Mout Ka Khel - 27 in Hindi Detective stories by Kumar Rahman books and stories PDF | मौत का खेल - भाग- 27

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मौत का खेल - भाग- 27

प्रिंस ऑफ बंबेबो

टेबल क्लॉक का अलार्म कई बार बजकर शांत हो चुका था। सार्जेंट सलीम अभी तक सोया हुआ था। सोहराब कोठी पर नहीं था, वरना अब तक ब्रेक फास्ट के लिए उसका फोन आ गया होता। दस बजे के करीब उसने एक आंख खोल कर दीवार पर लगी घड़ी की तरफ देखा। उसमें सवा दस बज रहे थे। सवा दस का टाइम देखते ही उसकी दूसरी आंख भी खुल गई और वह उठ कर बैठ गया। उसने लेमन टी के लिए रिसीवर उठाया, लेकिन फिर उसे क्रेडिल पर रख दिया। कोठी पर इंटरनल बातचीत के लिए अभी भी रोटरी डायल फोन ही यूज होता था।

रिसीवर रखने के बाद वह तेज आवाज में चिल्लाया, “झाना लेमन टी लाना।”

दरअसल उसे आवाज दे कर चाय मंगाने में जो मजा मिलता था, वह फोन पर तमीज से कहने में नहीं। सलीम के रूम के बगल में डायनिंग हाल था, और उसी से सटा हुआ किचन था। यही वजह थी कि उसकी आवाज आसानी से पहुंच जाती थी। वरना कोठी तो बहुत बड़ी थी।

वह फिर आंख बंद करके लेट गया। बिना चाय के उसका दिमाग काम नहीं करता था। कुछ देर बाद झाना चाय लेकर हाजिर हो गया। झाना ने चुपचाप चाय रखी और जाने लगा। चाय की ट्रे रखने की आवाज सुनते ही सलीम उठ बैठा। उसने झाना को देखते ही कहा, “गुड मार्निंग माई डियर झाना उर्फ झुनझुना।”

झुनझुना कहने पर झाना ने मुंह बना लिया। सलीम ने उसके बिगड़े मुंह को देखते ही टोका, “सुबह-सुबह बिगड़ा हुआ मुंह मत दिखाया करो। अच्छा चलो फटाफट चाय उंडेल कर दो। चीनी आधा चम्मच और नींबू पांच बूंद।”

झाना ने टीकोजी हटाकर चाय केतली में उंडेल दी। उसके बाद उसने उसमें चीनी और नींबू की कुछ बूंदे डालकर सार्जेंट सलीम की तरफ बढ़ा कप बढ़ा दी। कप को नाक के पास ले जाकर सलीम ने उससे निकलती अरोमा का मजा लिया, फिर चाय का एक सिप लेकर कप को बेड के सिरहाने रख दिया।

“मुझे इजाजत है सार्जेंट साहब!” झाना ने पूछा।

“रुको न प्यारे कुछ देर।” सार्जेंट सलीम ने कहा।

झाना पीछे हाथ बांध कर खड़ा हो गया। सलीम ने आराम से चाय की दो-चार चुस्कियां और लीं उसके बाद उसने कहा, “तुमने अब तक शादी क्यों नहीं की।”

“आप जैसे बड़े भाई की जब तक शादी नहीं हो जाती... हमारा नंबर कैसे आ सकता है भला।” झाना ने हंसते हुए कहा।

“देखो प्यारे... हमारे खानदान में तो शादी-वादी होती नहीं। हम तो कुंआरे ही पैदा हुए थे और सोहराब साहब की चली तो कुंआरे ही मर जाएंगे। तुम कोई लड़की पसंद करो... तुम्हारे हाथ पीले करा दें। आखिर भाई का भी कुछ फर्ज होता है।” सलीम ने किसी बुजुर्ग के से अंदाज में गंभीरता से कहा।

“हाथ तो लड़कियों के पीले होते हैं।” झाना ने कहा।

“अच्छा अब तुम निकलो। इसका फैसला बाद में करेंगे कि हाथ किसके पीले होते हैं।” सार्जेंट सलीम ने कहा। दरअसल लड़की का नाम जुबान पर आते ही उसे सिंड्रेला याद हो आई थी। उस अमरीकन लड़की ने उसे अपना फोन नंबर भी दिया था। उसने कोट की जेब से उसका कार्ड निकाला और उसे फोन मिला दिया। उधर से हैलो की आवाज सुनते ही सलीम ने बड़ी रूमानियत से कहा, “प्रिंस मुजतबा सलीम फ्रॉम बंबेबो स्टेट।”

“याद आ ही गई आपको आखिर हमारी।” दूसरी तरफ सिंड्रेला थी।

“आप को कैसे भूल सकता हूं।” सलीम ने अदा के साथ कहा।

“अच्छा जी।” सिंड्रेला ने कहा।

“हां जी।” सलीम ने भी उसी अंदाज में जवाब दिया। फिर पूछा, “क्या कर रही हो।”

“शॉप पर जाने की तैयारी।” सिंड्रेला ने कहा।

“कब तक फ्री होगी।” सलीम ने पूछा।

“जब आप कहें।” उधर से जवाब मिला।

“साढ़े ग्यारह बजे आ रहा हूं।” सलीम ने कहा।

“ओके वेटिंग यू।” सिंड्रेला ने कहा और फोन काट दिया।

सलीम ने चाय की आखिरी सिप ली और बेड से उतर कर वाशरूम में घुस गया। कपड़े पहन कर उसने आखिरी बार खुद को आइने में देखा और कमरे से बाहर निकल आया। वह बहुत रोमांटिक मूड में था। वह ‘पुट योर हेड आन माय शोल्डर’ सांग पर सीटी बजा रहा था। पार्किंग से उसने घोस्ट निकाली और स्टेयरिंग सीट संभाल ली। इग्निशन में चाबी लगाकर कार स्टार्ट की और चल पड़ा। सीटी वह अब भी बजा रहा था। कोठी के अहाते का लंबा रास्ता तय करने के बाद वह सड़क पर आ गया।

वह घर से थोड़ा जल्दी निकल आया था। यही वजह थी कि कार की रफ्तार ज्यादा तेज नहीं थी। घोस्ट का रुख लार्ड एंड लैरी टेलरिंग शॉप की तरफ था। कुछ देर बाद वह शॉप पर पहुंच गया। उसकी कार को देखते ही सिंड्रेला बाहर निकल आई। उसने दूसरी तरफ का गेट खोला और सार्जेंट सलीम की बगल की सीट पर आकर बैठ गई।

“बहुत हसीन लग रही हो।” सार्जेंट सलीम ने कहा।

“हसीन मतलब!” सिंड्रेला ने पूछा।

“सो क्यूट... सो ब्यूटीफुल... सो चार्मिंग... सो...”

“ओके... ओके... समझ गई।” सिंड्रेला ने बीच में सलीम की बात काटते हुए कहा।

सिंड्रेला ने मैरून कलर की मिडी पहनी थी। कानों में फिरोजी कलर के टप्स पहन रखे थे और गले में भी इसी रंग का पेंडेंट झूल रहा था। मैरून कलर की ड्रेस में वह बहुत खूबसूरत नजर आ रही थी।

सिंड्रेला के बैठते ही घोस्ट आगे बढ़ गई।

“कितनी देर के लिए आई हो?” सलीम ने पूछा।

“जब तक तुम चाहो।” सिंड्रेला ने मुस्कुराते हुए कहा।

उसकी इस बात पर सलीम का दिल दो बार जोर से धड़का।

“यानी आज का पूरा दिन मेरे नाम है।” सार्जेंट सलीम ने खुशी जाहिर करते हुए कहा।

“यह मत समझना कि मैं अपने किसी भी ग्राहक के साथ यूं ही घूमने चल देती हूं।” सिंड्रेला ने कहा।

“जहे नसीब... लेकिन यह मेहरबानी मुझ पर ही क्यों?” सलीम ने पूछा।

“कुछ खास है तुम में।” सिंड्रेला ने मुस्कुराते हुए कहा और फिर पूछने लगी, “वह तुमने जाए नसीम क्या बोला था?”

“जहे नसीब... यानी आई एम लकी।” सलीम ने समझाते हुए कहा।

“ओह... थैंक्यू!”

शहर पीछे छूट गया था। घोस्ट सिसली रोड की तरफ जा रही थी। सलीम फिर से ‘पुट योर हेड आन माय शोल्डर’ सांग पर सीटी बजाने लगा। सिंड्रेला ने आंखें बंद कर लीं और सीटी की धुन को सुनने लगी।

सलीम यूं ही सिटी बजाता रहा और रास्ता कटता रहा। जब उसने सीटी बजाना बंद किया तो सिंड्रेला ने कहा, “तुम रीयली स्मार्ट एंड डैशिंग हो।”

सलीम जहे नसीब कहने जा रहा था, लेकिन नसीम वाली बात सोचकर फिर रुक गया। उसने कहा, “आपके साथ होने का असर है।”

“अच्छा जी।”

“सच्ची जी।”

“मुच्ची जी।” सिंड्रेला ने हंसते हुए कहा।

घोस्ट की स्पीड कम होने लगी और फिर वह एक तरफ मुड गई। उसने कुछ आगे जाकर एक टर्न और लिया और फिर घोस्ट एक जगह पर रुक गई। यह एक बहुत बड़ी सी चट्टान थी। सलीम ने इग्निशन से चाबी निकाली और नीचे उतर आया। सिंड्रेला भी दूसरी तरफ से उतर कर नीचे आ गई थी। उसने डोर लॉक किए और सिंड्रेला को लेकर चल पड़ा। खास बात यह थी कि सिंड्रेला ने एक बार भी उससे नहीं पूछा था कि वह उसे कहां ले जा रहा है।

सलीम सिंड्रेला को लेकर एक दर्रे में उतर गया। यह दर्रा काफी संकरा था। सिंड्रेला उसके पीछे-पीछे चली आ रही थी। कुछ दूर चलने के बाद सलीम दर्रे से बाहर आ गया। कुछ देर बाद सिंड्रेला भी उसकी बगल में आ कर खड़ी हो गई। वह चारों तरफ के नजारे बहुत ध्यान से देख रही थी। उसके मुंह से निकल पड़ा, “सो वंडरफुल प्रिंस। कितनी खूबसूरत जगह है।”

यह इलाका चारों तरफ से पहाड़ों से घिरा हुआ था। यूं लगता था कि यह पहाड़ों का आंगन हो। पहाड़ों से सरक कर आने वाले बारिश के पानी से यहां एक कुदरती झील भी बन गई थी। झील का पानी इस कदर साफ था कि तलहटी तक नजर आती थी। इस वादी में दर्जनों तरह के पेड़ उगे हुए थे। सैकड़ों तरह के फूल भी यहां खिलखिला रहे थे।

सार्जेंट सलीम एक बार पहले भी सोहराब के साथ यहां आ चुका था (पढ़िए जासूसी उपन्यास पीला तूफान)। इस जगह की खोज सोहराब ने ट्रैकिंग के दौरान की थी। इसके बारे में अभी राजधानी के लोग नहीं जानते थे। यहां की खूबसूरती इस बात की तस्दीक कर रही थी। वरना अब तक सॉफ्ट ड्रिंक और चिप्स के पैकेट यहां बिखरे पड़े होते।

सिंड्रेला अभी भी इस वादी की खूबसूरती को निहार रही थी। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि कोई इतनी खूबसूरत जगह भी हो सकती है। उसने सलीम की बाहों को मजबूती से पकड़ लिया। शायद वह महसूस करना चाहती थी कि यह ख्वाब तो नहीं है। सलीम उसे लेकर आगे बढ़ गया। कुछ दूर जाकर वह झील के किनारे पेड़ों के एक झुरमुट में बैठ गए। ठंडी-ठडी हवा चल रही थी। हवा से सिंड्रेला के बाल लहरा रहे थे। उनमें से निकल रही खुश्नुमा खुश्बू हवा में रचबस गई थी।

“यह मेरे स्टेट की प्रापर्टी है।” सलीम ने सिंड्रेला से कहा।

“ओह यस!” सिंड्रेला ने खुश होते हुए कहा।

“तुम्हे मुझसे एक प्रॉमिस करना होगा।” सलीम ने कहा।

“कैसा प्रॉमिस?”

“तुम इस जगह के बारे में किसी को नहीं बताओगी। मैं नहीं चाहता हूं कि बाहर के लोग यहां आकर इसकी खूबसूरती को बर्बाद कर दें।” सलीम ने कहा।

“गॉड प्रॉमिस!” सिंड्रेला ने सीने पर क्रॉस बनाते हुए कहा।


रिपोर्ट


इंस्पेक्टर सोहराब ऑफिस में बैठा हुआ था। वह सुबह जल्दी ही दफ्तर आ गया था। इस वक्त वह अपने लैपटॉप पर रिपोर्ट पढ़ रहा था। उसने खुफिया विभाग की लैब में घास, राख और सिगरेट के बड का पाउच दिया था। इसके अलावा सोहराब ने डॉ. वरुण वीरानी के कपड़े से मिले बुरादे को भी लैब में जांच के लिए दिया था। उन सभी चीजों की रिपोर्ट आ गई थी। सोहराब जैसे-जैसे रिपोर्ट पढ़ता जा रहा था, उसकी आंखें फैलती जा रही थीं। उसने पूरी रिपोर्ट को फिर से पढ़ डाला।

रिपोर्ट का लब्बोलुबाब यह था कि घास पर मिला तेजाब और डॉ. वीरानी के चेहरे के टिशू में मिला तेजाब एक ही था। सोहराब, जो राख होरारा जंगल से लेकर आया था, वह किसी कपड़े की ही राख थी। सबसे अहम जो सुराग मिला था, वह था सिगरेट का बड। उसमें सिगरेट पीने वाले का सूखा हुआ थूक मिल गया था। उस से डीएनए निकाला जा सका था। लैब टीम ने सिगरेट का ब्रांड भी उस पर मौजूद एक लोगो से पता कर लिया था। यह सोब्रानी ब्रांड की सिगरेट थी। सोब्रानी की गिनती दुनिया के सबसे महंगे ब्रांड्स में होती है। वैसे इस पार्टी में शामिल सभी लोग पैसे वाले थे। उनके लिए इतना महंगा ब्रांड पीना कोई मुश्किल बात नहीं थी।

इसके अलावा डॉ. वरुण वीरानी को जो कपड़े बदलाए गए थे, उनमें मिला बुरादा तंबाकू का था। यानी सिगरेट की बड फेंकने वाला और अपने कपड़े पहनाने वाला एक ही आदमी था, लेकिन वह कौन था? यह सबसे बड़ा सवाल था।

सोहराब सोच रहा था कि कातिल ने इतनी बड़ी गलती किस आधार पर कर दी कि उसे अपने कपड़े पहना दिए! शायद ऐसा उसने लाश को जल्दी ठिकाने लगाने की हड़बड़ाहट में किया होगा!

रिपोर्ट से केस काफी हद तक साफ हो चुका था। इंस्पेक्टर सोहराब के बहुत सारे अनुमान सही साबित हुए थे। यह रिपोर्ट उन अनुमानों का एक साइंटिफिक आधार थी। इसे झुठलाया नहीं जा सकता था।

सोहराब होठों पर तर्जनी उंगली रखे किसी गहरी सोच में डूबा हुआ था। वह तर्जनी उंगली को कुछ इस अंदाज में होठों पर रखता था, मानो चुप रहने को कह रहा हो। रिपोर्ट से कुछ बातें जरूर साफ हुई थीं, लेकिन अभी भी मुख्य सवाल कत्ल का मकसद और कातिल कौन है? इस पर अटका हुआ था। फिलहाल वह दो सवालों पर जेहन लगाना चाहता था। पहला पार्टी में शामिल कितने लोग हैं, जो सिगरेट पीते हैं और खास तौर से सोब्रानी ब्रांड। दूसरा ऐसे कितने लोग हैं, जो लॉर्ड एंड लैरी टेलर्स से कपड़े सिलवाते हैं।

सोहराब जानता था, 70 लोगों को चेक कर पाना मुश्किल जरूर था, लेकिन नामुमकिन नहीं।

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वह कौन था जो पीता था सबसे खास ब्रांड की सिगरेट?
आखिर कैसे खुलेगा कातिल का राज?

इन सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़िए कुमार रहमान का जासूसी उपन्यास ‘मौत का खेल’ का अगला भाग...