dehkhoron ke bich - 2 in Hindi Fiction Stories by Ranjana Jaiswal books and stories PDF | देहखोरों के बीच - भाग - दो

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देहखोरों के बीच - भाग - दो

भाग दो

अर्चना और संजना पाँचवीं तक नगर पालिका के स्कूल में मेरे साथ ही पढ़ी थीं, पर उनके घरवालों ने छठी कक्षा में उन्हें पढ़ने के लिए ब्वॉय -कॉलेज की अपेक्षा गर्ल्स -कॉलेज में भेजा था।अपने घरवालों के दबाव के कारण अब वे मुझसे थोड़ी कटी -कटी रहतीं।दोनों एक साथ स्कूल जाती -आतीं।हालांकि दोनों का आपस में और कोई मेल नहीं था। संजना ऊंची जाति की धनी- मानी परिवार से थी।अर्चना पिछड़ी जाति और निम्न आयवर्ग की लड़की थी। अर्चना की माई की गली के मुहाने पर पान की दुकान थी।वह एक बदनाम और झगड़ालू स्त्री थी।मुहल्ले में उसकी नंगई से सभी डरते थे।उसने अपनी इकलौती बेटी की शादी पाँच वर्ष की उम्र में ही कर दी थी पर गौना अभी तक नहीं किया था।अर्चना साधारण शक्ल -सूरत की ,भरी देह वाली साँवली लड़की थी ,पर उसकी छोटी -छोटी आंखों में बड़े -बड़े सपने थे।उसका गला बहुत सुरीला था।अम्मा अक्सर गाना सुनने के लिए उसे बुला लेती।वह अपनी माई से बिल्कुल अलग थी।सभ्य और शांत। बचपन में मैं उसके साथ तमाम तरह के खेल खेलती थी।उसका सबसे पसंदीदा खेल घर -घर था।कभी हम ईंटों और मिट्टी से घर बनाते, कभी बालू के ढेर में पैर फंसाकर।हर बार उसका घर सुंदर बनता।उसका अपना घर फूस और मिट्टी से बना था। वह कहती -पढ़ाई करके नौकरी करूंगी, फिर पक्का घर बनाऊँगी। हम पुतरी -कनिया का ब्याह भी साथ ही रचाते थे।उस समय वह विवाह के सुंदर- सुंदर गीत गाती और उसकी आँखें स्वप्निल हो जातीं।वह कहती कि बड़ी होने के बाद वह किसी हीरो जैसे लड़के से ब्याह करेगी।

'पर तुम्हारा ब्याह तो हो चुका है न !'
मैं उसकी सीधी मांग के आगे से शुरू होकर पीछे तक जाने वाले पीले सिंदूर की ओर इशारा करके कहती।
--वो कौन- सी शादी थी!मैंने तो दूल्हे को देखा तक नहीं है।सुना है दूर के किसी पिछड़े गाँव में उसका घर है।घास- फूस का ही।खेती- बारी कराता है। वहाँ औरतें गोबर पाथती हैं,खेतों में काम करती हैं। वहाँ न सिनेमा देखने को मिलेगा, न सलवार समीज पहनने को।मैं तो नहीं जाऊंगी वहाँ....।
मैं सोचती -सही तो कहती है वह,मैं भी तो ऐसी जगह नहीं रह सकती।बाइस्कोप पर होरो- हीरोइन को देखकर वह खुश हो जाती।उन दिनों घर -घर टीवी नहीं होती थी।संजना के घर टीवी थी पर उसकी माँ हमें अपने दरवाजे पर चढ़ने नहीं देती थी।वह खुलेआम हम लोगों को 'नीचजातिया' कहती और खुद को बड़ आदमी।मुझे बहुत गुस्सा आता पर माँ समझा देती कि यही सदियों से चला आ रहा रिवाज है।संजना में अभी यह भेद- भाव नहीं आया था।वह टीवी पर फिल्में देखती और नाच के स्टेप सीखती और फिर हम लोगों को सिखाती।हम तीनों में वह न केवल सबसे सुंदर थी बल्कि अच्छा नृत्य भी करती थी।अर्चना अच्छा गाती थी और मैं पढ़ने में अव्वल थी बस।पर नृत्य और गाने से मेरा बहुत लगाव था।उन दिनों अक्सर मुहल्ले में परिवार नियोजन की तरफ से फिल्में दिखाई जाती थीं। सफेद चादर का पर्दा तानकर प्रोजेक्टर से फिल्में चलाई जाती थीं ,जिसका उद्देश्य परिवार नियोजन के प्रति जनता को जागृत करना था।ज्यादा तो उसमें प्रचार ही होता था,पर लोगों को आकृष्ट करने के लिए फिल्में भी दिखाई जाती थीं ।हम तीनों सहेलियां सांस रोके एकटक हीरो -हीरोइनों को नाचते -गाते देखतीं और हीरोइन की जगह खुद के होने की कल्पना करतीं।फ़िल्म देखने के बाद हफ्तों हम हीरोइन के अंदाज में ही बोलतीं, चलतीं ,हंसतीं ,गातीं और नाचतीं ।इसमें सबसे उम्दा नकल संजना करती।
संजना ज्यों- ज्यों बड़ी होती गई उसमें हीरोइन बनने के कीटाणु बढ़ते गए, पर उसका परिवार बहुत ही पुराने विचारों का था।वैसे लड़की को किसी तरह दसवीं पास कराकर उसके हाथ पीले कर देने का चलन तो हमारे घरों में भी था।
हम नवीं कक्षा में पहुंच गईं थीं।मैं लड़कों के कॉलेज में वे दोनों लड़कियों के कॉलेज में।
एक दिन पूरे मोहल्ले में हड़कंप मच गया।अर्चना और संजना स्कूल के लिए निकलीं तो फिर लौटीं ही नहीं ।पूरे कस्बे में उन्हें खोजा गया पर उनका पता ही नहीं चला।रात हो गई।संजना के परिवार वाले अर्चना के दरवाजे पर आकर गालियाँ दे रहे थे।उसकी माई को मारने के लिए दौड़ रहे थे, साथ ही आरोप लगा रहे थे कि अर्चना संजना को बहकाकर भगा ले गई है। सुबह हो गई दोनों का कहीं पता न चला।बदनामी के डर से संजना के घर वाले पुलिस में रिपोर्ट भी नहीं लिखा रहे थे।संजना के जूनियर इंजीनियर चाचा,अध्यापक पिता और हिंदी से एम. ए. कर रहा भाई दौड़ -धूप कर रहे थे।एक बार वे मेरे घर की तरफ लपके तो अम्मा दरवाजे पर तनकर खड़ी हो गई--मेरी लड़की लड़कों के कॉलेज में पढ़ती है और संजना का मेरे घर आना -जाना भी नहीं है,इसलिए मेरी बेटी को डराने की जरूरत नहीं।
वे लोग थोड़े शर्मिंदा दिखे और फिर गुस्से में अर्चना की माँ को दो झापड़ रसीद कर दिए--अगर मेरी बेटी नहीं मिली या उसके साथ कुछ भी बुरा हुआ तो तुम्हें जिंदा जमीन में गाड़ देंगे।तुम्हारे घर में आग लगा देंगे।बड़ेआदमी की लड़की भगाई है। जरूर तेरी मिली- भगत होगी।
झगड़ालू होते हुए भी अर्चना की माई उनकी दबंगई से दहल गई थी।वह थर थर काँप रही थी ।वह तो अपनी बेटी के लिए रो भी नहीं पा रही थी।
दूसरे दिन दुपहरिया को अर्चना अकेली ही घर लौट आई।उसके आने की खबर पाते ही संजना के घर वाले आ गए।पूछताछ से देहखोरों के एक बहुत बड़े गैंग का पता चला,जिन्होंने अर्चना को तो छोड़ दिया था क्योंकि वह सुंदर नहीं थी पर अंजना को साथ ले गए थे।
कहानी कुछ इस प्रकार घटी थी।
मारवाड़ियों के उस गर्ल्स इंटर कॉलेज में संजना की दोस्ती एक मारवाड़ी लड़की से हो गई थी।वह स्कूल से ही उसके घर चली जाती थी।उस मारवाड़ी लड़की की बड़ी बहन का विवाह मुम्बई के एक अमीर परिवार में हुआ था।लड़की जब ससुराल जाने लगी तो उसके परिवार वालों ने दस साल की पहाड़ी लड़की को उसके साथ बतौर नौकरानी भेज दिया था। नौकरानी के माता- पिता बेहद गरीब थे और कुछ दिन पहले ही मेरे मुहल्ले के मुहाने पर किराए का एक कमरा लेकर रहते थे।उनके तीन -चार बच्चे और थे। उनके घर के बाहर सड़क पर एक सरकारी हैडपम्प था,उसी से पानी लेकर वे अपना काम चलाते थे।कोई उनकी नोटिस नहीं लेता था।नौकरानी लड़की आठ- साल बाद अपनी मालकिन के साथ लौटी थी और फिर अपने माता- पिता के पास आ गई थी।मुम्बई के माहौल में रहकर वह पूरी हीरोइन बन गई थी। उसके मुहल्ले में आते ही जैसे हड़कम्प मच गया।उसे देखने के लिए लाइन लग जाती थी।वह थी भी गोरी -चिट्टी,घुटने तक लंबे बाल,सुंदर -सुगठित देह।वह कमरे में खाना खाकर अपनी थाली लिए ही नल के पास पानी पीने आ जाती ,तो वह भी एक स्टाइल लगती।झूठ नहीं कहूँगी अम्मा की हिदायत के नाते मैं उससे कभी मिली नहीं ,पर उधर से आते- जाते मेरी नज़र उसी को ढूँढती।उसके घर वाली सड़क हमेशा बिजी रहती।वैसे वह बहुत ही कम कमरे से निकलती ।उसकी एक झलक पाने के लिए जाने कहाँ -कहाँ से मजनू आते!लड़की नृत्य- गायन में भी माहिर थी।उसके घर से अक्सर थाल बजाकर फिल्मी गीत गाने की आवाज आती।उसका बाप क्या करता है?उनका खर्च कैसे चलता है,किसी को नहीं मालूम था ।वैसे शक्ल -सूरत से वे शरीफ और सीधे ही लगते थे।
अर्चना और जादू चल गया था।उनके दबे हुए अरमान मचल उठे थे।वे उसके घर आने -जाने लगी थीं।वह उन्हें नृत्य और हाव -भाव सिखाती। लड़की से दोनों की हीरोइन बनने की ख्वाहिश नहीं छिप सकी।उसने उन्हें हीरोइन बना देने का आश्वासन दिया।उसने बताया कि मुंबई के फ़िल्म डायरेक्टरों से उसकी अच्छी जान -पहचान है।अगले महीने वह भी वापस जाने वाली है।उसे एक फ़िल्म में काम करने का ऑफर आया है।अगर तुम लोग भी तैयार हो तो मैं बात चलाऊं।"अंधा क्या मांगे दो आंखें।"
फिर उस एक कमरे वाले पहाड़ी के घर में क्या -क्या और कैसे -कैसे प्लान बना ,कोई नहीं जानता,पर गुप्त रूप से सारी सेटिंग हो गई थी।एक दिन पहले वह पहाड़ी परिवार किराए का घर छोड़कर गया और दूसरे दिन स्कूल से ही अर्चना और अंजना गायब हो गई थीं ।अर्चना के पास तो ढंग के कपड़े तक नहीं थे पर अंजना जेवर और रूपए भी साथ ले गई थी।
--तुम लोग कहाँ गए थे और कैसे गए थे,बिस्तार से बताओ
--अंजना का चाचा चिल्लाया।
''हम लोगों को एक पहाड़ी कार से गोरखपुर ले गया था।वहाँ हमें एक घर में दूसरे पहाड़ी को सौंपकर चला गया।रात भर हम वहीं रहीं।सुबह एक तीसरा पहाड़ी आया उसने मुझसे कहा-तुम हीरोइन नहीं बन सकती।वापस लौट जाओ पर किसी को हमारे बारे में मत बताना।''
क्लू मिलते ही अंजना के चाचा ,पिता और भाई ने अर्चना को कार में बिठाया।रोने- गिड़गिड़ाने पर अर्चना की माई को भी साथ ले लिया और उनकी गाड़ी तेजी से गोरखपुर की ओर दौड़ पड़ी।रास्ते- भर मारे दहशत के अर्चना हलकान रही। अंजना का भाई उसे घूरता तो उसे लगता उसकी सलवार गीली हो जाएगी।उसे वह वाकया याद आता ,जब वह छठी कक्षा में पढ़ती थी ।एक दिन वह अंजना के घर काँपी माँगने आई तो उसका भाई बरामदे में ही मिल गया।उसने अंजना तक पहुंचाने के बहाने एक अंधेरे कोने में उसके सीने को दबोच लिया जबकि अभी तो उसकी देह में अंकुर भी न फूटे थे। उसने इतनी बेदर्दी से वहां के मांस को कुचला था कि हफ्तों वहां का हिस्सा लाल रहा।दर्द से वह चीखने को हुई तो उसके मुँह को दबाकर बोला --ख़बरदार! जो किसी को बताया,नहीं तो नीचे का हिस्सा भी लाल कर दूँगा।
किसी के आने की आहट पाकर वह छिप गया।अंजना की माँ थी ।उसे देखते ही आग- बबूला हो गई--का रे छौड़ी ,तोर एतना मजाल ,नान्ह जात के होके हमरे घर में घुस अइले।अब सगरो घर के साफ कराके गंगा जल छिड़के के परी।जो भाग इहवाँ से.....।
वह भागती हुई अपने झोपड़े में आकर पुआल के बिस्तर पर गिर पड़ी।सीने के ऊपर और भीतर दोनों ओर आग जल रही थी।''उनके बेटे ने मुझे छुआ उसको किस गंगा जल से धोएँगी?बड़ आदमी हुँह!"
उसने कई बार उनके पति को हरिजन टोली की तरफ जाते देखा है ।वहाँ पूजा करने तो नहीं जाते।सबको पता है कि सलोनी बाई उनको कितनी सलोनी लगती है।और बेटा खेत -खलिहान में काम करने वालियों को दबोचता फिरता है। औरतखोर हैं सब के सब।फिर भी शराफत का ढोल पीटते हैं।
पर इस समय सचमुच स्थिति नाजुक है।उसने बड़ी गलती कर दी कि अंजना के साथ गई।अंजना ने उसे इस्तेमाल किया।जब पहाड़ी ने उसे रिजेक्ट करके वापस भेजा तो अंजना कैसे हँसी थी?
अर्चना की माई भी बड़ी परेशान थी ।वह ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि अंजना सही -सलामत मिल जाए वरना उसकी बेटी का सामूहिक बलात्कार निश्चित है। ये दबंग रेप करके उसकी बोटी -बोटी काट डालेंगे और उसको तो उसके झोपड़े में ही फूँक देंगे।उसकी बेटी देह खोरों के चंगुल में फंस गई है।