अगली सुबह सतरपूर की राजकुमारी सागरिका आती है
"प्रणाम राजमाता !"
"आओ !राजकुमारी कैसे आना हुआ !"
तभी अधिराज आता है
"सागरिका !(हैरानी से) इतनी सुबह "
"जी !पक्षिराज पिताजी ने वार्षिक उत्सव आयोजित किया है और आपको विशेष रूप से आमंत्रित किया है जरुर आईऐ "
"नही ...! हम नहीं आ सकते हमें कुछ विशेष कार्य है मां और रांजिकी आ जाऐंगे .."
"पर पक्षिराज पिताजी ने विशेष रूप से आपको आमंत्रित किया है"
"राजकुमारी ज्यादा हट्ट मत कीजिये"
"ठीक है ! राजमाता आप आ जाईऐगा "
इतना कहकर वो चली जाती है
"मां ! हम भी शाम तक ही आऐंगे ....शशांक !इनका ध्यान रखना "
"ठीक है! अधिराज "
अधिराज अपने मन की हलचल को खत्म करने के लिए इच्छा मणि के जरिए इंसानी दुनिया में पहुंचता है
"इच्छा मणि हमे उस लड़की के आसपास पहुँचा दे "
एक साधारण इंसान के चाल ढाल में ढलने में उसे दस मिनट लगे .....अधिराज एक काँलेज में पहुंचता है
"इतना प्यारा गिटार कौन प्ले कर रहा है रीना "
"पता नही कोई नया लड़का है सब उसके पास ही जा रहे ...तू चलेगी देखने "
"ठीक है चल"
दोनो वहां पहुंचती है
"अरे .....! ये तो वही लड़का है"
"कौन ...?"
"अरे ! रीना हमने जिस लड़की को जंगल के पास लाये थे जिसे चोट लगी थी .....उसका भाई है ये "
अधिराज चलने लगता है क्योकि उसे ये तस्सली मिल गयी की वो सही जगह आया है
...तभी आवाज लगती है ..
"रूको ....!"
"आप ....मेरा पीछा मत कीजिये"
"रूको तो सही ....तुम्हारीं गिटार की धुन बहुत अच्छी लगी "
"धन्यवाद .." चल देता है
"तुम कुछ ज्यादा ही शुध्द हिंदी बोलते हो ....(.तभी...)आह! छोड़ो मुझे "
"ऐ ! तूने ही हमारे बोस पर हाथ उठाया था न "
"छोड़ो मुझे "
"छोड़ो उसे ..."
"तू कौन है हीरो ..चल निकल यहां से "
"आख़िरी बार चेतावनी है मेरी छोड़ो उसे "
"पहले तुझ से ही निपट लेटे है "
आखिर पक्षिराज के आगे कौन टिक सकता था सब ढेर हो गये ...
"बस इतनी ही ताकत है तुम सब में ...एक लड़की पर अपनी ताकत दिखाते हो निकलो यहां से "
"थैंक्स ...!मुझे बचाने के लिए "
"ये तो मेरा फर्ज था "
"वैसे हाय ..! मैं आरुषि ..."
"आरुषि ...मैं अधि(सोचकर) अर्जुन "
"अर्जुन ..फ्रेंडस ...! "
"हां !"
आज अधिराज बहुत खुश है क्योकि उसकी जिदंगी में एक नयी खुशी मिल रही है वो अपने प्यार को पाने की राह में बढ़ रहा है
"तुम यहां रोज आती हो "
"हां ! कालेज तो रोज ही आती हूंँ पर तुम्हे पहली बार देखा है "
"हां ....अब रोज आ जाया करूंगा "
"अच्छा !मैं कल मिलूंगी .....बाय !"
अधिराज वापस अपने महल पहुंचता है
"शशांक ! मां आ गयी ...!"
"हां !अधिराज अपने कक्ष में है जाओ मिल लो उनसे "
" हां !"........प्रणाम मां !"
"आओ अधिराज हो गया तुम्हारा विशेष कार्य"
"जी !मां आप बताओ वहां कैसा लगा आपको "
"बहुत अच्छा आयोजन था बस सब तुम्हे ही पुछ रहे थे.....और हमने तुम्हारें और सागरिका के विवाह प्रस्ताव राजा पांजीर से के समक्ष रखा उन्हे स्वीकार है "
"पर मां आपने हमसे क्यु नहीं पुछा हमे सागरिका स्वीकार नहीं है बस आपसे कितनी बार कहा है "
गुस्सें में अधिराज अपने कमरे में चला जाता है
"एक राजा की खुशी की कोई परवाह नही करता इससे तो अच्छा मैं एक इंसान होता....... अब तो मैं सिर्फ आरूषि को ही अपने जीवन में अपनाऊंगा उसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े करूंगा..."