Tedhi pagdandiyan - 16 in Hindi Fiction Stories by Sneh Goswami books and stories PDF | टेढी पगडंडियाँ - 16

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टेढी पगडंडियाँ - 16


टेढी पगडंडियाँ

16

पूरा दिन सूरज ने जी भर कर आग उगली । लू भरी हवाएँ चलती रही । ऐसा लग रहा था आज दिन ढलेगा ही नहीं । इसी तरह करते करते आखिर पाँच बज गये । अब धीरे धीरे दोपहर ढलने लगी थी । सूरज ने अपना रथ पश्चिम की ओर मोङ लिया था पर धरती की तपन अभी ज्यों की त्यों बनी हुई थी । आसमान से जो आग अब तक गिरी थी , धरती उससे मुक्त न हुई थी । अवतार सिंह ने नौकरों चाकरों को बुलाया और डयोढी में पानी छिङकने को कहा । बात का तुरंत असर हुआ । सात आठ मरद बाल्टियाँ भर भरकर पानी लाकर दरवाजे के सामने और डयोढी में पानी छिङकने लगे । धरती से एक प्यारी सी सौंधी खुशबू उठी और नथुनों से होती हुई दिल और दिमाग पर छा गयी ।
अभी हवेली के चाकरों ने हवेली के मुख्य दरवाजे के आसपास पानी से छिङकाव करके कुछ मूढे और सात आठ कुर्सियाँ बिछाई ही थी कि पुलिस की जीप दरवाजे के सामने आकर रुकी । उसके पीछे पीछे आती एक ट्रैक्टर ट्राली पर कुछ ग्रामीण सवार थे । थानेदार जीप से उतरा । साथ ही तीन चार पुलिसवाले भी उतर आये । गाँव के लोग अभी असमंजस में थे कि वे उतरें या ट्राली में ही बैठे रहें । थानेदार ने उन्हें उतरने को कहा तो वे उतर पङे । थानेदार को देखते ही नौकर अवतार सिंह को बुलाने के लिए दौङे । दो ही मिनट में अवतार सिंह ने आकर सबको फतह बुलाई । सब गाँव वाले घबराये से इधर उधर देख रहे थे । वे हवेली के दरवाजे की भव्यता से ही अभिभूत हो गये थे । इतना बङा दरवाजा कि तीन हाथी एकसाथ निकल जाएँ । दरवाजे में सैंकङों पीतल की मेख जङी थी । बीचोबीच एक और दरवाजा था जो उनके घरों के दरवाजे से थोङा बङा ही था ।
वह भौचके से यह सब देख रहे थे कि अवतार सिंह ने मूढों की ओर इशारा करते हुए सबको बैठने के लिए कहा । इससे पहले वह गाँव के चौधरियों और जमींदारों की हवेलियों में बुलाये जाते रहे थे पर सिर्फ बेगारी के लिए । हवेली में सामने घुसते ही उन्हें दस काम गिनवा दिये जाते । इतने प्यार और इज्जत से तो आजतक किसी ने बुलाया ही नहीं । सब भीतर तक बेहद भावुक हो रहे पर कुर्सी पर बैठने की किसी की हिम्मत नहीं हुई । तबतक बनवारी रुहआफजा के गिलास ले आया था । सबको शरबत मिला । शरबत पीकर भी वे सब हाथ जोङकर खङे रहे । आखिर थानेदार ने बात शुरु की – सरदार साहब , ये मंगर है । किरण इसी की बेटी है ।
आओ जी मंगर साहब , बैठो इधर हमारे पास । अवतार सिंह ने दोबारा कहा ।
तबतक सरदारनी चन्न कौर अपने पीछे दो औरतों के हाथ में लड्डुओं के टोकरे उठवाये आ पहुँची । चन्न कौर आज विशेष रूप से तैयार हुई थी । फालसई रंग का सूट , ऊपर गुलाबी रंग की फुलकारी , बारीक कढाई वाली मुक्तसरी जूती , पटियाले का परांदा , गहनों से पीली हुई चन्न कौर का रूप और व्यक्तित्व दोनों आज भव्य थे । सारे लोग चन्नकौर को आया देख उसके सम्मान में दोहरे हो गये । सरदारनी ने सबको एक लड्डू खाने को और चार चार लड्डुओं का लिफाफा घर ले जाने के लिए पकङाया । चमरटोले के लोगों के लिए यह तो इज्जत अफजायी की इंतहा थी ।
थानेदार ने गाँववालों को एक तरह से ललकारा – पूछो क्या पूछना है ?
न जी अब क्या पूछना ।
तब तक दो लङकियाँ और बसंत किरण को ले आये थे । किरण ने हल्के गुलाबी रंग का सिलक का सूट पहना था साथ ही उसी रंग का परांदा और उसी रंग की चूङियाँ । सूट के रंग की परछाई में किरण का मोतिये जैसा रंग गुलाबी रंगत दे रह था । किरण आय़ी और सिर झुका कर एक ओर खङी हो गयी । मंगर ने उठकर उसके सिर पर हाथ रखा और ट्राली में जाकर बैठ गया । किरण की आँखें नम हो गयी । क्या क्या कहने का सोच कर आई थी पर यहाँ सब के सामने उसके होंठ ही नहीं खुले , सिर्फ फङक कर रह गये ।
अवतार सिंह ने किरण को पहली बार देखा था । लङकी वाकयी चंबे का फूल थी । ऊपर से चन्न कौर के लाये कपङों में लङकी और निखर आयी थी । अवतार सिंह ने मन ही मन सोचा - क्या कद काठी है लङकी की । एकदम सांचे में ढली काया । एकदम गोरी चिट्टी । भगवान ने फुर्सत में बैठकर बनाया होगा इसे । इस मेनका को देखकर तो अच्छों का ईमान डोल जाता । लङकों की कोई गल्ती न थी ।
अवतारसिंह को अब अपने एक लाख रुपय़े जाने का कोई गम न रहा । इस लङकी के लिए तो दिल्ली की गद्दी भी वार देता निरंजन , तो भी कोई गम न होता । चौघरी ने थानेदार और सरदार अवतार सिंह को पूरा झुककर हाथ जोङे और ट्राली की ओर चल पङा तथा उसके पीछे पीछे बाकी लोग भी । ट्रालियाँ धूल उङाती चल पङी । सब लोग जैसे आये थे , वैसे ही लौट गये । दो मिनट में ही सब मसला निबट गया । थानेदार ने अपनी मूछों को ताव दिया और अवतार सिंह से हाथ मिलाया । बनवारी ने इशारा पाया और दस बारह मिठाई के डिब्बे जीप में रखवा दिये । पुलिस की जीप भी लौट गयी ।
चन्न कौर ने बसंत को बुलाकर हिदायत दी और हवेली में चली गयी । बसंत ने किरण को वापिस चलने को कहा तो किरण को होश आया । उसने तो बापू से न माँ का हाल पूछा न बीरे का । अचानक उसके इस तरह घर से चले आने से सबका क्या हाल हुआ होगा , ये सब जानना था उसे पर उस समय तो लाज से उसकी जबान ही नहीं खुली ।
चलिए बीबीजी , चलें घेर में – बसंत ने दोबारा पुकारा तो वह मोहाविष्ट सी चुपचाप उसके पीछे चल पङी ।

शेष कहानी अगली कङी में ...