dehkhoron ke bich - 6 in Hindi Fiction Stories by Ranjana Jaiswal books and stories PDF | देहखोरों के बीच - भाग - छह

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देहखोरों के बीच - भाग - छह

भाग छह

मैं आज तक नहीं समझ पाई कि जो औरतखोर होते हैं, उनकी अपनी बहन -बेटियों के प्रति कैसी दृष्टि होती है?हमारे समय में तो बहन- बेटियाँ बाप -भाइयों से दूर ही रहती थीं।किशोर उम्र के बाद उनके सामने पर्दे की हद तक ढकी -मुंदी बिना सिंगार -पटार के ही आती थीं।उनके बीच एक गरिमामय दूरी हमेशा बनी रहती थी,पर आज स्थिति बदल चुकी है ।आधुनिकता ने पुरानी सारी बंदिशें हटा दी हैं ।अब तो जवान -जहान बहन -बेटियां भी बाप -भाइयों के पीठ पर चढ़ी रहती हैं।छोटे फैशनेबल ड्रेस पहने उनके साथ बाहर आती- जाती हैं।एक- दूसरे को गले लगाना ,फ्रेंडली बात करना आम बात हो गई है।हालांकि हाई सोसाइटी और उच्च -मध्यवर्ग में ही यह परिवर्तन ज्यादा है बाकी में कम,पर परिवर्तन तो हुआ है और यह बहुत बुरा भी नहीं है।पर क्या ये परिवर्तन सिर्फ रहन -सहन ,वेश- भूषा ,बात -व्यवहार तक ही सीमित है कि सामंती मानसिकता भी बदली है?विचार के स्तर पर भी आधुनिकता आई है?आधुनिकता का अर्थ नई सोच...!नयी सोच में स्त्री भी व्यक्ति है। पुरूष के समान है। उसे पुरूषों के हर क्षेत्र में काम करने का अधिकार है।अपनी मर्जी के अनुसार जीने का अधिकार है।

अगर हाँ ,तो फिर आए दिन छोटी -छोटी बच्चियों से लेकर बूढ़ी स्त्रियों तक से रेप क्यों हो रहे हैं?वे कौन लोग हैं,जो ऐसा कर रहे हैं?ऐसा भी नहीं कि सारे रेपिस्ट गरीब,पिछड़े,अपढ़,जाहिल और मशीनी जीवन जीने वाले ही हैं उसमें मंत्री से सन्तरी,उच्च शिक्षित से अंगूठा छाप,अफसर से मजदूर,मालिक से मजदूर,बूढ़े से किशोर, हर क्षेत्र - प्रांत,राज्य-देश,धर्म-सम्प्रदाय,सन्यासी-गृहस्थ,साधू -असाधू सब शामिल हैं ।क्या वे आधुनिक नहीं हुए?क्या उनके लिए स्त्री आज भी सिर्फ मादा है जिसे बहला- फुसलाकर,प्रेम का नाटक करके या जबरन हासिल किया जा सकता है?

मेरा सवाल ऐसे लोगों के लिए ही है, जिनके लिए दूसरी स्त्री सिर्फ मादा है ,तो वे अपने घर की स्त्रियों को किस दृष्टि से देखते हैं?क्या वे उनके लिए प्राचीन समय की तरह सिर्फ सम्मान और प्रतिष्ठा की वस्तु हैं ?हाँ ,वस्तु कह रही हूँ--जिसकी अपनी कोई मर्जी नहीं होती ।वह शिक्षा,नौकरी,विवाह अपनी मर्जी से नहीं कर सकती और प्रेम तो उसके लिए अक्षम्य अपराध है,जिसकी सज़ा सिर्फ मौत है सिर्फ मौत!पर पुरुष के लिए नहीं वे चाहें कितनी भी शादियां करें ,रखैलें रखें,वेश्याओं के पास जाएं या रेप करें,उनके इस कृत्य से उनकी और उनके खानदान की प्रतिष्ठा नहीं जाती।यह तो उनकी गौरव -गाथा होती है।

क्या आधुनिकता ने इस दोहरी मानसिकता का अंत किया है?क्या इस मानसिकता का अंत नहीं होना चाहिए?

मुझे याद आती है कुसुम।ठाकुर घराने की सांवले रंग,बड़ी बड़ी आंखों वाली, ऊंचे कद की लम्बी -चौड़ी ,स्वाभिमानी कुसुम।वह मुझसे कई साल छोटी थी।मेरे ही कॉलेज में नौवीं में पढ़ती थी पर कभी मेरा अभिवादन नहीं करती थी।उसके चेहरे पर बड़े घर,बड़ी जाति की लड़की होने का रुआब था।उसके दादा पहले किसी गांव के जमींदार थे ।जमींदारी खत्म होने पर कस्बे में हवेली जैसा घर बनवाकर रहते थे।अम्मा बताती थी कि बहुत ही अय्याश किस्म आदमी था बुड्ढा।गाँव में रहा तो वहाँ की बहन -बेटियां सुरक्षित नहीं थीं ,यहां भी इसी जुगाड़ में रहता है पर यह गांव नहीं है।सभी आज़ाद हैं।अस्सी साल का बूढ़ा बाघ है ।शिकार आसानी से मिल जाए तो चीर- फाड़ खाए।उसका भरा -पूरा परिवार है।दो बेटा और एक बेटी है।सबकी शादी हो गई है।उसके बड़े बेटे की बेटी थी कुसुम।बड़े ही लाड़ प्यार से पली थी।

उसके बाल लड़कों की तरह कटे थे।वह हमेशा शर्ट -पैंट पहनती थी।बस कॉलेज में सलवार -समीज -दुपट्टा पहनती थी।

समय बदला था।अब लड़कियों का लड़कों के कॉलेज में पढ़ना बुरा नहीं माना जाता था।लड़कियां अब क्रीम -पाउडर लगाकर स्कूल -कॉलेज जाने लगी थीं।अमीर घरों की बड़ी लड़कियां अब ब्रा भी पहनती थीं।शादीशुदा लिपिस्टिक भी लगा लेती थीं। कस्बे में कई ब्यूटी पार्लर खुल गए थे।परिवर्तन तो अम्मा में भी आया था।अब वह छोटी बहनों को पाउडर लगाने से मना नहीं करती थी,पर मुझ पर अभी तक पुरानी पाबंदी का असर था।मैंने कभी अपने भौंहों की थ्रेडिंग नहीं कराई थी।एक दिन मेरी कॉलेज की सहेलियाँ जबर्दस्ती मुझे एक पार्लर में ले गईं और थ्रेडिंग करा दीं।मुझे बहुत दर्द हुआ,पर मेरा चेहरा ही जैसे बदल गया।

घर पर मैं अम्मा से बचती फिर रही थी,पर उसकी नज़र पड़ ही गई ,फिर तो मेरी वो लानत -मलामत हुई कि तौबा!अम्मा ने साफ इल्ज़ाम लगाया कि मेरे घर को बिगाड़ने की शुरूवात इसी ने की है।आज भौंह बनवाई है कल बाल कटवाएगी।बड़े घर की लड़कियों की नकल कर रही है।

बुरा यह हुआ कि दूसरे ही दिन छोटी बहन अपने बाल कटाकर आ गई ।अम्मा ने उसे कुछ नहीं कहा,मुझे ही कोसा कि बड़ी बहन का ही अनुकरण छोटी बहनें करती हैं।मेरे मन में आया कि कहूँ - फिर क्यों मेरी अच्छी बातों का अनुकरण बहनें नहीं करतीं?किसी का भी मेरी तरह पढ़ाई- लिखाई में मन क्यों नहीं लगता?क्यों वे मेरी तरह गीता ,रामायण और साहित्यिक किताबें नहीं पढ़ती?

पर अम्मा को जवाब देने,उसकी बात काटने का साहस मुझमें कभी नहीं रहा।मैं अम्मा के डांटने पर अपनी ही गलती मान लेती थी।इसमें मेरा सबसे बड़ा स्वार्थ ये था कि अम्मा के सपोर्ट से ही मैं पढ़ पा रही थी।वर्ना परिवार में सब मेरी पढ़ाई से चिढ़ते थे।

कुसुम मुझे अच्छी लगती थी।कितनी बोल्ड है ...बिंदास है।उसके घरवाले कितना केयर करते हैं उसका।लगता ही नहीं कि वह लड़की है।एक मेरा घर है हर कदम पर यह याद दिलाया जाता है कि लड़की हो ..लड़की की तरह रहो।अपनी शिक्षा का अधिकार भी मैं भीख की तरह पा रही थी।अम्मा हर दिन यह अहसान जताती थी कि वह बेटी को पढ़ा रही है।

घर की परंपरा के अनुसार नौवीं में ही मेरा विवाह नहीं किया गया।बाकी सभी बहनें नौवीं में ही ससुराल गईं और वहां से लौटकर किसी तरह हाईस्कूल की परीक्षा दी और फिर पढ़ाई से तौबा!पढ़ाई वे करना ही नहीं चाहती थीं,पर मैं तो खूब.. खूब पढ़ना चाहती थी।हमेशा अव्वल भी आती थी।मेरी फीस माफ हो जाती थी।वजीफ़ा,पुरस्कार से मैंने घर की एकमात्र आलमारी भर दी थी ,फिर भी घर में मेरी कोई इज्जत नहीं थी।अम्मा कहती कि उन्हें खुशी तब होती जब भाई अव्वल आता या पुरस्कार जीतकर लाता।मैं आहत हो जाती पर फिर यह सोचकर संतोष करती कि अम्मा जिस परम्परा में पली है,उससे थोड़ी तो आगे बढ़ी है।जिस किसी तरह भी मुझे पढ़ा तो रही ही है।बाबूजी तो मुझे कब का किसी ऐरे -गैरे के साथ बांध चुके होते।वे मेरे दुश्मन नहीं थे कि ऐसा करते,पर बिना दहेज का अच्छा लड़का मिलता ही कहाँ था?और घर में पैसे की किल्लत हमेशा रहती थी।बहनें बहुत ज्यादा सुंदर थीं,इसलिए लड़के वाले कम दहेज में ही उन्हें ब्याह ले गए।लड़के वाले भी कोई नौकरीपेशा या अफसर ग्रेड के तो थे नहीं ,बनिया -बक्काल ही थे।शिक्षा ,सभ्यता- संस्कृति से उनको कुछ लेना- देना नहीं था ।बस अच्छा कमाते थे और शानो-शौकत से रहते थे।धन ने सारी कमियों पर पर्दा डाल रखा था।बहनें भी गहने,कपड़े,घर- गृहस्थी,पति-बच्चे में मगन हो गई।उनकी मंजिल भी वही थी पर मैं तो बिगड़ी हुई लड़की थी! जो उच्च शिक्षा,नौकरी और स्वावलम्बन के सपने देख रही थी।कोई बैक ग्राउंड नहीं था,गॉड फादर नहीं था,पैसा नहीं था पर अम्मा थी ,सपने थे लगन था और परिश्रम मैं ख़ूब कर रही थी, तभी तो बी .ए. तक पहुंच गई थी ।

कुसुम के घर वाले आधुनिक विचारधारा के थे,तभी तो उन दिनों भी उनके घर की बेटी मॉर्डन कपड़े पहनती थी।उसके बॉब हेयर थे और कार से कॉलेज आती -जाती थी। उसके हवेलीनुमा घर में सबसे पीछे उसका अपना कमरा था ,जिसके दो दरवाजे थे ।एक दरवाजा आगे की तरफ खुलता था दूसरा पीछे की तरफ।पिछले दरवाजे से कभी- कभार ही कोई आता या जाता था।उसकी पढ़ाई में कोई विघ्न न पड़े ,इसलिए कमरे में बहुत जरूरत होने पर ही कोई प्रवेश करता था।कुल मिलाकर कुसुम को वह सुख सुविधाएं,आजादी और परिवार का विश्वास हासिल था,जिसकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी।

पर आजादी का दुरूपयोग भी होता है।आजकल ही देखिए माँ -बाप अपने बच्चों को अपने खर्च में काट -कटौती करके महंगे मोबाइल दिलाते हैं ताकि उनकी पढ़ाई सुचारू रूप से चलती रहे।पर बच्चे मोबाइल का उपयोग पढ़ाई में कम दोस्त बनाने,दोस्तों से चैट करने,सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने से लेकर पोर्न साइट्स देखने में ज्यादा करते हैं।

कुसुम को पढ़ाने एक ट्यूटर रखा गया था,जिससे एकांत में वह पढ़ती थी।ट्यूटर देखा -भाला और शादीशुदा था,इसलिए विश्वसनीय था।

पर अम्मा कहती थी कि जैसे घास और दियासलाई आस- पास रखने से कभी न कभी आग लग ही जाती है।उसी तरह किसी भी उम्र के स्त्री पुरूष एकान्त में बहुत पास रहें तो उनमें रिश्ता पनप ही जाता है।कुसुम एक दिन रूपए -जेवर लेकर चंपत हो गई।किसके साथ गई ,यह पता नहीं चला क्योंकि मास्टर अपने घर में अपनी पत्नी और बेटे के साथ मौजूद पाया गया।

बहुत तलाश हुई पर रिजल्ट शून्य ही रहा।धीरे- धीरे एक वर्ष होने को आया पर कुसुम को मानो धरती खा गई या आकाश निगल गया। कुसुम के दादा सदमे में बीमार पड़े और चल बसे।अम्मा कहती कि इसी बुड्ढे की पाप की सजा परिवार को मिली है।इस बुढापे में भी आस -पास की गरीब घरों की छोटी बच्चियों को बुलाकर अपने कमर की मालिश के बहाने जाने क्या -क्या कुकर्म करता था।जवानी में तो कुकर्म किए ही थे।जो दूसरों की बहू -बेटियों की इज़्ज़त खराब करता है,ईश्वर उसको जरूर सज़ा देते हैं पर औरतखोर इस बात को नहीं समझते या समझना नहीं चाहते।

एक दिन कलकत्ता में ठाकुर साहब के किसी रिश्तेदार ने कुसुम को देखा।वह एक दोमंजिले मकान के बारजे पर खड़ी थी उसकी मांग नें सिंदूर था।उसके केश अब कांधे तक बढ़ गए थे।वह खुश दिख रही थी।रिश्तेदार ने आनन -फानन में कुसुम के पिता को खबर दी और तीसरे ही दिन कुसुम मास्टर के साथ धर ली गई।