"निलेश !तुम अपने साथ में मौहानी को लेकर जाओ "
"पर !..क्यु मां ?" संकोचत हुऐ निलेश ने कहा
"क्युकि तुम्हारा वहां अकेले जाना मौत के पास जाना है इसलिए मौहानी तुम्हारी पूरी सहायता करेगी "
"ठीक है मां"
निलेश वापस अपनी बहन के पास लौट आता है
"निलेश जी !..आप आ गये औषिधि ले आऐ "
"नही !मौहानी ..मां ने वनभक्षी जंगल जाने के लिए कहा है " (घबराकर) वहां जाना खतरे से खाली नही है "
"मुझे पता है मौहानी इसलिए मां ने पता नही क्यु तुम्हे साथ ले जाने के लिए कहा है "
"हहहह हां ! ठीक है मैं चलती हूंँ आपके साथ आख़िर चंद्रिका को बचाना जरूरी है "
"तुम दोनो जल्दी जाओ चंद्रिका का शरीर नीला पड़ने लगा है"
"हां ! संचिता तुम ध्यान रखना "
दोनो वनभक्षी जंगल में पहुंचते है
"मौहानी...! वो रही औषिधि "
"निलेश जी ! रूक जाईऐ आप आगे नही जा सकते "
तभी जोर से आवाज आती है
"सावधान ! जादुगर तुमने अगर एक भी कदम आगे बढ़ाया मार दिये जाओगे "
"तुम कौन हो ??"
"हम है इस प्रदेश के वनराजा ... किसी भी जादुगर को यहां आने की आज्ञा नही "
"वनराजा ! मुझे ये घृतफनी औषिधी चाहिए "
"नही ..."
निलेश को गुस्सा आ जाता है
"निलेश जी! शांत रहिए ....हे ! वनराजा मैं मौहानी आपसे विनति करती हूँ ये औषिधी हमे दे दीजिये हमे इसकी बहुत आवशकता है "
"हमने एक बार मना कर दिया न "
"वनराजा ! स्मरण कीजिये मैं मौहानी .... जादुगरनी कंचना की बेटी चंद्रिका को उस गजमोहनी ने छलावी खरगोश के जरिए उसको विष दे दिया है आप जानते हैं उसका बचना जरूरी है ये आपके लिए भी फायदा है "
"हां !...मौहानी हम समझ गये तुम कौन हो चंद्रिका को बचाना जरूरी है ....ले जाओ औषिधी और किसी चीज की आवशकता हो तो जरूर बोलना "
इन दोनो की हुई बातो को सुनकर निलेश विचार करने लगता है आख़िर ये इतनी जल्दी कैसे मान गये
"क्या हुआ निलेश जी क्या सोच रहे हैं चलिऐ जल्दी चंद्रिका को ये औषिधी देनी है "
"हां ! चलो "
आधे रास्ते में पहुंचते है तभी अचानक
"ठहरो .....तुम ऐसे नहीं जा सकते "
"कौन हो तुम हमारा रास्ता रोकने वाले "
"हम है जादूगरनी गजमोहीनी के छली सिपाही ...उनकी आज्ञा है तुम्हे ये औषिधि न ले जाने दे "
"तुम हमारा रास्ता रोकोगे ..ये औषिधी तो मैं लेकर जाऊंगा हिम्मत है तो छिन कर दिखाओ "
"निलेश जी ! इनसे लड़ने में समय न बर्बाद करे ...मैं इन्हे अभी ठीकाने लगा देती हूंँ "
मौहानी अपनी जादुई शक्ति के जरिए उन सबको खत्म कर देती है निलेश अवाक सा बस उसे देखता रहता है
"मुझे पता है निलेश जी आपके मन में बहुत सारे प्रश्न उठ रहे है आख़िर वनराजा इतनी जल्दी कैसे मान गये ..मुझमे इतनी शक्ति कैसे है ये सब मैं आपको बता दूंगी पहले जल्दी से ये औषिधि चंद्रिका को दे दे फिर बताती हूंँ"
"ठीक है!"
दोनो यमार पहाड़ी पहुंचते है... मौहानी औषिधी चंद्रिका को पिलाती है
"अब चिंता मत कीजिये ये जल्दी होश में आ जाऐगी "
"मौहानी अब बताओ तुम्हारीं क्या कहानी है आख़िर तुममे इतनी शक्ति कैसे है "
"निलेश जी ! मुझसे घबराईये मत मैं आपकी सहायता करने आई हूंँ .....अब सुनिए मेरी कहानी "