कभी-कभी जानबूझ कर मूर्ख बन जाना अच्छी बात होती है। लोगों को पता नहीं चलता है। यदि तेजी दिखाने का प्रयास किए तो हानि की संभावना अधिक रहती है। कितने संस्थानों में देखा गया है कि जो कर्मचारी ज्यादा तेज भागने लगते हैं, उन्हें गिरा दिया जाता है। यह बात वास्तव में सही भी है। सभी को अपने काम की पड़ी रहती है। किसी एक के द्वारा अधिक कार्य कर देने से दूसरों को तकलीफ हो सकती है। अतः अच्छा यही है कि समय के अनुसार कार्य किया जाए। अवसर मिले तो बेवकूफ बन कर आराम किया जाए। झूठ में तेजी के चक्कर में तो अपना नुकसान ही होगा। बड़े-बूढ़े पहले इसी बात को बताने के लिए कहानी कहते थे।
एक गांव में एक बुद्धिमान ब्राह्मण रहता था। ब्राहमण के ज्ञान की ख्याति दूर-दूर तक फैली थी। उस प्रदेश के राजा उस ब्राह्मण को निरंतर अपने पास शास्त्रार्थ करने के लिए बुलाते थे। ब्राह्मण भी ख़ुशी-ख़ुशी राजा के यहाँ चर्चा के लिए जाते थे।
एक बार वहां के राजा ने उसे चर्चा पर बुलाया। काफी देर चर्चा के बाद राजा ने कहा, ‘महाशय, आप बहुत बड़े विद्वान हैं, पर आपका लड़का इतना मूर्ख क्यों है? उसे भी कुछ सिखाएं। आप केवल दूसरों को सिखाते हैं। अपने घर-परिवार पर भी ध्यान दें।’
ब्राह्मण आश्चर्यजनक रूप से परेशान हुआ। उसे अपने पुत्र पर पूरा भरोसा था। ब्राहमण का पुत्र भी उसी की तरह तीक्ष्ण बुद्धि का था। उस वक्त ब्राहमण ने प्रश्नवाचक दृष्टि से राजा की ओर देखा, तो राजा ने कहा, ‘आपके बेटे को तो सोने और चांदी में क्या अधिक मूल्यवान है यह भी नहीं पता।’ यह कहकर राजा ज़ोर से हंस पड़ा। ब्राह्मण को बुरा लगा।
ब्राहमण घर गया व लड़के से पूछा, ‘सोने व चांदी में अधिक मूल्यवान क्या है?’
‘सोना,’ बिना एक पल भी गंवाए उसके लड़के ने कहा।
‘तुम्हारा उत्तर तो ठीक है, फिर राजा ने ऐसा क्यों कहा? सभी के बीच मेरी खिल्ली भी उड़ाई।’
लड़का इसके लिए पहले से ही तैयार थे। उसने अपने पिता को एक संदूक में बंद चांदी से भरी पेटी दिखाई। चांदी की भरी पेटी देखकर ब्राहमण की आँखे फट गयीं। हर्षोल्लास से ब्राह्मण ने उस चांदी से भरी पेटी का राज पूछा।
लड़का बोला, ‘राजा कभी-कभी गांव के पास एक खुला दरबार लगाते हैं, जिसमें सभी प्रतिष्ठित व्यक्ति भी शामिल होते हैं। यह दरबार मेरे विद्यालय जाने के मार्ग में ही पड़ता है। मुझे देखते ही बुलवा लेते हैं। फिर अपने एक हाथ में सोने का व दूसरे में चांदी का सिक्का रखकर, जो अधिक मूल्यवान है वह ले लेने को कहते हैं। मैं जान बूझकर चांदी का सिक्का ले लेता हूं।
उस वक्त सभी ठहाका लगाकर हंसते हैं व मज़ाक़ बनाते हैं। ऐसा तक़रीबन हर दूसरे सप्ताह होता है।’ लेकिन मुझे इस मजाक से कोई फर्क नहीं पड़ता है.
लड़का बोला, ‘जिस दिन मैंने सोने का सिक्का उठा लिया उस दिन से यह खेल बंद हो जाएगा। वो मुझे मूर्ख समझकर मज़ा लेते हैं तो लेने दें, यदि मैं बुद्धिमानी दिखाऊंगा तो कुछ नहीं मिलेगा। आपका बेटा हूं, अक़्ल से काम लेता हूं।’
मूर्ख होना अलग बात है व समझा जाना अलग। एक बार का और तुरंत का फ़ायदा देखने के बजाय समझदार लोग लगातार और लंबे लाभ का विकल्प चुनते हैं, क्योंकि वे दूर की सोचते हैं।
ऐसा ही हमारे जीवन में होता है। कभी-कभी मूर्ख बनना ही श्रेयस्कर है। अतः अधिक चालाक नहीं बनने में ही बुद्धिमानी है।