SAAVAN - MANBHAAVAN in Hindi Spiritual Stories by Anand M Mishra books and stories PDF | सावन – मनभावन

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सावन – मनभावन

सावन का महीना मनभावन होता है। सावन की सुन्दरता का वर्णन मीराबाई ने बहुत ही सटीक से किया है - सावन में जब बादलों से बारिश होने लगती है तो मौसम सुहाना हो जाता है। सावन के आते ही मन में उमंग उठने लगते हैं। लगता है जैसे कि श्रीकृष्ण आनेवाले हैं। बादल चारों दिशाओं से उमड़-घुमड़ कर आते हैं। बिजली चमक चमक कर बारिश के आने की सूचना देती है। रिमझिम बारिश होने लगती है और सुहानी ठंडी हवा चलने लगती है। ऐसे में मीराबाई का मन होता है कि अपने प्रभु की आराधना में मंगल गान शुरु कर दें। कहने का भाव यह है कि मीराबाई जैसी साध्वी भी सावन की सुन्दरता से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकती है। सावन का महीना शिव का महीना कहलाता है। भगवान शिव विषधारण करने के कारण ‘नीलकंठ’ भी कहलाते हैं। त्रिमूर्ति की श्रृंखला में जितना शोषण भगवान शिव का हुआ है उतना शोषण और किसी का नहीं हुआ है। सबसे बड़ी बात जो महादेव के समर्थन में जाती है वह यह कि सब कुछ त्याग कर भी वे अपने परिवार सहित प्रसन्नता से रहते हैं।

बहरहाल इस वर्ष भी सावन का महीना आरंभ होने वाला है। इसमें कोई नयी बात नहीं है। भगवान शिव इस महीने में अधिक ही प्रसन्न रहते हैं। कारण यह है कि इस महीने में प्रकृति अपना नया रूप धारण करती है। भगवान शंकर प्रकृति के देवता हैं। प्रकृति के स्वरूप विराट है। पर्वत शिव का आवास होने के साथ-साथ उनकी क्रीडाभूमि है। पर्वत क्षेत्र के वन में शिव अपने क्रीडा को करते हैं। गंगा नदी को वे अपनी जटाओं में समेटे रहते हैं। गंगा उनकी जटाओं से निकलती है। इससे साबित होता है कि मानव कल्याण के हितार्थ ही वे धरती को जल देते हैं। मानव को प्राप्त पंच तत्त्व को नियंत्रित करने में भी शिव की भूमिका है। योग से वे वायु को नियंत्रित करते हैं। उनकी तीसरी आंख में अग्नि का तेज और माथे पर चंद्रमा की शीतलता है। आपस में विपरीत सम्बन्ध रखनेवाले सांप, बैल, मोर, चूहा उनके परिवार के सदस्य हैं। यह वास्तव में विचित्र बात है। यह हमें सिखाता है कि विपरीत परिस्थितियों में भी मिलकर रहने में ही सभी की भलाई है। उनके पुत्र गणेश का सिर हाथी का है। हो अधिक सुनने तथा सूक्ष्म निरीक्षण का सन्देश देता है। उनकी पत्नी पार्वती के एक रूप दुर्गा का वाहन सिंह है। सिंह की सवारी दुष्टों के संहार का सूचक है। उनका त्रिशूल प्रकृति के तीन गुणों-रज, तम और सत को बताते हैं। पर्वत उंचाई का प्रतीक है। उनके डमरू के स्वर में गीत-संगीत बसता है। सबसे बड़ी बात आसानी से उपलब्ध बेलपत्र, भांग की पत्तियों, धतूरे व कनैल के फूलों से की जाती है।

शिव निश्छल, कल्याणकारी हैं। वे जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। शिव के जीवन का यही संदेश है कि प्रकृति से तादात्म्य स्थापित कर जीवन में सुख-शांति, सरलता, शौर्य, योग, अध्यात्म सहित कोई भी उपलब्धि प्राप्त की जा सकती है। शिव का सावन प्रकृति के साथ साहचर्य का संदेश है। यह चेतावनी भी कि प्रकृति के साथ अनाचार का हासिल अंततः प्रलयंकारी तांडव के सिवा कुछ नहीं होने वाला है। एक मान्यता के अनुसार भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है। अंत में सावन के महीने में भगवान शिव और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा करने से भक्त की सभी मनोकामना पूरी होती हैं। सावन के महीने में भगवान शिव माता पार्वती के साथ पृथ्वी का भ्रमण करती हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करती है।