन चुप था, उसे कुछ मालूम न था। बच्चे उतेजना से भरे चीखे। इन असभ्य व पाशविक वृत्ति वाले बच्चों को उसी तरह की क्रूर उत्कट ख़ुशी का अनुभव हुआ जैसा कि खेतों में रहने वाले पंछी को अपनी ही प्रजाति के किसी घायल पंछी को मारकर होता है। अचानक सिमॉन को पड़ोसी विधवा का छोटा पुत्र दिखा, जिसे उसने हमेशा स्वयं की भाँति अपनी माँ के साथ अकेले देखा था।
उसने कहा - ‘तुम्हारा पापा भी नहीं है, तुम्हारा पापा नहीं है।’
दूसरे ने जवाब दिया - ‘मेरा पापा है।’
सिमॉन ने प्रतिवाद किया - ‘कहाँ है वह?’
बिगड़ैल बच्चे ने बड़े गर्व से कहा - ‘वह मर चुका है, मेरा पापा क़ब्रिस्तान में है।’
बेहयाई के बीच सहमति की खुसरपुसर होने लगी जैसे कि क़ब्रिस्तान में दफ़न पापा का होना उसके साथियों के लिए पर्याप्त था एक ऐसे बच्चे को तड़पाने के लिए जिसका पापा नहीं था। और ये बदमाश जिनके पिता बहुधा दुर्जन, नशेडी, चोर-उच्चके तथा पत्नियों को प्रताड़ित करने वाले थे, एक-दूसरे को धकेलते हुए सिमॉन के नज़दीक आते गए और स्वयं को सही समझते हुए इस बच्चे को सबक़ सिखाने पर उतारू हो गए।
सिमॉन के पास खड़े लड़के ने उसे चिढ़ाने के लिए अचानक में जीभ मुँह से बाहर निकाली और चीखते हुए कहा - ‘कोई पापा नहीं इसका! कोई पापा नहीं!’
जब उसने उसकी गालों पर ज़ोर से चाँटा मारा तो सिमॉन ने दोनों हाथों से उसके बालों को जकड़ लिया और उसकी लातों पर प्रहार करने लगा। दोनों के बीच घमासान संघर्ष छिड़ गया। सिमॉन बुरी तरह पिटा। ज़ख़्मी होकर ख़ुशी के मारे तालियाँ पीटते आवारा बदमाशों के घेरे में ज़मीन पर गिर पड़ा। धूल से सने हाथ और कपड़े झाड़ते हुए जैसे ही वह उठा, एक बदमाश चिल्लाया - ‘जाओ और अपने पापा को बताओ।’
उसे अपना दिल बैठता हुआ महसूस हुआ। वे उससे अधिक ताकतवर थे। उन्होंने उसे पीटा था और उसके पास उनके सवाल का कोई जवाब नहीं था, क्योंकि वह जानता था कि उसका पापा नहीं है। फिर भी गर्व से उन्मत उसने कुछ पलों तक आँसुओं को रोकने की कोशिश की जिनसे उसे घुटन हो रही थी। घुटन की वजह से आँसुओं का सैलाब फूट पड़ा और वह निरन्तर सुबकता रहा। तब उसके दुश्मनों के बीच क्रूर हँसी का फ़व्वारा फूट पड़ा और जैसे डरावने त्योहारों में बर्बर और असभ्य प्रदर्शन करते हैं, उन्होंने एक-दूसरे के हाथ थामे और घेरे में नाचते हुए दुहराने लगे - ‘कोई पापा नहीं इसका! कोई पापा नहीं!’
अचानक सिमॉन ने सुबकना बन्द कर दिया। वह उन्माद से उत्तेजित हो गया। उसके पैरों के पास पत्थर पड़े थे, उसने उन्हें उठाया और पूरी ताक़त से सताने वालों पर फेंका। दो-तीन लड़कों को पत्थर लगे। वे चिल्लाते हुए भाग खड़े हुए। वह इतना दुर्जेय लग रहा था कि अन्य भी घबरा गए। जैसे मज़ाक़ करने वाली भीड़ हताश आदमी के सामने टिक नहीं पाती, उसी तरह से वे भाग खड़े हुए। अकेला होने पर, बिना पापा का बच्चा खेतों की ओर दौड़ने लगा, क्योंकि अनुस्मरण ने जाग्रत होकर उसकी आत्मा को बड़ा निर्णय लेने पर बाध्य कर दिया। उसने नदी में डूबने का निश्चय कर लिया।
असल में, उसे याद आया कि आठ दिन पहले एक भिखारी जीवनयापन के लिए पैसा न मिलने पर नदी में कूद गया था। सिमॉन तब वहीं था, जब उसकी लाश निकाली गई थी। उस आदमी का उस समय का भद्दा व वीभत्स दृश्य अब उसे भला लगने लगा - उसका पीला पड़ा चेहरा, लम्बी भीगी दाढ़ी और शान्ति से भरपूर उसकी खुली आँखें। आसपास खड़े लोगों ने बताया था - ‘वह मर चुका है।’
किसी एक ने यह भी कहा था - ‘वह अब बहुत खुश है।’
अत: सिमॉन डूबना चाहता था क्योंकि उसका पापा नहीं है जैसे कि मनहूस आदमी ने पैसा न होने की वजह से किया।
वह पानी की ओर बढ़ा और बहते पानी को देखने लगा। कुछ मछलियाँ स्वच्छ धारा में ऊपर को आती थीं और कभी-कभी उछलकर सतह पर उड़ती मक्खियों को निगल लेती थीं। उन्हें देखने की फ़िराक़ में उसने रोना बन्द किया, क्योंकि उनका इस तरह आहार पाना उसे अच्छा लग रहा था। लेकिन किसी वक़्त जैसे तूफ़ान के बीच तेज हवाएँ वृक्षों को उखाड़ देती हैं और फिर शान्त हो जाती हैं, यह विचार घनीभूत पीड़ा के साथ उसके मन को उद्वेलित करने लगता - ‘मैं स्वयं को डुबाना चाहता हूँ, क्योंकि मेरा पापा नहीं है।’
मौसम गर्म तथा सुहाना था। खिली हुई धूप से घास भी गर्म थी। पानी दर्पण की भाँति चमक रहा था और सिमॉन कुछ मिनटों तक रोने के बाद होने वाली शिथिलता की ख़ुशी में मग्न था, चाहता था कि दोपहर की नरम-गरम घास पर कुछ देर के लिए सो लिया जाय।
एक नन्हा मेंढक उसके पाँवों के पास से फुदका। उसने उसे पकड़ने का यत्न किया। वह बच निकला। उसने उसका पीछा किया और इस प्रयास में तीन बार असफल रहा। अन्तत: उसने उसे आगे वाली एक टाँग से पकड़ लिया और उसके छूटने के प्रयास को देखकर हँसने लगा। मेंढक ने अपनी बड़ी टाँगों पर खुद को समेटा और ज़ोर के झटके से उन्हें दो मज़बूत सलाख़ों की तरह से फैला दिया।
इसकी आँखें अपने गोल, सुनहरे घेरों से घूर रही थीं और इसने अपने आगे के अंगों को हाथों की भाँति प्रयोग करते हुए हवा को पीछे धकेला। इसे देखकर उसे लकड़ी के सीधे टुकड़ों से बने खिलौने का स्मरण हो आया जिसपर टेढ़े-मेढ़े कील जड़े हुए होते थे जो उनपर कसे हुए सिपाहियों की गतिविधियों को नियंत्रित करते थे। तब उसे अपने घर और माँ की याद आई और दुखी होकर फिर वह रोने लगा। उसके अंग फड़फड़ाने लगे और उसने घुटनों पर झुककर प्रार्थना की जैसा कि वह सोने से पहले करता था। लेकिन वह प्रार्थना पूरी नहीं कर पाया, क्योंकि तेज सिसकियों ने उसे अभिभूत कर दिया। उसे कुछ भी नहीं सूझा; उसे अपने इर्द-गिर्द कुछ दिखाई नहीं दिया। बस सुबकता रहा।
अचानक एक भारी हाथ उसके कंधे पर पड़ा और एक खुरदरी आवाज़ ने उससे पूछा - ‘प्रिय दोस्त, किस बात से इतने दुखी हो?’
सिमॉन ने घूमकर देखा। लम्बे क़द, काली दाढ़ी और घुंघराले बालों वाला एक कर्मी प्यार से उसे निहार रहा था। आँखों में आँसू और भर्राई आवाज़ में उसने जवाब दिया - ‘उन्होंने मुझे पीटा है, क्योंकि …. मेरा ….. मेरा कोई पापा नहीं है …. कोई पापा नहीं मेरा।’
आदमी ने मुस्कुराते हुए कहा - ‘क्या! हर व्यक्ति का पापा होता है।’
बच्चे ने दु:ख की ऐंठन में बड़ी मुश्किल से उत्तर दिया - ‘लेकिन मेरा …. मेरा …. मेरा कोई पापा नहीं है।’
इतना सुनकर कर्मी गम्भीर हो गया। उसने ला बलैंचटे के पुत्र को पहचान लिया था। यद्यपि उसे यहाँ आए हुए थोड़ा समय ही हुआ था, उसे बलैंचटे के इतिहास का कुछ-कुछ अनुमान था।
‘ठीक है’, उसने कहा - ‘शान्त हो जाओ, मेरे बेटे। मेरे साथ अपनी माँ के पास चलो। वह तुम्हें पापा देगी।’
इस प्रकार बड़े ने छोटे का हाथ पकड़ा और वे घर की ओर चल दिए। आदमी एक बार पुनः मुस्कुराया, क्योंकि वह बलैंचटे को प्रसन्न देखना चाहता था, जो आम धारणा के अनुसार उस क्षेत्र की सुन्दरतम लड़कियों में से एक थी …. और उसे हृदय की गहराई से सुनाई दिया कि एक लड़की जो एक बार गलती कर चुकी है, शायद दुबारा भी कर ले।
वे एक साफ़-सुथरे छोटे-से सफ़ेदी किए घर के सामने पहुँचे।
‘यही हमारा घर है’, बच्चे ने कहा और ज़ोर से बोला - ‘मम्मा …।’
एक स्त्री बाहर आई। कर्मी उसी समय मुस्कुराते हुए चलने लगा, क्योंकि उसे लगा कि इस लम्बी, कमजोर लड़की, जो दरवाज़े पर इस तरह खड़ी थी जैसे कि उसे एक आदमी से घर की इज़्ज़त बचानी हो, जहाँ वह पहले ही किसी दूसरे आदमी से धोखा खा चुकी थी, के साथ उस समय कोई भी बात करना बेवक़ूफ़ी होती। टोपी हाथ में लिए हुए घबराहट में वह बुदबुदाया - ‘देखो मैडम, मैं तुम्हारा बच्चा, जो नदी के पास घूम रहा था, तुम्हारे पास वापस ले आया हूँ।’
सिमॉन ने अपनी माँ के गले में बाँहें डाल दीं और रोते हुए उसे बताया - ‘मम्मा, मैं डूबना चाहता था, क्योंकि दूसरे लड़कों ने मुझे मारा …. मारा मुझे … क्योंकि मेरा पापा नहीं है।’
युवा स्त्री के गाल दहक उठे। अन्दर तक विचलित उसने अपने बच्चे को प्यार से छाती से लगा लिया, उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। आदमी द्रवित होकर वहीं खड़ा रहा, उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे वहाँ से जाय। अचानक सिमॉन उसकी ओर बढ़ा और बोला - ‘क्या तुम मेरे पापा बनोगे?’
लम्बी चुप्पी पसर गई। ला बलैंचटे शर्मिंदगी से कुछ बोल न पाई, अपने दिल पर हाथ रखकर दीवार के सहारे खड़ी रही। बच्चे को जब अपने सवाल का जवाब नहीं मिला तो वह बोला - ‘यदि तुम मेरे पापा बनना नहीं चाहते, तो मैं डूबने जा रहा हूँ।’
कर्मी ने इसे मज़ाक़ समझा और हँसते हुए उत्तर दिया - ‘क्यों नहीं, मैं अवश्य चाहूँगा।’
‘तुम्हारा नाम क्या है,’ बच्चे ने पूछा - ‘मुझे पता होना चाहिए, ताकि जब दूसरे बच्चे पूछें तो मैं तुम्हारा नाम बता सकूँ।’
आदमी ने उत्तर दिया - ‘फ़िलिप।’
सिमॉन क्षणभर के लिए मौन रहा, ताकि वह नाम को अच्छी तरह से याद रख सके। तब उसने बहुत सन्तुष्ट होते हुए बाँहें फैला दीं और कहा - ‘ठीक है, फ़िलिप, तुम मेरे पापा हो।’
कर्मी ने उसे उठाते हुए उसकी दोनों गालों को चूमा और वहाँ से चला गया।
जब दूसरे दिन सिमॉन स्कूल गया तो द्वेषपूर्ण हँसी से उसका स्वागत हुआ। स्कूल की छुट्टी होने पर जब लड़के उसे चिढ़ाने की तैयारी करने लगे तो उसने ये शब्द उनपर ऐसे उछाले जैसे पत्थर फेंक रहा हो - ‘मेरे पापा का नाम है फ़िलिप।’
हर तरफ़ से हँसी के फ़व्वारे फूट पड़े।
‘फ़िलिप कौन? फ़िलिप क्या? कौन है फ़िलिप? कहाँ से ढूँढा अपना फ़िलिप?’
सिमॉन ने कोई उत्तर नहीं दिया; अपने विश्वास में अडिग, उसने आँखों से उनकी अवहेलना की। वह मैदान छोड़कर जाने की अपेक्षा शहीद होने को तैयार था। संयोग से अध्यापक उसके बचाव के लिए आ गया और वह अपनी माँ के पास वापस घर पहुँच गया।
तीन महीने तक लम्बा-चौड़ा कर्मी, फ़िलिप, अक्सर ला बलैंचटे के घर के पास से गुजरता रहा, और कभी-कभार, जब वह उसे खिड़की के पास सिलाई करते हुए देखता तो उससे बात करने की हिम्मत भी कर लेता। वह हमेशा सभ्य किन्तु उदास ढंग से उसकी बातों का जवाब देती, लेकिन न कभी मज़ाक़ करती और न ही उसे घर के अन्दर आने को कहती। इसके बावजूद, हर आदमी की भाँति, कुछ अहंकार के साथ वह कल्पना करता रहा कि वह आम दिनों की अपेक्षा अधिक प्रसन्न दीखती है जिस दिन वह उससे बातचीत करती है।
जैसे खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करना कठिन होता है, और हमेशा उसके खोने का डर बना रहता है, उसी तरह ला बलैंचटे के फूंक-फूंककर कदम उठाने के बावजूद, अड़ोस-पड़ोस में उनको लेकर कानाफूसी होने लगी।
जहाँ तक सिमॉन का सवाल है, वह अपने नए पापा से बहुत प्यार करता था और लगभग रोज़ शाम को उसके साथ घूमने जाता था, जब दिन का काम ख़त्म हो जाता था। वह नियमित रूप से स्कूल जाता था और बिना उनकी बातों का जवाब दिए अपने स्कूल के साथियों के साथ समानता के स्तर पर मिलता-जुलता था।
लेकिन एक दिन जिस लड़के ने उसपर पहली बार हमला किया था, उससे कहा - ‘तुमने झूठ बोला है। फ़िलिप नाम का तुम्हारा पापा नहीं है।’
सिमॉन विचलित हुआ, उसने पूछा - ‘तुम ऐसा क्यों कह रहे हो?’
लड़के ने हाथ मले और कहा - ‘क्योंकि यदि तुम्हारा कोई पापा होता तो वह तुम्हारी माता का पति होता।’
सिमॉन इस तर्क की सत्यता से परेशान हो गया, फिर भी उसने पलटकर जवाब दिया - ‘कुछ भी हो, वह मेरा पापा है।’
शरारती लड़के ने उपहास उड़ाते हुए हैरानी से कहा - ‘लेकिन वह किसी भी तरह से तुम्हारा पापा नहीं हो सकता!’
ला बलैंचटे के बच्चे ने सिर झुका लिया और बूढ़े लोयजन की कार्यशाला की ओर चल दिया, जहाँ फ़िलिप काम करता था।
यह कार्यशाला वृक्षों से घिरी हुई थी। वहाँ काफ़ी अँधेरा था। विशाल भट्ठी की लाल चमक ही रोशनी का स्रोत थी, जिससे पता लग रहा था कि वहाँ पाँच लुहार काम कर रहे थे, जिनके हथौड़ों के प्रहार से भयंकर शोर पैदा हो रहा था। आग की लपटों के आगे खड़े वे दैत्यों की भाँति काम कर रहे थे, उनकी नज़रें लाल तपते लोहे पर टिकी हुई थीं जिसे वे कूट-पीट रहे थे। उनके मन के भाव भी उठते-गिरते हथौड़ों की तरह ही बदल रहे थे।
बिना किसी का ध्यान भंग किए सिमॉन ने चुपके से प्रवेश किया और साहस के साथ अपने साथी की बाजू को छुआ। फ़िलिप घूमा। एकदम से काम रुक गया और आदमी ध्यान से देखने लगे। तब इस असामान्य शान्ति के बीच सिमॉन की छोटी पतली-सी आकृति सामने आई। शान्ति को भंग करते हुए सिमॉन ने पूछा - ‘फ़िलिप, मुझे बताओ कि ला मिचैंडे के लड़के ने ऐसा क्यों कहा कि तुम किसी तरह से मेरे पापा नहीं हो।’
लुहार ने पूछा - ‘उसने ऐसा क्यों कहा?’
बच्चे ने मासूमियत से उत्तर दिया - ‘क्योंकि तुम मेरी मम्मा के पति नहीं हो।’
कोई नहीं हँसा। फ़िलिप अपने बड़े हाथों, जिनमें हथौड़ा पकड़ा हुआ था, पर माथा टिकाकर खड़ा रहा। वह सोचने लगा। उसके चारों साथी उसे देख रहे थे और इन विशालकाय आकृतियों के बीच एक नन्हे जीव की भाँति सिमॉन उत्सुकता से प्रतीक्षारत था। अचानक एक लुहार ने अपने चारों साथियों की ओर से फ़िलिप को कहा - ‘आख़िरकार अपने दुर्भाग्य के बावजूद ला बलैंचटे एक अच्छी व सच्ची लड़की है, डटकर मुक़ाबला कर रही है और वह एक ईमानदार आदमी की योग्य पत्नी साबित होगी।’
बाक़ी तीनों ने समर्थन करते हुए कहा - ‘इसमें कोई शक नहीं।’
लुहार ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा - ‘क्या इसमें लड़की का दोष है कि किसी ने उसे त्याग दिया? उससे विवाह का वायदा किया गया था। मैं एक नहीं, बहुतों को जानता हूँ जो कहीं अधिक ग़लत होते हुए भी आज सम्मानपूर्वक जी रही हैं।’
तीनों ने एक साथ कहा - ‘यह सत्य है।’
उसने अपनी बात आगे बढ़ाई - ‘उस बेचारी ने अपने बच्चे को पढ़ाने के लिए अकेले कितनी मेहनत की है, और चर्च को छोड़कर और कहीं न जा पाने पर वह कितना रोई है, केवल परमात्मा ही जानता है ।’
दूसरों ने कहा - ‘यह भी सच है।’
तब सिवा धौंकनी, जिससे भट्ठी की आग को भड़काया जा रहा था, के शोर के सभी शान्त हो गए। फ़िलिप झुका और सिमॉन से बोला - ‘जाओ और अपनी मम्मा से कहना कि मैं उससे बात करने के लिए आऊँगा।’
तदनंतर वह सिमॉन को कंधों से पकड़कर बाहर छोड़कर गया। वापस जाकर वह अपने काम में जुट गया और एक बार फिर पाँच हथौड़े एक साथ चलने लगे। इस प्रकार उन्होंने रात होने तक लोहे को तैयार किया। अपना काम पूरा करके वे अग्निदेव की भाँति बलशाली, प्रसन्न तथा सन्तुष्ट थे। लेकिन जैसे त्योहार के दिनों में बड़े गिरजाघर के घंटे की आवाज़ दूसरी घंटियों की आवाज़ पर भारी पड़ती है, उसी प्रकार फ़िलिप के हथौड़े की मार दूसरों से अलग ही सुनाई पड़ती थी। आग से उठती चिंगारियों पर नज़र टिकाए वह अपने काम में मुस्तैद रहता था।
जब उसने ला बलैंचटे का दरवाजा खटखटाया, आकाश सितारों से भरा हुआ था। उसने रविवार वाले कपड़े पहने हुए थे, साफ़-सुथरी क़मीज़ और दाढ़ी के बाल छँटे हुए थे। युवा स्त्री दहलीज़ तक आई और उदास स्वर में बोली - ‘मि. फ़िलिप, रात के समय इस प्रकार आना अच्छा नहीं।’
वह उत्तर देना चाहता था, किन्तु व्याकुलता की वजह से हकलाता हुआ उसके सामने खड़ा रहा।
उसने बात आगे बढ़ाते हुए कहा - ‘और तुम अच्छी तरह समझते हो कि मेरे बारे में कोई कुछ कहे, मुझे अच्छा नहीं लगेगा।’
तब उसने तत्काल कहा - ‘मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि लोग तुम्हारे बारे में क्या कहते हैं यदि तुम मेरी पत्नी बन जाओ!’
उत्तर में कोई आवाज़ नहीं आई, लेकिन उसे लगा कि उसने कमरे के अँधेरे में किसी के गिरने की आवाज़ सुनी है। वह तुरन्त अन्दर गया। सिमॉन जो बिस्तर में लेटा था, ने अपनी माता के धीमे से कहे कुछ शब्द और चुम्बन की आवाज़ को स्पष्ट सुना। तब उसने स्वयं को अपने मित्र की मज़बूत बाँहों में पाया, जो उसे कह रहा था - ‘तुम अपने स्कूल के साथियों को बताना कि तुम्हारा पापा फ़िलिप रेमी, लुहार है, और वह उन सब के कान उमेठ देगा जो तुम्हें तंग करेंगे।’
दूसरे दिन जब स्कूल लगा हुआ था और पढ़ाई आरम्भ होने वाली थी, सिमॉन ने खड़े होकर कंपकंपाते होंठों से कहा - ‘फ़िलिप रेमी मेरे पापा है और उसने वायदा किया है कि जो भी मुझे तंग करेगा, वह उसके कान उमेठ देगा।’
अब कोई नहीं हँसा, क्योंकि लुहार फ़िलिप रेमी को सभी अच्छी तरह से जानते थे, और वह उसका पापा था, जिसपर दुनिया में किसी को भी गर्व होता।
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लाजपत राय गर्ग, पंचकूला
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