importance of independence in Hindi Philosophy by Rudra S. Sharma books and stories PDF | स्वतंत्रनिर्भरता का महत्व

Featured Books
Categories
Share

स्वतंत्रनिर्भरता का महत्व


"स्वतंत्रनिर्भरता का महत्व"

आत्मा को परमात्मा से मिलन कर, परम् यानी सर्वश्रेष्ठ आत्मा बनने के लियें स्वयं के ही तंत्र पर निर्भर होकर आत्म निर्भर स्वतंत्र बनना अनिवार्य हैं।

वह आत्मा किसी भी आत्माओं के तंत्र का या जन तंत्र का अंग क्यों नहीं हो; उस तंत्र में भले ही वर्ण व्यवस्था का संतुलन समानता के आधार पर हों परंतु उसे संतुलन पूर्णता के आधार पर ही बनना चाहिये।

ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र यह चार अंग होंगे आत्मा या जन जिस जन समूह का अंग हैं; उस जन समूह के परंतु "आत्मा या जन को मन, मस्तिष्क, तन और आत्मा सें; ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र यह चारों होना चाहिये। संतुलन समानता से तो बना दिया हैं उस तंत्र में जिसका वह अंग हैं; संतुलन पूर्णता से भी उसे बनाना चाहिये।"

वह ब्राह्मण की तरह होगा तो, जागरूकता पूर्वक मन-मस्तिष्क की समझ के आधार पर निर्णय लेकर; उचितानुकूल जान सकेगा, वह क्षत्रिय एक कुशल क्षत्रिय भी रहा तो जागरूकता पूर्वक अपनी रक्षा करने योग्य रहेगा, वह वैश्य होने की भी योग्यता वाला हुआ तो; अपना भरण-पोषण भी कर पायेगा और शूद्र होने की भी योग्यता वाला हुआ तो स्वयं से संबंधित घृणित से अधिक घृणा वाला कर्म भी सहजता से कर पायेगा; वह यह समझ पायेगा कि घृणित हुआ तो क्या; हमसे ही संबंधित हैं अतः घृणा करना; हमारी अज्ञानतावश की गयी क्रिया हैं अतः हमारें विकार को आवश्यकता से अधिक महत्व नहीं देकर; महत्वपूर्ण कर्म को हमें महत्व देना चाहिये। समता ही अनंत की परम् वास्तविकता हैं अतः आकर्षक करने वाले के ही पूर्णतः समान घृणित लगने वाला भी हैं।

यदि तंत्र का हर एक जन अपनी चारों आवश्यकताओं की पूर्ति की योग्यता रखेगा; तो सदैव संतुलन की स्थापना करने की योग्यता रख, संतुलन स्थापित कर सकेगा; भले ही उसके समाज या तंत्र के वर्ण योग्य हो या नहीं और ऐसा करके सदैव संतुष्ट रहेगा।

यहाँ तक कि उसे उसके संसार के उद्देश्य से परे आत्मा के उद्देश्य या संतुष्टि की भी प्राप्ति अर्थात् मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग भी स्वयं ही खोजना तथा स्वयं आत्मनिर्भर स्वतंत्र होकर सुनिश्चित करना चाहिये क्योंकि इसके अपने।ही मायनें है; जो इसे महत्वपूर्ण बनाते हैं इसलिये मेरी ही तरह बुद्ध भी कहते हैं कि 'अप्प दीपो भव' अर्थात अपना प्रकाश स्वयं बनो। गौतम बुद्ध के कहने का मतलब यह है कि किसी दुसरे से उम्मीद लगाने की बजाये स्वयं से।संबंधित काज स्वयं कीजिये।

जब बात परम् या सर्वश्रेष्ठ उद्देश्य की प्राप्ति की हैं तो इसी कारण से मैं प्रति पल, प्रति क्षण ज्ञान की प्राप्ति ज्ञान के मूल स्रोत (चिंतन) से करता रहता हूँ। ज्ञान के अन्य स्रोतों से ज्ञान प्राप्ति को महत्व नहीं देता क्योंकि वहाँ से ज्ञान तो प्राप्त हो जाता है परंतु उसके सही मायने ज्ञान के मूल स्रोत से ही प्राप्त होते है। अन्य स्रोतों का सहारा तो केवल इसकी पुष्टि के लिये करता हूँ, उस सूत्र के माध्यम् से जो मैंने चिंतन से ज्ञात किया है; उसकी कसौटी पर कस अन्य स्रोतों के ज्ञान की पुष्टि करने हेतु मैंने। जब भी ऐसा कुछ ज्ञात होता है, जिसे की सभी के लिये जानना महत्वपूर्ण है, उसकी अभिव्यक्ति यथा संभव मैं परम् अर्थ (हित) की सिद्धि हेतु अपने लेखों, कविताओं तथा उद्धरणो के माध्यम से कर देता हूँ परंतु जिस तरह मूल स्रोत (चिंतन) को छोड़ अन्य स्रोतों से ज्ञान की प्राप्ति मेरे लिये उचित नहीं क्योंकि जब तक उस ज्ञान के सही मायनों को नहीं समझ सकता, वह मेरे लिये बाबा वचन [थोड़ी सी भी या पूरे तरीके से समझ नहीं आ सकने वाली या तुच्छ/व्यर्थ बातें (ज्ञात होने वाला ज्ञान)] ही है ठीक आपके लिये भी यह वही तुच्छ या समझ से परे ज्ञान है अतः आप भी मेरी ही तरह चिंतन से इसे प्राप्त कीजिये तथा मेरी ही तरह उस सूत्र के माध्यम् से जो आप मेरी तरह चिंतन से ज्ञात करोगें; उस सूत्र की कसौटी पर कस मेरे द्वारा दिये ज्ञान की पुष्टि करोगें तभी उसके सही मायनों में ज्ञात कर सकोगें।

- © आर. एस. शर्मा