बद्री विशाल सबके हैं 2
कहानी
स्वतंत्र कुमार सक्सेना
पटेल साहब सपरिवार पिता पत्नी बेटा ,डा. माथुर सपरिवार उनकी पत्नी श्रीमती डा. माथुर उनका बेटा -बेटी उनके पिता जी व उनके ससुर साहब व सास साथ थे ।इस तरह बीस- बाईस लोगों का ग्रुप चला बहुत सारा सामान साथ था । डा.अहमद के साथ उनकी पत्नी डा.शैलजा अहमद उनकी मां (डा. अहमद की सास) श्रीमती सुमंगला बनर्जी उनकी बेटी नईमा वह भी कॉलेज से आ गई थी ,बेटा कॉलेज टूर में गोवा गया था ।पहले तो रेल से जाना तय था फिर एक पूरी लक्जरी बस किराए से ली गई गाड़ी वाले ठेकेदार /मालिक से कहा गया बस खाली होगी पर बीच में कहीं से कोई सवारी नहीं बिठाई जाएगी ।सब लोग रास्ते में रूकते चले अन्य तीर्थों व स्थानों को देखते आराम करते खाने का सामान आटे का बोरा दाल चावल पर्याप्त मात्रा में सरसों के तेल का टीन पांच किलो घी मसाले व सोचा गया सब्जी रास्ते में ले लेंगे हां आलू रख लिए खाना बनाने के बर्तन कुकर वगैरह परात भगोने व खाने के लिए कागज की प्लेट्स कटोरी गिलास बाल्टी ।देा पुरूष और एक महिला काम वाले नौकर भी साथ थे वृद्ध लेट कर चलते जब मर्जी हो बैठ जाते । इस तरह कारवां चल दिया ।
सबने जोर से नारा लगाया-‘ भगवान बद्री विशाल की जय ।‘
वे दो दिन –तीन दिन में हरिद्धार पहुंचे वहां सब लोग रूके गंगा स्नान किया ,मंदिर घूमे, सबने अपनी- अपनी श्रद्धानुसार आवश्यक पूजा पाठ किया। डा.अहमद दम्पति वहां अपने एक मित्र डाक्टर साहब से मिलने गए साथ में डा.माथुर साहब व श्रीमती डा. माथुर भी गए वहां जाकर पता लगा उन डा. साहब की पत्नी जो स्वयं डा. थी श्रीमती डा. माथुर की क्लास फेलो निकलीं बहुत दिन बाद दो सहेलियां मिलीं वे सब गायत्री संस्थान भी गए बहुत से लोग सस्ंथान के व गुरू जी के अनुयायी थे वहीं सबने भोजन (लंच) किया कई लोगों के मित्र व परिचित मिले बहुमूल्य सलाह मिली मार्ग दर्शन मिला । आगे वे रिषीकेश पहंचे वहां भी सब लोग पुन: रूके हालांकि गाड़ी चालक ने कहा जल्दी कर लें आगे कठिन मार्ग है देर लगेगी ।फिर गंगोत्री यमुनोत्री केदारनाथ होते वे अंत में बद्रीनाथ धाम पहुंचे तब तक शाम हो गई थी ।वहां पंडा जी से सम्पर्क किया वे मिल गए आज पंडा जी के साथ एक नौजवान था जो उनकी तरह ही गोरा- चिट्टा पहाडी चेहरे -मोहरे का था पर उनसे एक बलिश्त उंचा स्मार्ट था पूंछने पर पंडा जी ने बताया-‘ मेरा बेटा रूडकी से इंजीनियर है, अभी आया है, साथ मदद करता है, एम. बी. ए.कर रहा है, वैसे एम. टेक. कर लिया है,।.एक साल दुबई काम कर आया है ,अब जाने क्या सूझी बोला-‘ एम. बी. ए. और करूंगा,।‘ मैने कहा-‘ यह भी कर लेा, जब तक मैं हूं मन की सारी इच्छाएं पूरी करलेा, बाद की तुम जानो।‘ सब हंसने लगे । उसने सबको नमस्ते किया पंडा जी ने कहा-‘ ये सामान्य यजमान नहीं हैं ,सब मेरे मित्र हैं ,तेरा टेस्ट लेंगे, असली एक्जाम।‘ तो सब हंस पड़े वह भी मुस्कराया-‘ I am ready जैसा आप चाहें ।‘ उसने फिर से सर झुका कर नमस्कार किया-‘ I accept your challenge, I will serve my best(आपकी चुनौती स्वीकार है पूरे समर्पण से श्रेष्ठ सेवा दूंगा ) ।‘सब लोगों को पहले चाय दी गई फिर थोड़ी देर में बताया भोजन तैयार है आप लोग फ्रेश हो लें तब तक आरती का समय हो गया था उत्साही सदस्य मंदिर जाकर आरती में सम्मिलित हो आए भीड़ कम थी सर्दी की आमद -आमद थी ।सब लोग जिन्हें नहाना था या हाथ पैर धोना थे अन्य क्रियाओं से निवृत्त ,तैयार हो लिए, तब तक खाना आ गया, सब ने भोजन किया । ठहरने को तीन छोटे कमरे थे एक बडा हॉल था। सामान लगाया, बिस्तर लगाए, थके थे ,सब आराम करने लगे ।
दूसरे दिन सुबह नइ्रमा जल्दी जाग गई, उसने अलार्म लगा रखा था ।वह उठी फ्रेश हुई व नहा ली व तैयार हो गई । फिर डा.अहमद को जगाया-‘ पापा उठो।‘ वे फ्रेश होने चले गए व ब्रश करके उन्हें नहाने भेजा। कह रही थी-‘ फिर सब लोग जाग जाएंगे।‘ वह किसी को मोबाईल से कॉल कर रही थी विशेष टाईम पूंछ रही थी तब तक पटेल साहब जाग गए व अहमद साहब के बाद वे फ्रेश होने गए व ब्रश कर रहे थे तो नईमा और डाक्टर साहब हॉल में एक कोने में फर्श फिर से झाड़कर बिछाने लगे व चादर फटकार कर बिछाई वे दोनो बाहर बरांडे में आए और सूरज के उगने को देखने लगे व पश्चिम का अंदाजा लगाया। पटेल साहब तब तक मुंह धो रहे ,थे उन्हें रूकने का हाथ से इशारा किया व बाथ रूम में जाकर वजू(विशेष तरह से नमाज के पूर्व हाथ पैर व मुंह धोना ) बना कर आ गए। तब तक वे बाप -बेटी दोनें अगल बगल खड़े हो गए थे, अहमद साहब ने सर पर रूमाल बांध लिया व बेटी हिजाब पहने थी ।वे दोनो बाप बेटी समान ऊंचाई के थे दोनो लगभग छ:फीट ऊंचे बेटी दुबली होने से जब वे दूर खडे होते थे तो अहमद साहब से ज्यादा लम्बी लगती थी जल्दी -जल्दी तेज कदम से पटेल साहब जाकर उनके बगल में खडे हो गए वे भी समान लम्बाई के थे पर दोनो से ज्यादा चौडे। मुस्करा कर बोले-‘ मैं बशीर खान ।‘ अहमद साहब ने घड़ी देखी नईमा की ओर निगाहें का इशारा किया, वे सब अब सामने देख रहे थे आंखें आधी बंद हो गई, अहमद साहब ने कान तक हाथ उठाऐ और मध्यम आवाज में खास सुर में लम्बा खींचते आवाज लगाई, अल्लाहो –अकबर ....... नमाज प्रारम्भ हो चुकी थी बाकी दोनों उनका अनुगमन कर रहे थे ।तब तक डा. माथुर ने हॉल में प्रवेश किया उन्होंने बाहर से आवाज लगाई-‘ पटेल साहब।‘ अन्दर से श्रीमती पटेल ने माथुर साहब की ओर ओंठों पर उंगली रख कर चुप रहने का ईशारा किया वे अंदर आए और उन तीनों को लाईन में लगे खड़े देख कर समझ गए पर पटेल साहब की ओर अंगूठे से इशारा कर हाथ प्रश्न वाचक मुद्रा में हिलाए आंखें भी चौड़ी हो गई बाहर चले गए लगभग बीस पच्चीस मिनिट बाद सब लोग घुटनों के बल दो जानु बैठे थे अब वे अपनी गर्दन दांएं बाएं कर रहे थे व हजरत मोहम्मद को सलाम कर रहे व आभार व्यक्त कर रहे थे तत्पश्चात सब खड़े हो गए अहमद साहब पटेल साहब के गले मिल कहा ईद मुबारक नईमा को भी ईद मुबारक दी पटेल साहब ने भी नईमा को ईद मुबारक दी श्रीमती पटेल आगे बढ़ीं व नईमा के गले मिलीं ईद मुबारक ।